नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच इस समय एक तरह की नई कूटनीति चल रही है. दुनिया के नए साल की शुरुआत के साथ ही दोनोंं की नई राह भी तय हो गई है. भू-राजनीतिक तनाव के बीच, यह देखना दिलचस्प है कि दक्षिण एशियाई के दोनों दिग्गज सीमा पर सामंजस्य स्थापित करने के लिए क्या प्रयास करते हैं. साथ ही वैश्विक कूटनीति के व्यस्त वर्ष को समाप्त करने का इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं हो सकता.
भारत और चीन ने अंततः 18 दिसंबर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य और विदेश मामलों के मंत्री वांग यी के नेतृत्व में विशेष प्रतिनिधियों (एसआर) की 23वीं बैठक आयोजित की. वर्ष 2020 में भारत-चीन सीमा क्षेत्रों के पश्चिमी सेक्टर में तनाव उत्पन्न होने के बाद से विशेष प्रतिनिधियों की यह पहली बैठक थी. विशेष प्रतिनिधियों ने अक्टूबर 2024 के नवीनतम विघटन समझौते के कार्यान्वयन की सकारात्मक रूप से पुष्टि की, जिसके परिणामस्वरूप संबंधित क्षेत्रों में गश्त की गई.
सवाल यह है कि क्या इससे एलएसी पर तनाव कम हो सकता है? इस पर ईटीवी भारत ने विशेषज्ञों से बात की. उन्होंने कहा कि अब कोई कारण नहीं है कि चीन को तनाव कम करने की दिशा में आगे बढ़ेगा, क्योंकि भारतीयों ने समझौता कर लिया है और चीन के लिए अर्थव्यवस्था को पुनः खोलने का निर्णय ले लिया है.
ईटीवी भारत से बातचीत में शिव नादर विश्वविद्यालय के दिल्ली हिमालयन अध्ययन उत्कृष्टता केंद्र के निदेशक और अंतर्राष्ट्रीय संबंध एवं शासन अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर जाबिन टी. जैकब ने कहा, बयानबाजी के बावजूद, दोनों पक्षों की इस बात को लेकर बहुत अलग-अलग समझ है कि गतिरोध के सबक क्या हैं.
भारतीयों के लिए, यह है कि दृढ़ता अंततः फल देती है. चीनियों के लिए यह है कि वे जब चाहें जमीन पर स्थिति बदल सकते हैं. चाहे स्थिति को बढ़ाना हो या उसे कम करना हो. चीनियों ने शायद भारतीयों से अधिक सही कहा है. मुझे नहीं लगता कि तनाव में कमी जल्द ही आने वाली है. अब जब भारतीयों ने समझौता कर लिया है और चीन के लिए अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने का फैसला किया है, तो चीनियों को तनाव कम करने के लिए आगे बढ़ने की कोई वजह नहीं है.
विशेषज्ञ ने कहा कि भारत और चीन के बीच राजनीतिक संबंध और साथ ही एलएसी पर स्थिति निकट भविष्य में भी खराब रहने की संभावना है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास की कमी है. बातचीत के दौरान, भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अपने विघटन समझौते के सकारात्मक परिणामों को रचनात्मक रूप से स्वीकार किया है.
अपनी चर्चाओं के दौरान, डोभाल और वांग ने सीमा पर शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए LAC पर चार साल के सैन्य गतिरोध से सीखने के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने अपने द्विपक्षीय संबंधों को फिर से बनाने और मजबूत करने के अवसरों की भी पहचान की, जो इन तनावों से प्रभावित हुए थे. उनकी बातचीत ने सीमा पार सहयोग में सकारात्मक दिशाओं के लिए आधार तैयार किया, जिसमें भारत से तिब्बत तक कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा को फिर से शुरू करना, सीमा पार नदियों पर बेहतर डेटा साझा करना और सीमा व्यापार को बढ़ाना शामिल है, जो सभी दोनों देशों को लाभान्वित करने का वादा करते हैं.
इस बीच, भारत के पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत ने कहा, 'पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बैठक के बाद एसआर तंत्र को पुनर्जीवित करने पर सहमति बनी, जो अनिवार्य रूप से सीमा मुद्दों और स्थिरता पर केंद्रित है. एलएसी पर सीमा मुद्दे को हल करना एक जटिल मुद्दा है, जिसे एनएसए अजीत डोभाल और एसआर वांग यी की इस 23वीं बैठक से प्रमाणित किया गया है. लेकिन ऐसा लगता है कि चीनी कुछ हद तक गंभीर हैं लेकिन ये समय ही बताएगा.
विशेष प्रतिनिधियों ने सीमा प्रश्न के समाधान के लिए एक निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य रूपरेखा की मांग करते हुए समग्र द्विपक्षीय संबंधों के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को बनाए रखने के महत्व को दोहराया और इस प्रक्रिया में और अधिक जीवंतता लाने का संकल्प लिया.