हाथरसः दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर रहे डॉ. मुकेश गर्ग का 28 अगस्त को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. डॉक्टर गर्ग सुविख्यात हास्य कवि रहे पद्मश्री काका हाथरसी के भतीजे थे और उनकी तमाम साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े रहे थे. डॉक्टर गर्ग के निधन पर हाथरस में राधा कृष्ण कृपा भवन में ब्रज कला केंद्र के तत्वधान में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई. जिसमें कवियों, साहित्यकार और अन्य लोगों ने पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित की.
कवियों और साहित्यकारों ने दी श्रद्धांजलिः साहित्यकार गोपाल चतुर्वेदी ने बताया कि हाथरस के साहित्य प्रेमी, साहित्यकारों में मुकेश गर्ग के निधन की सूचना से शोक की लहर है. डॉक्टर मुकेश गर्ग काका हाथरसी के भतीजे और लक्ष्मी नारायण गर्ग के छोटे भाई थे. लक्ष्मी नारायण गर्ग, काका हाथरसी के दत्तक पुत्र थे. वह काका के भाई भजनलाल के पुत्र थे. डॉक्टर गर्ग का बचपन हाथरस में बीता था, इसके बावजूद दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर में कार्यरत रहे. कवि अनिल बौहरे ने कहा कि मुकेश गर्ग ने संगीत के लिए काफी काम किया. हाथरस संगीत कार्यालय द्वारा प्रकाशित संगीत पत्रिका का इन्होंने लंबे समय तक संपादन किया. हाथरस से कभी संपर्क नहीं छोड़ा. कवि दीपक रफी ने कहा कि डॉक्टर मुकेश अद्भुद व्यक्तित्व की धनी थे. संगीतकार और सरल हृदय थे. हाथरस ब्रज कला केंद्र के अध्यक्ष चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने कहा कि गर्ग के निधन से पूरा हाथरस आहत है. हमने काका हाथरसी के परिवार का एक अंग खो दिया है.
कई संगीत पत्रिकाओं किया संपादनः बता दें कि डॉ. गर्ग ने मासिक पत्रिका 'संगीत', फिल्म संगीत, 'संगीत संकल्प' पत्रिका का संपादन किया. उनकी 200 से अधिक समीक्षाएं प्रकाशित हुई. 30 से अधिक शोध-लेखों का प्रकाशन हुआ और लगभग 200 स्वरलिपियों का प्रकाशन हुआ. डॉक्टर गर्ग 'संगीत संकल्प' नामक अनूठी अखिल भारतीय संस्था के संस्थापक और 1989 से मानद राष्ट्रीय महानिदेशक रहे. कालिदास सम्मान, तानसेन सम्मान और कुमार गंधर्व सम्मान जैसे राष्ट्रीय सम्मानों की जूरी के सदस्य और आकाशवाणी दिल्ली के ऑडीशन बोर्ड तथा एमएबी के सदस्य के साथ अनेक महाविद्यालयों एवं उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की उच्चस्तरीय संगीत समितियों में सदस्य एवं अवैतनिक पदाधिकारी के रूप में कार्य किया.
सीरियल और फिल्मों में रहे संगीत निर्देशः डॉक्टर गर्ग काका हाथरसी पुरस्कार ट्रस्ट के ट्रस्टी, संगीत संकल्प नामक अखिल भारतीय संगीत संगठन के संस्थापक एवं 1989 से राष्ट्रीय महानिदेशक, राष्ट्रीय संगीत संकल्प ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी; टीवी की लोकप्रिय फीचर फ़िल्म 'गुलाबड़ी' और अनेक दूरदर्शन धारावाहिकों में संगीत निर्देशक रहे. ब्रजभाषा फ़ीचर फ़िल्म 'जमुना किनारे' में सहायक संगीत-निर्देशन, प्राचीन जैन साहित्य के 'समयसार", 'छहढाला' आदि अनेक दार्शनिक काव्यग्रंथों का संगीत- निर्देशन भी उन्होंने किया था. आकाशवाणी और दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर साहित्य और संगीत-संबंधी वार्ताओं, रूपकों और भेंट-वार्ताओं का प्रसारण, राष्ट्रीय स्तर की सेमिनारों और विचारगोष्ठियों की अध्यक्षता, 35 से अधिक पीएचडी के शोधप्रबंधों का निर्देशन, 20 से अधिक एमफिल के लघु शोधप्रबंधों का निर्देशन भी गर्ग ने किया.
ये मिले थे पुरस्कार
डॉ गर्ग को संगीत शिरोमणि 1976 (बीकानेर), बेस्ट म्यूजिक क्रिटिक अवॉर्ड 2002 (संगम कला ग्रुप, दिल्ली), स्वरसाधना रत्न 2002 (मुंबई), लिच्छवी संगीतसेवी सम्मान 2002 (मुजफ्फरपुर, बिहार), वृहत् हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश/541 कलायोगी 2004 (सिरसा, हरियाणा), पं. रामदयाल धनोप्या सम्मान 2004 (जबलपुर), स्वरसिद्धि अवॉर्ड (श्रीमती सिद्धेश्वरीदेवी एकेडेमी ऑफ़ म्यूजिक, नई दिल्ली), आचार्य बृहस्पति संगीतसेवा सम्मान (चंडीगढ़), गांधर्व संगीत सम्मान (गाजियाबाद), संगीतमनीषी सम्मान 2007 (नई दिल्ली), आचार्य अभिनवगुप्त संगीत समान 2010 (नई दिल्ली), रागरंजनीभूषण 2013 (नई दिल्ली), 2010 में भारत सरकार की ओर से अजरबैजान यूनिवर्सिटी आफ़ लैंग्वेजेज में हिंदी चेयर की स्थापना के लिए प्रोफ़ेसर बनकर गए.
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