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मौसम को ये क्या हुआ? बर्फबारी के लिए तरसा हिमालय, काश्तकार मायूस, पर्यावरणविद् चिंतित

मानवीय हस्तक्षेप और जलवायु परिवर्तन के कारण नवंबर माह में हिमालय का बर्फविहीन होने से पर्यावरणविद् हुए चिंतित.

SNOWLESS HIMALAYAS
बर्फविहीन हुआ हिमालय! (PHOTO- LAXMAN NEGI (Local Resident))
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 3 hours ago

रुद्रप्रयाग (उत्तराखंड): केदारघाटी के हिमालयी क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से हिमालय धीरे-धीरे बर्फविहीन होता जा रहा है. जबकि निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसलें प्रभावित होने की संभावनाएं बनी हुई हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय नवंबर महीने में भी बर्फविहीन है, जिससे पर्यावरणविद् खासे चिंतित हैं. जबकि बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ, सरसों व मटर की फसलों पर संकट के बादल मंडराने से काश्तकारों को भविष्य की चिंता सताने लगी है.

आने वाले दिनों में यदि मौसम के अनुकूल हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी व निचले भूभाग में बारिश नहीं हुई तो मई-जून में विभिन्न गांवों में पेयजल संकट गहरा सकता है. ग्रामीणों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ सकता है. बीते एक दशक से हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप, यात्राकाल के दौरान अंधाधुंध हेलीकॉप्टरों का संचालन और ऊंचाई वाले इलाकों में प्लास्टिक का प्रयोग होने से पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंचा है. इसलिए हर वर्ष जलवायु परिवर्तन की समस्या बढ़ती जा रही है, जो भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.

SNOWLESS HIMALAYAS
मानवीय हस्तक्षेप से बर्फविहीन हुआ हिमालय! (PHOTO- LAXMAN NEGI (Local Resident))

कभी बर्फ से लकदक रहता था हिमालय: दो दशक पूर्व की बात करें तो नवंबर से लेकर मार्च तक हिमालयी भू-भाग बर्फबारी से लदा रहता था और हिमालयी क्षेत्र बर्फबारी से लकदक रहने से समयानुसार ही ऋतु परिवर्तन होने के साथ प्रकृति में नव ऊर्जा का संचार होता था. मगर धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन होने के कारण हिमालय बर्फविहीन होता जा रहा है, जिससे पर्यावरणविद् खासे चिन्तित हैं. उन्हें भविष्य की चिंता सताने लगी है.

केदारघाटी के निचले भू-भाग में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं की फसल के साथ ही सब्जी और दालों को भी खासा नुकसान पहुंच रहा है. आने वाले दिसंबर माह के पहले हफ्ते में यदि मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश नहीं हुई तो काश्तकारों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो सकता है.

काश्तकारों का खेतीबाड़ी से मोहभंग: वहीं, मदमहेश्वर घाटी विकास मंच के पूर्व अध्यक्ष मदन भट्ट ने बताया कि काश्तकार प्रकृति के साथ जंगली जानवरों की दोहरी मार झेलने के लिए विवश हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश न होने और बची फसलों को जंगली जानवरों द्वारा नुकसान पहुंचाने से काश्तकारों का खेतीबाड़ी से मोहभंग होता जा रहा है.

SNOWLESS HIMALAYAS
निचले क्षेत्रों में बारिश नहीं होने से काश्तकार मायूस (PHOTO- LAXMAN NEGI (Local Resident))

निचली क्षेत्रों में बारिश न होना संकट: तुंगनाथ चोपता व्यापार संघ अध्यक्ष भूपेंद्र मैठाणी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय बर्फविहीन होता जा रहा है. भविष्य में यदि हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय आवागमन पर रोक नहीं लगाई गई तो जलवायु परिवर्तन की समस्या और गंभीर होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. गैड़ बष्टी के काश्तकार बलवीर राणा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है और नवंबर माह के दूसरे सप्ताह बाद भी निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से काश्तकार मायूस हैं तथा काश्तकारों को भविष्य की चिंता सताने लगी है.

भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं: प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली का कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में अधिक संख्या में हो रही मानवीय गतिविधियों से हिमालय में परिवर्तन देखने को मिल रहा है. समय से बर्फबारी नहीं हो रही है. जबकि बारिश नहीं होने से खेती को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है. कोरी ठंड का लोगों को सामना करना पड़ रहा है. हिमालय क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर सेवाओं और बढ़ते मानवीय गतिविधियों ने केदारनाथ जैसे हिमालयी धाम के मौसम में परिवर्तन लाकर रख दिया है. ऐसे में शासन-प्रशासन और सरकार के साथ ही पर्यावरणविदों और मौसम वैज्ञानिकों को भी सोचने की जरूरत है. इस प्रकार से हर वर्ष मौसम में परिवर्तन आना, भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है.

बता दें कि, जगत सिंह चौधरी बीएसएफ से रिटायर्ड फौजी हैं. उन्होंने के 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिया था. जब युद्ध खत्म हुआ और 1974 में जगत सिंह गांव लौटे तो देखा कि गांव में पानी की बड़ी किल्लत है. ग्रामीण महिलाओं को पानी और पशुओं के चारे के लिए काफी दूर-दूर तक जाना पड़ता है. इस दौरान कई महिलाएं चोटिल हो जाती हैं. इसको रोकने के मकसद से जगत सिंह ने उनके अपनी तीन हेक्टेयर बंजर जमीन पर पेड़ लगाने शुरू किए. बीते सालों में उन्होंने लगातार कोशिश करते हुए लाखों पेड़ लगाए हैं. उनके प्रकृति प्रेम को देखते हुए लोग उनको 'जंगली' नाम से बुलाने लगे.

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रुद्रप्रयाग (उत्तराखंड): केदारघाटी के हिमालयी क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से हिमालय धीरे-धीरे बर्फविहीन होता जा रहा है. जबकि निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसलें प्रभावित होने की संभावनाएं बनी हुई हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय नवंबर महीने में भी बर्फविहीन है, जिससे पर्यावरणविद् खासे चिंतित हैं. जबकि बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ, सरसों व मटर की फसलों पर संकट के बादल मंडराने से काश्तकारों को भविष्य की चिंता सताने लगी है.

आने वाले दिनों में यदि मौसम के अनुकूल हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी व निचले भूभाग में बारिश नहीं हुई तो मई-जून में विभिन्न गांवों में पेयजल संकट गहरा सकता है. ग्रामीणों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ सकता है. बीते एक दशक से हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप, यात्राकाल के दौरान अंधाधुंध हेलीकॉप्टरों का संचालन और ऊंचाई वाले इलाकों में प्लास्टिक का प्रयोग होने से पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंचा है. इसलिए हर वर्ष जलवायु परिवर्तन की समस्या बढ़ती जा रही है, जो भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.

SNOWLESS HIMALAYAS
मानवीय हस्तक्षेप से बर्फविहीन हुआ हिमालय! (PHOTO- LAXMAN NEGI (Local Resident))

कभी बर्फ से लकदक रहता था हिमालय: दो दशक पूर्व की बात करें तो नवंबर से लेकर मार्च तक हिमालयी भू-भाग बर्फबारी से लदा रहता था और हिमालयी क्षेत्र बर्फबारी से लकदक रहने से समयानुसार ही ऋतु परिवर्तन होने के साथ प्रकृति में नव ऊर्जा का संचार होता था. मगर धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन होने के कारण हिमालय बर्फविहीन होता जा रहा है, जिससे पर्यावरणविद् खासे चिन्तित हैं. उन्हें भविष्य की चिंता सताने लगी है.

केदारघाटी के निचले भू-भाग में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं की फसल के साथ ही सब्जी और दालों को भी खासा नुकसान पहुंच रहा है. आने वाले दिसंबर माह के पहले हफ्ते में यदि मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश नहीं हुई तो काश्तकारों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो सकता है.

काश्तकारों का खेतीबाड़ी से मोहभंग: वहीं, मदमहेश्वर घाटी विकास मंच के पूर्व अध्यक्ष मदन भट्ट ने बताया कि काश्तकार प्रकृति के साथ जंगली जानवरों की दोहरी मार झेलने के लिए विवश हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश न होने और बची फसलों को जंगली जानवरों द्वारा नुकसान पहुंचाने से काश्तकारों का खेतीबाड़ी से मोहभंग होता जा रहा है.

SNOWLESS HIMALAYAS
निचले क्षेत्रों में बारिश नहीं होने से काश्तकार मायूस (PHOTO- LAXMAN NEGI (Local Resident))

निचली क्षेत्रों में बारिश न होना संकट: तुंगनाथ चोपता व्यापार संघ अध्यक्ष भूपेंद्र मैठाणी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय बर्फविहीन होता जा रहा है. भविष्य में यदि हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय आवागमन पर रोक नहीं लगाई गई तो जलवायु परिवर्तन की समस्या और गंभीर होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. गैड़ बष्टी के काश्तकार बलवीर राणा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है और नवंबर माह के दूसरे सप्ताह बाद भी निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से काश्तकार मायूस हैं तथा काश्तकारों को भविष्य की चिंता सताने लगी है.

भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं: प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली का कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में अधिक संख्या में हो रही मानवीय गतिविधियों से हिमालय में परिवर्तन देखने को मिल रहा है. समय से बर्फबारी नहीं हो रही है. जबकि बारिश नहीं होने से खेती को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है. कोरी ठंड का लोगों को सामना करना पड़ रहा है. हिमालय क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर सेवाओं और बढ़ते मानवीय गतिविधियों ने केदारनाथ जैसे हिमालयी धाम के मौसम में परिवर्तन लाकर रख दिया है. ऐसे में शासन-प्रशासन और सरकार के साथ ही पर्यावरणविदों और मौसम वैज्ञानिकों को भी सोचने की जरूरत है. इस प्रकार से हर वर्ष मौसम में परिवर्तन आना, भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है.

बता दें कि, जगत सिंह चौधरी बीएसएफ से रिटायर्ड फौजी हैं. उन्होंने के 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिया था. जब युद्ध खत्म हुआ और 1974 में जगत सिंह गांव लौटे तो देखा कि गांव में पानी की बड़ी किल्लत है. ग्रामीण महिलाओं को पानी और पशुओं के चारे के लिए काफी दूर-दूर तक जाना पड़ता है. इस दौरान कई महिलाएं चोटिल हो जाती हैं. इसको रोकने के मकसद से जगत सिंह ने उनके अपनी तीन हेक्टेयर बंजर जमीन पर पेड़ लगाने शुरू किए. बीते सालों में उन्होंने लगातार कोशिश करते हुए लाखों पेड़ लगाए हैं. उनके प्रकृति प्रेम को देखते हुए लोग उनको 'जंगली' नाम से बुलाने लगे.

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