मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर के ब्रह्मपुरा थाना क्षेत्र के जुरन छपरा रोड नं. 5 निवासी विवेक कुमार ने आइडिया के सिम को जियो में लगभग 5 वर्ष पूर्व पोर्ट कराया था. तब से लेकर आज तक वे जियो के नियमित उपभोक्ता हैं. उनके द्वारा समय- समय पर नंबर को रिचार्ज भी कराया जाता है.
मुकेश अंबानी के खिलाफ परिवाद दायर: कुछ महीने पहले शिकायतकर्ता के नंबर को जियो कंपनी द्वारा बंद कर दिया गया. जब उन्होंने जियो कंपनी के अधिकृत कार्यालय में जाकर शिकायत की तो कंपनी द्वारा टालमटोल किया जाने लगा. बता दें कि शिकायतकर्ता द्वारा जब आइडिया कंपनी का सिम लिया गया और उसे जियो में पोर्ट करवाया गया तो, उस वक्त शिकायतकर्ता द्वारा सभी सम्बंधित कागजातों को जमा करवाया गया था.
![मुकेश अंबानी](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/08-08-2024/22146918_thumbnail-16x9_muz.jpg)
मोबाइल नंबर बिना सूचना के बंद किया गया: वहीं जियो कंपनी द्वारा शिकायतकर्ता का सिम बिना किसी कारण और बिना सूचना दिए अचानक से बंद कर दिया गया. शिकायतकर्ता ने जब अपने नंबर का स्टेटमेंट निकलवाया तो मालूम हुआ कि शिकायतकर्ता जियो का प्राइम मेंबर 25 मई 2025 तक है. समय-समय पर नंबर को लगातार रिचार्ज करवाने के बावजूद शिकायतकर्ता का मोबाइल नंबर कंपनी द्वारा बंद कर दिया गया.
29 अक्टूबर को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश: काफी परेशान होने के बाद शिकायतकर्ता ने मानवाधिकार अधिवक्ता एस.के.झा के माध्यम से जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष परिवाद दायर कराया, जिसपर सुनवाई करते हुए जिला उपभोक्ता आयोग ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष मुकेश अंबानी और मुजफ्फरपुर के जियो कार्यालय के शाखा प्रबंधक के विरुद्ध नोटिस जारी किया है. इन दोनों को 29 अक्टूबर को आयोग के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया गया है.
![मुकेश अंबानी के खिलाफ परिवाद दायर](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/07-08-2024/22146918_11111.jpg)
उपभोक्ता ने लाखों का दावा भी ठोका: शिकायतकर्ता ने बताया कि उक्त मोबाइल नंबर मेरे कार्यक्षेत्र से जुड़े सभी लोगों के पास है. उक्त मोबाइल नम्बर नहीं रहने के कारण शिकायतकर्ता को आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान होना पड़ रहा है. जिस कारण शिकायतकर्ता ने मुकेश अंबानी की कंपनी जियो पर 10 लाख 30 हजार रुपये का दावा भी किया है.
"यह पूरा मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के सेवा में कमी की कोटि का मामला है. मामले में सेवा प्रदाता कंपनी उपभोक्ता को सेवा प्रदान करने में विफल रही है, जिस कारण उपभोक्ता को आयोग में परिवाद दाखिल करना पड़ा है."-एस.के.झा, मानवाधिकार अधिवक्ता
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