चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनाव अक्टूबर 2024 में होने हैं. नतीजतन जहां भारतीय जनता पार्टी तीसरी बार प्रदेश में सरकार बनाने की जुगत में जुटी है, वहीं कांग्रेस भी वर्ष 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों से सबक लेते हुए इस बार कोई चूक नहीं करना चाहती. प्रदेश के मुख्य दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए जातीय समीकरणों को साधना जरूरी है.
प्रदेश में 22.2 प्रतिशत जाट मतदाता हैं और दूसरे स्थान पर अनुसूचित जाति के 21 प्रतिशत वोटर हैं. अब ऐसे में भाजपा का इस बार जाट उम्मीदवार को दरकिनार कर गैर जाट उम्मीदवार पर अधिक भरोसा करना कितना सही रहेगा और कांग्रेस भी जातीय समीकरणों से कैसे पार पाएगी, यह जाट क्षेत्रों में उम्मीदवारों की घोषणा से कुछ हद तक जायेगा.
भाजपा-कांग्रेस का फोकस गैर जाट उम्मीदवार
भाजपा वर्ष 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में गैर जाट उम्मीदवार के भरोसे सरकार बनाने में सफल रही है. जबकि कांग्रेस 28-30 जाट नेताओं को टिकट देती रही, बावजूद इसके सत्ता से बाहर रही. नतीजतन इस बार भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस भी गैर जाट उम्मीदवारों को सामने लाकर अपने जातिगत लक्ष्य को साधना चाहेगी. इनमें पंजाबी, ब्राह्मण, वैश्य और राजपूत उम्मीदवारों की संख्या बढ़ सकती है.
हरियाणा का जातिगत वोट प्रतिशत | |
जाट | 22.2% |
दलित | 21% |
पंजाबी | 8% |
ब्राह्मण | 7.5% |
अहीर | 5.14% |
वैश्य | 5% |
जट्ट सिख | 4% |
गुर्जर | 3.35% |
राजपूत | 3.4% |
मुस्लिम | 3.8% |
बिश्नोई | 0.7% |
अन्य-ओबीसी | 15.91% |
जाट वोट बंटने का खतरा
जाट मतदाताओं का रूझान अधिकांश समय कांग्रेस के पाले में रहा है, जिसका सबसे बड़ा कारण पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का इस बार भी मुख्यमंत्री का दावेदार होना है. जाट मतदाता अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में किसी भी राजनीतिक दल की सरकार बनाने और गिराने का वजूद रखते हैं. लेकिन वर्ष 2019 की तरह इस बार भी प्रदेश में जाट मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए इनेलो और जेजेपी भी चुनावी मैदान में है.
कांग्रेस को मिलेंगे ज्यादा जाट वोट!
वहीं भाजपा का जेजेपी से गठबंधन टूटने से जाट वोट का उसकी तरफ झुकाव नहीं रहने के संकेत भी हैं. लेकिन गैर जाट उम्मीदवारों पर अधिक भरोसा करने वाली भाजपा को तीन दलों में जाट मतदाताओं के बंटने का फायदा भी मिल सकता है. हालांकि अधिकांश जाट वोट इस बार कांग्रेस के पाले में गिरने का पूर्वानुमान अधिक है. अगर ऐसा हुआ बीजेपी सत्ता से बाहर हो सकती है. क्योंकि बीजेपी को अपने वोट से ज्यादा भरोसा जाट वोट के बंटने पर है. इसी वजह से लोकसभा चुनाव में भी जेजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था. नतीजतन भाजपा और कांग्रेस, दोनों दलों में जाट उम्मीदवारों की संख्या कम रहने का अनुमान है.
यह हैं जाट बाहुल्य क्षेत्र
हरियाणा में रोहतक, सोनीपत, पानीपत, जींद, सिरसा, झज्जर, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी समेत अन्य करीब 35 विधानसभा सीटों पर जाटों का अच्छा प्रभाव है. इसी कारण इसे जाटलैंड कहा जाता है. जाट समुदाय ही यहां किसी भी राजनीतिक दल की हार-जीत का फैसला करते हैं. लेकिन जाट वोट बंटने से यह नतीजा भी बदलता दिखा है.
गठबंधन सरकार के बजाय एकतरफा जीत का भरोसा
सत्तारूढ़ भाजपा के नेता और हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता पूरे भरोसे के साथ प्रदेश में एकतरफा जीत का दावा कर रहे हैं. जबकि कांग्रेसी नेता भी इस बार अपनी सरकार बनाने का दंभ भरते दिख रहे हैं. नतीजतन दोनों बड़े राजनीतिक दलों में से कोई भी अब तक गठबंधन की सरकार पर नहीं बोल रहा है. जबकि वर्ष 2014 में भाजपा की सहायक जेजेपी का आजाद समाज पार्टी से गठबंधन हो चुका है.
कांग्रेस हारने वाले नेताओं का काटेगी टिकट
कांग्रेस ने 2019 के विधानसभा चुनाव में 27 हलकों में अपनी जमानत जब्त करवाई थी. साथ ही 15 प्रत्याशी ऐसे भी रहे, जिन्होंने लगातार 2 बार हार का मुंह देखा. कांग्रेस इस बार ऐसे नेताओं के नाम उम्मीदवारों की सूची से बाहर कर सकती है.
हुड्डा-सैलजा गुट में टकराव से टिकट आवंटन हाईकमान के हाथ
कांग्रेस में इस समय मुख्य रूप से दो गुट सक्रिय हैं. इनमें से एक गुट पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो दूसरा कुमारी सैलजा व रणदीप सिंह सुरजेवाला का है. दोनों अपने समर्थकों की टिकट के लिए लॉबिंग कर रहे हैं. ऐसे में हुड्डा और कुमारी सैलजा के बीच लंबे समय से जारी खींचतान नहीं थमी. नतीजतन कांग्रेस हाईकमान ने टिकट आवंटन अपने हाथ में लेने का फैसला किया है. स्क्रीनिंग कमेटी चेयरमैन अजय माकन हरियाणा की सभी 90 सीटों पर अलग कमेटी बनाकर दावेदारों के बारे पड़ताल करेंगे. उसके बाद इसकी रिपोर्ट स्क्रीनिंग कमेटी से सीधे राहुल गांधी और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को सौंपी जाएगी.
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