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जिधर रहेंगे नीतीश उसको मिलेगी जीत की गारंटी, क्या कहता है JDU के जीत का ग्राफ? - बिहार में गठबंधन की सियासत

बिहार की सियासत में नीतीश फैक्टर जिस भी ओर रहा है सफलता उसे मिली है. नीतीश कुमार जब एनडीए के साथ थे तो एनडीए की बड़ी जीत हुई. वहीं जब वो महागठबंधन के साथ थे तो महागठबंधन की भी भारी जीत हुई थी. नीतीश जिस भी गठबंधन के साथ रहे उसका मत प्रतिशत भी बढ़ा है. बिहार में अब नीतीश को जीत की गारंटी के तौर पर जेडीयू के लोग भुना भी रहे हैं.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 22, 2024, 8:16 PM IST

क्या सचमुच नीतीश कुमार जीत की गारंटी हैं?

पटना : बिहार में गठबंधन की सियासत ऐसे तो लंबे समय से हो रही है. कई गठबंधन भी अस्तित्व में आए हैं, लेकिन अब तक सफलता उसी गठबंधन को मिलती है जिसके साथ नीतीश कुमार रहते हैं. यही नहीं नीतीश कुमार जब गठबंधन से बाहर रहे तो उन्हें भी बहुत नुकसान पहुंचा है. 2014 इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. तब नीतीश कुमार किसी गठबंधन में नहीं थे, लोकसभा चुनाव में 38 सीटों पर उन्होंने जदयू के उम्मीदवार उतारे थेय लेकिन सफलता केवल 2 सीट पर मिली.

नीतीश कुमार जीत की गारंटी : जब 2019 में नीतीश एनडीए के साथ लोकसभा का चुनाव लड़े तो सफलता रेट उनका भी बढ़कर 2 से 16 तक पहुंच गया. नीतीश कुमार की सफलता की गारंटी के कारण ही बीजेपी हो या आरजेडी, उनसे गठबंधन के लिए लालायित रहती है. बीजेपी कभी नीतीश कुमार के लिए दरवाजा बंद होने की बात करती रही, लेकिन जब नीतीश कुमार ने एनडीए में जाने का फैसला लिया तो बंद दरवाजा खुल गया. अभी हाल ही में महागठबंधन से नीतीश NDA में गए हैं, लेकिन लालू प्रसाद यादव ने कह दिया है कि वो अगर महागठबंध में आएंगे तो विचार करेंगे.

नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नीतीश पर सॉफ्ट कॉर्नर : तेजस्वी यादव भी कह रहे हैं कि भाजपा ने नीतीश कुमार को हाईजैक कर लिया है. एक तरह से नीतीश कुमार के प्रति आरजेडी का अभी भी सॉफ्ट कॉर्नर बना हुआ है. राजनीतिक विशेषज्ञ रवि उपाध्याय का भी कहना है कि ''नीतीश बीजेपी की मजबूरी है और इसलिए बीजेपी ने उनको फिर से गठबंधन में शामिल किया है. नीतीश जिधर भी रहे हैं उधर जीत दिलवाते रहे हैं, क्योंकि नीतीश कुमार के पास अपना एक वोट बैंक है और उनकी एक सुशासन की छवि भी है.''

नीतीश का गिरा ग्राफ? : जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार भी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार जीत की गारंटी हैं. अब इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है. अपने विजन से उन्होंने बिहार को बनाया है और जनता उनके साथ है. इसीलिए कोई भी गठबंधन हो नेतृत्व हमेशा नीतीश कुमार ने ही किया है. लेकिन राजद के पूर्व मंत्री चंद्रशेखर कह रहे हैं कि अब नीतीश कुमार का ग्राफ पहले वाला नहीं है. उनके वोट का परसेंटेज लगातार घट रहा है. अपनी इज्जत बचाने के लिए इधर-उधर जाते रहते हैं.

''2020 के विधानसभा चुनाव में अकेले तेजस्वी यादव ने इन्हें कड़ी चुनौती दी थी. 12200 वोट ही एनडीए से कम महागठबंधन को वोट मिला था. उसमें भी गड़बड़ी कर ली गयी, नहीं तो इनकी सरकार नहीं बनती. इसलिए 2020 example है और उससे बेहतर इस बार प्रदर्शन होगा.''- चंद्रशेखर सिंह, पूर्व मंत्री, आरजेडी

'नीतीश और बीजेपी में अनबन'- कांग्रेस : वहीं, कांग्रेस के विधान मंडल दल के नेता शकील अहमद खान का कहना है कि ''नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच अब कुछ बन नहीं रहा है. अंदर खाने सब कुछ ठीक नहीं है. मंत्रिमंडल का अब तक विस्तार नहीं हुआ है. जदयू को भाजपा धोबिया पाट पीटने वाली है.'

ईटीवी भारत GFX
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क्या कहता है नीतीश फैक्टर? : 2014 में राजद, जदयू, कांग्रेस और बाम दलों के प्रतिशत को मिलाकर देखें तो कुल वोट प्रतिशत 46% था. वहीं दूसरी ओर एनडीए में भाजपा 29.5% उसमें कुशवाहा की पार्टी रालोसपा 3.05% और लोजपा 6.50% कुल मिलाकर 39% वोट ही मिला था. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA के लिए जदयू को 22.26%, भाजपा को 24.05% और लोजपा 8.5% कुल 54% वोट मिला था.

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नीतीश बिना कोई भी गठबंधन फेल : वहीं राजद, कांग्रेस और हम के साथ रालोसपा महागठबंधन को केवल 27% ही वोट मिला था. जहां एनडीए को 39 सीट पर जीत मिली तो महागठबंधन को एक सीट पर जीत मिली थी. आरजेडी का खाता तक नहीं खुला था. क्योंकि नीतीश कुमार 2019 में एनडीए में थे. विधानसभा में भी नीतीश कुमार जब तक एनडीए में रहे एनडीए को जीत मिलती रही, लेकिन 2015 में जब नीतीश महागठबंधन में चले गए थे तो उस समय महागठबंधन की सरकार बनी थी. वोट प्रतिशत भी महागठबंधन का बहुत बढ़ गया था.

सेकुलर फ्रंट फेल : एनडीए महागठबंधन के अलावे भी कई गठबंधन का निर्माण हुआ. 2020 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा ने बसपा, एआईएमआईएम, पप्पू यादव के साथ डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट नाम का अलग गठबंधन बनाया था. लेकिन AIMIM को छोड़कर किसी का खाता तक नहीं खुला. जबकि उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया था.

नीतीश मजबूरी भी और मजबूती भी : नीतीश कुमार के साथ गठबंधन करने के बाद भले ही एनडीए की सरकार बिहार में बनती रही हो, लेकिन बीजेपी को बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ है. 2014 में बीजेपी ने अकेले 22 लोकसभा सीट जीती थीं, लेकिन 2019 में नीतीश कुमार से गठबंधन के कारण 5 सीट छोड़ना पड़ा और 17 सीट पर चुनाव लड़ी. हालांकि 17 सीट भी जीत गई. नीतीश कुमार के NDA में रहते बीजेपी को कई बार समझौता करना पड़ा है. इसके बावजूद नीतीश आज भी बीजेपी के लिए मजबूरी हैं.

नीतीश बनेंगे जीत की गारंटी? : इसीलिए महागठबंधन छोड़ने के बाद जब नीतीश फिर से पाला बदले हैं तो एनडीए में उनका बीजेपी ने स्वागत किया है. उन्हीं को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार किया है. लोकसभा चुनाव में भी जहां नरेंद्र मोदी पूरे देश में चेहरा होंगे तो बिहार में मोदी के साथ नीतीश कुमार भी एनडीए के चेहरा होंगे यह तय है. हालांकि इस बार देखना है कि तेजस्वी और राहुल की जोड़ी कितनी चुनौती दे पाती है? या फिर नीतीश NDA के लिए जीत की गारंटी दे पाते हैं या नहींं?

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क्या सचमुच नीतीश कुमार जीत की गारंटी हैं?

पटना : बिहार में गठबंधन की सियासत ऐसे तो लंबे समय से हो रही है. कई गठबंधन भी अस्तित्व में आए हैं, लेकिन अब तक सफलता उसी गठबंधन को मिलती है जिसके साथ नीतीश कुमार रहते हैं. यही नहीं नीतीश कुमार जब गठबंधन से बाहर रहे तो उन्हें भी बहुत नुकसान पहुंचा है. 2014 इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. तब नीतीश कुमार किसी गठबंधन में नहीं थे, लोकसभा चुनाव में 38 सीटों पर उन्होंने जदयू के उम्मीदवार उतारे थेय लेकिन सफलता केवल 2 सीट पर मिली.

नीतीश कुमार जीत की गारंटी : जब 2019 में नीतीश एनडीए के साथ लोकसभा का चुनाव लड़े तो सफलता रेट उनका भी बढ़कर 2 से 16 तक पहुंच गया. नीतीश कुमार की सफलता की गारंटी के कारण ही बीजेपी हो या आरजेडी, उनसे गठबंधन के लिए लालायित रहती है. बीजेपी कभी नीतीश कुमार के लिए दरवाजा बंद होने की बात करती रही, लेकिन जब नीतीश कुमार ने एनडीए में जाने का फैसला लिया तो बंद दरवाजा खुल गया. अभी हाल ही में महागठबंधन से नीतीश NDA में गए हैं, लेकिन लालू प्रसाद यादव ने कह दिया है कि वो अगर महागठबंध में आएंगे तो विचार करेंगे.

नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
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नीतीश पर सॉफ्ट कॉर्नर : तेजस्वी यादव भी कह रहे हैं कि भाजपा ने नीतीश कुमार को हाईजैक कर लिया है. एक तरह से नीतीश कुमार के प्रति आरजेडी का अभी भी सॉफ्ट कॉर्नर बना हुआ है. राजनीतिक विशेषज्ञ रवि उपाध्याय का भी कहना है कि ''नीतीश बीजेपी की मजबूरी है और इसलिए बीजेपी ने उनको फिर से गठबंधन में शामिल किया है. नीतीश जिधर भी रहे हैं उधर जीत दिलवाते रहे हैं, क्योंकि नीतीश कुमार के पास अपना एक वोट बैंक है और उनकी एक सुशासन की छवि भी है.''

नीतीश का गिरा ग्राफ? : जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार भी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार जीत की गारंटी हैं. अब इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है. अपने विजन से उन्होंने बिहार को बनाया है और जनता उनके साथ है. इसीलिए कोई भी गठबंधन हो नेतृत्व हमेशा नीतीश कुमार ने ही किया है. लेकिन राजद के पूर्व मंत्री चंद्रशेखर कह रहे हैं कि अब नीतीश कुमार का ग्राफ पहले वाला नहीं है. उनके वोट का परसेंटेज लगातार घट रहा है. अपनी इज्जत बचाने के लिए इधर-उधर जाते रहते हैं.

''2020 के विधानसभा चुनाव में अकेले तेजस्वी यादव ने इन्हें कड़ी चुनौती दी थी. 12200 वोट ही एनडीए से कम महागठबंधन को वोट मिला था. उसमें भी गड़बड़ी कर ली गयी, नहीं तो इनकी सरकार नहीं बनती. इसलिए 2020 example है और उससे बेहतर इस बार प्रदर्शन होगा.''- चंद्रशेखर सिंह, पूर्व मंत्री, आरजेडी

'नीतीश और बीजेपी में अनबन'- कांग्रेस : वहीं, कांग्रेस के विधान मंडल दल के नेता शकील अहमद खान का कहना है कि ''नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच अब कुछ बन नहीं रहा है. अंदर खाने सब कुछ ठीक नहीं है. मंत्रिमंडल का अब तक विस्तार नहीं हुआ है. जदयू को भाजपा धोबिया पाट पीटने वाली है.'

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क्या कहता है नीतीश फैक्टर? : 2014 में राजद, जदयू, कांग्रेस और बाम दलों के प्रतिशत को मिलाकर देखें तो कुल वोट प्रतिशत 46% था. वहीं दूसरी ओर एनडीए में भाजपा 29.5% उसमें कुशवाहा की पार्टी रालोसपा 3.05% और लोजपा 6.50% कुल मिलाकर 39% वोट ही मिला था. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA के लिए जदयू को 22.26%, भाजपा को 24.05% और लोजपा 8.5% कुल 54% वोट मिला था.

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नीतीश बिना कोई भी गठबंधन फेल : वहीं राजद, कांग्रेस और हम के साथ रालोसपा महागठबंधन को केवल 27% ही वोट मिला था. जहां एनडीए को 39 सीट पर जीत मिली तो महागठबंधन को एक सीट पर जीत मिली थी. आरजेडी का खाता तक नहीं खुला था. क्योंकि नीतीश कुमार 2019 में एनडीए में थे. विधानसभा में भी नीतीश कुमार जब तक एनडीए में रहे एनडीए को जीत मिलती रही, लेकिन 2015 में जब नीतीश महागठबंधन में चले गए थे तो उस समय महागठबंधन की सरकार बनी थी. वोट प्रतिशत भी महागठबंधन का बहुत बढ़ गया था.

सेकुलर फ्रंट फेल : एनडीए महागठबंधन के अलावे भी कई गठबंधन का निर्माण हुआ. 2020 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा ने बसपा, एआईएमआईएम, पप्पू यादव के साथ डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट नाम का अलग गठबंधन बनाया था. लेकिन AIMIM को छोड़कर किसी का खाता तक नहीं खुला. जबकि उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया था.

नीतीश मजबूरी भी और मजबूती भी : नीतीश कुमार के साथ गठबंधन करने के बाद भले ही एनडीए की सरकार बिहार में बनती रही हो, लेकिन बीजेपी को बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ है. 2014 में बीजेपी ने अकेले 22 लोकसभा सीट जीती थीं, लेकिन 2019 में नीतीश कुमार से गठबंधन के कारण 5 सीट छोड़ना पड़ा और 17 सीट पर चुनाव लड़ी. हालांकि 17 सीट भी जीत गई. नीतीश कुमार के NDA में रहते बीजेपी को कई बार समझौता करना पड़ा है. इसके बावजूद नीतीश आज भी बीजेपी के लिए मजबूरी हैं.

नीतीश बनेंगे जीत की गारंटी? : इसीलिए महागठबंधन छोड़ने के बाद जब नीतीश फिर से पाला बदले हैं तो एनडीए में उनका बीजेपी ने स्वागत किया है. उन्हीं को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार किया है. लोकसभा चुनाव में भी जहां नरेंद्र मोदी पूरे देश में चेहरा होंगे तो बिहार में मोदी के साथ नीतीश कुमार भी एनडीए के चेहरा होंगे यह तय है. हालांकि इस बार देखना है कि तेजस्वी और राहुल की जोड़ी कितनी चुनौती दे पाती है? या फिर नीतीश NDA के लिए जीत की गारंटी दे पाते हैं या नहींं?

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