नई दिल्ली : राज्यसभा की 15 सीटों के लिए तीन राज्यों (कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश) में हुए चुनाव ने कांग्रेस को पसोपेश में डाल दिया है. हिमाचल प्रदेश में तो उनकी सरकार गिरने की नौबत आ चुकी है. बहुमत होने के बावजूद उनके विधायकों ने भाजपा के उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया. उनके छह विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है.
सुक्खू मंत्रिमंडल से विक्रमादित्य सिंह ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने अपनी सरकार पर भी हमला बोला है. विक्रमादित्य ने सीएम की कार्यशैली और विधायकों की अनदेखी का आरोप लगाया. आश्चर्य तो ये है कि विक्रमादित्य सिंह की मां प्रतिभा सिंह राज्य कांग्रेस की अध्यक्ष हैं. सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस के कई विधायकों ने दबी जुबान में अभिषेक मनु सिंघवी की उम्मीदवारी का विरोध किया था. उन्हें 'बाहरी' तक बता दिया था. लेकिन पार्टी हाईकमान का ऑर्डर था, इसलिए किसी ने खुलकर विरोध नहीं किया. पर चुनाव परिणाम ने पार्टी को शर्मसार कर दिया है.
उत्तर भारत में सिर्फ हिमाचल प्रदेश ही ऐसा राज्य है, जहां पर कांग्रेस की सरकार है. और राज्यसभा चुनाव की वजह से इस पर भी संकट गहरा गया है. अगर कांग्रेस इस स्थिति को संभाल पाती, तो शायद आज स्थिति कुछ और होती. भाजपा ने कांग्रेस के विधायकों के द्वंद्व का पूरा फायदा उठाया.
खबर यह भी है कि मुख्यमंत्री ने इस्तीफे की पेशकश की है. हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने इसका खंडन किया है. वैसे, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने पूरी घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमें कुछ कठोर निर्णय लेने होंगे. अब इसके क्या मायने हैं, क्या सीएम को बदला जाएगा, इसको लेकर चर्चा शुरू हो चुकी है.
हिमाचल प्रदेश से कांग्रेस के उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी थे. इस सीट से भाजपा ने हर्ष महाजन को उतारा. महाजन 45 सालों तक कांग्रेस में रह चुके हैं. कांग्रेस पूरी तरह से आश्वस्त थी कि सिंघवी की जीत सुनिश्चित है. कांग्रेस के पास 68 में से 40 विधायक हैं. उन्हें लग रहा था कि उनके पाले में 43 वोट पड़ेंगे, जिनमें तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन शामिल है. राज्यसभा सांसद चुने जाने के लिए प्रथम वरीयता के आधार पर 35 वोटों की जरूरत थी. लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार इतने वोट प्राप्त नहीं कर सके. दोनों उम्मीदवारों को 34-34 वोट मिले. भाजपा के 25 विधायक हैं. कांग्रेस के छह और तीन निर्दलीय विधायकों ने भाजपा के पक्ष में वोट किया.
हर्ष महाजन का एक बयान मीडिया में आया है, इसमें वह कह रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता टिकट और पार्टी पदों को बेच रहे हैं. भाजपा ने दावा किया है कि 35 विधायक सरकार के खिलाफ हैं, लिहाजा सुक्खू सरकार का गिरना तय है.
अब बात उत्तर प्रदेश की. यूपी में राज्यसभा के लिए 10 सांसद चुने गए. विधायकों की संख्या के आधार पर देखा जाए, तो भाजपा के सात और सपा के तीन उम्मीदवारों की जीत होती. लेकिन भाजपा ने यहां भी बाजी पलट दी. भाजपा ने यहां से आठवें उम्मीदवार के तौर पर संजय सेठ को उतारा. सपा की ओर से आलोक रंजन उम्मीदवार थे.
संजय सेठ भी कभी मुलायम परिवार के करीबी थे. लेकिन 2019 में वह भाजपा में आ गए थे. संजय सेठ की जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा ने सपा के सात विधायकों को अपने पाले में कर लिया. वोटिंग से पहले सपा के चीफ व्हिप मनोज पांडे ने इस्तीफा दे दिया. अखिलेश यादव इस कदम से नाराज हो गए थे. उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि जिनका स्पाइन मजबूत नहीं है, वह जरूर झुकेंगे.
वैसे, सूत्रों का कहना है कि सपा विधायकों ने यह सवाल उठाया था कि पार्टी लगातार जया बच्चन को क्यों उम्मीदवार बना रही है, जबकि उनकी वजह से पार्टी को कोई बड़ा फायदा नहीं पहुंचता है. इसको लेकर विधायकों में नाराजगी रही है. सोशल मीडिया पर सपा के कई नेताओं ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया था.
कुछ लोग मानते हैं कि मुलायम परिवार से जया बच्चन की घनिष्ठता बहुत अधिक है, लिहाजा, उन्हें पांचवीं बार राज्यसभा का टिकट दिया गया. मीडिया रिपोर्ट में यह भी कहा जाता है कि जया बच्चन डिंपल यादव की पसंद हैं. कुछ लोग यह भी बताते हैं कि जया पार्टी के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती हैं और वह एक सेलिब्रिटी भी हैं.
कारण चाहे जो भी हो, भाजपा भावनात्मक तरीके से निर्णय नहीं लेती है. भाजपा ने सपा के तीसरे उम्मीदवार को हराने के लिए उस व्यक्ति को आगे कर दिया, जो कभी मुलायम परिवार के करीबी हुआ करते थे. यूपी से भाजपा के आठ और सपा के दो उम्मीदवार चुनाव जीते.
जहां तक बात कर्नाटक की है, तो यहां पर कांग्रेस की सरकार है. र्नाटक में चार सीटों के लिए चुनाव हुए. इनमें से तीन सीटों पर कांग्रेस और एक सीट पर भाजपा के उम्मीदवार की जीत हुई. कांग्रेस के अजय माकन, सैयद नासिर हुसैन और जीसी चंद्रशेखर की जीत हुई. भाजपा की ओर से कृष्णसा भांडगे को जीत मिली. वोट क्रॉसिंग यहां भी हुई. लेकिन यहां पर कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं पहुंचा, बल्कि भाजपा को झटका लगा. भाजपा के एक विधायक ने कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर दिया. उनका नाम एसटी सोमशेखर है. भाजपा के एक और विधायक शिवराम हेब्बर मतदान देने नहीं आए. मतदान से पहले कांग्रेस नेताओं ने दावा किया था कि उनके संपर्क में भाजपा के कई नेता हैं, हालांकि, कुछ वैसा नहीं हुआ.
ये भी पढ़ें : हिमाचल विधानसभा एक दिन पहले ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित, अल्पमत में आने से बची सुक्खू सरकार, बिना विपक्ष के बजट पारित