पटना: लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने सिद्धांत के साथ समझौता नहीं करने की बात कही है. सोमवार को पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में पार्टी के SC-ST प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित अभिनंदन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि लोजपा रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने संबोधित करते हुए ये बातें कहीं. चिराग के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारे में हलचल मच गयी.
"जिस दिन चिराग पासवान को लगेगा कि गठबंधन में मेरे लोगों के साथ अन्याय हो रहा है, या फिर हमलोगों की बातों को सुना नहीं जा रहा है तो फिर मेरे पिता ने भी एक मिनट नहीं सोचा था मंत्री पद को लात मारने से पहले, मुझे भी नहीं लगेगा"- चिराग पासवान, केंद्रीय मंत्री
आरक्षण में छेड़छाड़ का विरोधः कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए चिराग पासवान कहा कि आरक्षण के मामले में कोर्ट ने कानून में बदलाव की बात की थी, जिसका विरोध मेरे पिता राम विलास पासवान ने किया था. उस वक्त भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरे पिता की बात सुनी थी. उन्होंने बातों का समझने का भी काम किया था और अगले दिन ही इसे वापस ले लिया था. बता दें कि एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर के मुद्दे पर मामला गरमाया हुआ है.
लोजपा की रैली 28 नवंबर कोः लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास 28 नवंबर को पटना के गांधी मैदान में विशाल रैली का आयोजन करने वाली है. चिराग पासवान ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि 28 नवंबर को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में भव्य स्थापना दिवस का आयोजन किया जाएगा. इस रैली में बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं से जुड़ने की अपील चिराग पासवान ने की. झारखंड और बिहार में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर यह रैली महत्वपूर्ण है.
चिराग के बयान के क्या है मायने: झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर चिराग पासवान लगातार झारखंड का दौरा कर रहे हैं. उनको उम्मीद है कि बीजेपी के साथ उनका गठबंधन होगा. लेकिन, बीजेपी की तरफ से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिलने के कारण कई बार चिराग पासवान झारखंड में सभी सीटों पर चुनाव की तैयारी की बात कर चुके हैं. आज जिस तरीके से चिराग पासवान ने मंत्री पद से इस्तीफा देने की बात कही है, राजनीतिक के जानकार मानते हैं कि गठबंधन में दबाव बनाने की राजनीति है.
रामविलास पासवान ने क्यों दिया था इस्तीफाः राम विलास पासवान ने 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था. उन्होंने यह कदम गुजरात में हुए दंगों के बाद उठाया था. गुजरात दंगों के दौरान केंद्र सरकार की निष्क्रियता और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से असंतुष्ट होकर पासवान ने अपना विरोध दर्ज कराया था. उन्होंने इस मुद्दे पर वाजपेयी सरकार का साथ छोड़ने का निर्णय लिया.
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