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दंगे के खौफनाक मंजर से आज भी खौफ में हैं दिल्ली दंगा के पीड़ित, किसी का छूटा घर तो किसी का उजड़ा कारोबार

Four Years of Delhi Violence : साल 2020 में दिल्ली में हुए दंगे के घाव आज भी नहीं भर पाए हैं. इस घटना ने किसी से उसका बेटा छीन लिया, तो किसी से उसका रोजगार. लोगों के लिए आज भी 22 फरवरी का वो दिन किसी बुरे सपने से कम नहीं है. दिल्ली दंगे के चार साल होने पर पीड़ितों से ईटीवी भारत ने बात की. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा..

Four Years of Delhi Riots
Four Years of Delhi Riots
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 22, 2024, 2:09 PM IST

दिल्ली दंगे को लेकर पीड़ितों ने बयां किया दर्द

नई दिल्ली: राजधानी के उत्तर-पूर्वी जिले में चार साल पहले 22 फरवरी को ऐसा दंगा हुआ, जिसके घाव आज भी लोगों के जहन में हैं. इसे दिल्ली दंगे के नाम से जाना गया, जिसमें 53 लोगों की मौत होने के साथ, 500 के अधिक लोग घायल हो गए थे. उन दिनों को याद कर पीड़ित परिवारों के जख्म फिर हरे हो जाते हैं और वो ऐसे भावुक हो जाते हैं, जैसे ये घटना कल ही की हो.

ऐसे शुरू हुआ था दंगा: इस बारे में जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नजदीक मोटरसाइकिल गैराज चलाने वाले अलीम ने बताया कि, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे महिलाएं धरना दे रही थीं, जिससे रोड जाम हो गई थी. इस धरने को देखते हुए चांदबाग की पुलिया पर भी धरना शुरू हो गया, जिसके बाद वजीराबाद रोड भी जाम की चपेट में आ गया. जब जाम खुलवाने के लिए पुलिसबल मौके पर पहुंचा, तो वहां मौजूद लोगों ने उनपर पथराव कर दिया, जिससे दंगा भड़क उठा. उन्होंने बताया कि, इस दौरान भीड़ ने कई पुलिसकर्मियों को पीटा था. इसके बाद जैसे-तैसे ये लोग जान बचाकर भागे, लेकिन दंगा बढ़ता ही गया. देखते ही देखते यह दंगा ब्रजपुरी की पुलिया, शिव विहार, कर्दमपुरी, कबीरनगर, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, गोकलपुरी सहित अन्य इलाकों में भी फैल गया.

बेटे की हुई मौत: 24 फरवरी को मुस्तफाबाद के बाबूनगर निवासी हरी सिंह सोलंकी के 26 वर्षीय बेटे राहुल सोलंकी की गोली लगने से मौत हो गई थी. बेटे को खोने का दर्द आज भी उनके सीने में है. इस घटना के बाद वो इतना टूट गए कि उन्होंने कॉलोनी में अपना मकान ही बेच दिया और दूसरी जगह शिफ्ट हो गए. उन्होंने बताया कि, मेरा बेटा दूध लेने गया था, तभी गली के कोने पर दंगाइयों ने उसे गोली मार दी. अपनी आंखों के सामने हुए दंगे के खौफनाक मंजर को मेरी आंखें कभी नहीं भूल सकती. एक महीने बाद मेरी बेटी की शादी होने वाली थी, लेकिन पलभर में सबकुछ बिखर गया.

दिलबर नेगी की हत्या: उनके अलावा शिव विहार तिराहे पर मिठाई की दुकान चलाने वाले अमित कुमार ने बताया कि 24 फरवरी की शाम को साढ़े तीन बजे दंगाईयों की भीड़ ने उनके गोदाम में भी आग लगा दी थी. उसी गोदाम में मेरे यहां काम करने वाले दिलबर नेगी की हत्या कर दी गई थी. साथ ही गोदाम में आग लगा दी गई थी, जिससे करीब दो से ढाई करोड़ रुपये का नुकसान हो गया था. सरकार से इसका थोड़ा मुआवजा मिला, लेकिन वह भी गोदाम से जला हुआ सामान और उसकी सफाई कराने में ही खर्च हो गया था. उस वक्त का मंजर इतना खौफनाक था कि दंगाई लोगों की जान लेने को भी तैयार थे. दंगे के कई मामले आज भी कोर्ट में चल रहे हैं.

यह भी पढ़ें-2020 दिल्ली दंगे के चार आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा- चश्मदीद गवाह ही मुकर गया

पार्किंग में 45 गाड़ियों को लगाई गई आग: वहीं एक अन्य व्यक्ति रवि कुमार ने बताया कि दंगा भड़कने के कारण वे शाम के समय पार्किंग में ताला लगाकर घर चले गए थे. बाद में उन्हें सूचना मिली की दंगाइयों ने उनकी पार्किंग में भी आग लगा दी. इस दंगे में पार्किंग में मौजूद 45 गाड़ियां जलकर राख हो गई थी, लेकिन उन्हें आज तक उस नुकसान का हमें सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिला. उनके अलावा, शिव विहार तिराहे पर बैंड का काम करना वाले सलमान ने भी आपबीती सुनाई. उन्होंने बताया कि दंगे के दौरान हमारी दुकान को आग के हवाले कर दिया गया था. इसमें बैंड बाजे का सारा सामान जलकर स्वाहा हो गया और हमें किसी तरह का मुआवजा सरकार से नहीं मिला. मेरे पिताजी अलाउद्दीन, मुआवजे के लिए कई बार थाने और कोर्ट के चक्कर काटते रहे और अंतत:, 18 अक्टूबर, 2023 को उनका देहांत हो गया. अब हमें मुआवजा मिलने की कोई उम्मीद नहीं है.

यह भी पढ़ें-हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के वकील से पूछा- साफ-साफ बताए खालिद सैफी की दंगों में क्या भूमिका थी?

दिल्ली दंगे को लेकर पीड़ितों ने बयां किया दर्द

नई दिल्ली: राजधानी के उत्तर-पूर्वी जिले में चार साल पहले 22 फरवरी को ऐसा दंगा हुआ, जिसके घाव आज भी लोगों के जहन में हैं. इसे दिल्ली दंगे के नाम से जाना गया, जिसमें 53 लोगों की मौत होने के साथ, 500 के अधिक लोग घायल हो गए थे. उन दिनों को याद कर पीड़ित परिवारों के जख्म फिर हरे हो जाते हैं और वो ऐसे भावुक हो जाते हैं, जैसे ये घटना कल ही की हो.

ऐसे शुरू हुआ था दंगा: इस बारे में जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नजदीक मोटरसाइकिल गैराज चलाने वाले अलीम ने बताया कि, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे महिलाएं धरना दे रही थीं, जिससे रोड जाम हो गई थी. इस धरने को देखते हुए चांदबाग की पुलिया पर भी धरना शुरू हो गया, जिसके बाद वजीराबाद रोड भी जाम की चपेट में आ गया. जब जाम खुलवाने के लिए पुलिसबल मौके पर पहुंचा, तो वहां मौजूद लोगों ने उनपर पथराव कर दिया, जिससे दंगा भड़क उठा. उन्होंने बताया कि, इस दौरान भीड़ ने कई पुलिसकर्मियों को पीटा था. इसके बाद जैसे-तैसे ये लोग जान बचाकर भागे, लेकिन दंगा बढ़ता ही गया. देखते ही देखते यह दंगा ब्रजपुरी की पुलिया, शिव विहार, कर्दमपुरी, कबीरनगर, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, गोकलपुरी सहित अन्य इलाकों में भी फैल गया.

बेटे की हुई मौत: 24 फरवरी को मुस्तफाबाद के बाबूनगर निवासी हरी सिंह सोलंकी के 26 वर्षीय बेटे राहुल सोलंकी की गोली लगने से मौत हो गई थी. बेटे को खोने का दर्द आज भी उनके सीने में है. इस घटना के बाद वो इतना टूट गए कि उन्होंने कॉलोनी में अपना मकान ही बेच दिया और दूसरी जगह शिफ्ट हो गए. उन्होंने बताया कि, मेरा बेटा दूध लेने गया था, तभी गली के कोने पर दंगाइयों ने उसे गोली मार दी. अपनी आंखों के सामने हुए दंगे के खौफनाक मंजर को मेरी आंखें कभी नहीं भूल सकती. एक महीने बाद मेरी बेटी की शादी होने वाली थी, लेकिन पलभर में सबकुछ बिखर गया.

दिलबर नेगी की हत्या: उनके अलावा शिव विहार तिराहे पर मिठाई की दुकान चलाने वाले अमित कुमार ने बताया कि 24 फरवरी की शाम को साढ़े तीन बजे दंगाईयों की भीड़ ने उनके गोदाम में भी आग लगा दी थी. उसी गोदाम में मेरे यहां काम करने वाले दिलबर नेगी की हत्या कर दी गई थी. साथ ही गोदाम में आग लगा दी गई थी, जिससे करीब दो से ढाई करोड़ रुपये का नुकसान हो गया था. सरकार से इसका थोड़ा मुआवजा मिला, लेकिन वह भी गोदाम से जला हुआ सामान और उसकी सफाई कराने में ही खर्च हो गया था. उस वक्त का मंजर इतना खौफनाक था कि दंगाई लोगों की जान लेने को भी तैयार थे. दंगे के कई मामले आज भी कोर्ट में चल रहे हैं.

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पार्किंग में 45 गाड़ियों को लगाई गई आग: वहीं एक अन्य व्यक्ति रवि कुमार ने बताया कि दंगा भड़कने के कारण वे शाम के समय पार्किंग में ताला लगाकर घर चले गए थे. बाद में उन्हें सूचना मिली की दंगाइयों ने उनकी पार्किंग में भी आग लगा दी. इस दंगे में पार्किंग में मौजूद 45 गाड़ियां जलकर राख हो गई थी, लेकिन उन्हें आज तक उस नुकसान का हमें सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिला. उनके अलावा, शिव विहार तिराहे पर बैंड का काम करना वाले सलमान ने भी आपबीती सुनाई. उन्होंने बताया कि दंगे के दौरान हमारी दुकान को आग के हवाले कर दिया गया था. इसमें बैंड बाजे का सारा सामान जलकर स्वाहा हो गया और हमें किसी तरह का मुआवजा सरकार से नहीं मिला. मेरे पिताजी अलाउद्दीन, मुआवजे के लिए कई बार थाने और कोर्ट के चक्कर काटते रहे और अंतत:, 18 अक्टूबर, 2023 को उनका देहांत हो गया. अब हमें मुआवजा मिलने की कोई उम्मीद नहीं है.

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