हैदराबाद: तेलंगाना के कोंडापुर में स्थापित सीआर फाउंडेशन आश्रम इस साल सिल्वर जुबली मना रहा है. यह वह जगह जहां लोग बुढ़ापे में आनंदमय जीवन का आनंद लेते हैं. सीआर फाउंडेशन दूसरे आश्रमों से बिल्कुल अलग है. इस साल आश्रम को 25 साल पूरे हो रहे हैं. यहां फिलहाल 140 लोग हैं, जो इस साल इसकी सिलवर जुबली मनाएंगे. इनमें 82 महिलाएं हैं और 23 जोड़े हैं. आश्रम में ज्यादातर लोग 80 साल से अधिक उम्र के हैं.
इस आश्रम की स्थापना की कहानी भी जरा अलग है. जब कम्युनिस्ट नेता चंद्र राजेश्वर राव अपने अंतिम दिनों में बीमार थे तो उनके फैंस ने एक समिति बनाई और उनकी बहुत सेवा की. इस बीच राव को ऐहसास हुआ कि उनके जैसे देश के लिए लड़ने वाले कई लोग संघर्ष कर रहे हैं और वे सम्मान के साथ नहीं रह पा रहे. इन्हीं विचारों के साथ अप्रैल 1994 में उन्होंने अंतिम सांस ली. कम्युनिस्ट नेताओं के समर्थकों ने उनकी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए उसी साल सीआर फाउंडेशन की स्थापना की.
राज्य सरकार ने दी जमीन
तत्कालीन राज्य सरकार ने फाउंडेशन के लिए कोंडापुर में पांच एकड़ जमीन आवंटित की. 2 अक्टूबर 1999 को आश्रम भवन का उद्घाटन पांच वृद्धजनों के साथ किया गया. आश्रम में स्वतंत्रता सेनानियों, तेलंगाना के सशस्त्र सेनानियों, कवियों, पत्रकारों और कलाकारों जैसे लोगों को प्रवेश दिया गया.
शुरुआत में प्रबंधन का खर्च फाउंडेशन ने ही वहन किया. जैसे-जैसे सदस्यों की संख्या बढ़ती गई, वे उनसे शुल्क लेने लगे. आश्रम के सदस्य फिलहाल 9 हजार रुपये प्रतिमाह भुगतान कर रहे हैं. इसके तहत गरीबों को निशुल्क आवास उपलब्ध कराया जाता है.
पहले शनिवार और रविवार को बुजुर्गों के परिजन उन्हें अपने घर ले जाते थे, लेकिन अब परिवार के लोग यहां आकर रहते हैं. उनके लिए एक गेस्ट हाउस भी बनाया गया. राज्य सरकार ने आश्रम को 2019 में 'व्यो श्रेष्ठ सम्मान' पुरस्कार देने की घोषणा की, जो बुढ़ापे में यहां आने वाले बुजुर्गों को सम्मानजनक जीवन प्रदान करता है.
मेडिकल ट्रीटमेंट भी उपलब्ध है
आश्रम में ही एक चिकित्सक और दो नर्स 24 घंटे उपलब्ध रहती हैं. आश्रम के डॉ. मांडवा गोपीनाथ यहां चिकित्सा सेवाएं प्रदान कर रहे हैं. इसके अलावा एलवी प्रसाद अस्पताल के तत्वावधान में एक निःशुल्क क्लिनिक की भी स्थापना की गई है. यहां इमरजेंसी से निपटने के लिए 5 बिस्तरों वाला एक आईसीयू है.
अगर इसके अलावा किसी को ज्यादा इलाज की जरूरत होती है तो परिवार वालों को सूचना देकर निजी अस्पताल में ले जाया जाता है, जिनके परिवार में कोई सदस्य नहीं है उन्हें एनआईएमएस में भर्ती कराया जाता है और आश्रम प्रशासकों द्वारा उनकी देखरेख की जाती है.
ओपन जिम और वॉकिंग ट्रैक
इसके अलावाा यहां ओपन जिम और वॉकिंग ट्रैक भी उपलब्ध कराए गए हैं. आश्रम की तीनों मंजिलों पर अलग-अलग डाइनिंग हॉल हैं. इसमें 110 कमरे और 3 शयनगृह हैं. पदाधिकारी सुरवरम सुधाकर रेड्डी, डी. राजा, डॉ. के. नारायण, अजीज पाशा, जल्ली विल्सन, पल्ला वेंकट रेड्डी, चेन्नमनेनी वेंकटेश्वर राव, पी.जे. चन्द्रशेखर राव, मनम अंजनेयुलु, वी. चेन्नाकेशवराव, पडि़कीति संध्याकुमारी नियमित रूप से यहां की समीक्षा करते हैं और बुजुर्गों के कल्याण के लिए निर्णय लेते हैं.
स्वास्थ्य केंद्र के निदेशक डॉ. रजनी ने कहा कि सीआर के प्रोत्साहन से मैंने जर्मनी में मेडिकल की पढ़ाई की. आश्रम में रहने वाले सभी लोगों ने किसी न किसी रूप में समाज की सेवा की है. इसलिए हम 2003 से ऐसे लोगों की सेवा कर रहे हैं.
स्वाद... स्वच्छता... स्वास्थ्य...!
चूंकि आश्रम में सभी बुजुर्ग हैं, इसलिए स्वाद, सफाई और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रहे हैं. बुजुर्ग को यहां सुबह 6 बजे चाय/कॉफी/दूध...हर दिन सुबह 8.30 बजे अंडा और केला के साथ नाश्ता...दोपहर में लंच...दोपहर 3 बजे नाश्ते के साथ चाय...शाम 7 बजे डिनर मिलता है.
किताबों पर नियमित चर्चा
आश्रम के लगभग सभी लोग सांस्कृतिक और आंदोलनात्मक बैकग्राउंड से हैं, इसलिए यहां हमेशा किताबों पर चर्चा होती रहती है. आश्रम परिसर में ओपन-एयर थिएटर में सप्ताह में 1-2 बार पुरानी फिल्में दिखाई जाती हैं. इसके अलावा कल्चर्ल प्रोग्राम भी आयोजित किए जाते हैं. त्योहारों के दौरान.. सभी लोग मिलकर जश्न मनाते हैं. कोविड के दौरान भी आश्रम को खुला रखा गया था.
आश्रम में पुस्तक लेखन
88 साल की डॉ. रंगनायकी और 95 साल के प्रोफेसर वेणुगोपाल. दोनों किताबें लिखने में व्यस्त हैं. विदेशों में बसे भारतीयों को भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं की महानता से अवगत कराने के लिए वह वर्षों तक उपनिषदों का संस्कृत में अध्ययन करने के बाद उनका सरल अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं.
प्रोफेसर वेणुगोपाल और डॉ. रंगनायकी एक ऐसा कपल है जो स्नेह की मिसाल है. उन्होंने पहले एसवी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में कार्य किया. उन्होंने शिक्षा विभाग में हिंदी पंडित के रूप में कार्य किया. 1991 में सेवानिवृत्ति के बाद वह कुछ वर्षों तक अपनी बेटी के साथ अमेरिका में रहे. उन्होंने 12 साल तक उपनिषदों का अध्ययन किया. इसके बाद वह 2000 में एक किताब लिखने के लिए हैदराबाद आए. तब से, यह उनका घर है. उन्होंने यहां 12 किताबी लिखीं.
दपंत्ति का कहना है कि हम अपनी पेंशन के पैसे से आराम से समय बिता सकते हैं, लेकिन विदेशों में भारतीयों की अपने देश की संस्कृति के बारे में जानने की चाहत ने हमें रुकने नहीं दिया. इसलिए हम अपना कर्तव्य समझकर किताबें लिख रहे हैं.
परिवार की नहीं आती याद
तेलंगाना के 87 वर्षीय सशस्त्र सेनानी एसवीके सुगुना ने कहा, 'हमारा बीबीनगर के पास ब्राह्मणपल्ली में घर है. मैंने 1951 से 1955 तक तेलंगाना सशस्त्र संघर्ष में भाग लिया. मल्लू स्वराज्यम में ट्रेनिंग के बाद मैंने हथियार उठा लिए. मैंने एसवीके प्रसाद से शादी की, जिनसे मेरी मुलाकात लड़ाई के दौरान हुई थी. बाद में उन्होंने वारंगल जिले के चेन्नुरु निर्वाचन क्षेत्र के विधायक के रूप में कार्य किया. मेरे भाई कोम्मिदी नरसिम्हारेड्डी दो बार भुवनागिरी के विधायक रहे. मैं 16 साल पहले आश्रम आया था. मुझसे कम्युनिस्ट नेता अक्सर मिलने आते हैं और बधाई देते हैं. मुझे परिवार के सदस्यों की याद नहीं आती है.
रामोजी राव का योगदान अहम
आश्रम के गृह निदेशक चेन्नकेशवराव ने बताया कि फाउंडेशन की स्थापना में रामोजी समूह के अध्यक्ष रामोजी राव का योगदान अविस्मरणीय है. हम पहले छोटी शुरुआत करना चाहते थे, लेकिन रामोजी राव ने कम्युनिस्ट दिग्गज के नाम पर स्थापित होने वाले फाउंडेशन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की.
80 हजार किताबों का डिजिटलीकरण
फाउंडेशन अध्यक्ष डॉ के नारायण ने बताया कि वर्तमान में कोंडापुर आश्रम में एक अस्पताल, एक लाइब्रेरी और एक महिला प्रशिक्षण केंद्र का रखरखाव किया जा रहा है. इसके लिए रोटरी क्लब आयोजकों ने 1 करोड़ रुपये के उपकरण दान किए हैं. हम आश्रम की लाइब्रेरी में 80 हजार किताबों का डिजिटलीकरण करने जा रहे हैं. फिलहाल यहां 140 लोग हैं. अन्य 300 आवेदन लंबित हैं. हम उन सभी को अवसर देने में असमर्थ हैं. इसीलिए पिछली सरकार की ओर से सीआरडीए को आवंटित जमीन पर आंध्र प्रदेश में एक और आश्रम बनाने की योजना है.
एक ही उम्र के लोग
आश्रम की सदस्य अरुणा ने कहा कि उनकी दो लड़कियां हैं. जो अलग-अलग क्षेत्रों में सेटल हो चुकी हैं. चाहे आपको घर में अकेले रहना पसंद हो या किसी आश्रम में रहना. यहां सभी लोग लगभग एक ही उम्र के हैं, इसलिए दिन आसानी से बीत जाते हैं.
यह भी पढ़ें- जानें कौन हैं जया बडिगा, हैदराबाद में हुई पढ़ाई, अमेरिका में बनीं जज