देहरादून: उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग एक बार फिर से सुर्खियों में है. अल्मोड़ा में जंगल की आग ने गुरुवार 13 मई को वन विभाग के चार कर्मचारियों की जान ले ली. वहीं अन्य चार कर्मचारी इस आग में गंभीर रूप से झुलस गए थे, जिनका हॉस्पिटल में उपचार चल रहा है. अभी भी उत्तराखंड के कई जंगल ऐसे है, जो धधक रहे है. जहां वनाग्नि शांत होने का नाम ही नहीं ले रही है. वर्तमान हालात की बात करें तो गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक कई जगहों पर जंगलों में आग लगी हुई है, जिस पर काबू पाने में पूरा सरकारी अमला जुटा हुआ है. वनाग्नि पर काबू पाने के लिए एयरफोर्स की मदद ली गई है.
वनाग्नि से अबतक 10 लोगों की जान गई: उत्तराखंड में इस साल वनाग्नि के जमकर तांडव मचाया है. फायर सीजन शुरू होने से पहले वन विभाग ने दावा किया है कि इस बार वनाग्नि पर काबू पाने के लिए उन्होंने पूरी तैयारियां कर रखी है, लेकिन जैसे-जैसे उत्तराखंड में तापमान बढ़ता गया, जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी उतनी ही तेजी से बढ़ती रही. उत्तराखंड में जंगलों की आग की विकरालता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस फायर सीजन में वनाग्नि से 10 लोगों की जान चुकी है, जिसमें से 9 तो अकेले अल्मोड़ा जिले में गई है.
पहले अल्मोड़ा बिनसर वन्यजीव अभ्यारण की घटना पर एक नजर: दरअसल, बीते गुरुवार 13 जून को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित बिनसर वन्यजीव अभ्यारण के जंगल में आग लगने का मामला सामने आया था. जंगल में आग लगने की जानकारी मिलते ही वन विभाग के आठ कर्मचारी बोलेरो में सवार होकर वनाग्नि को बुझाने के लिए निकले.
हवा के तेज झोंके से विकराल हुई आग: बताया जा रहा है कि महादेव मंदिर के आसपास भी आग लगी हुई थी, जिसे बुझाने के लिए कुछ कर्मचारी तो वहीं गाड़ी से उतर गए और कुछ कर्मचारी गाड़ी से आगे की तरफ जाने लगे. कहा जा रहा है कि तभी हवा का एक तेज झोंका आया और जंगल में लगी आग अचानक से विकराल हो गई. कर्मचारी इससे पहले कुछ समझ पाते वो वनाग्नि की चपेट में आ गए थे.
जाने बचाने के लिए इधर-उधर छटपटाते रहे कर्मचारी: बताया जा रहा है कि कपड़ों में लगी आग को बुझाने के लिए कर्मचारी इधर-इधर भागते हुए छटपटा रहे थे, लेकिन उन्हें अपनी जान बचाने का कोई रास्ता नहीं मिला. वनाग्नि की वजह से उस इलाके में इतना धुआं छा चुका था कि आसपास कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था. ऐसे ही छटपटाते हुए वन विभाग के चारों कर्मचारियों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.
ग्रामीणों ने बचाई चार कर्मचारियों जान: वहीं, दूसरी तरफ गाड़ी में बैठे अन्य चार कर्मचारी भी वनाग्नि से घिर गए थे. वो भी इस आग में बुरी तरह से झुलस गए थे, जिन्हें स्थानीय लोगों ने अपनी जान पर खेलकर बचाया है. गंभीर रूप से झुलसे चार कर्मचारियों को हॉस्पिटल में उपचार चल रहा है, जिसमें से दो कर्मचारियों को एयर एबुलेंस से दिल्ली एम्स रेफर किया गया है. वन विभाग की गाड़ी की हालत देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि जंगल की आग कितनी विकराल थी, जिसने कुछ ही देर में पूरी गाड़ी को खाक कर दिया. घायलों को ग्रामीणों ने ही अपनी गाड़ी से ही हॉस्पिटल पहुंचाया था.
इस सीजन में अभीतक 1220 वनाग्नि की घटनाएं आई सामने: उत्तराखंड में जंगल की आग ने इस साल किस कदर तांडव मचाया है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 13 जून तक प्रदेश में वनाग्नि के 1220 मामले दर्ज किए हैं. शायद प्रदेश के ऐसा कोई जिला होगा, जहां पर इस साल वनाग्नि का मामला सामने न आया हो.
कुमाऊं से सबसे ज्यादा नुकसान: गढ़वाल के मुकाबले इस बार कुमाऊं में वनाग्नि ने ज्यादा तांडव मचाया है. वर्तमान में चिनियालीसा और नगुन बैरियर के पास तक आवासीय बस्ती तक जंगल की आज पहुंच गई. इसके साथ ही बड़कोट में भी आग ने अपना तांडव मचाया. यहां सरकारी गेस्ट हाउस तक जंगल की आग पहुंच गई थी, जिस पर बड़ी मुश्किल से काबू पाया गया.
देहरादून में भी कई जंगह धधक रहे जंगल: देहरादून जिले की बात करें तो यहां भी चकराता क्षेत्र में जंगल वनाग्नि से धधक रहे है. अल्मोड़ा में कटारमल गेस्ट हाउस भी आग की चपेट में आ गया. वनाग्नि के मामलों में अल्मोड़ा जिला प्रदेश में चौथे नंबर पर आता है. जबकि पहले नंबर पर देहरादून जिले में स्थित मसूरी वन प्रभाग आता है.
कुमाऊं की अगर बात करें तो मौजूदा समय में बागेश्वर जिले के पालिनीकोर्ट के जंगल अभी भी जल रहे हैं. इसके अलावा रानीखेत के बाबर खोला के जंगलों में आग लगातार धड़क रही है. रानीखेत में कई जगहों पर भी आग लगने की सूचना प्राप्त हो रही है. कालिका मंदिर के पास भी वन विभाग को आग लगने की सूचना मिली है.
एयरफोर्स की ली गई मदद: देहरादून के चकराता छावनी परिषद के आरक्षित वन क्षेत्र में देर शाम से भीषण आग लगी हुई है. आग को बुझाने के लिए सेना के जवान और छावनी परिषद की जंगलात टीम लगातार प्रयास कर रही है. वनरक्षी हृदय सिंह चौहान की माने तो काफी हद तक आग पर काबू पा लिया गया है. जंगल में आग किन वजहों से लगी से इसका भी पता लगाया जा रहा है.
जल स्रोत सूखने के साथ ही मवेशियों के लिए चारे का संकट: जंगल की आग से पर्यावरण को भी बड़ा नुकसान पहुंच रहा है. वनाग्नि के कारण एक तरफ जहां प्राकृतिक जल स्रोत सूखने की कगार पर है तो वहीं जंगलों में घास जलने के कारण मवेशियों के लिए चारा भी नहीं बचा है. इसके अलावा वन्यजीवों को वनाग्नि के बड़ा खतरा है.
इस सीजन में आग लगने की कुल घटनाएं: उत्तराखंड में इस साल 13 जून तक वनाग्नि के 1220 घटनाएं सामने आई है, जिसमें से 591 कुमाऊं और 523 मामले गढ़वाल में दर्ज किए गए है. जबकि वन्य जीव क्षेत्र में 106 घटनाएं रिकॉर्ड की गई है. इन 1220 घटनाओं में करीब 1657 हेक्टेयर क्षेत्रफल वन संपदा जलकर राख हुई है.
20 जून तक फायर सीजन: बता दें कि वन विभाग हर साल 15 फरवरी से लेकर 15 जून तक फायर सीजन मानता है, लेकिन अब बिगड़ते हालत को देखते हुए वन विभाग ने 20 जून तक फायर सीजन घोषित कर दिया है. यानी तमाम कर्मचारी और अधिकारी जो जंगलों की आग बुझाने के लिए लगे हुए हैं, अब वह 20 तारीख तक अपनी ड्यूटी पर तैनात रहेंगे,. इसके साथ ही राज्य सरकार ने वन विभाग से अल्मोड़ा घटना की पूरी विस्तृत रिपोर्ट मांगी हैं.