जबलपुर। मात्र 50 हजार से 1 लाख तक खर्च करके लोग डॉक्टरेट की उपाधि खरीद रहे हैं. देश में करीब 100 से ज्यादा संस्थाएं फर्जी तरीके से डॉक्टरेट की उपाधियां बेच रही हैं. जबलपुर के आरटीआई एक्टिविस्ट ने ये खुलासा किया है. उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश की मथुरा की एक सामाजिक संस्था मात्र 31 हजार रुपए में डॉक्टरेट की मानद उपाधि देने को तैयार हो गई. आरटीआई एक्टिविस्ट ने केंद्र सरकार और यूजीसी को शिकायत की है और कार्रवाई नहीं होने पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाने की बात कही है.
अपने नाम के आगे डॉक्टर कौन लिख सकता है
चिकित्सा क्षेत्र में- सामान्य तौर पर यदि आपने चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई की है तो आपको डॉक्टर लिखने का अधिकार मिल जाता है. इस पर भी अक्सर बहस चलती है कि किस विधा के लोग डॉक्टर लिख सकते हैं और कौन नहीं लिख सकता लेकिन फिर भी सामान्य तौर पर चिकित्सा क्षेत्र में डिग्री लेने वाले अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखते हैं.
पीएचडी डिग्री- वही अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखने का अधिकार पीएचडी डिग्री के माध्यम से भी मिल जाता है लेकिन इसमें छात्र को किसी विषय विशेष में शोध कार्य पेश करना पड़ता है और यह शोध पूरी दुनिया में अपनी तरह का अनोखा होता है. इसलिए शोधकर्ता को डॉक्टरेट की उपाधि दे दी जाती है और वह अपने नाम के आगे डॉ लिख सकता है.
मानद उपाधि- इसके अलावा एक तीसरा तरीका और है जिसमें यदि किसी आदमी का काम उसके अपने क्षेत्र में ऐसा है कि उसके काम की वजह से उसे दुनिया पहचानती है, उन्हें सरकार की रजिस्टर्ड यूनिवर्सिटी मानद उपाधि से सम्मानित कर सकती है. ऐसे लोगों को वैसे ही किसी पहचान की जरूरत नहीं होती लेकिन यह चाहे तो अपने नाम के सामने डॉक्टर लिख सकते हैं.
आरटीआई एक्टिविस्ट का खुलासा
कुछ कठिनाइयों का फायदा उठाते हुए कुछ लोगों ने डॉक्टर की डिग्री बेचने का कारोबार शुरू कर दिया. जबलपुर के सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट मनीष शर्मा के पास उत्तर प्रदेश के मथुरा से एक फोन आया, जिसमें वह संस्था मनीष शर्मा को मानद उपाधि से सम्मानित करना चाहती थी. कुछ देर की चर्चा के बाद संस्था के पदाधिकारी ने इसके लिए एक फीस की बात शुरू की जिसमें शुरुआत तो एक लाख से हुई लेकिन बात 31000 पर आकर रुकी. इसके सबूत भी मनीष शर्मा के पास हैं.
डॉक्टर डिग्री का कारोबार करने वाली सैकड़ों संस्थाएं
मनीष शर्मा एक आरटीआई एक्टिविस्ट हैं और जबलपुर की नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के सदस्य हैं. इस संस्था ने हाईकोर्ट में कई जनहित याचिकाएं लगाई हैं. मनीष शर्मा को इस मामले में गड़बड़ नजर आया और उन्होंने ऐसी संस्थाओं को खोजना शुरू किया तो उनके पास लगभग 100 से ज्यादा संस्थाओं की जानकारी निकलकर सामने आई. ये संस्थाएं डॉक्टर की डिग्री महज कुछ रुपयों में बेच रही हैं इनमें कुछ संस्थाएं भारत की हैं और कुछ संस्थाएं भारत के बाहर की. मनीष का कहना है कि इसमें से कुछ संस्थाएं एमएसएमई के तहत रजिस्टर्ड व्यावसायिक संस्थान हैं और कुछ समाजसेवी संगठन हैं लेकिन उनके पास मानद उपाधि देने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है.
रजिस्टर्ड यूनिवर्सिटी ही दे सकती है मानद उपाधि
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में यूनिवर्सिटी बनाने का और यूनिवर्सिटी के कामकाज का वर्णन है. ऐसी यूनिवर्सिटी ही किसी जानी-मानी हस्ती को डॉक्टरेट की मानद उपाधि दे सकती हैं. इसके अलावा यदि कोई और दे रहा है तो यह कानून का उल्लंघन है और इसको भारतीय कानून में धोखाधड़ी कहा जाएगा और इसके तहत धारा 420 के तहत ऐसे फर्जी संस्थाओं के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
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यूजीसी और केन्द्र सरकार से की शिकायत
फिलहाल मनीष शर्मा ने इस मामले में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन और केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा विभाग को पत्र लिखा है और उन्होंने उन संस्थाओं की सूची भी भेजी है जो यह फर्जी बाड़ा कर रही हैं. मनीष शर्मा का कहना है कि यदि यूजीसी ने उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की तो वह इस मामले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका के माध्यम से उठाएंगे.