हजारीबाग: पूरे देश में नवरात्रि हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है. हर जगह आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा की जा रही है. मां दुर्गा के कई रूप हैं. कहीं मां की ज्योति, नयन, चरण की पूजा की जाती है. तो कहीं किसी और रूप की. लेकिन हजारीबाग के इचाक में मां के निराकार रूप की पूजा की जाती है. यहां न तो कोई पिंडी है और न ही कोई मूर्ति. इस मंदिर को लोग बुढ़िया माता मंदिर के नाम से जानते हैं. यह परंपरा 20 सालों से आ रही है.
सबकी मनोकामना पूरी करती हैं मां
इस मंदिर की मान्यता है कि जिसने भी यहां अपनी झोली फैलाई और सच्चे मन से मां से मांगा, मां उसकी मनोकामना पूरी करती हैं, उसकी झोली भर देती हैं. भक्तों का यह भी कहना है कि जब भी हमने यहां सच्चे मन से कुछ मांगा है, मां ने हमें आशीर्वाद दिया है. इसलिए जब भी हम हजारीबाग आते हैं, मां के दरबार में जरूर आते हैं.
एक महिला कहती है कि मैं आज पहली बार मंदिर आई हूं. मुझे इस मंदिर के बारे में पता चला कि यहां मांगी गई मुरादें पूरी होती हैं. मैं मां के दरबार में मुराद मांगने आई हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि मां मेरी झोली भी भर देंगी.
सप्तमी के दिन चढ़ाया जाता है सिंदूर
जिले के इचाक प्रखंड के बनस टांड़ में बुढ़िया माता मंदिर स्थित है. नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में एक अलग परंपरा के साथ पूजा-अर्चना की जाती है. जो अनोखी है. नवरात्रि में यहां 14 दिनों तक पूजा-अर्चना होती है. लेकिन सप्तमी के दिन मां को सिंदूर चढ़ाया जाता है. लोग दूर-दूर से सिंदूर चढ़ाने आते हैं. बुढ़िया माता मंदिर में दीवार पर ही आकृति उभरी हुई है. उस पर सिंदूर लगाने की परंपरा है.
मंदिर की पौराणिक कहानी
स्थानीय बताते हैं कि इस मंदिर की एक पौराणिक कहानी है. कहा जाता है कि 1668 में इचाक में हैजा महामारी के रूप में फैला था. उस समय इचाक बाजार में एक बूढ़ी माता दिखी. इस बीमारी को दूर करने के लिए उसने मिट्टी दी और गांव से दूर रखने को कहा. कुछ समय बाद माता वहां से अंतर्ध्यान हो गई और धीरे-धीरे महामारी भी समाप्त हो गई. माता द्वारा दी गई मिट्टी ने दियाड का रूप ले लिया. जिसकी पूजा वर्षों से की जा रही है.
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