रांची: लोकसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच गांडेय विधानसभा सीट के लिए हो रहा उपचुनाव सबसे ज्यादा चर्चा में है. इसकी वजह हैं पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन. वह पहली बार राजनीति के मैदान में उतरी हैं. उनके पास पति हेमंत के जेल जाने पर सहानुभूति की पतवार है तो दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन का साथ. इंडिया गठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव चुनावी सभी कर चुके हैं. सीएम चंपाई ने भी लगातार कई सभाएं की हैं. कल्पना ने खुद भी मोर्चा संभाल रखा है. क्योंकि सोरेन परिवार की प्रतिष्ठा भी दाव पर लगी है.
वहीं, भाजपा ने भी इस सीट को प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है. इस बार भाजपा प्रत्याशी दिलीप कुमार वर्मा के साथ आजसू भी खड़ा है. लेकिन एक परसेप्शन तैयार करने की कोशिश हो रही है कि अगर कल्पना सोरेन यहां से चुनाव जीतती हैं तो वह मुख्यमंत्री के पैरेलल नेता साबित होंगी. संभव है कि लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के सीटों की संख्या में इजाफा होने पर राज्य में नेतृत्व परिवर्तन भी देखने को मिल जाए. हालांकि कल्पना सोरेन इस बात को खारिज कर रही हैं. लेकिन सवाल है कि क्या वह सिर्फ विधायक बनने के लिए चुनाव लड़ रहीं हैं ?
गांडेय में कल्पना का प्लस और नेगेटिव प्वाइंट
इस सीट पर मुस्लिम और आदिवासी वोटरों की एकजुटता निर्णायक साबित होती है. यहां का ट्रैंड बताता है कि आदिवासी झामुमो के साथ रहे हैं. वहीं मुस्लिम का साथ उस प्रत्याशी को मिलता रहा है, जिसको वोट मिलने से भाजपा की हार तय होती हो. लिहाजा, कल्पना सोरेन के मैदान में उतरने से मुस्लिम और आदिवासी वोट के ध्रुवीकरण की संभावना जताई जा रही है. साथ ही अब तक चुनाव प्रचार के दौरान कल्पना सोरेन यह बताने में सफल होती दिख रही हैं कि उनके पति को साजिश के तहत जेल भेजा गया है. लेकिन मुस्लिम वोट के कल्पना सोरेन के प्रति झुकाव उनके लिए मुसीबत भी खड़ा करता दिख रहा है. ऐसा होने से भाजपा प्रत्याशी दिलीप कुमार वर्मा के पक्ष में हिन्दू वोट के ध्रुवीकरण की संभावना जतायी जा रही है.
गांडेय में भाजपा प्रत्याशी प्लस और नेगेटिव प्वाइंट
अब सवाल है कि भाजपा प्रत्याशी दिलीप कुमार वर्मा का प्लस और निगेटिव प्वाइंट क्या है? प्लस प्वाइंट है भाजपा का प्रत्याशी होना. दूसरा प्लस प्वाइंट यह है कि कोडरमा में अन्नपूर्णा देवी की वजह से यादव महासभा ने दिलीप कुमार वर्मा को साथ देने की बात की है. ऊपर से कुशवाहा जाति से आने की वजह से उनको ओबीसी का भी साथ मिल सकता है.
नेगेटिव प्वाइंट के रूप में देखें तो वह है उनकी सक्रियता में कमी. पूर्व में वह सिर्फ कुछ इलाकों में ही सक्रिय रहे हैं. इनके लिए सबसे बड़ा निगेटिव प्वाइंट बने हैं अर्जुन बैठा. पिछली बार आजसू की टिकट पर चुनाव लड़े थे. अर्जुन को 15,361 वोट मिले थे. लेकिन टिकट नहीं मिलने के कारण बागी हो गये हैं. बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. आशंका है कि उनके पक्ष में गया वोट भाजपा को नुकसान पहुंचाएगा. लेकिन दो गठबंधन के बीच सीधी लड़ाई से अर्जुन बैठा अलग-थलग पड़ते दिख रहे हैं.
गांडेय विधानसभा क्षेत्र में वोटर्स समीकरण
एक अनुमान के मुताबिक गांडेय विस क्षेत्र में मुस्लिम और आदिवासी का वोट प्रतिशत 35 से 40 के बीच है. इसकी एकजुटता किसी भी प्रत्याशी के हार जीत की नींव मजबूत कर देती है. लेकिन यहां हमेशा से झामुमो, भाजपा और कांग्रेस में त्रिकोणीय संघर्ष होता रहा है. इसका फायदा अलग-अलग समय में तीनों पार्टियों को मिल चुका है.
इस बार मुस्लिम समाज से मुफ्ती सईद बतौर निर्दलीय मैदान में हैं. जिनकी गरीब मुस्लिमों के बीच अच्छी पकड़ मानी जाती है. अगर वह मुस्लिम वोट काटते हैं तो सीधे तौर पर कल्पना सोरेन को नुकसान होगा. वहीं ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी प्रत्याशी उतार रखा है. पिछली बार एआईएमआईएम प्रत्याशी को 6,039 वोट मिले थे.
कल्पना की जीत और हार का क्या हो सकता है असर
सभी मानते हैं कि गांडेय का चुनाव परिणाम झारखंड की राजनीति के भविष्य को तय करेगा. हेमंत सोरेन के बाद बेशक चंपाई सोरेन को सीएम बना दिया गया हो लेकिन पावर सेंटर की भूमिका कल्पना सोरेन ही निभाती दिख रही हैं. मुंबई में राहुल गांधी की रैली हो या दिल्ली में इंडिया गठबंधन की रैली, सीएम चंपाई के रहते कल्पना सोरेन को ही मंच पर बोलने का अवसर मिला था.
यही नहीं सरफराज अहमद से गांडेय सीट को एक सोची समझी रणनीति के तहत की खाली कराया गया था. लेकिन हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के वक्त ऐसे हालात बने कि उन्हें प्लान बी सामने लाना पड़ा. झामुमो के सूत्र बताते हैं कि झामुमो को सोरेन परिवार ही चला सकता है. लिहाजा, कल्पना के जीतने पर बड़े राजनीतिक बदलाव से इनकार नहीं किया जा सकता. यह बहुत हद तक लोकसभा चुनाव परिणाम पर भी निर्भर करेगा.
क्या रहा है गांडेय का चुनावी इतिहास
राज्य बनने के बाद से ही गिरिडीह जिला के गांडेय सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता रहा है. सीधी लड़ाई भाजपा, कांग्रेस और झामुमो के बीच होती रही है. लेकिन 2019 के बाद से यह समीकरण बदल गया. एक तरफ महागठबंधन था तो दूसरी तरफ अकेली भाजपा. आजसू से सीट शेयरिंग नहीं हो पाई थी. इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा.
2005 के चुनाव में झामुमो के सालखन सोरेन जीते थे. उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी रहे उसी सरफराज अहमद को सिर्फ 1,512 वोट के अंतर से हराया था, जो आज सोरेन परिवार के सबसे बड़े हितैषी बने हुए हैं. उस चुनाव में भाजपा के लक्ष्मण स्वर्णकार तीसरे स्थान पर थे. फिर भी उनको विजयी प्रत्याशी से महज 4,304 वोट कम मिले थे.
2009 के चुनाव में कांग्रेस के सरफराज अहमद ने बाजी मारी थी. उन्हें 39,625 वोट मिले थे. उन्होंने झामुमो के सालखन सोरेन को 8,455 वोट के अंतर से हराया था. इस चुनाव में भी भाजपा की पूनम प्रकाश तीसरे नंबर पर रहीं थी.
2014 के चुनाव में भाजपा के जयप्रकाश वर्मा की जीत हुई थी. यह चुनाव मोदी लहर में हुए लोकसभा चुनाव के बाद हुआ था. भाजपा को 48,838 वोट मिले थे. जयप्रकाश वर्मा ने झामुमो के सालखन सोरेन को 10,279 वोट के अंतर से हराया था. इस चुनाव में कांग्रेस के सीटिंग विधायक सरफराज अहमद तीसरे नंबर पर चले गये थे. उन्हें 35,727 वोट मिले थे.
2019 के चुनाव में महागठबंधन के तहत यह सीट झामुमो के पास चली गई थी. लिहाजा, सरफराज अहमद कांग्रेस को छोड़कर झामुमो में शामिल हो गये थे. राज्य बनने के बाद यह चौथा मुकाबला था, जब लड़ाई महागठबंधन के सरफराज और भाजपा की ओर से जय प्रकाश वर्मा के बीच हुई थी. लेकिन सरफराज अहमद ने 65,023 वोट लाकर भाजपा को 8,855 वोट के अंतर से हरा दिया था.
भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण आजसू बना था. उस चुनाव में आजसू से भाजपा का तालमेल नहीं हुआ था. लिहाजा, आजसू के प्रत्याशी अर्जुन बैठा ने 15,361 वोट काट लिए थे. अगर महागठबंधन की लड़ाई एनडीए से हुई होती तो आजसू के वोट जोड़ने पर एनडीए को 71,529 वोट मिल गये होते. एक और खास बात ये है कि इस बार भाजपा ने जिस दिलीप कुमार वर्मा को गांडेय से प्रत्याशी बनाया है, वह 2019 में जेवीएम के प्रत्याशी थे. तब उन्हें महज 8,952 वोट मिले थे. वह छठे स्थान पर थे. तब उनकी जमानत जब्त हो गयी थी. लेकिन इस बार का समीकरण बदल गया है. सीधा मुकाबला इंडिया गठबंधन और एनडीए के बीच है. एक तरफ विक्टिम कार्ड है तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार का ताला खोलने वाली चाबी.
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