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किसान 15 सालों से नदी में भर रहा है बोलवेल का पानी, जंगली जानवर बुझाते हैं प्यास - FARMER Fills WATER in the RIVER

Farmer Drain Water to River, गर्मी के चलते कुएं और नदियां सूख रही हैं. जंगली जानवर पीने के पानी की तलाश में मीलों का सफर कर रहे हैं. लेकिन एक किसान ने उनकी प्यास बुझाकर ध्यान आकर्षित किया है. वह अपने बोरवेल का पानी सूखी हुई नदी में बहाकर नदी में पानी भर देते हैं, जिससे जंगली जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं. किसान के इस कार्य की सराहना हो रही है.

Farmer fills water in the river
नदी में पानी भरता है किसान
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 25, 2024, 6:48 PM IST

शिवमोग्गा: बारिश की कमी के कारण नदियां सूखती जा रही हैं और नहरें सूख गई हैं. इसके चलते जंगली जानवर पीने के पानी की तलाश कर रहे हैं. लेकिन कर्नाटक के शिवमोग्गा में एक किसान जंगली जानवरों की खातिर अपने बोरवेल का पानी नदी में डालकर नदी को जीवित रखने की कोशिश कर रहा है.

शिवमोग्गा जिले के होसानगर तालुक के सुदुरु गेट निवासी मंजूनाथ भट्ट उर्फ पपन्ना भट्टा पिछले 15 वर्षों से प्रतिदिन दो घंटे कुमदवती नदी में पानी पंप करने का काम कर रहे हैं. मंजूनाथ भट्ट की जमीन कुमदवती नदी के ठीक बगल में स्थित है. इस नदी का पानी पीने के लिए जंगली जानवर जैसे बाइसन, हिरण, खरगोश, नेवला, मोर और अन्य जानवर आते हैं.

पानी न मिलने पर ये जानवर जोर-जोर से चिल्लाने लगते हैं. उनकी चीखें सुनकर प्रतिक्रियाशील पपन्ना भट्ट नदी में पानी डाल रहे हैं. मंजूनाथ भट्ट लगातार दो घंटों तक नदी में पानी डालते रहते हैं और देखते रहते हैं कि उनके लिए बिजली कब उपलब्ध है. फिर वह चार घंटे तक अपने खेतों में पानी देता है. जंगली जानवरों के साथ-साथ उनकी जान की भी परवाह करने वाले पपन्ना को फिलहाल सरकार से मुफ्त बिजली मिल रही है.

खेती के साथ-साथ वह ट्यूबवेल मरम्मत, सांप संरक्षण समेत कई सामाजिक गतिविधियों में भी लगे हुए हैं. मंजूनाथ भट्ट ने इसके बारे में बताते हुए कहा कि 'सूखा पड़ने पर कुमदवती नदी का बहना बंद हो जाता है. नदी में पानी के बिना जंगली जानवरों को समस्या होती है. रात में जब वे नदी पर आते हैं, तो पानी नहीं होने पर उनकी चीखें सुनना मुश्किल होता है.'

उन्होंने आगे कहा कि 'इसलिए मैं अपने खेत के बोरवेल से प्रतिदिन दो घंटे पानी नदी में छोड़ रहा हूं. हिरण, बाइसन, नेवला, मोर और बंदर नदी में पानी पीने आते हैं. प्रतिदिन 6 घंटे बिजली मिलती है. अगर मैं दो घंटे नदी में पानी छोड़ता हूं तो बाकी चार घंटे खेत में पानी देता हूं. मुझे जंगली जानवरों और पक्षियों को पानी पीते हुए देखकर खुशी होती है. मुझे भी इस काम में मजा आता है.'

उन्होंने आगे कहा कि 'मैं ये काम 15 साल से कर रहा हूं. ये देखकर कुछ लोग मुझे पागल कहते हैं. मैं बरसात के मौसम में धान की रोपाई करते समय नदी से पानी लेता हूं. अब, जब सूखे के दौरान नदी सूख जाती है, तो मैं उसमें पानी डालता हूं. जब मोटर ख़राब हो जाती है तो मैं छोटे-मोटे काम ख़ुद ही करता हूं. इसके अलावा कोई अन्य लागत नहीं है. फिलहाल सरकार मुफ्त बिजली दे रही है. इससे पानी देने में कोई परेशानी नहीं होती है.'

शिवमोग्गा: बारिश की कमी के कारण नदियां सूखती जा रही हैं और नहरें सूख गई हैं. इसके चलते जंगली जानवर पीने के पानी की तलाश कर रहे हैं. लेकिन कर्नाटक के शिवमोग्गा में एक किसान जंगली जानवरों की खातिर अपने बोरवेल का पानी नदी में डालकर नदी को जीवित रखने की कोशिश कर रहा है.

शिवमोग्गा जिले के होसानगर तालुक के सुदुरु गेट निवासी मंजूनाथ भट्ट उर्फ पपन्ना भट्टा पिछले 15 वर्षों से प्रतिदिन दो घंटे कुमदवती नदी में पानी पंप करने का काम कर रहे हैं. मंजूनाथ भट्ट की जमीन कुमदवती नदी के ठीक बगल में स्थित है. इस नदी का पानी पीने के लिए जंगली जानवर जैसे बाइसन, हिरण, खरगोश, नेवला, मोर और अन्य जानवर आते हैं.

पानी न मिलने पर ये जानवर जोर-जोर से चिल्लाने लगते हैं. उनकी चीखें सुनकर प्रतिक्रियाशील पपन्ना भट्ट नदी में पानी डाल रहे हैं. मंजूनाथ भट्ट लगातार दो घंटों तक नदी में पानी डालते रहते हैं और देखते रहते हैं कि उनके लिए बिजली कब उपलब्ध है. फिर वह चार घंटे तक अपने खेतों में पानी देता है. जंगली जानवरों के साथ-साथ उनकी जान की भी परवाह करने वाले पपन्ना को फिलहाल सरकार से मुफ्त बिजली मिल रही है.

खेती के साथ-साथ वह ट्यूबवेल मरम्मत, सांप संरक्षण समेत कई सामाजिक गतिविधियों में भी लगे हुए हैं. मंजूनाथ भट्ट ने इसके बारे में बताते हुए कहा कि 'सूखा पड़ने पर कुमदवती नदी का बहना बंद हो जाता है. नदी में पानी के बिना जंगली जानवरों को समस्या होती है. रात में जब वे नदी पर आते हैं, तो पानी नहीं होने पर उनकी चीखें सुनना मुश्किल होता है.'

उन्होंने आगे कहा कि 'इसलिए मैं अपने खेत के बोरवेल से प्रतिदिन दो घंटे पानी नदी में छोड़ रहा हूं. हिरण, बाइसन, नेवला, मोर और बंदर नदी में पानी पीने आते हैं. प्रतिदिन 6 घंटे बिजली मिलती है. अगर मैं दो घंटे नदी में पानी छोड़ता हूं तो बाकी चार घंटे खेत में पानी देता हूं. मुझे जंगली जानवरों और पक्षियों को पानी पीते हुए देखकर खुशी होती है. मुझे भी इस काम में मजा आता है.'

उन्होंने आगे कहा कि 'मैं ये काम 15 साल से कर रहा हूं. ये देखकर कुछ लोग मुझे पागल कहते हैं. मैं बरसात के मौसम में धान की रोपाई करते समय नदी से पानी लेता हूं. अब, जब सूखे के दौरान नदी सूख जाती है, तो मैं उसमें पानी डालता हूं. जब मोटर ख़राब हो जाती है तो मैं छोटे-मोटे काम ख़ुद ही करता हूं. इसके अलावा कोई अन्य लागत नहीं है. फिलहाल सरकार मुफ्त बिजली दे रही है. इससे पानी देने में कोई परेशानी नहीं होती है.'

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