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उत्तराखंड में मानसून की एंट्री ने डिजास्टर जोन में बढ़ाई चिंता, लैंडस्लाइड के लिए ये जिले हैं ज्यादा संवेदनशील - Uttarakhand disaster zone districts

Fear of landslide during monsoon in Uttarakhand उत्तराखंड में लैंडस्लाइड एक बड़ी समस्या रहा है. राज्य में मानसून की एंट्री हो चुकी है. मानसून सीजन में लैंडस्लाइड अपने पीक पर होता है. मानसून की बारिश में लैंडस्लाइड रिस्क एरिया में बसाए गए लोगों को विशेष खतरा है. राज्य के संवेदनशील इलाकों में अंधाधुंध निर्माण ने बड़ी चुनौती खड़ी की हुई है. ऐसे में पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक प्रतिष्ठित संस्थानों की रिपोर्ट को नजरअंदाज करने के बजाय, एक्शन प्लान के आधार पर ठोस उपाय लागू करने की सलाह दे रहे हैं.

monsoon in Uttarakhand
मानसून ने बढ़ाई चिंता (ETV Bharat Graphics)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 28, 2024, 1:32 PM IST

Updated : Jun 28, 2024, 8:52 PM IST

मानसून ने बढ़ाई चिंता (monsoon in Uttarakhand)

देहरादून: उत्तराखंड में मानसून की दस्तक के साथ प्रदेश के उन डिजास्टर ज़ोन को लेकर चिंता बढ़ गयी है, जो न केवल उत्तराखंड बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बेहद संवेदनशील माने गए हैं. अध्ययन में ये स्पष्ट हुआ है कि राज्य के कई इलाके भूस्खलन क्षेत्र में ही बसाए गए हैं. इसलिए मानसून की आहट ऐसे इलाकों में बड़े खतरे के रूप में देखी जाती है. बड़ी बात यह है कि जिन जिलों को भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील माना गया है, ऐसे क्षेत्रों में भी बड़े निर्माण से परहेज नहीं किया जा रहा. इसने मानसून में नई चुनौतियों को खड़ा कर दिया है.

मानसून ने बढाई चिंता: उत्तराखंड में मानसून दाखिल हो चुका हैं. प्री मानसून के चलते बारिश का सिलसिला राज्य के कई इलाकों में पहले से ही चल रहा है. लेकिन उत्तराखंड के लिए ये वक्त मानसून का स्वागत करने से ज्यादा, भविष्य के खतरों से निपटने वाला है. खासतौर पर पर्वतीय जनपदों के लिए मानसून के दौरान फुलप्रूफ प्लान बेहद जरूरी है. तमाम पर्यावरणविद् इसी चिंता के साथ मानसून के दौरान भूस्खलन की संभावना को बया कर रहे हैं. हैरत की बात यह है कि जिन जिलों को इसरो की रिपोर्ट में संवेदनशील माना गया था, वहां पर बड़े निर्माण से परहेज नहीं किया गया. स्थिति यह है कि अब मौजूदा मानसून सीजन के दौरान सबसे ज्यादा खतरा ऐसे ही जिलों या इलाकों में माना जा रहा है.

उत्तराखंड में भूस्खलन के कई डिजास्टर जोन हैं: वैज्ञानिक पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि इस बार गर्मी ने जिस तरह रिकॉर्ड तोड़े हैं, इस तरह बारिश भी पिछले सालों की तुलना में ज्यादा हो सकती है. वैज्ञानिकों का यह आकलन उत्तराखंड के लिए किसी बड़ी चिंता से कम नहीं है. जो जिले भूस्खलन के लिहाज से डिजास्टर जोन के रूप में देखे जा रहे हैं, वहां भारी बारिश की कल्पना पिछली आपदाओं की यादों को ताजा कर रही है. इसको लेकर आपदा प्रबंधन के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला कहते हैं कि प्रदेश में लोगों ने पारंपरिक वास स्थलों को छोड़कर बड़ी गलती की है. पहाड़ के अधिकतर इलाके लैंडस्लाइड जोन पर मौजूद हैं. पूर्व में लोग किसी कठोर चट्टान पर ही बसते थे. अब लोगों ने सुविधा के लिए कमजोर इलाकों में बसना शुरू कर दिया और वहीं से खतरा बढ़ता चला गया.

प्रदेश में मानसून के दौरान पुराने रिकॉर्ड, नए अध्ययन राज्य सरकार के अलावा स्थानीय लोगों को भी सीख देते हैं. लेकिन इन घटनाओं से सीखने के बजाय सरकार और आम लोग मानव निर्मित आपदाओं को निमंत्रण दे रहे हैं. क्या हैं खतरे जानिए.

ऐसे बढ़ता गया खतरा...

  • पर्वतीय क्षेत्रों में कई इलाके लैंडस्लाइड के बाद आए मलबे के मैटीरियल पर हुए तैयार
  • निश्चित केयरिंग कैपेसिटी वाले इन कमजोर भू क्षेत्रों में हुए बड़े निर्माण
  • बड़े प्रोजेक्ट और नई सड़कों ने भी लैंडस्लाइड का राज्य में बढ़ाया खतरा
  • भूस्खलन क्षेत्र के ठीक ऊपर या गाड़ गदेरों में बसी बस्तियां सबसे ज्यादा संवेदनशील
  • नदियों से हो रहा कटाव भी कुछ इलाकों के लिए भूस्खलन का जिम्मेदार
  • पहाड़ों पर सही ड्रेनेज सिस्टम तैयार ना होना भी चिंताजनक

इसरो की रिपोर्ट ने बजाया अलार्म: प्रदेश में मानसून के दौरान होने वाले भूस्खलन के पीछे कई वजह है और इसको लेकर भी तमाम बातें अध्ययन के दौरान सामने आई हैं. उत्तराखंड में भूस्खलन क्षेत्र के रूप में डिजास्टर जोन की गंभीरता को इस बात से ही समझा जा सकता है कि इसरो की एक रिपोर्ट में देश भर के करीब 147 शहरों में से उत्तराखंड के कई शहरों को टॉप टेन में जगह दी गई थी. यही नहीं पूरे देश में रुद्रप्रयाग और टिहरी जिला पहले और दूसरे नंबर पर दर्ज किया गया था. पर्यावरण संरक्षण से जुड़े तमाम रिकॉर्ड एनालिसिस करने वाले अनूप नौटियाल इन्हीं स्थितियों को जाहिर करते हैं. अनूप नौटियाल कहते हैं कि जिस तरह इसरो की रिपोर्ट के बाद उत्तराखंड में भूस्खलन को लेकर संवेदनशीलता सामने आई थी, उसके बाद राज्य सरकार को कई कदम उठाए जाने की जरूरत थी. लेकिन सरकार की तरफ से इतनी महत्वपूर्ण संस्थान की रिपोर्ट पर भी काम नहीं हो पाया. नतीजा यह रहा कि राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड के कई जिलों को लैंडस्लाइड जोन के रूप में दर्ज करने के बाद भी कोई हल नहीं निकल गया.

राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न जिलों की स्थितियों को देखकर इसरो ने पूर्व में अपनी रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें देश भर के इन तमाम जिलों में होने वाले भूस्खलन को लेकर संवेदनशीलता का अध्ययन किया गया था. इस रिपोर्ट में उत्तराखंड के जिलों की क्या थी स्थिति बिंदुवार देखिये..

भूस्खलन संवेदनशीलता की रिपोर्ट

  • इसरो ने मार्च में देश के 147 जिलों के भूस्खलन को लेकर जारी की थी रिपोर्ट
  • अध्ययन में देश के 17 जिले और दो केंद्र शासित प्रदेशों के जिले रहे शामिल
  • रुद्रप्रयाग जिले को देश का सबसे ज्यादा लैंडस्लाइड डेंसिटी वाला जिला माना गया
  • देश में 147 जिलों में टिहरी जिला दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा संवेदनशील दिखाया गया
  • इसके अलावा 19 नंबर पर चमोली 21 में नंबर पर उत्तरकाशी और 23वें नंबर पर पौड़ी गढ़वाल का नाम दर्ज रहा
  • उधर 29 वें नंबर पर देहरादून शहर का नाम रखा गया
  • इस तरह कुल 147 जिलों में टॉप 30 में प्रदेश के 6 जिले रहे
  • जबकि कुल 147 जिलों में संवेदनशील भूस्खलन क्षेत्र के रूप में सभी 13 जिले शामिल हैं

एक्शन प्लान के आधार पर हों ठोस उपाय: मानसून सीजन शुरू होने के साथ ही पर्यावरणविद् नए खतरों को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं. इसीलिए तमाम पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक एक मंच पर आकर इसके समाधान को लेकर सरकार से भी गुहार लगा रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक जो अध्ययन हुए हैं, उसके आधार पर सरकार को कदम उठाने चाहिए और तमाम प्रतिष्ठित संस्थानों की रिपोर्ट को नजरअंदाज करने के बजाय, एक्शन प्लान के आधार पर ठोस उपाय लागू करने चाहिए.
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मानसून ने बढ़ाई चिंता (monsoon in Uttarakhand)

देहरादून: उत्तराखंड में मानसून की दस्तक के साथ प्रदेश के उन डिजास्टर ज़ोन को लेकर चिंता बढ़ गयी है, जो न केवल उत्तराखंड बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बेहद संवेदनशील माने गए हैं. अध्ययन में ये स्पष्ट हुआ है कि राज्य के कई इलाके भूस्खलन क्षेत्र में ही बसाए गए हैं. इसलिए मानसून की आहट ऐसे इलाकों में बड़े खतरे के रूप में देखी जाती है. बड़ी बात यह है कि जिन जिलों को भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील माना गया है, ऐसे क्षेत्रों में भी बड़े निर्माण से परहेज नहीं किया जा रहा. इसने मानसून में नई चुनौतियों को खड़ा कर दिया है.

मानसून ने बढाई चिंता: उत्तराखंड में मानसून दाखिल हो चुका हैं. प्री मानसून के चलते बारिश का सिलसिला राज्य के कई इलाकों में पहले से ही चल रहा है. लेकिन उत्तराखंड के लिए ये वक्त मानसून का स्वागत करने से ज्यादा, भविष्य के खतरों से निपटने वाला है. खासतौर पर पर्वतीय जनपदों के लिए मानसून के दौरान फुलप्रूफ प्लान बेहद जरूरी है. तमाम पर्यावरणविद् इसी चिंता के साथ मानसून के दौरान भूस्खलन की संभावना को बया कर रहे हैं. हैरत की बात यह है कि जिन जिलों को इसरो की रिपोर्ट में संवेदनशील माना गया था, वहां पर बड़े निर्माण से परहेज नहीं किया गया. स्थिति यह है कि अब मौजूदा मानसून सीजन के दौरान सबसे ज्यादा खतरा ऐसे ही जिलों या इलाकों में माना जा रहा है.

उत्तराखंड में भूस्खलन के कई डिजास्टर जोन हैं: वैज्ञानिक पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि इस बार गर्मी ने जिस तरह रिकॉर्ड तोड़े हैं, इस तरह बारिश भी पिछले सालों की तुलना में ज्यादा हो सकती है. वैज्ञानिकों का यह आकलन उत्तराखंड के लिए किसी बड़ी चिंता से कम नहीं है. जो जिले भूस्खलन के लिहाज से डिजास्टर जोन के रूप में देखे जा रहे हैं, वहां भारी बारिश की कल्पना पिछली आपदाओं की यादों को ताजा कर रही है. इसको लेकर आपदा प्रबंधन के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला कहते हैं कि प्रदेश में लोगों ने पारंपरिक वास स्थलों को छोड़कर बड़ी गलती की है. पहाड़ के अधिकतर इलाके लैंडस्लाइड जोन पर मौजूद हैं. पूर्व में लोग किसी कठोर चट्टान पर ही बसते थे. अब लोगों ने सुविधा के लिए कमजोर इलाकों में बसना शुरू कर दिया और वहीं से खतरा बढ़ता चला गया.

प्रदेश में मानसून के दौरान पुराने रिकॉर्ड, नए अध्ययन राज्य सरकार के अलावा स्थानीय लोगों को भी सीख देते हैं. लेकिन इन घटनाओं से सीखने के बजाय सरकार और आम लोग मानव निर्मित आपदाओं को निमंत्रण दे रहे हैं. क्या हैं खतरे जानिए.

ऐसे बढ़ता गया खतरा...

  • पर्वतीय क्षेत्रों में कई इलाके लैंडस्लाइड के बाद आए मलबे के मैटीरियल पर हुए तैयार
  • निश्चित केयरिंग कैपेसिटी वाले इन कमजोर भू क्षेत्रों में हुए बड़े निर्माण
  • बड़े प्रोजेक्ट और नई सड़कों ने भी लैंडस्लाइड का राज्य में बढ़ाया खतरा
  • भूस्खलन क्षेत्र के ठीक ऊपर या गाड़ गदेरों में बसी बस्तियां सबसे ज्यादा संवेदनशील
  • नदियों से हो रहा कटाव भी कुछ इलाकों के लिए भूस्खलन का जिम्मेदार
  • पहाड़ों पर सही ड्रेनेज सिस्टम तैयार ना होना भी चिंताजनक

इसरो की रिपोर्ट ने बजाया अलार्म: प्रदेश में मानसून के दौरान होने वाले भूस्खलन के पीछे कई वजह है और इसको लेकर भी तमाम बातें अध्ययन के दौरान सामने आई हैं. उत्तराखंड में भूस्खलन क्षेत्र के रूप में डिजास्टर जोन की गंभीरता को इस बात से ही समझा जा सकता है कि इसरो की एक रिपोर्ट में देश भर के करीब 147 शहरों में से उत्तराखंड के कई शहरों को टॉप टेन में जगह दी गई थी. यही नहीं पूरे देश में रुद्रप्रयाग और टिहरी जिला पहले और दूसरे नंबर पर दर्ज किया गया था. पर्यावरण संरक्षण से जुड़े तमाम रिकॉर्ड एनालिसिस करने वाले अनूप नौटियाल इन्हीं स्थितियों को जाहिर करते हैं. अनूप नौटियाल कहते हैं कि जिस तरह इसरो की रिपोर्ट के बाद उत्तराखंड में भूस्खलन को लेकर संवेदनशीलता सामने आई थी, उसके बाद राज्य सरकार को कई कदम उठाए जाने की जरूरत थी. लेकिन सरकार की तरफ से इतनी महत्वपूर्ण संस्थान की रिपोर्ट पर भी काम नहीं हो पाया. नतीजा यह रहा कि राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड के कई जिलों को लैंडस्लाइड जोन के रूप में दर्ज करने के बाद भी कोई हल नहीं निकल गया.

राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न जिलों की स्थितियों को देखकर इसरो ने पूर्व में अपनी रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें देश भर के इन तमाम जिलों में होने वाले भूस्खलन को लेकर संवेदनशीलता का अध्ययन किया गया था. इस रिपोर्ट में उत्तराखंड के जिलों की क्या थी स्थिति बिंदुवार देखिये..

भूस्खलन संवेदनशीलता की रिपोर्ट

  • इसरो ने मार्च में देश के 147 जिलों के भूस्खलन को लेकर जारी की थी रिपोर्ट
  • अध्ययन में देश के 17 जिले और दो केंद्र शासित प्रदेशों के जिले रहे शामिल
  • रुद्रप्रयाग जिले को देश का सबसे ज्यादा लैंडस्लाइड डेंसिटी वाला जिला माना गया
  • देश में 147 जिलों में टिहरी जिला दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा संवेदनशील दिखाया गया
  • इसके अलावा 19 नंबर पर चमोली 21 में नंबर पर उत्तरकाशी और 23वें नंबर पर पौड़ी गढ़वाल का नाम दर्ज रहा
  • उधर 29 वें नंबर पर देहरादून शहर का नाम रखा गया
  • इस तरह कुल 147 जिलों में टॉप 30 में प्रदेश के 6 जिले रहे
  • जबकि कुल 147 जिलों में संवेदनशील भूस्खलन क्षेत्र के रूप में सभी 13 जिले शामिल हैं

एक्शन प्लान के आधार पर हों ठोस उपाय: मानसून सीजन शुरू होने के साथ ही पर्यावरणविद् नए खतरों को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं. इसीलिए तमाम पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक एक मंच पर आकर इसके समाधान को लेकर सरकार से भी गुहार लगा रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक जो अध्ययन हुए हैं, उसके आधार पर सरकार को कदम उठाने चाहिए और तमाम प्रतिष्ठित संस्थानों की रिपोर्ट को नजरअंदाज करने के बजाय, एक्शन प्लान के आधार पर ठोस उपाय लागू करने चाहिए.
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Last Updated : Jun 28, 2024, 8:52 PM IST
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