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कोल्हापुर में पोलैंड के 2000 लोगों ने ली थी शरण, पीएम मोदी की वारसॉ यात्रा से ताजा हुईं यादें - Kolhapur Poland friendship - KOLHAPUR POLAND FRIENDSHIP

Kolhapur Poland Friendship, पीएम नरेंद्र मोदी की पोलैंड की यात्रा के दौरान कोल्हापुर-पोलैंड की दोस्ती की इतिहास भी सामने आया है. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड से भागकर आए लोगों को पोलिश नागरिकों को शरण दी गई थी. पढ़िए पूरी खबर...

2000 people from Poland took refuge in Kolhapur
कोल्हापुर में पोलैंड के 2000 लोगों ने ली थी शरण (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 22, 2024, 10:18 PM IST

कोल्हापुर (महाराष्ट्र) : कोल्हापुर-पोलैंड का खास कनेक्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पोलैंड यात्रा के दौरान कोल्हापुर-पोलैंड की दोस्ती का स्वर्णिम इतिहास सामने आया है. कोल्हापुर में करवीर संस्थान ने द्वितीय विश्व युद्ध में जान गंवाने वाले पोलिश लोगों को शरण दी थी. इतना ही नहीं पोलिश अप्रवासी करीब पांच साल तक कोल्हापुर में रहे.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर ने पोलैंड के नागरिकों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था. तब जान के डर से पोलैंड के लोग देश छोड़कर भाग गए थे. उस समय जामनगर और करवीर संस्थान ने भारत आए पोलिश नागरिकों को शरण दी थी. वहीं छत्रपति राजाराम महाराज ने करीब 2000 पोलिश नागरिकों को शरण दी थी. उनके लिए कोल्हापुर के वालीवाडे में एक विशेष कॉलोनी बनाई गई थी. पोलिश अप्रवासी करीब पांच साल तक कोल्हापुर में रहे. यही वजह है कि कोल्हापुर से उनका रिश्ता आज भी कायम है.

युद्ध के दौरान कोल्हापुर में आकर बसे पोलिश शरणार्थियों ने कोल्हापुर के शाही परिवार को श्रद्धांजलि देने के लिए अपनी मातृभूमि में एक स्मारक बनाया है. पोलैंड की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्मारक का अभिवादन किया और एक बार फिर सात समंदर पार संरक्षित इस घनिष्ठ मित्रता के इतिहास को प्रकाश में लाया.

वालीवड़े गांव में स्वतंत्र कॉलोनी: दुनिया ने 1939 से 1945 के बीच द्वितीय विश्व युद्ध देखा. इस युद्ध के दौरान कई पोलिश नागरिकों को विस्थापित होना पड़ा. उनमें से कई ने भारत में शरण ली. उसी समय कोल्हापुर की गद्दी पर बैठे राजाराम महाराज छत्रपति ने उन्हें आश्रय दिया. वालीवड़े गांव में उनके लिए एक अलग कॉलोनी बनाई गई थी. उन्होंने पांच साल तक आश्रय दिया था. इस गांव में आज भी अपने वतन के लिए रवाना हुए पोलिश लोगों के पदचिह्न देखे जा सकते हैं. इन नागरिकों ने कोल्हापुर शहर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए थे. यही कारण है कि कोल्हापुर के पुराने संगम चित्र मंदिर के पास इस अवधि के दौरान मारे गए कई पोलिश लोगों के स्मारक हैं. दोनों देशों के बीच मैत्री की याद में महावीर उद्यान में एक स्मारक स्तंभ बनाया गया है.

1942 से कोल्हापुर में पांच साल के लिए बसे पोलिश नागरिक पापा परदेशी का शराब बेचने का कारोबार था. पोलैंड में शराब बेचना पाप माना जाता है. जिस इलाके में परदेशी की दुकान थी, वह फिलहाल कोल्हापुर शहर के बीचों-बीच है. इस बारे में कोल्हापुर के विद्वान और वरिष्ठ पत्रकार सुधाकर काशिद ने जानकारी प्रदान की.

ये भी पढ़ें- पोलैंड के पीएम डोनाल्ड टस्क के साथ पीएम मोदी की मुलाकात, द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा

कोल्हापुर (महाराष्ट्र) : कोल्हापुर-पोलैंड का खास कनेक्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पोलैंड यात्रा के दौरान कोल्हापुर-पोलैंड की दोस्ती का स्वर्णिम इतिहास सामने आया है. कोल्हापुर में करवीर संस्थान ने द्वितीय विश्व युद्ध में जान गंवाने वाले पोलिश लोगों को शरण दी थी. इतना ही नहीं पोलिश अप्रवासी करीब पांच साल तक कोल्हापुर में रहे.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर ने पोलैंड के नागरिकों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था. तब जान के डर से पोलैंड के लोग देश छोड़कर भाग गए थे. उस समय जामनगर और करवीर संस्थान ने भारत आए पोलिश नागरिकों को शरण दी थी. वहीं छत्रपति राजाराम महाराज ने करीब 2000 पोलिश नागरिकों को शरण दी थी. उनके लिए कोल्हापुर के वालीवाडे में एक विशेष कॉलोनी बनाई गई थी. पोलिश अप्रवासी करीब पांच साल तक कोल्हापुर में रहे. यही वजह है कि कोल्हापुर से उनका रिश्ता आज भी कायम है.

युद्ध के दौरान कोल्हापुर में आकर बसे पोलिश शरणार्थियों ने कोल्हापुर के शाही परिवार को श्रद्धांजलि देने के लिए अपनी मातृभूमि में एक स्मारक बनाया है. पोलैंड की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्मारक का अभिवादन किया और एक बार फिर सात समंदर पार संरक्षित इस घनिष्ठ मित्रता के इतिहास को प्रकाश में लाया.

वालीवड़े गांव में स्वतंत्र कॉलोनी: दुनिया ने 1939 से 1945 के बीच द्वितीय विश्व युद्ध देखा. इस युद्ध के दौरान कई पोलिश नागरिकों को विस्थापित होना पड़ा. उनमें से कई ने भारत में शरण ली. उसी समय कोल्हापुर की गद्दी पर बैठे राजाराम महाराज छत्रपति ने उन्हें आश्रय दिया. वालीवड़े गांव में उनके लिए एक अलग कॉलोनी बनाई गई थी. उन्होंने पांच साल तक आश्रय दिया था. इस गांव में आज भी अपने वतन के लिए रवाना हुए पोलिश लोगों के पदचिह्न देखे जा सकते हैं. इन नागरिकों ने कोल्हापुर शहर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए थे. यही कारण है कि कोल्हापुर के पुराने संगम चित्र मंदिर के पास इस अवधि के दौरान मारे गए कई पोलिश लोगों के स्मारक हैं. दोनों देशों के बीच मैत्री की याद में महावीर उद्यान में एक स्मारक स्तंभ बनाया गया है.

1942 से कोल्हापुर में पांच साल के लिए बसे पोलिश नागरिक पापा परदेशी का शराब बेचने का कारोबार था. पोलैंड में शराब बेचना पाप माना जाता है. जिस इलाके में परदेशी की दुकान थी, वह फिलहाल कोल्हापुर शहर के बीचों-बीच है. इस बारे में कोल्हापुर के विद्वान और वरिष्ठ पत्रकार सुधाकर काशिद ने जानकारी प्रदान की.

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