देहरादून: उत्तराखंड एसटीएफ की टीम ने डिजिटल हाउस अरेस्ट स्कैम का भंडाफोड़ कर एक आरोपी को छत्तीसगढ़ के भिलाई से गिरफ्तार किया. गिरोह ने मुंबई क्राइम ब्रांच ऑफिसर बन कर Skype App पर वीडियो कॉल के जरिए पीड़ित को डिजिटल अरेस्ट किया था. करीब 5 घंटे के भीतर लाखों रुपए ठग लिए थे. गिरफ्तार आरोपी की ओर से धोखाधड़ी में इस्तेमाल किए जा रहे एक बैंक खाते के खिलाफ देशभर के अलग-अलग राज्यों में 45 से ज्यादा शिकायतें दर्ज हैं.
कंपनी में कार्यरत कर्मचारी को किया डिजिटल अरेस्ट: बता दें कि हाल में हरिद्वार में एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत पंजाब निवासी एक पीड़ित को साइबर ठगों ने डिजिटल हाउस अरेस्ट कर करोड़ों रुपए ठगे थे. इस मामले में पीड़ित ने कुछ दिन पहले साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन देहरादून आकर शिकायत दर्ज कराई थी. जिसमें पीड़ित ने बताया था कि बीती 24 अगस्त को उसके मोबाइल नंबर पर कोरियर नाम से एक फोन आया था. जिसमें बताया गया कि उनका (पीड़ित) का एक पार्सल है, जो मुंबई से ईरान के लिए भेजा गया था. पार्सल पर आपका नाम, मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी लिखी हुई है. उस पार्सल में कुछ अवैध दस्तावेज और सामान हैं.
साइबरक्राईमदेहरादून पुलिस द्वारा सम्पूर्ण भारत वर्ष में प्रचलित डिजिटल हाउस अरेस्ट स्कैम 1.27 करोड़ का भण्डाफोड़ करते हुये एक अभियुक्त को भिलाई(दुर्ग),छत्तीसगढ से किया गिरफ्तार।हरिद्वार में कार्यरतपीडित को साइबरठगों द्वारा डिजिटलहाउसअरेस्ट के मामले में हुआ इस गिरोह का पर्दा फाश। pic.twitter.com/vIKZV76UrL
— Cyber Crime Police Station, Uttarakhand (@UKCyberPolice) October 1, 2024
फोन करने वाले ने बताया कि पार्सल में 2 भारतीय पासपोर्ट, 5 किलोग्राम प्रतिबंधित मेडिसिन, 50 ग्राम ड्रग्स एमडीएमए है. इसके खिलाफ मुंबई में मुकदमा दर्ज हो चुका है. जिसका मुकदमा अपराध संख्या भी बताया गया. साथ ही डराते हुए कहा गया कि उनकी कॉल मुंबई क्राइम ब्रांच से कनेक्ट कर दी गई है. फिर मुंबई क्राइम ब्रांच के नाम से पार्सल के बारे में जानकारी ली गई. साथ ही आधार कार्ड नंबर पूछा गया.
इस दौरान बताया कि उनका (पीड़ित) का आधार कार्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस में कई बार इस्तेमाल हो चुका है. इस मामले में व्यक्तिगत रूप से मुंबई आकर केस में सहयोग करना होगा या ऑनलाइन माध्यम से बयान दर्ज करना होगा. जिस पर पीड़ित ने झांसे में आकर ऑनलाइन बयान कराने का प्रस्ताव स्वीकार किया. उन्हें बताया गया कि स्काइप एप बयान दर्ज करवाने का अधिकारिक माध्यम है.
इसके बाद Skype App डाउनलोड करवाकर एप के सर्च में जाकर मुंबई की एक क्राइम ब्रांच साइट पर कनेक्ट करवाकर वीडियो कॉल शुरू की गई. चैट में पुलिस आईडी कार्ड भेजा गया और करीब 1 घंटे तक पूरी जांच प्रक्रिया समझाते हुए बताया गया कि सारी जांच प्रक्रिया न्यायालय में पेश करने के लिए रिकॉर्ड की जाएगी. जिसमें 2 घंटे से 2 दिन भी लग सकते हैं. इस दौरान दरवाजा बंद रखने और किसी से भी बात करने से मना किया गया.
वहीं, उसके सभी बैंक खातों की जानकारी हासिल कर खातों में अनियमितता पाए जाने की बात कही गई. इस मामले में आरबीआई को भी शामिल करने की बात कहते हुए सारा पैसा वेरिफिकेशन के लिए बताए गए खाते में ट्रांसफर करने को कहा गया. जांच के बाद आपका सारा पैसा आपके खाते में वापस कर दिया जाएगा. उनके बताए अनुसार पैसा ट्रांसफर करने के बाद उन्होंने फिर से ज्यादा रुपए ट्रांसफर करने को कहा.
डिजिटल अरेस्ट कर ठगे 43 लाख रुपए: जब वो असमर्थ रहा तो ये लोग भड़क गए और धमकाने लगे कि पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट न मिलने के कारण उनके सारे अकाउंट फ्रीज हो जाएंगे. जिसमें 7 साल की सजा हो सकती है, यह कहकर कॉल डिस्कनेक्ट कर दी गई. इसके बाद ही उसे अहसास हुआ कि वो ठगी का शिकार हुआ है. पीड़ित के साथ शातिरों ने 43 लाख रुपए की ठगी की.
क्या है डिजिटल अरेस्ट: डिजिटल हाउस अरेस्ट एक ऐसा तरीका है, जिसमें जालसाज लोगों को उनके घरों में ही बंद कर उनसे धोखाधड़ी करते हैं. ये जालसाज फोन या वीडियो कॉल के जरिए डर पैदा करते हैं. साइबर अपराधी बेखबर लोगों को अपने जाल में फंसाकर उनकी कमाई का रुपया हड़पने के लिए मुंबई क्राइम ब्रांच, सीबीआई ऑफिसर, नारकोटिक्स डिपार्टमेंट, साइबर क्राइम, आईटी या ईडी ऑफिसर के नाम से कॉल करते हैं. शातिर ऐसी गलती बताते हैं, जो आपने की ही न हो.
जैसे आपके नाम और आधार कार्ड आदि आईडी पर खोले गए बैंक खातों में हवाला आदि का पैसा जमा होने की बात करते हैं. या फिर आपके नाम से भेजे गए कोरियर और पार्सल में प्रतिबंधित ड्रग्स, फर्जी दस्तावेज, पासपोर्ट आदि अवैध सामग्री पाए जाने की बात करते हैं. मनी लॉन्ड्रिंग, नारकोटिक्स आदि के केस में गिरफ्तार करने का डर दिखाकर व्हाट्सएप वॉयस, वीडियो कॉल, स्काइप एप आदि के माध्यम से विवेचना में सहयोग के नाम पर अवैध रूप से डिजिटल हाउस अरेस्ट करते हैं.
इसके बाद उनका सारा पैसा आरबीआई से जांच और वेरिफिकेशन कराने के नाम पर बताए गए खातों में ट्रांसफर करवाकर धोखाधड़ी को अंजाम देते हैं. कभी-कभी शातिर झूठ बोलकर पीड़ित के रिश्तेदारों या दोस्तों को फोन कर बताते हैं किसी अपराध या दुर्घटना में उनकी संलिप्तता है, जिससे पीड़ित घबरा जाता है. इसके बाद ये शातिर खुद को पुलिस या सरकारी अफसर बताकर कहते हैं कि अगर वे पैसे देंगे तो पूरा मामला बंद हो जाएगा.
इतना ही नहीं, जालसाज तब तक उन्हें वीडियो कॉलिंग करते रहते हैं, जब तक उनकी मांग पूरी नहीं हो जाती. ये जालसाज या शातिर, लोगों को फंसाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं. कभी-कभी तो वे नकली पुलिस स्टेशन या सरकारी दफ्तर का सेटअप बना लेते हैं और असली पुलिस की वर्दी जैसी दिखने वाली वर्दी पहन लेते हैं. इसमें 1.27 करोड़ का संदिग्ध लेनदेन पाया गया है.
साइबर पुलिस की ओर से मुकदमे की जांच में घटना शामिल मुख्य आरोपी को चिह्नित किया गया. जिस पर कई स्थानों पर दबिश दी गई और आखिरकार साइबर पुलिस टीम ने मोनू (काल्पनिक नाम) को भिलाई (दुर्ग) छत्तीसगढ़ से गिरफ्तार किया. जिसके कब्जे से घटना में इस्तेमाल बैंक खाते का एसएमएस अलर्ट सिम नंबर, एक मोबाइल और एक 16 जीबी का डिस्क बरामद हुआ. जिसमें 1.27 करोड़ रुपए का संदिग्ध लेन-देन पाया गया है. - नवनीत भुल्लर, एसएसपी एसटीएफ
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