देहरादून: उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ (पुराना नाम जोशीमठ) जैसे हालात कई जगह बनते जा रहे हैं. ज्योतिर्मठ के बाद उत्तरकाशी और बागेश्वर जिले में भी घरों में दरारें पड़ने के मामले सामने आए हैं. इस दरारों के बाद स्थानीय लोग काफी चितिंत नजर आ रहे हैं. ज्योतिर्मठ में तो वैज्ञानिकों ने काफी रिसर्च भी की है, लेकिन उत्तरकाशी और बागेश्वर जिले में इस तरह के हालात क्यों बने हैं, इस पर अभी स्पष्ट तौर कुछ नहीं कहा जा सकता है. वैसे इन हालात के लिए एक्सपर्ट्स पहाड़ों पर आबादी का बढ़ता दबाव, बेतरतीब शहरीकरण और निर्माण को बड़ी वजह मानते हैं.
बेतरतीब शहरीकरण और निर्माण पर लगाम लगानी जरूरी: वैज्ञानिक कई बार चेतावनी दे चुके हैं कि पहाड़ों पर बेतरतीब शहरीकरण और निर्माण को नहीं रोका गया तो भविष्य में इसके अच्छे परिणाम नहीं होगे. आईआईटी पटना के डायरेक्टर प्रो टीएन सिंह के मुताबिक हर शहर, गांव और नदी की केयरिंग और बेयरिंग कैपेसिटी होती है. पहाड़ों के अधिकांश शहर और गांव पुरानी ढलानों पर बने हैं. पानी रॉक का सबसे बड़ा दुश्मन होता है, जो हम यूज करते हैं. पानी की निकासी की यदि अच्छी व्यवस्था नहीं होगी तो वो पहाड़ के लिए खतरनाक होगा, इसलिए जरूर है कि पहाड़ में पानी की निकासी की अच्छे इंतजाम हो.
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ज्योतिर्मठ में भी भू-धंसाव का सबसे बड़ा कारण: डायरेक्टर प्रो टीएन सिंह के अनुसार ज्योतिर्मठ में भी भू-धंसाव की सबसे बड़ी समस्या पानी की निकास का न होना, जनसंख्या का बढ़ना और अवैध निर्माण हैं. पानी की निकासी इसमें सबसे बड़ी समस्या थी, क्योंकि शहर का यूज वॉटर सीधे पहाड़ों में नीचे जाता रहा, जिससे चट्टाने कमजोर होती चली गईं.
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क्या जरूरी कदम उठाने की जरूरत: इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी है कि आप सबसे पहले पहाड़ी का अध्ययन कर ये पता लगाएं कि वहां बिल्डिंग का कितना निर्माण हो सकता है. उस पहाड़ या चट्टान की कैपेसिटी कितनी है, क्योंकि पहले जो जोन तीन में थे उनका जोन बढ़कर चार हो गया है. यानी वहां पर खतरा पहले से ज्यादा बढ़ गया है. पुरानी इमारतों को गिराने की नहीं, बल्कि उनका ट्रीटमेंट करने की जरूरत है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि अब भूकंपरोधी बिल्डिंग्स बन रही है, अब पहाड़ में भी उसी टेक्नोलॉजी का निर्माण करना चाहिए. इमारतों का इन्फ्रास्ट्रक्चर लाइट होना चाहिए, तभी हम पहाड़ों को बचा सकते हैं. पहाड़ों पर बहुत ज्यादा लोगों को बुलाना और बसाना सही नहीं है, क्योंकि इससे पहाड़ पर बहुत लोड बढ़ता है और उसके दुष्परिणाम कभी न कभी सामने आते हैं.
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जलवायु परिवर्तन का भी पहाड़ पर पड़ रहा सीधा असर: वहीं, उत्तराखंड में बढ़ रही इस तरह की घटनाओं पर देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर प्रो एमजी ठक्कर से भी बात की गई. उनका कहना है कि प्रदेश के जितने भी टूरिज्म क्षेत्र हैं, जैसे मसूरी और नैनीताल, यहां पिछले कुछ दशकों में लोगों की आवाजाही बढ़ गई है. ऐसे में यहां भी बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप किया गया, जिससे ये क्षेत्र अनस्टेबल (अस्थिर) हो गए. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन का असर भी पहाड़ पर सीधे पड़ रहा है. पहाड़ी क्षेत्रों के स्लोप अनस्टेबल हो रहे हैं. ऐसे में जिन भी क्षेत्रों में स्लोप पर डेवलपमेंट के काम हो रहे हैं वो जोखिम में आ रखे हैं.
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बागेश्वर में हालत बने चिंताजनक: बता दें कि, साल 2021 में चमोली जिले के जोशीमठ शहर में घरों के अंदर दरारें दिखनी शुरू हुई थीं. शुरू में तो इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, लेकिन साल 2023 तक ये दरारें काफी बढ़ गई हैं. शहरों में कई जगहों पर जमीनों में भी दरारें देखी गई थीं. इसके बाद प्रशासन और सरकार हरकत में आई और जोशीमठ में दरार पड़ने के कारणों और उन्हें रोकने को लेकर रिसर्च की गई. जिसमें कई वजह से निकल कर सामने आई. उनमें से कुछ कारणों पर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर प्रो एमजी ठक्कर और आईआईटी पटना के डायरेक्टर प्रो टीएन सिंह ने जिक्र भी किया, लेकिन समस्या ये है कि अब यही हालत उत्तरकाशी और बागेश्वर जिले में बनते हुए दिख रहे हैं.
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उत्तरकाशी जिले के मस्तादी गांव में करीब 30 घरों में दरारें देखी गई तो वहीं, अब बागेश्वर जिले में भी जोशीमठ शहर जैसी स्थिति बनती दिखाई दे रही हैं. बागेश्वर में करीब दो दर्जनों घरों में दरारें पड़ चुकी हैं, जिससे लोग काफी घबराए हुए हैं.
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