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पहाड़ की ट्रेडिशनल ज्वेलरी बनी युवतियों की पहली पसंद, जानें शादियों के सीजन में क्या है खास

उत्तराखंड के पारंपरिक गहनों, नथ, गलोबंद, पौंजी और तिमनिया का बढ़ा क्रेज, मम्मी, दादी और नानी की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहती हैं युवतियां

UTTARAKHAND TRADITIONAL JEWELLERY
उत्तराखंड की पारंपरिक ज्वेलरी (PHOTO- ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

Updated : 14 minutes ago

देहरादून: उत्तराखंड की ट्रेडिशनल ज्वेलरी इन दिनों बाजार में फैंसी ज्वेलरी को जोरदार टक्कर दे रही हैं. अपनी दादी मम्मी की पसंद आज युवा लड़कियों की भी पहली पसंद बन रही है. बाजार में उत्तराखंड की ट्रेडिशनल ज्वेलरी में क्या कुछ उपलब्ध है और दाम के मामले में फैंसी ज्वेलरी के सामने पारंपरिक ज्वेलरी का क्या हिसाब है, जानिए हमारी इस खास रिपोर्ट में.

शादियों के सीजन से पहले पहाड़ी ज्वेलरी का क्रेज: एक रिपोर्ट के अनुसार साल के आखिरी 2 महीने में नवंबर और दिसंबर में भारत में 46 लाख शादियों का अनुमान लगाया गया है. ये वैवाहिक कार्यक्रम पूरे देश में तकरीबन 6 करोड़ के व्यापार पैदा करेंगे. ऐसे में देवभूमि उत्तराखंड में भी इस दौरान हजारों शादियां हैं. शादी के इस सीजन से पहले बाजार में आज की फैंसी ज्वेलरी को उत्तराखंड के पहाड़ की ट्रेडिशनल या पारम्परिक ज्वेलरी पूरा टक्कर दे रही है. टिहरी की नथ से लेकर कुमाऊं का गलोबंद, पौंजी, तिमनिया आज युवतियों की पहली पसंद बन रहे हैं. युवतियों की इस पसंद के पीछे उनकी भावनाएं भी जुड़ी हैं जो कि खास तौर से युवा लड़कियों जो कि शादी के पवित्र बंधन में बंधने जा रही हैं, उन्हें भावनात्मक रूप से उनकी मां, दादी या नानी से जोड़ती हैं.

ये हैं उत्तराखंड की कुछ लोकप्रिय ट्रेडिशनल ज्वेलरी: पूरे उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से जाने जानी वाली कुछ प्रसिद्ध ज्वेलरी जो लोगों को बहुत पसंद आ रहीं हैं, वो ये चार ज्वेलरी हैं-

UTTARAKHAND TRADITIONAL JEWELLERY
नथुली सैकड़ों सालों से पहाड़ में गहने के रूप में प्रचलित है (ETV Bharat Graphics)

1. नाक में पहनी जाने वाली टिहरी की नथ (नथुली): उत्तराखंड की नथ के रूप में माना जाता है कि इसका टिहरी की राजशाही से संबंध है. युवतियों के बीच आज नथ उत्तराखंड की पहचान बन गई है. युवतियां और महिलाएं बहुत शौक के साथ शादी और अन्य मंगल कार्यों में पहाड़ी नथ पहनती हैं. इसको लेकर महिलाओं में काफी रुचि है. सामान्य तौर पर नथ (नथुली) एक तोला यानी 10 ग्राम असली सोने के साथ ही बनती है. नथ का डिजाइन उत्तराखंड में तो अब टिहरी के अलावा प्रदेश के किसी भी ज्वेलर्स से बनवा सकते हैं. हालांकि राज्य से बाहर इसकी डिजाइन को लेकर हो सकता है कि कम ही ज्वेलर्स को मालूम हो.

UTTARAKHAND TRADITIONAL JEWELLERY
नई पीढ़ी की युवतियां गलोबंद को लेकर क्रेजी हैं (ETV Bharat Graphics)

2- गले में पहने जाने वाला कुमाऊं क्षेत्र का गलोबंद: कुमाऊं में खास तौर से प्रचलन में गलोबंद कुमाऊं की महिला की सुंदरता का पूरक है. गलोबंद एक सोने का हार है जिसे कुमाऊं, गढ़वाल, भोटिया और जौनसार क्षेत्रों की विवाहित महिलाएं चौकोर के रूप में पहनती हैं. सामान्य तौर पर सवा तौला या की सवा 12 ग्राम सोने के साथ इसे लाल बेल्ट पर तैयार किया जाता है. जिस पर चौकोर सोने के ब्लॉक व्यवस्थित होते हैं, जिन्हें धागों से बांधा जाता है. ऐतिहासिक रूप से अपनी सुंदरता के लिए संजोए गए इस डिज़ाइन के नए एडिशन बड़े लोकप्रिय हैं. दिलचस्प बात यह है कि आज भी यह शहरों से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं में अधिक देखा जाता है.

UTTARAKHAND TRADITIONAL JEWELLERY
पौंजी का क्रेज युवतियों में बढ़ा है (ETV Bharat Graphics)

3- हाथों में पहने जाने वाली गढ़वाल कुमाऊं की पौंजी: वैवाहिक शुभता का प्रतीक माने जाने वाले पौंजी कुछ विशेष मौकों पर विवाहित महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली एक तरह की सोने की चूड़ियां हैं. ये चूड़ियां कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में विशेष रूप से पसंद की जाती हैं, जो विवाहित महिलाओं के लिए आभूषण का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. महिलाएं आम तौर पर पारिवारिक कार्यक्रमों में अपने पारंपरिक पर्वों के दौरान इन गहनों से खुद को सजाती हैं. इन चूड़ियों को जो चीज़ अलग बनाती है, वह है इनका निर्माण. 20 तोले यानी 20 ग्राम सोने की मोतियां जिसमें लाल कपड़े के आधार में जटिल रूप से जड़े हुए छोटे-छोटे सोने के मोती होते हैं.

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तिमनिया पहाड़ की पारंपरिक ज्वैलरी है (ETV Bharat Graphics)

4- जौनपुर जौनसार में गले में पहने जाने वाला तिमनिया: तिमनिया एक रोज़ाना पहना जाने वाला हार है, जिसमें तीन सुनहरे बड़े मोती होते हैं. ये मोती एक दूसरे से लंबवत रूप से जुड़े होते हैं. अब इसके कई नए एडिशन में भी बाजार में उपलब्ध हैं. इसका महत्व खुद-ब-खुद स्पष्ट है क्योंकि इसे अक्सर "मंगल सूत्र" के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिसे विवाहित महिलाएं अपने पति के लंबे और स्वस्थ जीवन की मनोकामना के साथ पहनती हैं. शुभ और दैवीय कारणों से लाल रंग को सबसे अच्छा माना जाता है. इसलिए इसे बनाने के लिए लाल मोतियों का इस्तेमाल किया जाता है. ये सामान्यतया एक तोला यानी 10 ग्राम सोने के मोतियों के साथ मिलकर बनाए जाते हैं. कुछ मामलों में काले मोतियों का भी इस्तेमाल किया जाता है.

केवल लक्जरी नहीं भावनाओं का भी विषय ट्रेडिशनल ज्वेलरी: बाजार में अपनी शादी की शॉपिंग कर रही एक युवती ने ईटीवी से बातचीत करते हुए कहा कि यह उनके लिए बेहद भावनात्मक विषय है कि जिस रूप में या फिर जिन आभूषणों में उन्होंने अपनी दादी, नानी और फिर मां को बचपन से बड़े होने तक देखा है, अब वो भी उसी परंपरा को अपनी शादी के बाद आगे बढ़ाएगी. उन्होंने कहा कि फैंसी ज्वेलरी के रूप में वो कुछ भी महंगा या फिर डिजाइनर पहन सकती हैं और आज के इस ग्लैमर्स युग में उसकी कोई सीमा नहीं. लेकिन यदि कुछ यूनिक पहनना है, तो वो उनके घर में ही है. यह उन्हें उनकी परंपरा और संस्कृति से भी जोड़ता है.

युवतियों का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि अब समय के साथ साथ ज्वेलरी की गुणवत्ता या फिर लोगों की क्षमता में थोड़ा कमी जरूर आई हो. एक वर्ग ऐसा भी हो सकता है कि उसकी क्षमता पहले से बढ़ गई हो. लेकिन डिजाइन और उनकी पहचान नहीं बदली है. आप अपनी क्षमता के अनुसार इसे कम लगत के साथ भी बना सकते हैं. सबसे महत्वपूर्ण यही है कि आप इसे पहनें. क्योंकि आधुनिकता के समंदर में खो जाने से बेहतर है कि हम अपनी समृद्ध संस्कृति को आत्मसात करें.

दाम में भी फैंसी ज्वेलरी के बराबर ट्रेडिशनल ज्वेलरी: देहरादून के सर्राफा बाजार धामा मार्किट में पिछले 75 सालों से पुश्तैनी तौर पर सोने का व्यापार कर रहे अनिल मेसन ने बताया कि आज युवतियों में ज्वेलरी को लेकर गढ़वाल, कुमाऊं के ट्रेडिशनल डिजाइन ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि आजकल की युवतियों में जो कि शादी करने जा रही हैं वो गलोबंद, पौंजी, तिमनिया, नथ इत्यादि को लेकर बहुत उत्साह रहता है. यही वजह हैं कि उनके द्वारा भी लगातार ट्रेडिशनल ज्वेलरी में और अधिक डिजाइन और वैराइटी रखी जाती हैं. उन्होंने बताया कि पुरानी ट्रेडिशनल ज्वेलरी बनाने में कोई भी समस्या नहीं हैं. बस डिजाइन में थोड़ा सा अपडेट करना होता है. बाकी डाई और फ्रेम सब पुराने मौजूद हैं.

इतनी है नथ, गलोबंद, पौंजी और तिमनिया की कीमत: अनिल ने कहा कि उनके पास गढ़वाल कुमाऊं की सभी पुरानी ट्रेडिशनल आभूषण बनाने के औजार पहले से ही मौजूद हैं. उनके पूर्वज ही इस काम को करते आए हैं. बस अब थोड़ा बहुत मॉडिफिकेशन जिसमें कलर और चमक के अलावा हल्के फुल्के बदलाव के साथ वही पारम्परिक आभूषण तैयार हो जाते हैं, जो उत्तराखंड की अपनी अलग एक पहचान हैं. उन्होंने यह भी बताया कि पहले की तुलना में ट्रेडिशनल ज्वेलरी में अब हॉलमार्क आने की वजह से और मजबूती आई है. पहले सब 24 कैरेट में बनता था, तो वह कमजोर होता था. सर्राफ अनिल मेसन ने बताया कि आज अगर कोई सामान्य परिवार के लोग बाजार में ट्रेडिशनल ज्वेलरी शादी के लिए बनवाते हैं, तो न्यूनतम 2 लाख रुपए में उसे नथ से लेकर गलोबंद, पौंजी और तिमनया 2 लाख रुपए में आराम से मिल जाएगा.
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शादियों के सीजन से पहले पहाड़ी ज्वेलरी का क्रेज: एक रिपोर्ट के अनुसार साल के आखिरी 2 महीने में नवंबर और दिसंबर में भारत में 46 लाख शादियों का अनुमान लगाया गया है. ये वैवाहिक कार्यक्रम पूरे देश में तकरीबन 6 करोड़ के व्यापार पैदा करेंगे. ऐसे में देवभूमि उत्तराखंड में भी इस दौरान हजारों शादियां हैं. शादी के इस सीजन से पहले बाजार में आज की फैंसी ज्वेलरी को उत्तराखंड के पहाड़ की ट्रेडिशनल या पारम्परिक ज्वेलरी पूरा टक्कर दे रही है. टिहरी की नथ से लेकर कुमाऊं का गलोबंद, पौंजी, तिमनिया आज युवतियों की पहली पसंद बन रहे हैं. युवतियों की इस पसंद के पीछे उनकी भावनाएं भी जुड़ी हैं जो कि खास तौर से युवा लड़कियों जो कि शादी के पवित्र बंधन में बंधने जा रही हैं, उन्हें भावनात्मक रूप से उनकी मां, दादी या नानी से जोड़ती हैं.

ये हैं उत्तराखंड की कुछ लोकप्रिय ट्रेडिशनल ज्वेलरी: पूरे उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से जाने जानी वाली कुछ प्रसिद्ध ज्वेलरी जो लोगों को बहुत पसंद आ रहीं हैं, वो ये चार ज्वेलरी हैं-

UTTARAKHAND TRADITIONAL JEWELLERY
नथुली सैकड़ों सालों से पहाड़ में गहने के रूप में प्रचलित है (ETV Bharat Graphics)

1. नाक में पहनी जाने वाली टिहरी की नथ (नथुली): उत्तराखंड की नथ के रूप में माना जाता है कि इसका टिहरी की राजशाही से संबंध है. युवतियों के बीच आज नथ उत्तराखंड की पहचान बन गई है. युवतियां और महिलाएं बहुत शौक के साथ शादी और अन्य मंगल कार्यों में पहाड़ी नथ पहनती हैं. इसको लेकर महिलाओं में काफी रुचि है. सामान्य तौर पर नथ (नथुली) एक तोला यानी 10 ग्राम असली सोने के साथ ही बनती है. नथ का डिजाइन उत्तराखंड में तो अब टिहरी के अलावा प्रदेश के किसी भी ज्वेलर्स से बनवा सकते हैं. हालांकि राज्य से बाहर इसकी डिजाइन को लेकर हो सकता है कि कम ही ज्वेलर्स को मालूम हो.

UTTARAKHAND TRADITIONAL JEWELLERY
नई पीढ़ी की युवतियां गलोबंद को लेकर क्रेजी हैं (ETV Bharat Graphics)

2- गले में पहने जाने वाला कुमाऊं क्षेत्र का गलोबंद: कुमाऊं में खास तौर से प्रचलन में गलोबंद कुमाऊं की महिला की सुंदरता का पूरक है. गलोबंद एक सोने का हार है जिसे कुमाऊं, गढ़वाल, भोटिया और जौनसार क्षेत्रों की विवाहित महिलाएं चौकोर के रूप में पहनती हैं. सामान्य तौर पर सवा तौला या की सवा 12 ग्राम सोने के साथ इसे लाल बेल्ट पर तैयार किया जाता है. जिस पर चौकोर सोने के ब्लॉक व्यवस्थित होते हैं, जिन्हें धागों से बांधा जाता है. ऐतिहासिक रूप से अपनी सुंदरता के लिए संजोए गए इस डिज़ाइन के नए एडिशन बड़े लोकप्रिय हैं. दिलचस्प बात यह है कि आज भी यह शहरों से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं में अधिक देखा जाता है.

UTTARAKHAND TRADITIONAL JEWELLERY
पौंजी का क्रेज युवतियों में बढ़ा है (ETV Bharat Graphics)

3- हाथों में पहने जाने वाली गढ़वाल कुमाऊं की पौंजी: वैवाहिक शुभता का प्रतीक माने जाने वाले पौंजी कुछ विशेष मौकों पर विवाहित महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली एक तरह की सोने की चूड़ियां हैं. ये चूड़ियां कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में विशेष रूप से पसंद की जाती हैं, जो विवाहित महिलाओं के लिए आभूषण का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. महिलाएं आम तौर पर पारिवारिक कार्यक्रमों में अपने पारंपरिक पर्वों के दौरान इन गहनों से खुद को सजाती हैं. इन चूड़ियों को जो चीज़ अलग बनाती है, वह है इनका निर्माण. 20 तोले यानी 20 ग्राम सोने की मोतियां जिसमें लाल कपड़े के आधार में जटिल रूप से जड़े हुए छोटे-छोटे सोने के मोती होते हैं.

UTTARAKHAND TRADITIONAL JEWELLERY
तिमनिया पहाड़ की पारंपरिक ज्वैलरी है (ETV Bharat Graphics)

4- जौनपुर जौनसार में गले में पहने जाने वाला तिमनिया: तिमनिया एक रोज़ाना पहना जाने वाला हार है, जिसमें तीन सुनहरे बड़े मोती होते हैं. ये मोती एक दूसरे से लंबवत रूप से जुड़े होते हैं. अब इसके कई नए एडिशन में भी बाजार में उपलब्ध हैं. इसका महत्व खुद-ब-खुद स्पष्ट है क्योंकि इसे अक्सर "मंगल सूत्र" के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिसे विवाहित महिलाएं अपने पति के लंबे और स्वस्थ जीवन की मनोकामना के साथ पहनती हैं. शुभ और दैवीय कारणों से लाल रंग को सबसे अच्छा माना जाता है. इसलिए इसे बनाने के लिए लाल मोतियों का इस्तेमाल किया जाता है. ये सामान्यतया एक तोला यानी 10 ग्राम सोने के मोतियों के साथ मिलकर बनाए जाते हैं. कुछ मामलों में काले मोतियों का भी इस्तेमाल किया जाता है.

केवल लक्जरी नहीं भावनाओं का भी विषय ट्रेडिशनल ज्वेलरी: बाजार में अपनी शादी की शॉपिंग कर रही एक युवती ने ईटीवी से बातचीत करते हुए कहा कि यह उनके लिए बेहद भावनात्मक विषय है कि जिस रूप में या फिर जिन आभूषणों में उन्होंने अपनी दादी, नानी और फिर मां को बचपन से बड़े होने तक देखा है, अब वो भी उसी परंपरा को अपनी शादी के बाद आगे बढ़ाएगी. उन्होंने कहा कि फैंसी ज्वेलरी के रूप में वो कुछ भी महंगा या फिर डिजाइनर पहन सकती हैं और आज के इस ग्लैमर्स युग में उसकी कोई सीमा नहीं. लेकिन यदि कुछ यूनिक पहनना है, तो वो उनके घर में ही है. यह उन्हें उनकी परंपरा और संस्कृति से भी जोड़ता है.

युवतियों का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि अब समय के साथ साथ ज्वेलरी की गुणवत्ता या फिर लोगों की क्षमता में थोड़ा कमी जरूर आई हो. एक वर्ग ऐसा भी हो सकता है कि उसकी क्षमता पहले से बढ़ गई हो. लेकिन डिजाइन और उनकी पहचान नहीं बदली है. आप अपनी क्षमता के अनुसार इसे कम लगत के साथ भी बना सकते हैं. सबसे महत्वपूर्ण यही है कि आप इसे पहनें. क्योंकि आधुनिकता के समंदर में खो जाने से बेहतर है कि हम अपनी समृद्ध संस्कृति को आत्मसात करें.

दाम में भी फैंसी ज्वेलरी के बराबर ट्रेडिशनल ज्वेलरी: देहरादून के सर्राफा बाजार धामा मार्किट में पिछले 75 सालों से पुश्तैनी तौर पर सोने का व्यापार कर रहे अनिल मेसन ने बताया कि आज युवतियों में ज्वेलरी को लेकर गढ़वाल, कुमाऊं के ट्रेडिशनल डिजाइन ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि आजकल की युवतियों में जो कि शादी करने जा रही हैं वो गलोबंद, पौंजी, तिमनिया, नथ इत्यादि को लेकर बहुत उत्साह रहता है. यही वजह हैं कि उनके द्वारा भी लगातार ट्रेडिशनल ज्वेलरी में और अधिक डिजाइन और वैराइटी रखी जाती हैं. उन्होंने बताया कि पुरानी ट्रेडिशनल ज्वेलरी बनाने में कोई भी समस्या नहीं हैं. बस डिजाइन में थोड़ा सा अपडेट करना होता है. बाकी डाई और फ्रेम सब पुराने मौजूद हैं.

इतनी है नथ, गलोबंद, पौंजी और तिमनिया की कीमत: अनिल ने कहा कि उनके पास गढ़वाल कुमाऊं की सभी पुरानी ट्रेडिशनल आभूषण बनाने के औजार पहले से ही मौजूद हैं. उनके पूर्वज ही इस काम को करते आए हैं. बस अब थोड़ा बहुत मॉडिफिकेशन जिसमें कलर और चमक के अलावा हल्के फुल्के बदलाव के साथ वही पारम्परिक आभूषण तैयार हो जाते हैं, जो उत्तराखंड की अपनी अलग एक पहचान हैं. उन्होंने यह भी बताया कि पहले की तुलना में ट्रेडिशनल ज्वेलरी में अब हॉलमार्क आने की वजह से और मजबूती आई है. पहले सब 24 कैरेट में बनता था, तो वह कमजोर होता था. सर्राफ अनिल मेसन ने बताया कि आज अगर कोई सामान्य परिवार के लोग बाजार में ट्रेडिशनल ज्वेलरी शादी के लिए बनवाते हैं, तो न्यूनतम 2 लाख रुपए में उसे नथ से लेकर गलोबंद, पौंजी और तिमनया 2 लाख रुपए में आराम से मिल जाएगा.
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