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ददन पहलवान की निर्दलीय उम्मीदवारी ने बिगाड़ा बक्सर का समीकरण, जानें किसे होगा नफा-नुकसान? - Buxar Lok Sabha Election

केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे का टिकट कटने के बाद चर्चा में आए बक्सर एक बार फिर अचानक ददन पहलवान के मैदान में उतरने से सुर्खियों में है. ददन पहलवान के चुनाव लड़ने से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान? जानने के लिए पढ़ें पूरा विश्लेषण-

ददन पहलवान की निर्दलीय उम्मीदवारी से चुनौती
ददन पहलवान की निर्दलीय उम्मीदवारी से चुनौती (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 9, 2024, 8:04 PM IST

ददन पहलवान की निर्दलीय दावेदारी से उलझा समीकरण (ETV Bharat)

पटना : बिहार के बक्सर लोकसभा सीट एक बार फिर से चर्चा में है. पहले बीजेपी के सांसद और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे का टिकट कटा और उनके चेले मिथिलेश तिवारी को टिकट दिया गया. अब एक बार फिर से ददन यादव ने निर्दलीय नामांकन करके बक्सर में हलचल मचा दी है. ददन यादव हर बार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ते हैं. एनडीए और महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ाते रहे हैं. बक्सर के यादवों पर ददन यादव की पकड़ है. इसलिए 2000 में निर्दलीय ही विधानसभा का चुनाव जीत गए थे. बाद में लालू यादव के काफी करीबी हो गए.

ददन पहलवान ने बिगाड़ा समीकरण : बिहार सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया. तीन बार निर्दलीय और एक बार जदयू के टिकट पर भी विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते, लेकिन उनके संबंध कभी भी ना तो आरजेडी से और ना ही जदयू से बेहतर बने रहे. विधानसभा चुनाव तो जरूर ददन यादव ने जीता है, लेकिन लोकसभा का चुनाव तीन बार लड़े और हर बार हारे हैं. जब प्रमुख दल से टिकट नहीं मिला तो एक बार फिर से निर्दलीय ही चुनाव मैदान में हैं. ददन यादव के आने से बक्सर का समीकरण पूरी तरह से बदल गया है.

लोकसभा चुनाव में दे चुके हैं कड़ी टक्कर : बक्सर में ददन यादव चुनाव जीतेंगे यह कोई नहीं कह सकता है, लेकिन समीकरण जरूर बिगाड़ देंगे. यह सब जानते हैं और इसीलिए ददन यादव के एक बार फिर से निर्दलीय चुनाव मैदान में आने से हलचल है. ददन यादव 2004, 2009 और 2014 में बक्सर से निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं. तीनों बार ददन यादव की हार हुई है. लेकिन हर बार या तो दूसरे स्थान पर या तीसरे स्थान पर रहे हैं.

ददन पहलवान, निर्दलीय प्रत्याशी
ददन पहलवान, निर्दलीय प्रत्याशी (ETV Bharat)

ददन यादव का अपना वोट बैंक : ददन यादव के आने से इस बार भी समीकरण पूरी तरह से बदल गये हैं. असल में ददन यादव जिस वोट बैंक पर अपनी मजबूत दावेदारी करते हैं, वह राजद का वोट बैंक है. बक्सर में इस बार राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, तो वहीं भाजपा की ओर से अश्विनी चौबे का टिकट इस बार काट दिया गया है. उनके स्थान पर उनके ही चेले मिथिलेश तिवारी को टिकट दिया गया है. अब ददन यादव के मैदान में उतर जाने से सारा समीकरण बदल गया है. सबसे बड़ा झटका आरजेडी को लगा है. वहीं एनडीए के उम्मीदवार राहत की सांस ले रहे हैं.

राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का भी कहना है कि ''ददन यादव के मैदान में आने से एनडीए को लाभ मिलेगा. क्योंकि बक्सर में ददन यादव की यादव वोट पर अच्छी पकड़ है. इसलिए हर हाल में नुकसान आरजेडी को ही करने वाले हैं.'' आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है ''बीजेपी बैक डोर से ददन यादव को मैदान में उतारी है, लेकिन उसका लाभ नहीं होगा. जनता तेजस्वी यादव के साथ है. जब उन्हें लगा कि तेजस्वी यादव का सामना नहीं कर सकते हैं तब इसी तरह के तिलिस्म की जरूरत रहती है. लेकिन इस बार किसी तरह का लाभ उन्हें नहीं मिलने वाला है.''

भाजपा प्रवक्ता राकेश सिंह का कहना है ''जब जगदानंद सिंह चुनाव नहीं जीत पाए तो उनका बेटा चुनाव क्या जीत पाएंगे. कोई पहलवान उतर जाए असली जीत बीजेपी के पहलवान की ही होगी.'' ददन पहलवान को भी भरोसा है कि ''स्थानीय होने के कारण जनता इस बार उन्हें ही चुनेंगे. जनता सभी को आजमा चुकी है लेकिन उनकी समस्याएं दूर नहीं हो पाई है.''

बक्सर में जाति समीकरण
बक्सर में जाति समीकरण (ETV Bharat GFX)

बक्सर का जाति समीकरण : बक्सर की सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 4 लाख से ज्यादा है. इसके बाद यादव वोटरों की संख्या 3.5 लाख के करीब है. राजपूत मतदाताओं की संख्या 3 लाख है. भूमिहार मतदाता करीब 2.5 लाख हैं. बक्सर लोकसभा क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी 1.5 लाख के करीब है. इसके अलावा यहां पर कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, दलित और अन्य जातियां भी बड़ी तादाद में हैं.

नहीं उतरे ददन तो आसानी से जीते अश्विनी चौबे : 2004 से 2014 तीन चुनाव में निर्दलीय के रूप में ददन यादव ने चुनाव लड़ा और समीकरण बिगाड़ दिया. 2019 के लोकसभा चुनाव में ददन यादव ने तो चुनाव नहीं लड़ा लेकिन जगदानंद सिंह चुनाव लड़े और अश्वनी चौबे ने उन्हें 2019 में भी हराया. अश्वनी चौबे को 2019 में 473053 वोट मिले थे जो कि महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में जगदानंद सिंह को 355444 वोट मिला. जगदानंद सिंह 117609 वोट से चुनाव हार गये. हालांकि इस बार चुनाव में ददन यादव नहीं उतरे थे. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के कारण अश्विनी चौबे आसानी से चुनाव जीत गए.

ददन की उम्मीदवारी ने कब कब बिगाड़ा खेल
ददन की उम्मीदवारी ने कब कब बिगाड़ा खेल (ETV Bharat GFX)

महागठबंधन के यादव वोट बैंक में सेंध : ददन यादव 2000 में निर्दलीय विधानसभा का चुनाव लड़े थे और और जीते भी. बिहार में सरकार बनाने में बड़ी भूमिका भी निभाई और इसलिये उन्हें मंत्री भी बनाया गया. 2005 में दो बार चुनाव हुआ दोनों बार निर्दलीय ही चुनाव जीते. उसके बाद जदयू के टिकट पर भी 2015 में चुनाव जीते. 2020 में जदयू ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो फिर से निर्दलीय मैदान में उतर आए हालांकि इस बार चुनाव हार गए.

महागठबंधन खेमें में बेचैनी : दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव में 2004, 2009 और 2014 में अपना दांव आजमा चुके हैं. सब बार हार मिली है. ददन यादव एक बार फिर से मैदान में हैं इस उम्मीद से की जनता उन्हें चुन लेगी. ददन यादव के निर्दलीय चुनाव मैदान में आने से फिलहाल हलचल जरूर है. ऐसे ददन यादव ही नहीं आईपीएस आनंद मिश्रा भी निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. लेकिन असली समीकरण ददन यादव ही बिगाड़ रहे हैं. महागठबंधन खेमे में फिलहाल बेचैनी भी दिख रही है.

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ददन पहलवान की निर्दलीय दावेदारी से उलझा समीकरण (ETV Bharat)

पटना : बिहार के बक्सर लोकसभा सीट एक बार फिर से चर्चा में है. पहले बीजेपी के सांसद और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे का टिकट कटा और उनके चेले मिथिलेश तिवारी को टिकट दिया गया. अब एक बार फिर से ददन यादव ने निर्दलीय नामांकन करके बक्सर में हलचल मचा दी है. ददन यादव हर बार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ते हैं. एनडीए और महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ाते रहे हैं. बक्सर के यादवों पर ददन यादव की पकड़ है. इसलिए 2000 में निर्दलीय ही विधानसभा का चुनाव जीत गए थे. बाद में लालू यादव के काफी करीबी हो गए.

ददन पहलवान ने बिगाड़ा समीकरण : बिहार सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया. तीन बार निर्दलीय और एक बार जदयू के टिकट पर भी विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते, लेकिन उनके संबंध कभी भी ना तो आरजेडी से और ना ही जदयू से बेहतर बने रहे. विधानसभा चुनाव तो जरूर ददन यादव ने जीता है, लेकिन लोकसभा का चुनाव तीन बार लड़े और हर बार हारे हैं. जब प्रमुख दल से टिकट नहीं मिला तो एक बार फिर से निर्दलीय ही चुनाव मैदान में हैं. ददन यादव के आने से बक्सर का समीकरण पूरी तरह से बदल गया है.

लोकसभा चुनाव में दे चुके हैं कड़ी टक्कर : बक्सर में ददन यादव चुनाव जीतेंगे यह कोई नहीं कह सकता है, लेकिन समीकरण जरूर बिगाड़ देंगे. यह सब जानते हैं और इसीलिए ददन यादव के एक बार फिर से निर्दलीय चुनाव मैदान में आने से हलचल है. ददन यादव 2004, 2009 और 2014 में बक्सर से निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं. तीनों बार ददन यादव की हार हुई है. लेकिन हर बार या तो दूसरे स्थान पर या तीसरे स्थान पर रहे हैं.

ददन पहलवान, निर्दलीय प्रत्याशी
ददन पहलवान, निर्दलीय प्रत्याशी (ETV Bharat)

ददन यादव का अपना वोट बैंक : ददन यादव के आने से इस बार भी समीकरण पूरी तरह से बदल गये हैं. असल में ददन यादव जिस वोट बैंक पर अपनी मजबूत दावेदारी करते हैं, वह राजद का वोट बैंक है. बक्सर में इस बार राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, तो वहीं भाजपा की ओर से अश्विनी चौबे का टिकट इस बार काट दिया गया है. उनके स्थान पर उनके ही चेले मिथिलेश तिवारी को टिकट दिया गया है. अब ददन यादव के मैदान में उतर जाने से सारा समीकरण बदल गया है. सबसे बड़ा झटका आरजेडी को लगा है. वहीं एनडीए के उम्मीदवार राहत की सांस ले रहे हैं.

राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का भी कहना है कि ''ददन यादव के मैदान में आने से एनडीए को लाभ मिलेगा. क्योंकि बक्सर में ददन यादव की यादव वोट पर अच्छी पकड़ है. इसलिए हर हाल में नुकसान आरजेडी को ही करने वाले हैं.'' आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है ''बीजेपी बैक डोर से ददन यादव को मैदान में उतारी है, लेकिन उसका लाभ नहीं होगा. जनता तेजस्वी यादव के साथ है. जब उन्हें लगा कि तेजस्वी यादव का सामना नहीं कर सकते हैं तब इसी तरह के तिलिस्म की जरूरत रहती है. लेकिन इस बार किसी तरह का लाभ उन्हें नहीं मिलने वाला है.''

भाजपा प्रवक्ता राकेश सिंह का कहना है ''जब जगदानंद सिंह चुनाव नहीं जीत पाए तो उनका बेटा चुनाव क्या जीत पाएंगे. कोई पहलवान उतर जाए असली जीत बीजेपी के पहलवान की ही होगी.'' ददन पहलवान को भी भरोसा है कि ''स्थानीय होने के कारण जनता इस बार उन्हें ही चुनेंगे. जनता सभी को आजमा चुकी है लेकिन उनकी समस्याएं दूर नहीं हो पाई है.''

बक्सर में जाति समीकरण
बक्सर में जाति समीकरण (ETV Bharat GFX)

बक्सर का जाति समीकरण : बक्सर की सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 4 लाख से ज्यादा है. इसके बाद यादव वोटरों की संख्या 3.5 लाख के करीब है. राजपूत मतदाताओं की संख्या 3 लाख है. भूमिहार मतदाता करीब 2.5 लाख हैं. बक्सर लोकसभा क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी 1.5 लाख के करीब है. इसके अलावा यहां पर कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, दलित और अन्य जातियां भी बड़ी तादाद में हैं.

नहीं उतरे ददन तो आसानी से जीते अश्विनी चौबे : 2004 से 2014 तीन चुनाव में निर्दलीय के रूप में ददन यादव ने चुनाव लड़ा और समीकरण बिगाड़ दिया. 2019 के लोकसभा चुनाव में ददन यादव ने तो चुनाव नहीं लड़ा लेकिन जगदानंद सिंह चुनाव लड़े और अश्वनी चौबे ने उन्हें 2019 में भी हराया. अश्वनी चौबे को 2019 में 473053 वोट मिले थे जो कि महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में जगदानंद सिंह को 355444 वोट मिला. जगदानंद सिंह 117609 वोट से चुनाव हार गये. हालांकि इस बार चुनाव में ददन यादव नहीं उतरे थे. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के कारण अश्विनी चौबे आसानी से चुनाव जीत गए.

ददन की उम्मीदवारी ने कब कब बिगाड़ा खेल
ददन की उम्मीदवारी ने कब कब बिगाड़ा खेल (ETV Bharat GFX)

महागठबंधन के यादव वोट बैंक में सेंध : ददन यादव 2000 में निर्दलीय विधानसभा का चुनाव लड़े थे और और जीते भी. बिहार में सरकार बनाने में बड़ी भूमिका भी निभाई और इसलिये उन्हें मंत्री भी बनाया गया. 2005 में दो बार चुनाव हुआ दोनों बार निर्दलीय ही चुनाव जीते. उसके बाद जदयू के टिकट पर भी 2015 में चुनाव जीते. 2020 में जदयू ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो फिर से निर्दलीय मैदान में उतर आए हालांकि इस बार चुनाव हार गए.

महागठबंधन खेमें में बेचैनी : दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव में 2004, 2009 और 2014 में अपना दांव आजमा चुके हैं. सब बार हार मिली है. ददन यादव एक बार फिर से मैदान में हैं इस उम्मीद से की जनता उन्हें चुन लेगी. ददन यादव के निर्दलीय चुनाव मैदान में आने से फिलहाल हलचल जरूर है. ऐसे ददन यादव ही नहीं आईपीएस आनंद मिश्रा भी निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. लेकिन असली समीकरण ददन यादव ही बिगाड़ रहे हैं. महागठबंधन खेमे में फिलहाल बेचैनी भी दिख रही है.

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