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बीएचयू में बनेगा डीएनए बैंक, संरक्षित किए जाएंगे 50 हजार से ज्यादा DNA, जानिए क्या होंगे फायदे

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के नाम एक और बड़ी उपलब्धि जुड़ने जा रही है. यहां डीएनए बैंक (Varanasi BHU DNA Bank) बनाया जा रहा है. एक मशीन भी लगा दी गई है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 2, 2024, 8:07 AM IST

संरक्षित किए जाएंगे 50 हजार से ज्यादा DNA

वाराणसी : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पहली बार डीएनए बैंक बनने जा रहा है. इसमें 50 हजार से ज्यादा अलग-अलग जाति-जनजातियों के डीएनए संरक्षित किए जाएंगे. इसको लेकर परिसर में मशीन भी स्थापित कर दी गई है. बीएचयू के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस डीएनए बैंक का मूल उद्देश्य आने वाली महामारियों से सुरक्षा को लेकर शोध करना है. इसके साथ ही भारत में प्रचलित इंडोगेमी व्यवस्था यानी एक ही जाति में विवाह प्रथा के कारण उत्पन्न बीमारियों का जीन आधारित अध्ययन करना है. इतना ही नहीं यह डीएनए बैंक भविष्य में पर्सनल मेडिसिन की दिशा में भी कारगर आधार बनेगा. महामारियों का लोगों पर प्रभाव जानने में इससे काफी सहूलियत मिलेगी.

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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग में उत्तर भारत का डीएनए बैंक बनाया जा रहा है. इसके लिए विभाग के ज्ञानेश्वर लैब में आटोमेटेड डीएनए एक्सट्रैक्टर मशीन लगाई गई है. कोरोना महामारी में डीएनए को लेकर तमाम तरीके की बातें सामने आ रहीं थीं. तमाम तरीके से लोगों को अलर्ट किया जा रहा था. ऐसे में बीेएचयू का ये डीएनए बैंक भविष्य में ऐसी किसी स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. सामान्य तौर पर जहां डीएनए के आइसोलेशन में तीन दिन का वक्त लग जाया करता था. अब वहीं इस मशीन से 32 मिनट का समय लगेगा. ऐसे में डीएनए कलेक्ट कर उसके बारे में जानकारी निकालने में भी समय की काफी बचत हो सकेगी. कम समय में काफी बड़ा सैंपल बैंक बनाया जा सकेगा.

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महामारी के समय होगा सबसे महत्वपूर्ण : जंतु विज्ञान विभाग के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे बताते हैं कि हमने एक प्लान बनाया है, जिसमें उत्तर भारत के विभिन्न जातियों और जनजातियों के डीएनए का एक बैंक बनाया जाएगा. डीएनए का कलेक्शन करके बीएचयू में रखा जाएगा. ऐसा इसलिए किया जाएगा कि डीएनए हमारे रोगों का, हमारे माइग्रेशन का या हमारे हेल्थ का बहुत बड़ा मार्कर होता है. डीएनए से हम किसी व्यक्ति के बारे में अगर पता करना चाहते हैं कि उस व्यक्ति को क्या रोग हो सकता है या आगे उसके जीवन में क्या रोग होने की संभावना है. इन सभी चीजों की आज की तारीख में पॉसिबिलिटी है कि हम डीएनए के अध्ययन के द्वारा इसे हम पता कर सकते हैं. सबसे बड़ी जरूरत थी इसकी कि किसी भी महामारी के आने के समय हम ये पता कर सकते हैं कि कौन से लोग इस महामारी से गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं और कौन से लोग नहीं बीमार हो सकते हैं.

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32 मिनट में 32 सैंपल कर सकते हैं प्रोसेस : उन्होंने बताया कि, ऐसे में उसी तरीके से सरकार की प्लानिंग बनाई जा सकती है. इसके लिए अगर हमारे पास डीएनए बैंक है तो हम कम समय में बहुत जल्दी बता सकते हैं कि कौन सा ग्रुप इस महामारी में बीमार हो सकता है. कौन से लोग गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं और किन लोगों के लिए ज्यादा खतरा है. उसके अलावा हमारा जो इंडोगेमिक कास्ट सिस्टम है. उससे क्या होता है कि बहुत सारी ऐसी बीमारियां हैं जो कि उसी गोत्र और उसी कास्ट में होती रहती हैं. उसको ट्रैक करने के लिए जब तक हमारे पास सैंपल्स की अधिक संख्या नहीं होगी तब तक हम इस बारे में हम नहीं बता सकते हैं. यह पहला फेज है, जिसमें हम लोगों ने आटोमेटेड डीएनए एक्सट्रैक्टर मशीन खरीदी है. ये मशीन ऐसी है कि 32 मिनट में, 32 सैंपल, एक बार में प्रोसेस कर सकती है. सभी को एक बराबर मीटर के साथ ट्रैक कर सकती है. इससे क्या होगा कि एक बड़ी संख्या में सैंपल्स बहुत ही हम समय में प्रोसेस हो पाएंगे.



सामान्य तौर पर लगता है तीन दिन का समय : विभाग की शोध छात्रा बताती हैं कि यह मशीन पूरी तरह से ऑटोमेटेड है. इस मशीन में अधिक काम नहीं करना होता है. इसमें टिश्यू को डाइजेस्ट करके प्रोटीन को इंस्टाल करना होता है. इसमें एक छोटा उपकरण लगा हुआ है, जिसमें आप डीएनए के सैंपल को लोड करेंगे और फिर उसे वैसे ही छोड़ देंगे. बाकी सारे बफर और शॉल्यूशन इसमें पहले से ही हैं. इसमें ये मशीन खुद उसको मिक्स करता रहेगा. इसके बाद डीएनए सैंपल आइसोलेटेड मिलेगा. जब हम लोग सामान्य तौर पर डीएनए आइसोलेशन का प्रोसेस करते हैं तो यह हमारे लैब में पीसीआई मेथड से होता है. उसे प्रोसेस को पूरा करने में, अगर शॉल्यूशन बनाने से लेकर सारी चीजें देखते हैं तो यह कम से कम तीन दिन का समय लेता है. सैंपल कलेक्ट कर उसमें पीएच आदि मेंटेन करने में समय लग जाता है.

इन चीजों से निकाला जा सकता है डीएनए : शोध छात्रा ने बताया कि इस प्रोसस को पूरा करने में इन सारी चीजों से छुटकारा मिल जाएगा और सीधे हम सैंपल को लोड कर लेंगे. डीएनए आइसोलेशन 32 मिनट में हो जाएगा. बता दें कि यह मशीन कम समय में डीएनए की प्रक्रिया को पूरी कर लेगी. इस मशीन के माध्यम से आसानी से डीएनए से संबंधित तमाम जानकारियांं मिल जाएंगी. ये मशीन खून, लार, बाल और टिशू से डीएनए निकाल सकती है. यह मशीन पूरी तरीके से मेड इन इंडिया और स्वदेशी है. प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे बताते हैं कि जंतु विज्ञान विभाग और ज्ञान लैब की तरफ से इससे पहले भी लद्दाख से लेकर श्रीलंका तक की विभिन्न जातियों के डीएनए पर अध्ययन किया गया है. यह मानकर चला जा सकता है कि एक बड़ी मात्रा में सैंपल कलेक्ट कर डीएनए बैंक बनाने में कम से कम 5 साल का वक्त लग जाएगा.

यह भी पढ़ें : रामलला के दर्शन करने पर मुस्लिम को बिरादरी से बाहर निकालने की धमकी, गांव में पहुंची पुलिस

संरक्षित किए जाएंगे 50 हजार से ज्यादा DNA

वाराणसी : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पहली बार डीएनए बैंक बनने जा रहा है. इसमें 50 हजार से ज्यादा अलग-अलग जाति-जनजातियों के डीएनए संरक्षित किए जाएंगे. इसको लेकर परिसर में मशीन भी स्थापित कर दी गई है. बीएचयू के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस डीएनए बैंक का मूल उद्देश्य आने वाली महामारियों से सुरक्षा को लेकर शोध करना है. इसके साथ ही भारत में प्रचलित इंडोगेमी व्यवस्था यानी एक ही जाति में विवाह प्रथा के कारण उत्पन्न बीमारियों का जीन आधारित अध्ययन करना है. इतना ही नहीं यह डीएनए बैंक भविष्य में पर्सनल मेडिसिन की दिशा में भी कारगर आधार बनेगा. महामारियों का लोगों पर प्रभाव जानने में इससे काफी सहूलियत मिलेगी.

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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग में उत्तर भारत का डीएनए बैंक बनाया जा रहा है. इसके लिए विभाग के ज्ञानेश्वर लैब में आटोमेटेड डीएनए एक्सट्रैक्टर मशीन लगाई गई है. कोरोना महामारी में डीएनए को लेकर तमाम तरीके की बातें सामने आ रहीं थीं. तमाम तरीके से लोगों को अलर्ट किया जा रहा था. ऐसे में बीेएचयू का ये डीएनए बैंक भविष्य में ऐसी किसी स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. सामान्य तौर पर जहां डीएनए के आइसोलेशन में तीन दिन का वक्त लग जाया करता था. अब वहीं इस मशीन से 32 मिनट का समय लगेगा. ऐसे में डीएनए कलेक्ट कर उसके बारे में जानकारी निकालने में भी समय की काफी बचत हो सकेगी. कम समय में काफी बड़ा सैंपल बैंक बनाया जा सकेगा.

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महामारी के समय होगा सबसे महत्वपूर्ण : जंतु विज्ञान विभाग के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे बताते हैं कि हमने एक प्लान बनाया है, जिसमें उत्तर भारत के विभिन्न जातियों और जनजातियों के डीएनए का एक बैंक बनाया जाएगा. डीएनए का कलेक्शन करके बीएचयू में रखा जाएगा. ऐसा इसलिए किया जाएगा कि डीएनए हमारे रोगों का, हमारे माइग्रेशन का या हमारे हेल्थ का बहुत बड़ा मार्कर होता है. डीएनए से हम किसी व्यक्ति के बारे में अगर पता करना चाहते हैं कि उस व्यक्ति को क्या रोग हो सकता है या आगे उसके जीवन में क्या रोग होने की संभावना है. इन सभी चीजों की आज की तारीख में पॉसिबिलिटी है कि हम डीएनए के अध्ययन के द्वारा इसे हम पता कर सकते हैं. सबसे बड़ी जरूरत थी इसकी कि किसी भी महामारी के आने के समय हम ये पता कर सकते हैं कि कौन से लोग इस महामारी से गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं और कौन से लोग नहीं बीमार हो सकते हैं.

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32 मिनट में 32 सैंपल कर सकते हैं प्रोसेस : उन्होंने बताया कि, ऐसे में उसी तरीके से सरकार की प्लानिंग बनाई जा सकती है. इसके लिए अगर हमारे पास डीएनए बैंक है तो हम कम समय में बहुत जल्दी बता सकते हैं कि कौन सा ग्रुप इस महामारी में बीमार हो सकता है. कौन से लोग गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं और किन लोगों के लिए ज्यादा खतरा है. उसके अलावा हमारा जो इंडोगेमिक कास्ट सिस्टम है. उससे क्या होता है कि बहुत सारी ऐसी बीमारियां हैं जो कि उसी गोत्र और उसी कास्ट में होती रहती हैं. उसको ट्रैक करने के लिए जब तक हमारे पास सैंपल्स की अधिक संख्या नहीं होगी तब तक हम इस बारे में हम नहीं बता सकते हैं. यह पहला फेज है, जिसमें हम लोगों ने आटोमेटेड डीएनए एक्सट्रैक्टर मशीन खरीदी है. ये मशीन ऐसी है कि 32 मिनट में, 32 सैंपल, एक बार में प्रोसेस कर सकती है. सभी को एक बराबर मीटर के साथ ट्रैक कर सकती है. इससे क्या होगा कि एक बड़ी संख्या में सैंपल्स बहुत ही हम समय में प्रोसेस हो पाएंगे.



सामान्य तौर पर लगता है तीन दिन का समय : विभाग की शोध छात्रा बताती हैं कि यह मशीन पूरी तरह से ऑटोमेटेड है. इस मशीन में अधिक काम नहीं करना होता है. इसमें टिश्यू को डाइजेस्ट करके प्रोटीन को इंस्टाल करना होता है. इसमें एक छोटा उपकरण लगा हुआ है, जिसमें आप डीएनए के सैंपल को लोड करेंगे और फिर उसे वैसे ही छोड़ देंगे. बाकी सारे बफर और शॉल्यूशन इसमें पहले से ही हैं. इसमें ये मशीन खुद उसको मिक्स करता रहेगा. इसके बाद डीएनए सैंपल आइसोलेटेड मिलेगा. जब हम लोग सामान्य तौर पर डीएनए आइसोलेशन का प्रोसेस करते हैं तो यह हमारे लैब में पीसीआई मेथड से होता है. उसे प्रोसेस को पूरा करने में, अगर शॉल्यूशन बनाने से लेकर सारी चीजें देखते हैं तो यह कम से कम तीन दिन का समय लेता है. सैंपल कलेक्ट कर उसमें पीएच आदि मेंटेन करने में समय लग जाता है.

इन चीजों से निकाला जा सकता है डीएनए : शोध छात्रा ने बताया कि इस प्रोसस को पूरा करने में इन सारी चीजों से छुटकारा मिल जाएगा और सीधे हम सैंपल को लोड कर लेंगे. डीएनए आइसोलेशन 32 मिनट में हो जाएगा. बता दें कि यह मशीन कम समय में डीएनए की प्रक्रिया को पूरी कर लेगी. इस मशीन के माध्यम से आसानी से डीएनए से संबंधित तमाम जानकारियांं मिल जाएंगी. ये मशीन खून, लार, बाल और टिशू से डीएनए निकाल सकती है. यह मशीन पूरी तरीके से मेड इन इंडिया और स्वदेशी है. प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे बताते हैं कि जंतु विज्ञान विभाग और ज्ञान लैब की तरफ से इससे पहले भी लद्दाख से लेकर श्रीलंका तक की विभिन्न जातियों के डीएनए पर अध्ययन किया गया है. यह मानकर चला जा सकता है कि एक बड़ी मात्रा में सैंपल कलेक्ट कर डीएनए बैंक बनाने में कम से कम 5 साल का वक्त लग जाएगा.

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