मुंबई: लोकसभा चुनाव के दौरान ठाकरे गुट और चुनाव आयोग के बीच काफी तनातनी देखने को मिली थी. इसके बाद अब आयोग ने मतदान के दिन ठाकरे द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस की रिपोर्ट तलब की है और संकेत दिए हैं कि अगर आरोप बेबुनियाद पाए गए तो कार्रवाई हो सकती है. इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के आधार पर चुनाव आयोग और ठाकरे गुट के बीच तनातनी देखने को मिलेगी.
मुंबई चुनाव आयोग: लोकसभा चुनाव में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और चुनाव आयोग के बीच खींचतान और टकराव सभी ने देखा. मुंबई में मतदान में देरी को लेकर शिवसेना (ठाकरे) ने चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाया. चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे द्वारा केंद्रीय चुनाव आयोग को भेजे गए पत्र का अभी तक आयोग की ओर से जवाब नहीं आया है.
हालांकि, दूसरी ओर आयोग ने मतदान के दिन ठाकरे द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस की रिपोर्ट मांगी है और संकेत दिया है कि आरोप निराधार पाए जाने पर कार्रवाई की जा सकती है. इसके बाद ठाकरे गुट ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग ने मुंबई शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के 12 हजार मतदाताओं के रिकॉर्ड खो दिए हैं.
ठाकरे गुट ने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने जानबूझकर ऐसा किया है. इससे विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग और ठाकरे गुट के बीच टकराव की आशंका जताई जा रही है.
पत्र भेजने के उद्देश्य क्या है?: इस बीच, लोकसभा चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग को एक पत्र भेजा था. क्या भगवान और धर्म के नाम पर और हिंदू धर्म को बढ़ावा देकर वोट मांगना अपराध है? यह सवाल चुनाव आयोग से पूछा गया था. कुछ साल पहले शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे को मुंबई में हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए चुनाव आयोग ने छह साल के लिए मतदान करने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
फिर कर्नाटक में मोदी-शाह ने 'बजरंग बली की जय' बोलकर मतदाताओं से वोट देने की अपील की. साथ ही, मध्य प्रदेश में अमित शाह ने वादा किया था कि अगर भाजपा की सरकार आएगी तो वह अयोध्या में रामलला के दर्शन सभी को मुफ्त में करवाएंगे. तो क्या भाजपा नेता ईश्वर-धर्म या हिंदुत्व का प्रचार करके वोट मांगेंगे?
ठाकरे ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में सवाल पूछा था कि अगर हम ऐसा पूछते हैं तो यह अपराध बन जाता है. लेकिन केंद्रीय चुनाव आयोग की तरफ से अभी तक जवाब नहीं आया है. हालांकि चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस पर रिपोर्ट मांगी है और अगर उद्धव ठाकरे द्वारा लगाए गए आरोप बेबुनियाद हुए तो चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ कार्रवाई करने की बात भी कही है. इस पर शिवसेना (शिंदे गुट) के सह-मुख्य प्रवक्ता राजू वाघमारे ने कहा कि 'चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है, कौन किसे जवाब दे या नहीं दे। यह उनका फैसला है.'
आयोग की स्वायत्तता पर सवालिया निशान: केंद्रीय चुनाव आयोग का काम क्या है और इस आयोग के आयुक्तों को कितनी शक्ति और स्वतंत्रता है? एन. शेषन ने दिखाया था. उनके बाद आए कुछ आयुक्तों ने सत्र की परंपरा को जारी रखा. लेकिन मौजूदा चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को देखकर यह नहीं समझा जा सकता है कि उनके पंख काट दिए गए हैं या आयोग ने केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के सामने घुटने टेक दिए हैं.
आयोग के अध्यक्ष का पक्षपात लोकसभा चुनाव के दौरान और उससे भी पहले तब उजागर हुआ था, जब शिवसेना और फिर एनसीपी में विभाजन हुआ था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह को एक और उद्धव ठाकरे को दूसरा जज नियुक्त करना, इससे न केवल चुनाव आयोग की बदनामी होती है. आयोग की स्वायत्तता पर सवाल उठने लगे हैं.
मतदान के दिन मुंबई के मतदान केंद्रों पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया गया. एक मराठी मतदाता को वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया गया, ताकि एक खास समुदाय भाजपा को वोट दे सके. कुछ मराठी और मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं के नाम छूट गए. उद्धव ठाकरे ने मतदान के दिन ही प्रेस कॉन्फ्रेंस की और चुनाव आयोग से जवाब मांगा.
ठाकरे एक राजनीतिक पार्टी के प्रमुख हैं और उन्हें इस तरह के सवाल उठाने का अधिकार है. अगर वह आयोग की बात को खारिज करते हैं और ठाकरे के खिलाफ कार्रवाई करते हैं, तो इसका उल्टा असर भाजपा पर पड़ सकता है. इससे भाजपा को लोकसभा से भी बदतर नतीजे मिल सकते हैं. क्या भाजपा महाराष्ट्र जैसे राज्य को खोने का जोखिम उठा सकती है?
उन्हें यह सोचना चाहिए कि वे राज्य में सत्ता में नहीं आएंगे. राजनीतिक विश्लेषक विवेक भावसार ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि भाजपा चुनाव आयोग के माध्यम से बदले की राजनीति कर रही है, जिसकी पुष्टि आयोग ने भी कर दी है और विधानसभा चुनाव के नतीजों से यह स्पष्ट हो जाएगा.