रामनगर (उत्तराखंड): कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के आसपास रहने वाले लोगों के इंटरव्यू पर आधारित कैंब्रिज विश्वविद्यालय के रिसर्चर त्रिशांत सिमलाई की रिपोर्ट से उत्तराखंड वन विभाग में हड़कंप मचा हुआ है. जो खासकर कॉर्बेट में कैमरा ट्रैप और ड्रोन से जुड़ा है. इसी कड़ी में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ता (रिसर्चर) त्रिशांत सिमलाई ने आज रिपोर्ट को लेकर अपनी बात रखी. त्रिशांत सिमलाई ने कहा कि 'उन्होंने अपने शोध में ये कहीं भी नहीं लिखा कि ड्रोन या कैमरे का इस्तेमाल महिलाओं की निगरानी के लिए किया जा रहा है, लेकिन ये जरूर है कि इन कैमरों से महिलाओं की प्राइवेसी पर खलल पड़ रहा है.'
कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ता त्रिशांत सिमलाई ने रखी अपनी बात: दरअसल, आज महिला एकता मंच और कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ता त्रिशांत सिमलाई की ओर से देवभूमि व्यापार भवन में परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें कार्बेट नेशनल पार्क व प्राकृतिक क्षेत्रों में इस्तेमाल की जा रही आधुनिक सर्विलांस तकनीक कैमरा ट्रैप, ड्रोन आदि के प्रभाव को लेकर किए गए शोध से महिलाओं और समाज को परिचित कराया गया.
कार्यक्रम में त्रिशांत सिमलाई ने कहा कि उनका शोध कार्बेट पार्क की छवि खराब करने के लिए नहीं, बल्कि वन प्रशासन की ओर से बड़ी मात्रा में किए जा रहे ड्रोन एवं कैमरा ट्रैप के समाज पर खासकर महिलाओं पर पड़ रहे प्रभावों को लेकर है. उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्र में जहां भी कैमरे लगे होते हैं, वहां पर लिखा होता है कि आप कैमरे की नजर में है, लेकिन वन एवं ग्रामीण क्षेत्र में लगाए गए कैमरों को लेकर इस तरह की चेतावनियां नहीं दी जाती हैं.
त्रिशांत सिमलाई ने बताया कि वो साल 2018 से 2019 यानी 14 महीने तक 21 से ज्यादा गांवों में रहे. जहां उन्होंने क्षेत्र में रहकर महिलाओं, ग्रामीणों और वन विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ बातचीत करने के बाद ही अपना शोध प्रकाशित किया है. उनका शोध तथ्यों पर आधारित है, वो इसके लिए पार्क प्रशासन के प्रति जवाबदेह नहीं है.
त्रिशांत सिमलाई ने साफ की स्थिति: त्रिशांत सिमलाई ने साफ किया कि 'उन्होंने कहीं पर भी नहीं लिखा है कि कॉर्बेट पार्क ड्रोन और कैमरा ट्रैप महिलाओं पर निगरानी रखने के लिए कर रहा है. उनका बेसिक मकसद ड्रोन और कैमरा ट्रैप वन्यजीवों की निगरानी करना है, लेकिन उन्होंने अपनी रिपोर्ट में दुष्परिणाम के बारे में जिक्र किया है.' इन कैमरों का एक नकारात्मक प्रभाव भी पड़ रहा है. महिलाओं की जंगलों में आजादी किस तरह बाधित हुई, इसे भी प्रकाशित किया है.
सिमलाई ने कहा कि रिसर्च के दौरान कुछ लोगों ने साल 2017 की एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि एक महिला के शौच का फोटो किसी ग्रुप में भेजा गया था, जिसमें कुछ स्थानीय लोग भी जुड़े थे. क्योंकि, वनों में लगे कैमरा ट्रैप में लगे डेटा आसानी से एक्सेस हो जाते हैं. ये डेटा एसडी कार्ड आदि में रिकॉर्ड किया जाता है, जिसे कोई भी आसानी से हासिल कर सकता है. इसका एक दुष्प्रभाव भी हो सकता है. जिसका जिक्र भी उन्होंने किया है. ऐसे में वन विभाग को सोचना चाहिए कि डेटा को सुरक्षित रखने के लिए कोई ठोस कदम उठाए. इसके दुष्परिणाम के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए.
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की छवि पर पड़े असर पर मीडिया को बताया जिम्मेदार: वहीं, रिपोर्ट छपने के बाद कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की छवि पर पड़े बुरे असर पर त्रिशांत सिमलाई का कहना है कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है जिससे कॉर्बेट की छवि खराब हो, लेकिन तथ्यों की पूरी जानकारी के बिना ही यह खबर कुछ मीडिया संस्थानों ने चलाई और छापी, जिसकी वजह से ऐसी स्थिति आई.
बता दें कि, त्रिशांत सिमलाई ने उत्तराखंड कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के आसपास के इलाकों में ग्रामीणों से बात करते हुए बातचीत के दौरान सामने आई बातों पर आधारित रिपोर्ट तैयार की. इस दौरान उन्होंने कई महिलाओं के इंटरव्यू भी लिए. उन्होंने डिजिटल सर्विलांस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल और महिलाओं की ओर से विकसित किए गए जेंडर एनवायरमेंट संबंधों पर शोध किया. जिसके लिए वन विभाग से भी अनुमति ली थी. वहीं, रिसर्च के प्रकाशन होने के बाद सुर्खियां बनी.
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