श्रीनगर : दैनिक डायरी (डीडी) रिपोर्टों में अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हुए कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन कर उसकी गरिमा को कम करने के लिए एक स्थानीय अदालत ने किश्तवाड़ के जिला मजिस्ट्रेट (DM) डॉ. देवांश यादव और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) अब्दुल कयूम को कारण बताओ नोटिस जारी किया है.
इस सिलसिले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) किश्तवाड़ ने गोवंश तस्करी से संबंधित एफआईआर 182/2024 के मामले में आरोपियों के लिए 18 जुलाई, 2024 को न्यायिक रिमांड के अनुरोध को खारिज कर दिया और आरोपी व्यक्तियों को यह दर्ज करके जमानत दे दी कि इस स्तर पर हिरासत को न्यायिक हिरासत से जमानत में बदला जा सकता है.
जमानत के फैसले के बाद, अधिकारियों ने कथित तौर पर एक आरोपी पर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत मामला दर्ज करके अदालत के आदेश को दरकिनार करने का प्रयास किया. अदालत ने कहा कि पुलिस की डीडी रिपोर्ट से पता चलता है कि जमानत के फैसले को लेकर जनता में गंभीर असंतोष है. इतना ही नहीं इन रिपोर्टों में कानून और व्यवस्था की संभावित समस्याओं के बारे में संकेत दिया गया था तथा आरोपियों की रिहाई पर जनता के गुस्से का जिक्र करने के साथ ही दावा किया गया था कि इससे विरोध प्रदर्शन या दंगे हो सकते हैं.
अदालत ने 19 जुलाई और 22 जुलाई, 2024 की दो विशिष्ट डीडी रिपोर्टों पर प्रकाश डाला, जिनमें यह चिंता व्यक्त की गई थी कि आरोपियों की रिहाई से हिंदू समुदाय में अशांति भड़क सकती है और सार्वजनिक अशांति पैदा हो सकती है. वहीं 9 जुलाई और 21 जुलाई 2024 की तारीख वाली अन्य रिपोर्टों में भी जमानत के फैसले और आरोपी के प्रति जनता की नाराजगी व्यक्त की गई. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इन डीडी रिपोर्टों की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि इनका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करना है. अदालत ने कहा कि इस घटना पर सामान्य कानून लागू होना चाहिए तथा जब तक आरोपी दोषी नहीं पाए जाते, तब तक उन्हें और अधिक हिरासत में रखना उचित नहीं है.
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि जिला प्रशासन की कार्रवाई सार्वजनिक उपद्रव को रोकने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग प्रतीत होती है. जबकि मामला अभी भी जांच के अधीन है. सीजेएम महमूद अनवर अल-नासिर ने 2016 एजीएमयूटी बैच के डीएम डॉ. देवांश यादव और जेकेपीएस 2001 बैच के एसएसपी किश्तवाड़ अब्दुल कयूम से स्पष्टीकरण मांगा है. साथ ही इनसे कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा है कि संभावित आपराधिक अवमानना के लिए मामले को हाईकोर्ट को क्यों न भेजा जाए.
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