रायपुर: विधानसभा और लोकसभा चुनाव 2024 में नक्सलवाद बड़ा मुद्दा रहा. नक्सली हिंसा को बीजेपी ने प्रचार के दौरान बड़ा मुद्दा बनाया. खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बस्तर की धरती से ऐलान किया था कि नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़ सरेंडर कर दें नहीं तो गोली खाने के लिए तैयार रहें. केंद्र सरकार ने ये भी दावा किया था कि दो सालों में नक्सलवाद खत्म कर दिया जाएगा. अब छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री और डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने नक्सलियों से पुनर्वास नीति के लिए ऑनलाइन सुझाव मांगे हैं. सरकार ने जो सुझाव मांगे हैं उसका जवाब नक्सली ईमेल और क्यूआर कोड के जरिए स्कैन कर दे सकते हैं.
नक्सलियों से पुनर्वास नीति के लिए ऑनलाइन सुझाव सरकार ने मांगे: गृहमंत्री विजय शर्मा ने नक्सलियों से पुनर्वास नीति के लिए ऑनलाइन सुझाव तो जरुर मांगे हैं लेकिन दिक्कत ये है कि आधे बस्तर में इंटरनेट तो दूर की कौड़ी है. कई इलाकों में तो मोबाइल फोन तक नहीं चलते. ऐसे में नक्सली अगर सुझाव देना भी चाहें तो कैसे देंगे. हालाकि सरकार के इस कदम की तारीफ की हो रही है. बीते कई दशकों से नक्सली हिंसा नासूर बनकर छत्तीसगढ़ के विकास को रोके खड़ा है. बस्तर आज भी बम और बारुद की गंध से रक्त रंजित है.
''नक्सलवाद के खात्मे के लिए ये एक बड़ी पहल और कोशिश है. कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है. मुख्यमंत्री से मिले सुझाव के बाद हमारी कोशिश है कि हम इस गंभीर मुद्दे पर उनके सुझाव लेने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी ओर से जो सुझाव मिलेंगे उसपर आगे की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए काम किया जाएगा. अभी भी छत्तीसगढ़ की नक्सल पुनर्वास नीति अच्छी है उसमें कोई कमी नहीं है. पुनर्वास नीति को और बेहतर बनाया जाए इसकी कोशिश की जा रही है. आने वाले समय में मुख्यमंत्री इसकी घोषणा करेंगे. इस प्रक्रिया में करीब 2 महीने का समय लग सकता है. जो सरेंडर कर रहे हैं उनके लिए उचित माहौल तैयार किया जाएगा. विकास के काम उन क्षेत्रों में हो इसकी भी व्यवस्था की जाएगी. 20 फीसदी इलाकों में अब नक्सली सिमट कर रह गए हैं. सरकार लगातार बाकी के हिस्से में विकास के काम में लगी है''. - विजय शर्मा, गृहमंत्री छत्तीसगढ़
''सरकार और नक्सलियों के बीच ऐसी कोई बातचीत हुई है की नक्सलवाद को लेकर सरकार को पहल करनी पड़ेगी. यह स्थिति तब बनती है जब दोनों तरफ से युद्ध विराम को लेकर बात हुई हो. मुख्यमंत्री कहते हैं कि नक्सलियों को समाप्त करेंगे. गृहमंत्री बोलते हैं घर में घुसकर मारेंगे. राज्य के गृहमंत्री बोलते हैं हम उनसे बात करेंगे. कभी गृहमंत्री कहते है लालभाजी खाने जाएंगे. आप नक्सल मामले को लेकर दिगभ्रमित हैंं. अब अचानक आप उनसे पुनर्वास नीति के लिए फार्म जारी कर सुझाव मांग रहे हैं. हम भी चाहते हैं कि नक्सलवाद का खात्मा हो. शांति की पहल की बात हम भी करते हैं लेकिन स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए. गोली कभी भी अंतिम विकल्प नहीं होना चाहिए. सरकार को खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहिए, सरकार इस मुद्दे पर मजबूत रहे''. - सुशील आनंद शुक्ला प्रदेश अध्यक्ष मीडिया विभाग कांग्रेस
''देश में किसी भी सरकार के द्वारा इस तरह नक्सलियों से पुनर्वास नीति का सुझाव नहीं मांगा गया है. वह भी आधुनिक तरीके से ऑनलाइन के जरिए. नक्सलियों से पुनर्वास नीति के सुझाव मांगने की पहल काफी अच्छी है. इसके अच्छे परिणाम हो सकते हैं. सभी क्षेत्र में आधुनिक संचार माध्यमों का इस्तेमाल किया जा रहा है. यही वजह है कि अब सरकार इस आधुनिक संसाधनों का प्रयोग कर नक्सलियों से बातचीत का रास्ता शुरू कर रही है. इसकी मुख्य वजह यह भी है कि कई बार नक्सली खुलकर सामने आकर बातचीत नहीं कर सकते हैं. माओवादियों को डर लगा रहता है कि कहीं वह मार ना दिए जाएं. यही वजह है कि वह बातचीत के लिए सामने नहीं आते हैं. पर अब आधुनिक संसाधनों और तरीकों का इस्तेमाल कर नक्सली भी पुनर्वास नीति के लिए अपनी बात सरकार तक पहुंचा सकते हैं''. - वर्णिका शर्मा नक्सल एक्सपर्ट
नक्सली सीधे तौर पर बातचीत के लिए सामने नहीं आते हैं. उनको अपनी जान का भय रहता है. आज के वक्त में संचार सिस्टम का इस्तेमाल सभी लोग करते हैं. यहीं वजह है कि अब उनसे बातचीत के लिए इन संचार सुविधाओं का इस्तेमाल किए जाने की बात की जा रही है. सत्ता परिवर्तन के बाद बीजेपी की सरकार बंदूक के दम पर माओवाद को खत्म करना चाह रही है इस तरह का संदेश जा रहा था. पर जिस तरह से सरकार ने सामने आकर बातचीत का रास्ता खोला है, जो सुझाव मांगे हैं. यह साबित करता है कि समस्या से निपटने के लिए सरकार ने दोनों ही रास्ते खुले रखे हैं. - रामअवतार तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार, रायपुर
नक्सलवाद का दंश: दशकों से छत्तीसगढ़ के बड़े भूभाग बस्तर पर विकास अवरुद्ध पड़ा है. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बस्तर में पर्यटन की भी असीम संभावनाएं हैं. बस्तर में कल कारखाने खुलने की भी संभावना है. लोगों को रोजगार के साधन में मुहैया हो सकते हैं. बस्तर के लोग दूसरे जिलों में जाकर अपना काम कर सकते हैं. विकास की राह में रोड़ा बने नक्सली अगर सरकार के सुझाव से सहमत होते हैं तो जल्द ही बस्तर की तकदीर बदल सकती है.