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बीजेपी विधायक श्रेयसी सिंह किससे और कब करेंगी शादी, हर सवाल का मिल गया जवाब - Shreyashi Singh

बीजेपी विधायक श्रेयसी सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में अपनी शादी को लेकर उन्होंने बड़ा खुलासा किया. पेश है बातचीत का अंश-

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 2 hours ago

Updated : 1 hours ago

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श्रेयसी सिंह (ETV Bharat)

पटना : वैसे तो देश में कई एलिजिबल बैचलर मौजूद हैं, हालांकि उनकी शादी को लेकर अक्सर ही चर्चाओं का बाजार गर्म रहता है. फिल्मी सितारों से तो हर कोई वाकिफ होता है, राजनेता भी कहीं से पीछे नहीं है.

शादी को लेकर श्रेयसी का खुलासा : बिहार में कई राजनेता एलिजिबल बैचलर के रूप में जाने जाते हैं, इसमें चिराग पासवान से लेकर श्रेयसी सिंह का नाम शामिल है. ऐसे में श्रेयसी सिंह ने खुद ही शादी को लेकर बड़ा खुलासा किया है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने सभी सवालों का बेबाकी से जवाब दिया.

बीजेपी विधायक श्रेयसी सिंह से खास बातचीत (ETV Bharat)

खेल से विधायक तक का सफर : श्रेयसी सिंह जमुई से बीजेपी की विधायक हैं और एमएलए बनने से पहले एक गोल्ड मेडलिस्ट निशानेबाज भी हैं. इन्होंने कॉमनवेल्थ गेम में गोल्ड मेडल जीता था और इस बार के पेरिस ओलंपिक में विधायक रहते हुए भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए शूटिंग के कंपटीशन में हिस्सा लिया था.

पिता पर श्रेयसी को गर्व : श्रेयसी सिंह के पिता स्वर्गीय दिग्विजय सिंह बिहार के कद्दावर नेता थे. एक समय बिहार की राजनीति में उनकी तूती बोलती थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समकक्ष दिग्विजय सिंह की राजनीति चलती थी लेकिन, अचानक जून 2010 में उनके मृत्यु हो गई. दिग्विजय सिंह अपने पीछे पत्नी पुतुल सिंह और दो बेटियां मानसी सिंह और श्रेयसी सिंह को छोड़ गए थे.

श्रेयसी सिंह का पूरा इंटरव्यू यहां देखें-

मेहनत से बनाया मुकाम : बांका से निर्दलीय सांसद रहे दिग्विजय सिंह की सीट खाली होने के बाद पत्नी पुतुल सिंह ने वहां से चुनाव लड़ा और दोनों बेटियों ने चुनाव का भार अपने कंधे पर लेकर माँ को जिताया. चूंकि दिग्विजय सिंह भारत राइफल एसोसिएशन अध्यक्ष थे तो, उनकी छोटी बेटी श्रेयसी सिंह को इस खेल में रुचि थी. तब तक श्रेयसी सिंह ने जूनियर लेवल पर अपनी एक पहचान बना ली थी.

'पिता को किया वादा पूरा किया' : इसी बीच पिता की मृत्यु के बाद पिता को दिया गया वादा कि कॉमनवेल्थ गेम में गोल्ड मेडल जीतना है तो, श्रेयसी सिंह ने वह सपना पहले तो 2014 में रजत पदक जीतकर पूरा किया, उसके बाद 2018 में स्वर्ण पदक जीता. कॉमनवेल्थ गेम में जीत हासिल करने के बाद श्रेयसी सिंह ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ली और 2020 में जमुई से चुनाव लड़कर विधायक बनीं.

श्रेयसी सिंह
श्रेयसी सिंह (ETV Bharat)

पिता की मृत्यु के बाद श्रेयसी सिंह ने अपने खेल और अपने करियर को लेकर एक लंबा संघर्ष किया. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि किस तरह से उन्होंने अपना पहला नेशनल गेम उधार के राइफल से खेला था. पेश है श्रेयसी सिंह के इंटरव्यू का वह अंश.

सवाल - आपकी सफलता के पीछे एक पुरुष का हाथ है. वह पुरुष आपके पिताजी हैं कैसे?

श्रेयसी सिंह- बिल्कुल, मेरी सफलता के पीछे मेरे पिताजी का हाथ है लेकिन, मेरी माता जी का भी उतना ही हाथ है, जितना मेरे पिताजी का. पिताजी के जाने के बाद मेरे स्पोर्टस और पॉलीटिकल करियर को संवारने में मेरी मां का हाथ है. सबके जीवन में माता-पिता का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है. मुझे गर्व है कि मैं एक स्ट्रांग पेरेंट्स सपोर्टस के साथ में आगे बढ़ पाई.

सवाल - आपके पिताजी यानी दिग्विजय सिंह आपके गुरु थे?

श्रेयसी सिंह- जी हां, मेरे पिताजी मेरे गुरु थे. खेल में मेरी काफी रुचि रहती थी. इसमें पिताजी ने काफी इनकरेज किया. शूटिंग इसलिए की क्योंकि वह नेशनल राइफल संगठन के अध्यक्ष थे. वह शूटिंग के खेल को अच्छे से समझ पाए थे. आप कह सकते हैं कि उन्होंने मेरा एक तरीके से मेंटरशिप किया है.

जब मैं शूटिंग की शुरुआत की थी तो उनका बहुत सपोर्ट रहा था. लेकिन, वह सपोर्ट्स एक तरीके से मोटिवेशनल बूस्ट की तरह रहा क्योंकि, जो भी मेरा संघर्ष था, जो भी मेरा प्रोफेशनल संघर्ष करके हासिल करना था जैसे कि इक्विपमेंट खरीदना, यह सब काम मैंने अपने दम पर ही किया. कभी भी मेरे पिताजी ने यह एहसास नहीं दिलाया कि मैं संघ का अध्यक्ष हूं, उस वजह से मुझे कोई एक्स्ट्रा हेल्प या एक्स्ट्रा बढ़ावा इस खेल में मिले.

श्रेयसी सिंह
श्रेयसी सिंह (ETV Bharat)

सवाल - आपके पिताजी संघ के अध्यक्ष थे, सारी सुविधाएं आपके पास थीं, फिर यह राइफल खरीदने वाली बात कहां से आ गई. पहला राइफल आपने कैसे खरीदा?

श्रेयसी सिंह- शॉटगन शूटिंग जो मैं करती हूं उसमें 12 बोर की बंदूक, जो दो नाली बंदूक होती है. उसको यूज किया जाता है. इसके लिए जब तक आप नेशनल क्वालीफाई नहीं करते हैं, तब तक आप यह वेपन परचेज नहीं कर सकते हैं. यानी की इंपोर्ट नहीं कर सकते हैं. जो सेकंड हैंड वेपन इंडिया में उपलब्ध है वह काफी ओवर प्राइस रहते हैं. पिताजी की तरफ से कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा था. अध्यक्ष होने के बावजूद उनसे कोई एक्स्ट्रा सपोर्ट नहीं मिल रहा था. उन्होंने मुझे हमेशा यह सरलता से सिखाया कि हमेशा अपनी मेहनत करके आगे बढ़ाना है. जितना मोटिवेशनल बूस्ट वह दे सकते थे वह उन्होंने देने का काम किया.

''जब मैं प्री नेशनल में पहुंची, मैंने एक सीनियर शूटर से बंदूक बोरो करके प्री नेशनल क्वालीफाई किया. इस उधार के बंदूक से मैं नेशनल खेली और इस उधार के बंदूक से नेशनल पदक भी जीता. उसके बाद भी स्पॉन्सर नहीं मिल रहे थे और पिताजी ने कहा था कि अपनी बंदूक खुद से खरीदनी है. और मेरे पास स्पॉन्सर नहीं थे. इसलिए मैंने इस उधार के बंदूक से अपना पहला कॉमनवेल्थ भी खेला. जब स्पॉन्सरशिप मिला तब मैंने अपना पहला बंदूक खरीदा था.''- श्रेयसी सिंह, बीजेपी विधायक

निशानेबाजी करतीं श्रेयसी सिंह
निशानेबाजी करतीं श्रेयसी सिंह (ETV Bharat)

मेरा कैरियर 2008 की शुरुआत में शुरू हुआ था. 2009 में मैं जूनियर लेवल पर पहला इंटरनेशनल पदक जीती थी. वह भारत के लिए भी था और मेरा भी पहला इंटरनेशनल मेडल था. 2010 में जब मैं कॉमनवेल्थ गेम में पहुंची तो स्पॉन्सर भी मिलने लगे. 2011 में मैंने अपनी बंदूक खुद से खरीदी और आज भी मैं उसी बंदूक को यूज करती हूं.

सवाल - आपका शाही खानदान है. बांका - जमुई में आप लोगों का एक अच्छा रुतबा है फिर यह बंदूक के लिए संघर्ष क्यों करना पड़ा?

श्रेयसी सिंह - संघर्ष पैसों का नहीं था. संघर्ष मेरे पिताजी के सीख का था. मेरे पिताजी का रुतबा कह लीजिए या शाही परिवार कह लीजिए, मेरे पिताजी जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे. इस वजह से आज भी लोग उनको याद करके मायूस हो जाते हैं. उनके आंखों में आंसू आ जाते हैं, जो उनसे दिल से जुड़े हुए थे. एक बहुत ही सिंबॉलिक रिलेशन था.

एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक रॉयल परिवार से थे. यह सिर्फ पैसों का संघर्ष नहीं था, यह मेरे पिताजी की सोच थी. क्योंकि अपने बच्चों को जब तक हम यह नहीं सिखाएंगे की संघर्ष करके कैसे आगे बढ़ाना है. कई बार लोग कहते हैं ना कि चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुआ है तो, शायद यह ललक या भूख नहीं होती कि मुझे वह जीतना है और राइफल खरीदना है. मुझे अपने आप को साबित करना था. मेरा प्रदर्शन बेहतर करना था. राइफल खरीदनी है वह पैशन था. वह मेरे पिताजी किसी की वजह से ही यह पैशन डेवलप हो पाया था.

नेशनल शूटर श्रेयसी सिंह
नेशनल शूटर श्रेयसी सिंह (ETV Bharat)

सवाल- आपके पिताजी वह पल नहीं देख पाए, क्योंकि 2010 में उनकी मृत्यु हो गई थी और अपने राइफल 2011 में खरीदा था.

श्रेयसी सिंह - नहीं, मेरे पिताजी नहीं देख पाए थे. मेरे पिताजी उस वक्त गुजर चुके थे.

सवाल - 2010 के बाद आप में एक अलग ऊर्जा आ गई. आपने अपनी मां का बहुत सहयोग किया. राजनीति में उनको एस्टेब्लिश किया. उसके बाद अपने अपने खेल पर फोकस किया. ये कितना मुश्किल था ?

श्रेयसी सिंह- हर वक्त मैं पिता को मिस करती हूं. एक पिता का साया ना रहना बहुत दुख देता है. मेरे पूरे परिवार के लिए वह एक स्तंभ थे. तीन पिलर हम लोग थे और मेरे पिताजी उसके छत थे. मैं, मेरी मां और मेरी बहन वह पिलर थे और छत जब नहीं था तो तीनों पिलर जब गिरे तो एक दूसरे को सपोर्ट करने लगे. मेरी मां और मेरी बहन दोनों ही एक मजबूत महिलाएं हैं. जिन्होंने मुझे बहुत सपोर्ट किया.

पारिवारिक क्षति जो मेरी मां को हुआ, वह कोई महसूस नहीं कर सकता है. मेरे पिता जी से बहुत लोग जुड़े हुए थे. आज भी लोग कहते हैं कि दादा मुझे बहुत मानते थे. लेकिन, मेरी मां, मैं और मेरी बहन जिन अनुभव से गुजरे उसको कोई और दूसरा महसूस नहीं कर सकता. तीन पिलर जो मैं कह रही हूं वह तीन पिलर जब गिरे तो एक दूसरे पर टिक गया और तीनों ने एक दूसरे को सपोर्ट करना शुरू किया.

पिताजी का एक बहुत बड़ा सपना था. चाहे वह बिहार के विकास का हो या मुझे शूटिंग में किस तरह से आगे बढ़ाना है. उन विचारधाराओं के साथ हम भी जुड़े हुए है और उनके काम को, उनके विचारों को आगे बढ़ाने का काम हम सब कर रहे हैं.

सवाल- 2010 के बाद जब आपने कॉमनवेल्थ गेम जीता था. तो परिवार में क्या माहौल था?

श्रेयसी सिंह - परिवार में बहुत खुशी का माहौल था. देखिए, राष्ट्रमंडल खेलों का जो सफर रहा मेरा, वो काफी इमोशनल सफर था. क्योंकि मेरे पिताजी कॉमनवेल्थ गेम के वक्त जब वह लंदन गए थे. तो इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन के वह उपाध्यक्ष थे और कॉमनवेल्थ गेम की मीटिंग 2010 में जब इंडिया में होने वाली थी. उस मीटिंग की वजह से ही वह मुंबई गए थे, जहां वह अस्वस्थ हुए और उनकी मृत्यु हो गई. जो आखिरी बात हुई थी मेरे पिताजी से, तो उन्होंने कहा था कि कॉमनवेल्थ गेम में जाना है और कॉमनवेल्थ मेडल जीतना है. क्योंकि, तब तक किसी भी महिला खिलाड़ी ने कॉमनवेल्थ गेम का मेडल नहीं जीता था.

2010 में जून में मेरे पिताजी गुज़र गए थे और अक्टूबर में यह कॉमनवेल्थ गेम हुआ था. मेरा प्रदर्शन ठीक रहा था लेकिन मैं फाइनल में आई थी. मेडल नहीं जीत पाई थी. उसके बाद मैं 4 साल की मेहनत करके 2014 में फिर से कॉमनवेल्थ गेम में मैं रजत पदक जीता था. रजत पदक 2014 में जीतने के बाद मुझे खुशी तो जरूर हुई थी और वह पहला मेडल था. जो महिला खिलाड़ी ने शॉट गन शूटिंग में जीता था.

लेकिन, कुछ दिनों के बाद वह खुशी मेरी नहीं रही. क्योंकि मुझे लगने लगा कि पिताजी को जो मैंने वादा किया था गोल्ड का था. सपना देखा है स्वर्ण का देखा है, रजत का सपना नहीं देखा है. तो मुझे एक बार फिर से मेहनत करके स्वर्ण पदक जीतना है. वो 2018 में पूरा हुआ. बिल्कुल 8 साल का वह सफर था. जो मेरे सपने के साथ संघर्ष रहा.

सवाल- दादा (दिग्विजय सिंह) का इतना रुतबा था लेकिन, दादा के निधन के बाद जो दादा के साथ राजनीति करते थे जो दादा के बदौलत राजनीति करते थे अब, वही लोग मुंह मोड़ने लगे थे.

श्रेयसी सिंह- हां बिल्कुल, राजनीति में मेरे पिताजी थे और कई उतार-चढ़ाव को हम लोगों ने देखा बहुत पहले से और बहुत छोटी उम्र से मुझे यह बात समझ में आ गई थी. जब आपके पास पावर होता है, प्रतिष्ठा होती है तो बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो आपके साथ होते हैं. लेकिन, जब वह पावर आपके पास नहीं रहती है तो, वही लोग आपके घर नहीं आते हैं. आपसे मिलकर रहना नहीं चाहता है. यह समझ मुझे लाइफ में बहुत पहले आ गई थी. मैं जब भी किसी पद पर पहुंची तो, मैंने कभी यह नहीं सोचा कि जो लोग हमसे जुड़ रहे हैं वह मेरे सच्चे मित्र हैं या सच्चे लोग हैं.

मैं एक हम्बल बैकग्राउंड से हूं और हम्बल तरीके से सबसे मिलती हूं लेकिन, मुझे पता है कि बहुत से ऐसे लोग होंगे जब मेरे पास पावर नहीं रहेगा तो हमारे साथ नहीं रहेंगे. जब मेरे पिताजी जिंदा थे तभी उनके साथ ऐसा होते हुए देखा था. जब पिताजी नहीं थे तब भी मैं नहीं देखा था. मां मेरी सांसद थी उनके साथ भी ऐसा हुआ और मुझे यकीन है कि जिंदगी का यह उतार चढ़ाव है और लोग ऐसे ही होते हैं. इन्हीं लोगों के साथ मिलजुल कर राजनीति में आए हैं तो अपना काम करना है.

सवाल- यह तो आप खिलाड़ी है इसलिए आपका यह थॉट बनता जा रहा है. आपने अपने जीवन में भी इसे उतारा है.

श्रेयसी सिंह - बिल्कुल मेरे जीवन में सब कुछ उतार-चढ़ाव होते रहता है. हमेशा खुशी ही रहेगी ऐसा नहीं है, कभी खुशी रहेगी, कभी दुख भी होगा. जब शाम होगी तो अगले दिन सवेरा भी होगा. खेल अकेली ऐसी चीज है जो आपके जीवन के बैलेंस को बना सकती है. एक खिलाड़ी के रूप में मैं कर सकती हूं. खिलाड़ी हारता है फिर परिश्रम करके उसे जितना है और जीतने के बाद भी अगले कंपटीशन में जाने की तैयारी करता है और कोई गारंटी नहीं रहती है कि वह जीतेगा. किस तरह से हैंडल करना है, यह जरूरी है यह जो खेल सब कुछ सीखना है.

सवाल- आपने कॉमनवेल्थ जीता, उसके बाद विधायक बनी, आप ओलंपिक गई, हालांकि ओलंपिक में कुछ खास नहीं हो पाया. तो इस सपने को कैसे पूरा करना है.

श्रेयसी सिंह- शूटिंग कोई ऐसी ऐसा गेम नहीं है जो यंग टाइम में रिटायरमेंट हो जाएगा. शूटर की लाइफ लंबी होती है. मैं 2028 की तैयारी कर रही हूं. ओलंपिक में जाने की तैयारी 2028 में हो रही है. एक बार फिर ओलंपिक जाकर पदक जीतना है. बिल्कुल 4 साल में तैयारी शुरू हो जाती है और अभी से हम मानकर चल रहे हैं कि हमारी तैयारी शुरू हो चुकी है. ओलंपिक के क्वालीफाई जैसे-जैसे शुरू होंगे हमारे खिलाड़ी भी क्वालीफाई करते जाएंगे.

सवाल - राजनीति को लेकर क्या सोचती हैं. क्या लक्ष्य है इस राजनीति में?

श्रेयसी सिंह - राजनीति में आने का पूरा उद्देश्य यह है कि मैं सेवा भाव से काम कर सकूं. मेरे पिताजी ने भी इसी सेवा भाव को लेकर आगे बढ़े थे और लोग उनको प्यार और सम्मान देते थे. जब मेरी मां भी पॉलिटिक्स में आई तो उन्होंने भी इसी तरीके की राजनीति की, मेरे पिताजी अक्सर कहते थे कि राजनीति खराब लोग करते हैं, बाहुबली लोग होते हैं, वह पॉलिटिक्स करते हैं. जो एक नेगेटिव नॉरेटिव सेट है.

मेरे पिताजी कहते थे जब अच्छे लोग पॉलिटिक्स जैसी जगहों को छोड़ने लगते हैं तो बुरे लोग आकर वहां बैठेंगे ही. एक अच्छे सोच के साथ, ईमानदारी से, सेवा भाव के साथ राजनीति करना चाहती हूं. विकास के काम, योजना नीति सब पर में काम कर रही हूं.

सवाल- जमुई में जहां की आप विधायक हैं वहां के बच्चे आपको विधायक दीदी कहते हैं और वहां आपने स्पोर्ट्स के कई काम किए हैं.

श्रेयसी सिंह - जमुई हमारा घर है तो, जाहिर सी बात है जो कम उम्र के बच्चे हैं जो लड़कियां हैं. वह मुझे दीदी कहती हैं. उनको अच्छा भी लगता है कि पहली बार किसी को विधायक दीदी कह कर बुलाते हैं. नहीं तो बहुत सारे पुरुष होते हैं जो पॉलिटिक्स में आते हैं तो दादा या भाई साहब कहलाते हैं लेकिन, दीदी एक युवाओं से जुड़ने का मौका भी मिलता है तो, मुझे बहुत अच्छा लगता है.

सवाल - आपकी बहन भी शूटिंग करती हैं?

श्रेयसी सिंह - मेरी बहन मानसी सिंह ने बहुत समय तक शौकिया निशानेबाजी की है. जूनियर टीम की हिस्सा रही. नेशनल लेवल पर उन्होंने पदक भी जीता लेकिन, उनका ध्यान ज्यादा पढ़ाई की तरफ रहता था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद जेएनयू से उन्होंने पॉलिटिकल साइंस भी पढ़ा और उन्होंने फिर लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स से सोशियो इकोनामिक पॉलिसी भी पढी. उसके बाद वह ट्रांसजेंडर राइट्स के लिए काम करती हैं. पिताजी ने कहा था कि स्पोर्टस करना है उसमें आपको कोई रोकेगा नहीं, स्पोर्टस के साथ-साथ पढ़ाई भी करनी है. जितना आपका ध्यान खेल में है. उतना ध्यान आपका पढ़ाई में भी रहना चाहिए.

सवाल- आप विधायक बन चुकी हैं कई बार आपका नाम मंत्री मंत्री बनने के रेस में आया लेकिन, अब तक पूरा नहीं हो पाया, यह भी लक्ष्य है.

श्रेयसी सिंह - मंत्नी बनना, ना बनाना यह हमारे हाथ में तो है नहीं. यह शिर्ष नेतृत्व के ऊपर निर्भर करता है. यह कोई लक्ष्य नहीं है. लक्ष्य में वह है जो आप अपने लिए डिसाइड करते हैं. चुनाव लड़कर जीतना मेरा लक्ष्य हो सकता है. लोगों के बीच में, लोगों के दिल में, जगह बनाना, उनसे सम्मान पाना, हमारा लक्ष्य हो सकता है लेकिन, किस पद पर मुझे शिर्ष नेतृत्व बैठाएगा यह उनका फैसला है. वह मेरा लक्ष्य कभी नहीं रहा है.

सवाल- शादी ब्याह करने का कब तक इरादा है?

श्रेयसी सिंह - देखिए सही व्यक्ति का इंतजार है और मैं शादी जैसी व्यवस्था में विश्वास करती हूं और वक्त आने पर यह शादी हो जाएगी.

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पटना : वैसे तो देश में कई एलिजिबल बैचलर मौजूद हैं, हालांकि उनकी शादी को लेकर अक्सर ही चर्चाओं का बाजार गर्म रहता है. फिल्मी सितारों से तो हर कोई वाकिफ होता है, राजनेता भी कहीं से पीछे नहीं है.

शादी को लेकर श्रेयसी का खुलासा : बिहार में कई राजनेता एलिजिबल बैचलर के रूप में जाने जाते हैं, इसमें चिराग पासवान से लेकर श्रेयसी सिंह का नाम शामिल है. ऐसे में श्रेयसी सिंह ने खुद ही शादी को लेकर बड़ा खुलासा किया है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने सभी सवालों का बेबाकी से जवाब दिया.

बीजेपी विधायक श्रेयसी सिंह से खास बातचीत (ETV Bharat)

खेल से विधायक तक का सफर : श्रेयसी सिंह जमुई से बीजेपी की विधायक हैं और एमएलए बनने से पहले एक गोल्ड मेडलिस्ट निशानेबाज भी हैं. इन्होंने कॉमनवेल्थ गेम में गोल्ड मेडल जीता था और इस बार के पेरिस ओलंपिक में विधायक रहते हुए भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए शूटिंग के कंपटीशन में हिस्सा लिया था.

पिता पर श्रेयसी को गर्व : श्रेयसी सिंह के पिता स्वर्गीय दिग्विजय सिंह बिहार के कद्दावर नेता थे. एक समय बिहार की राजनीति में उनकी तूती बोलती थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समकक्ष दिग्विजय सिंह की राजनीति चलती थी लेकिन, अचानक जून 2010 में उनके मृत्यु हो गई. दिग्विजय सिंह अपने पीछे पत्नी पुतुल सिंह और दो बेटियां मानसी सिंह और श्रेयसी सिंह को छोड़ गए थे.

श्रेयसी सिंह का पूरा इंटरव्यू यहां देखें-

मेहनत से बनाया मुकाम : बांका से निर्दलीय सांसद रहे दिग्विजय सिंह की सीट खाली होने के बाद पत्नी पुतुल सिंह ने वहां से चुनाव लड़ा और दोनों बेटियों ने चुनाव का भार अपने कंधे पर लेकर माँ को जिताया. चूंकि दिग्विजय सिंह भारत राइफल एसोसिएशन अध्यक्ष थे तो, उनकी छोटी बेटी श्रेयसी सिंह को इस खेल में रुचि थी. तब तक श्रेयसी सिंह ने जूनियर लेवल पर अपनी एक पहचान बना ली थी.

'पिता को किया वादा पूरा किया' : इसी बीच पिता की मृत्यु के बाद पिता को दिया गया वादा कि कॉमनवेल्थ गेम में गोल्ड मेडल जीतना है तो, श्रेयसी सिंह ने वह सपना पहले तो 2014 में रजत पदक जीतकर पूरा किया, उसके बाद 2018 में स्वर्ण पदक जीता. कॉमनवेल्थ गेम में जीत हासिल करने के बाद श्रेयसी सिंह ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ली और 2020 में जमुई से चुनाव लड़कर विधायक बनीं.

श्रेयसी सिंह
श्रेयसी सिंह (ETV Bharat)

पिता की मृत्यु के बाद श्रेयसी सिंह ने अपने खेल और अपने करियर को लेकर एक लंबा संघर्ष किया. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि किस तरह से उन्होंने अपना पहला नेशनल गेम उधार के राइफल से खेला था. पेश है श्रेयसी सिंह के इंटरव्यू का वह अंश.

सवाल - आपकी सफलता के पीछे एक पुरुष का हाथ है. वह पुरुष आपके पिताजी हैं कैसे?

श्रेयसी सिंह- बिल्कुल, मेरी सफलता के पीछे मेरे पिताजी का हाथ है लेकिन, मेरी माता जी का भी उतना ही हाथ है, जितना मेरे पिताजी का. पिताजी के जाने के बाद मेरे स्पोर्टस और पॉलीटिकल करियर को संवारने में मेरी मां का हाथ है. सबके जीवन में माता-पिता का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है. मुझे गर्व है कि मैं एक स्ट्रांग पेरेंट्स सपोर्टस के साथ में आगे बढ़ पाई.

सवाल - आपके पिताजी यानी दिग्विजय सिंह आपके गुरु थे?

श्रेयसी सिंह- जी हां, मेरे पिताजी मेरे गुरु थे. खेल में मेरी काफी रुचि रहती थी. इसमें पिताजी ने काफी इनकरेज किया. शूटिंग इसलिए की क्योंकि वह नेशनल राइफल संगठन के अध्यक्ष थे. वह शूटिंग के खेल को अच्छे से समझ पाए थे. आप कह सकते हैं कि उन्होंने मेरा एक तरीके से मेंटरशिप किया है.

जब मैं शूटिंग की शुरुआत की थी तो उनका बहुत सपोर्ट रहा था. लेकिन, वह सपोर्ट्स एक तरीके से मोटिवेशनल बूस्ट की तरह रहा क्योंकि, जो भी मेरा संघर्ष था, जो भी मेरा प्रोफेशनल संघर्ष करके हासिल करना था जैसे कि इक्विपमेंट खरीदना, यह सब काम मैंने अपने दम पर ही किया. कभी भी मेरे पिताजी ने यह एहसास नहीं दिलाया कि मैं संघ का अध्यक्ष हूं, उस वजह से मुझे कोई एक्स्ट्रा हेल्प या एक्स्ट्रा बढ़ावा इस खेल में मिले.

श्रेयसी सिंह
श्रेयसी सिंह (ETV Bharat)

सवाल - आपके पिताजी संघ के अध्यक्ष थे, सारी सुविधाएं आपके पास थीं, फिर यह राइफल खरीदने वाली बात कहां से आ गई. पहला राइफल आपने कैसे खरीदा?

श्रेयसी सिंह- शॉटगन शूटिंग जो मैं करती हूं उसमें 12 बोर की बंदूक, जो दो नाली बंदूक होती है. उसको यूज किया जाता है. इसके लिए जब तक आप नेशनल क्वालीफाई नहीं करते हैं, तब तक आप यह वेपन परचेज नहीं कर सकते हैं. यानी की इंपोर्ट नहीं कर सकते हैं. जो सेकंड हैंड वेपन इंडिया में उपलब्ध है वह काफी ओवर प्राइस रहते हैं. पिताजी की तरफ से कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा था. अध्यक्ष होने के बावजूद उनसे कोई एक्स्ट्रा सपोर्ट नहीं मिल रहा था. उन्होंने मुझे हमेशा यह सरलता से सिखाया कि हमेशा अपनी मेहनत करके आगे बढ़ाना है. जितना मोटिवेशनल बूस्ट वह दे सकते थे वह उन्होंने देने का काम किया.

''जब मैं प्री नेशनल में पहुंची, मैंने एक सीनियर शूटर से बंदूक बोरो करके प्री नेशनल क्वालीफाई किया. इस उधार के बंदूक से मैं नेशनल खेली और इस उधार के बंदूक से नेशनल पदक भी जीता. उसके बाद भी स्पॉन्सर नहीं मिल रहे थे और पिताजी ने कहा था कि अपनी बंदूक खुद से खरीदनी है. और मेरे पास स्पॉन्सर नहीं थे. इसलिए मैंने इस उधार के बंदूक से अपना पहला कॉमनवेल्थ भी खेला. जब स्पॉन्सरशिप मिला तब मैंने अपना पहला बंदूक खरीदा था.''- श्रेयसी सिंह, बीजेपी विधायक

निशानेबाजी करतीं श्रेयसी सिंह
निशानेबाजी करतीं श्रेयसी सिंह (ETV Bharat)

मेरा कैरियर 2008 की शुरुआत में शुरू हुआ था. 2009 में मैं जूनियर लेवल पर पहला इंटरनेशनल पदक जीती थी. वह भारत के लिए भी था और मेरा भी पहला इंटरनेशनल मेडल था. 2010 में जब मैं कॉमनवेल्थ गेम में पहुंची तो स्पॉन्सर भी मिलने लगे. 2011 में मैंने अपनी बंदूक खुद से खरीदी और आज भी मैं उसी बंदूक को यूज करती हूं.

सवाल - आपका शाही खानदान है. बांका - जमुई में आप लोगों का एक अच्छा रुतबा है फिर यह बंदूक के लिए संघर्ष क्यों करना पड़ा?

श्रेयसी सिंह - संघर्ष पैसों का नहीं था. संघर्ष मेरे पिताजी के सीख का था. मेरे पिताजी का रुतबा कह लीजिए या शाही परिवार कह लीजिए, मेरे पिताजी जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे. इस वजह से आज भी लोग उनको याद करके मायूस हो जाते हैं. उनके आंखों में आंसू आ जाते हैं, जो उनसे दिल से जुड़े हुए थे. एक बहुत ही सिंबॉलिक रिलेशन था.

एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक रॉयल परिवार से थे. यह सिर्फ पैसों का संघर्ष नहीं था, यह मेरे पिताजी की सोच थी. क्योंकि अपने बच्चों को जब तक हम यह नहीं सिखाएंगे की संघर्ष करके कैसे आगे बढ़ाना है. कई बार लोग कहते हैं ना कि चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुआ है तो, शायद यह ललक या भूख नहीं होती कि मुझे वह जीतना है और राइफल खरीदना है. मुझे अपने आप को साबित करना था. मेरा प्रदर्शन बेहतर करना था. राइफल खरीदनी है वह पैशन था. वह मेरे पिताजी किसी की वजह से ही यह पैशन डेवलप हो पाया था.

नेशनल शूटर श्रेयसी सिंह
नेशनल शूटर श्रेयसी सिंह (ETV Bharat)

सवाल- आपके पिताजी वह पल नहीं देख पाए, क्योंकि 2010 में उनकी मृत्यु हो गई थी और अपने राइफल 2011 में खरीदा था.

श्रेयसी सिंह - नहीं, मेरे पिताजी नहीं देख पाए थे. मेरे पिताजी उस वक्त गुजर चुके थे.

सवाल - 2010 के बाद आप में एक अलग ऊर्जा आ गई. आपने अपनी मां का बहुत सहयोग किया. राजनीति में उनको एस्टेब्लिश किया. उसके बाद अपने अपने खेल पर फोकस किया. ये कितना मुश्किल था ?

श्रेयसी सिंह- हर वक्त मैं पिता को मिस करती हूं. एक पिता का साया ना रहना बहुत दुख देता है. मेरे पूरे परिवार के लिए वह एक स्तंभ थे. तीन पिलर हम लोग थे और मेरे पिताजी उसके छत थे. मैं, मेरी मां और मेरी बहन वह पिलर थे और छत जब नहीं था तो तीनों पिलर जब गिरे तो एक दूसरे को सपोर्ट करने लगे. मेरी मां और मेरी बहन दोनों ही एक मजबूत महिलाएं हैं. जिन्होंने मुझे बहुत सपोर्ट किया.

पारिवारिक क्षति जो मेरी मां को हुआ, वह कोई महसूस नहीं कर सकता है. मेरे पिता जी से बहुत लोग जुड़े हुए थे. आज भी लोग कहते हैं कि दादा मुझे बहुत मानते थे. लेकिन, मेरी मां, मैं और मेरी बहन जिन अनुभव से गुजरे उसको कोई और दूसरा महसूस नहीं कर सकता. तीन पिलर जो मैं कह रही हूं वह तीन पिलर जब गिरे तो एक दूसरे पर टिक गया और तीनों ने एक दूसरे को सपोर्ट करना शुरू किया.

पिताजी का एक बहुत बड़ा सपना था. चाहे वह बिहार के विकास का हो या मुझे शूटिंग में किस तरह से आगे बढ़ाना है. उन विचारधाराओं के साथ हम भी जुड़े हुए है और उनके काम को, उनके विचारों को आगे बढ़ाने का काम हम सब कर रहे हैं.

सवाल- 2010 के बाद जब आपने कॉमनवेल्थ गेम जीता था. तो परिवार में क्या माहौल था?

श्रेयसी सिंह - परिवार में बहुत खुशी का माहौल था. देखिए, राष्ट्रमंडल खेलों का जो सफर रहा मेरा, वो काफी इमोशनल सफर था. क्योंकि मेरे पिताजी कॉमनवेल्थ गेम के वक्त जब वह लंदन गए थे. तो इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन के वह उपाध्यक्ष थे और कॉमनवेल्थ गेम की मीटिंग 2010 में जब इंडिया में होने वाली थी. उस मीटिंग की वजह से ही वह मुंबई गए थे, जहां वह अस्वस्थ हुए और उनकी मृत्यु हो गई. जो आखिरी बात हुई थी मेरे पिताजी से, तो उन्होंने कहा था कि कॉमनवेल्थ गेम में जाना है और कॉमनवेल्थ मेडल जीतना है. क्योंकि, तब तक किसी भी महिला खिलाड़ी ने कॉमनवेल्थ गेम का मेडल नहीं जीता था.

2010 में जून में मेरे पिताजी गुज़र गए थे और अक्टूबर में यह कॉमनवेल्थ गेम हुआ था. मेरा प्रदर्शन ठीक रहा था लेकिन मैं फाइनल में आई थी. मेडल नहीं जीत पाई थी. उसके बाद मैं 4 साल की मेहनत करके 2014 में फिर से कॉमनवेल्थ गेम में मैं रजत पदक जीता था. रजत पदक 2014 में जीतने के बाद मुझे खुशी तो जरूर हुई थी और वह पहला मेडल था. जो महिला खिलाड़ी ने शॉट गन शूटिंग में जीता था.

लेकिन, कुछ दिनों के बाद वह खुशी मेरी नहीं रही. क्योंकि मुझे लगने लगा कि पिताजी को जो मैंने वादा किया था गोल्ड का था. सपना देखा है स्वर्ण का देखा है, रजत का सपना नहीं देखा है. तो मुझे एक बार फिर से मेहनत करके स्वर्ण पदक जीतना है. वो 2018 में पूरा हुआ. बिल्कुल 8 साल का वह सफर था. जो मेरे सपने के साथ संघर्ष रहा.

सवाल- दादा (दिग्विजय सिंह) का इतना रुतबा था लेकिन, दादा के निधन के बाद जो दादा के साथ राजनीति करते थे जो दादा के बदौलत राजनीति करते थे अब, वही लोग मुंह मोड़ने लगे थे.

श्रेयसी सिंह- हां बिल्कुल, राजनीति में मेरे पिताजी थे और कई उतार-चढ़ाव को हम लोगों ने देखा बहुत पहले से और बहुत छोटी उम्र से मुझे यह बात समझ में आ गई थी. जब आपके पास पावर होता है, प्रतिष्ठा होती है तो बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो आपके साथ होते हैं. लेकिन, जब वह पावर आपके पास नहीं रहती है तो, वही लोग आपके घर नहीं आते हैं. आपसे मिलकर रहना नहीं चाहता है. यह समझ मुझे लाइफ में बहुत पहले आ गई थी. मैं जब भी किसी पद पर पहुंची तो, मैंने कभी यह नहीं सोचा कि जो लोग हमसे जुड़ रहे हैं वह मेरे सच्चे मित्र हैं या सच्चे लोग हैं.

मैं एक हम्बल बैकग्राउंड से हूं और हम्बल तरीके से सबसे मिलती हूं लेकिन, मुझे पता है कि बहुत से ऐसे लोग होंगे जब मेरे पास पावर नहीं रहेगा तो हमारे साथ नहीं रहेंगे. जब मेरे पिताजी जिंदा थे तभी उनके साथ ऐसा होते हुए देखा था. जब पिताजी नहीं थे तब भी मैं नहीं देखा था. मां मेरी सांसद थी उनके साथ भी ऐसा हुआ और मुझे यकीन है कि जिंदगी का यह उतार चढ़ाव है और लोग ऐसे ही होते हैं. इन्हीं लोगों के साथ मिलजुल कर राजनीति में आए हैं तो अपना काम करना है.

सवाल- यह तो आप खिलाड़ी है इसलिए आपका यह थॉट बनता जा रहा है. आपने अपने जीवन में भी इसे उतारा है.

श्रेयसी सिंह - बिल्कुल मेरे जीवन में सब कुछ उतार-चढ़ाव होते रहता है. हमेशा खुशी ही रहेगी ऐसा नहीं है, कभी खुशी रहेगी, कभी दुख भी होगा. जब शाम होगी तो अगले दिन सवेरा भी होगा. खेल अकेली ऐसी चीज है जो आपके जीवन के बैलेंस को बना सकती है. एक खिलाड़ी के रूप में मैं कर सकती हूं. खिलाड़ी हारता है फिर परिश्रम करके उसे जितना है और जीतने के बाद भी अगले कंपटीशन में जाने की तैयारी करता है और कोई गारंटी नहीं रहती है कि वह जीतेगा. किस तरह से हैंडल करना है, यह जरूरी है यह जो खेल सब कुछ सीखना है.

सवाल- आपने कॉमनवेल्थ जीता, उसके बाद विधायक बनी, आप ओलंपिक गई, हालांकि ओलंपिक में कुछ खास नहीं हो पाया. तो इस सपने को कैसे पूरा करना है.

श्रेयसी सिंह- शूटिंग कोई ऐसी ऐसा गेम नहीं है जो यंग टाइम में रिटायरमेंट हो जाएगा. शूटर की लाइफ लंबी होती है. मैं 2028 की तैयारी कर रही हूं. ओलंपिक में जाने की तैयारी 2028 में हो रही है. एक बार फिर ओलंपिक जाकर पदक जीतना है. बिल्कुल 4 साल में तैयारी शुरू हो जाती है और अभी से हम मानकर चल रहे हैं कि हमारी तैयारी शुरू हो चुकी है. ओलंपिक के क्वालीफाई जैसे-जैसे शुरू होंगे हमारे खिलाड़ी भी क्वालीफाई करते जाएंगे.

सवाल - राजनीति को लेकर क्या सोचती हैं. क्या लक्ष्य है इस राजनीति में?

श्रेयसी सिंह - राजनीति में आने का पूरा उद्देश्य यह है कि मैं सेवा भाव से काम कर सकूं. मेरे पिताजी ने भी इसी सेवा भाव को लेकर आगे बढ़े थे और लोग उनको प्यार और सम्मान देते थे. जब मेरी मां भी पॉलिटिक्स में आई तो उन्होंने भी इसी तरीके की राजनीति की, मेरे पिताजी अक्सर कहते थे कि राजनीति खराब लोग करते हैं, बाहुबली लोग होते हैं, वह पॉलिटिक्स करते हैं. जो एक नेगेटिव नॉरेटिव सेट है.

मेरे पिताजी कहते थे जब अच्छे लोग पॉलिटिक्स जैसी जगहों को छोड़ने लगते हैं तो बुरे लोग आकर वहां बैठेंगे ही. एक अच्छे सोच के साथ, ईमानदारी से, सेवा भाव के साथ राजनीति करना चाहती हूं. विकास के काम, योजना नीति सब पर में काम कर रही हूं.

सवाल- जमुई में जहां की आप विधायक हैं वहां के बच्चे आपको विधायक दीदी कहते हैं और वहां आपने स्पोर्ट्स के कई काम किए हैं.

श्रेयसी सिंह - जमुई हमारा घर है तो, जाहिर सी बात है जो कम उम्र के बच्चे हैं जो लड़कियां हैं. वह मुझे दीदी कहती हैं. उनको अच्छा भी लगता है कि पहली बार किसी को विधायक दीदी कह कर बुलाते हैं. नहीं तो बहुत सारे पुरुष होते हैं जो पॉलिटिक्स में आते हैं तो दादा या भाई साहब कहलाते हैं लेकिन, दीदी एक युवाओं से जुड़ने का मौका भी मिलता है तो, मुझे बहुत अच्छा लगता है.

सवाल - आपकी बहन भी शूटिंग करती हैं?

श्रेयसी सिंह - मेरी बहन मानसी सिंह ने बहुत समय तक शौकिया निशानेबाजी की है. जूनियर टीम की हिस्सा रही. नेशनल लेवल पर उन्होंने पदक भी जीता लेकिन, उनका ध्यान ज्यादा पढ़ाई की तरफ रहता था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद जेएनयू से उन्होंने पॉलिटिकल साइंस भी पढ़ा और उन्होंने फिर लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स से सोशियो इकोनामिक पॉलिसी भी पढी. उसके बाद वह ट्रांसजेंडर राइट्स के लिए काम करती हैं. पिताजी ने कहा था कि स्पोर्टस करना है उसमें आपको कोई रोकेगा नहीं, स्पोर्टस के साथ-साथ पढ़ाई भी करनी है. जितना आपका ध्यान खेल में है. उतना ध्यान आपका पढ़ाई में भी रहना चाहिए.

सवाल- आप विधायक बन चुकी हैं कई बार आपका नाम मंत्री मंत्री बनने के रेस में आया लेकिन, अब तक पूरा नहीं हो पाया, यह भी लक्ष्य है.

श्रेयसी सिंह - मंत्नी बनना, ना बनाना यह हमारे हाथ में तो है नहीं. यह शिर्ष नेतृत्व के ऊपर निर्भर करता है. यह कोई लक्ष्य नहीं है. लक्ष्य में वह है जो आप अपने लिए डिसाइड करते हैं. चुनाव लड़कर जीतना मेरा लक्ष्य हो सकता है. लोगों के बीच में, लोगों के दिल में, जगह बनाना, उनसे सम्मान पाना, हमारा लक्ष्य हो सकता है लेकिन, किस पद पर मुझे शिर्ष नेतृत्व बैठाएगा यह उनका फैसला है. वह मेरा लक्ष्य कभी नहीं रहा है.

सवाल- शादी ब्याह करने का कब तक इरादा है?

श्रेयसी सिंह - देखिए सही व्यक्ति का इंतजार है और मैं शादी जैसी व्यवस्था में विश्वास करती हूं और वक्त आने पर यह शादी हो जाएगी.

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