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गवली समाज की अनूठी परंपरा, छोटे बच्चों को गोबर पर फेंक मांगा सुख-समृद्धि का वरदान - SHAJAPUR GOVARDHAN PUJA

गवली समाज द्वारा कई पीढ़ियों से निभाई जा रही है यह अनूठी परंपरा. आस्था के साथ मनाया गया पड़वा पर्व, पूजे गए पशुधन.

Gawali community celebrated Govardhan Puja with great pomp
शाजापुर में गवली समाज ने धूमधाम से मनाई गोवर्धन पूजा (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 2, 2024, 5:25 PM IST

शाजापुर: दीपावली के दूसरे दिन जगह-जगह गोवर्धन पूजा होती है, लेकिन गवली समाज में इस पूजा का विशेष महत्व है. गवली समाज पशु पालक होने के साथ-साथ गौ माता में गहरी आस्था रखता है. पड़वा के दिन समाज की महिलाएं गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाती हैं और 56 भोग लगाकर उनकी पूजा करती हैं. पूजा के बाद छोटे बच्चों को गाय के गोबर से बने गोवर्धन पर लिटाया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चे वर्ष भर निरोगी रहते हैं. गवली समाज द्वारा यह परंपरा कई पीढ़ियों से निभाई जा रही है.

महिलाओं ने खीर-पूरी सहित 56 भोग चढ़ाकर की गोवर्धन पूजा

शाजापुर में गवली समाज के लोगों ने हजारों वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए शनिवार को गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज की आकृति बनाकर खीर-पूरी सहित 56 भोग चढ़ाकर गोवर्धन पूजा की. इसके बाद गोवर्धन में बच्चों को लिटा कर उनकी सुख-समृद्धि की कामना की. नई सड़क स्थित गवली मोहल्ले में गवली समाज की महिलाओं द्वारा गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज की आकृति का निर्माण किया गया, जिसके बाद समाज के सभी वरिष्ठजनों ने गोवर्धन की पूजा की.

शाजापुर में गवली समाज ने धूमधाम से मनाई गोवर्धन पूजा (Etv Bharat)

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भगवान कृष्ण ने ग्वाल वंश को इंद्र देव के प्रकोप से बचाने के लिए उठाया था गोवर्धन पर्वत

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ग्वाल वंश को इंद्र देव के प्रकोप से बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन को अपनी छोटी उंगली से उठाया था. तब से ग्वाल वंशियों द्वारा गोवर्धन महाराज की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन की पूजा-अर्चना करने से ग्वाल वंशियों के धन-भंडार भरे रहते हैं. उन पर कोई विपदा नहीं आती है. गोवर्धन पूजा के बाद गवली समाज लोगों ने दूध मुंहें बच्चों को गोवर्धन में लिटाकर गोवर्धन महाराज का आशीर्वाद दिलवाया. इसेक बाद ग्वालवंशियों ने समाज के वरिष्ठजन एवं माताओं के पैर छूकर आशीर्वाद लिए.

सीहोर में परंपरा के अनुसार मनाया जा रहा है गोवर्धन पूजा का पर्व

सीहोर: नगरीय क्षेत्र सीहोर सहित जिले भर में गोवर्धन पूजा का पर्व परंपरा अनुसार मनाया जा रहा है. इस पर्व के दौरान कुछ रोचक और आश्चर्यजनक परंपराएं भी देखने को मिल रही हैं. दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पर्व अमावस्या के चलते शनिवार को मनाया गया. ग्वालटोली क्षेत्र में गोवर्धन पर्व के दौरान अजब ही नजारा देखने को मिला. यहां नवजात बच्चों को अच्छे स्वास्थ्य की कामना को लेकर गोबर पर लिटाया गया. इस दौरान बड़ी संख्या में यादव समाज के लोग मौजूद रहे. ग्वालटोली के पार्षद प्रतिनिधि घनश्याम यादव ने बताया कि दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है. लेकिन अमावस्या के चलते शनिवार को मनाया जा रहा है. बच्चों को गोवर्धन से स्पर्श इसलिए कराया जाता है ताकि वे साल भर स्वस्थ रहें. यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है.

पड़वा पर पूजे गए पशुधन, आतिशबाजी के बाद चला बधाईयों का दौर

राजगढ़: शहर सहित अंचल में शनिवार को पड़वा पर्व आस्था के साथ मनाया गया. पशु पालकों ने अपने पशुधन को स्नान कराने के बाद उनका श्रृंगार कर पूजन किया. वहीं महिलाओं ने आंगन में गोबर के गोवर्धन पर्वत बनाकर परंपरानुसार पूजन किया गया. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पूजन प्रकृति और पशुओं के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए किया जाता है. क्योंकि प्रकृति जहां जीवन के लिए अन्न देती है वहीं पशु दूध, दही के साथ ही अन्न उत्पादन में महती भूमिका निभाते है. इस दौरान युवा- बच्चों ने जमकर पटाखे छोड़े. कई गांवों में पाड़ा लड़ाने की परंपराएं भी निभाई गई.हालांकि प्रशासनिक स्तर पर ऐसे आयोजनों पर रोक लगाई है. पड़वा पर जगह- जगह मंदिरों में अन्नकूट का आयोजन भी हुआ.

शाजापुर: दीपावली के दूसरे दिन जगह-जगह गोवर्धन पूजा होती है, लेकिन गवली समाज में इस पूजा का विशेष महत्व है. गवली समाज पशु पालक होने के साथ-साथ गौ माता में गहरी आस्था रखता है. पड़वा के दिन समाज की महिलाएं गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाती हैं और 56 भोग लगाकर उनकी पूजा करती हैं. पूजा के बाद छोटे बच्चों को गाय के गोबर से बने गोवर्धन पर लिटाया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चे वर्ष भर निरोगी रहते हैं. गवली समाज द्वारा यह परंपरा कई पीढ़ियों से निभाई जा रही है.

महिलाओं ने खीर-पूरी सहित 56 भोग चढ़ाकर की गोवर्धन पूजा

शाजापुर में गवली समाज के लोगों ने हजारों वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए शनिवार को गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज की आकृति बनाकर खीर-पूरी सहित 56 भोग चढ़ाकर गोवर्धन पूजा की. इसके बाद गोवर्धन में बच्चों को लिटा कर उनकी सुख-समृद्धि की कामना की. नई सड़क स्थित गवली मोहल्ले में गवली समाज की महिलाओं द्वारा गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज की आकृति का निर्माण किया गया, जिसके बाद समाज के सभी वरिष्ठजनों ने गोवर्धन की पूजा की.

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ग्वाल वंश को इंद्र देव के प्रकोप से बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन को अपनी छोटी उंगली से उठाया था. तब से ग्वाल वंशियों द्वारा गोवर्धन महाराज की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन की पूजा-अर्चना करने से ग्वाल वंशियों के धन-भंडार भरे रहते हैं. उन पर कोई विपदा नहीं आती है. गोवर्धन पूजा के बाद गवली समाज लोगों ने दूध मुंहें बच्चों को गोवर्धन में लिटाकर गोवर्धन महाराज का आशीर्वाद दिलवाया. इसेक बाद ग्वालवंशियों ने समाज के वरिष्ठजन एवं माताओं के पैर छूकर आशीर्वाद लिए.

सीहोर में परंपरा के अनुसार मनाया जा रहा है गोवर्धन पूजा का पर्व

सीहोर: नगरीय क्षेत्र सीहोर सहित जिले भर में गोवर्धन पूजा का पर्व परंपरा अनुसार मनाया जा रहा है. इस पर्व के दौरान कुछ रोचक और आश्चर्यजनक परंपराएं भी देखने को मिल रही हैं. दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पर्व अमावस्या के चलते शनिवार को मनाया गया. ग्वालटोली क्षेत्र में गोवर्धन पर्व के दौरान अजब ही नजारा देखने को मिला. यहां नवजात बच्चों को अच्छे स्वास्थ्य की कामना को लेकर गोबर पर लिटाया गया. इस दौरान बड़ी संख्या में यादव समाज के लोग मौजूद रहे. ग्वालटोली के पार्षद प्रतिनिधि घनश्याम यादव ने बताया कि दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है. लेकिन अमावस्या के चलते शनिवार को मनाया जा रहा है. बच्चों को गोवर्धन से स्पर्श इसलिए कराया जाता है ताकि वे साल भर स्वस्थ रहें. यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है.

पड़वा पर पूजे गए पशुधन, आतिशबाजी के बाद चला बधाईयों का दौर

राजगढ़: शहर सहित अंचल में शनिवार को पड़वा पर्व आस्था के साथ मनाया गया. पशु पालकों ने अपने पशुधन को स्नान कराने के बाद उनका श्रृंगार कर पूजन किया. वहीं महिलाओं ने आंगन में गोबर के गोवर्धन पर्वत बनाकर परंपरानुसार पूजन किया गया. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पूजन प्रकृति और पशुओं के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए किया जाता है. क्योंकि प्रकृति जहां जीवन के लिए अन्न देती है वहीं पशु दूध, दही के साथ ही अन्न उत्पादन में महती भूमिका निभाते है. इस दौरान युवा- बच्चों ने जमकर पटाखे छोड़े. कई गांवों में पाड़ा लड़ाने की परंपराएं भी निभाई गई.हालांकि प्रशासनिक स्तर पर ऐसे आयोजनों पर रोक लगाई है. पड़वा पर जगह- जगह मंदिरों में अन्नकूट का आयोजन भी हुआ.

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