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एससी एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर पर बिहार में राजनीति शुरू, 2025 के लिए मिला मुद्दा - Sub Category For Reservation - SUB CATEGORY FOR RESERVATION

Sub Category For Reservation : सर्वोच्च अदालत ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर 1 अगस्त को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने साल 2004 के ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के खंडपीठ के द्वारा दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के पुराने फैसले को पलटते हुए एसएसी-एसटी के आरक्षण में कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार राज्यों को दे दिया है. इस फैसले से बिहार में सियासी सुगबुगाहट शुरू हो गई है.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 3, 2024, 10:42 PM IST

एससी एसटी में क्रीमीलेयर पर सियासी गुणा गणित (ETV Bharat)

पटना : सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को कोटे के भीतर कोटा देने और क्रीमी लेयर का आरक्षण समाप्त करने का सुझाव दिया है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सभी अनुसूचित जातियां और जनजातियां एक समान वर्ग नहीं है. इसके अंदर एक जाति दूसरे से ज्यादा पिछड़ी हो सकती है. इसलिए उनके उत्थान के लिए राज्य सरकार सब-क्लासिफिकेशन कर अलग से आरक्षण दे सकती है. इसके साथ ही अदालत ने एससी, एसटी वर्ग के आरक्षण से क्रीमीलेयर को चिह्नित कर बाहर करने की जरूरत पर भी जोर दिया है.

आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ किसे मिला : बिहार में एससी कैटेगरी में 22 जाति शामिल हैं. जिसमें राजनीतिक रूप से देखा जाए तो पासवान, रविदास यानी चमार, मांझी, धोबी एवं चौपाल अन्य जातियों की अपेक्षा मजबूत स्थिति में है. आर्थिक रूप हो या राजनीतिक क्षेत्र सबों में इनका प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है, लेकिन इसके अलावे अन्य जातियों को जितना लाभ मिलना चाहिए उतना लाभ नहीं मिला है. जहां तक ST की बात है इसमें कुल 23 जाति शामिल है. लेकिन आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से मात्र कुछ जातियों का विकास हो पाया है. जिसमें बरायिक, खरवार एवं गोंड शामिल है. इसके अलावा अन्य जातियों को जितना लाभ मिलना चाहिए उनका लाभ नहीं मिल सका है.

Sub Category For Reservation
Sub Category For Reservation (ETV Bharat)

बिहार में SC की जातियां: बिहार की 22 अनुसूचित जाति है. राज्य की अनुसूचित जाति में बंतार, बौरी, भोगता, भुईया, चमार, मोची, चौपाल, दबगर, धोबी, डोम, धनगड, (पासवान) दुसाध, कंजर, कुररियार, धारी, धारही, घासी, हलालखोर, हरि, मेहतर, भंगी और लालबेगी शामिल हैं.

बिहार में ST की जातियां : बिहार की अनुसूचित जनजाति ST में असुर, अगरिया, बैगा, करमाली, खरिया, धेलकी खरिया, दूध खरिया, बेदिया, बिनझिया, बिरहोर, बिरजिया, चेरो, चिक, बराइक, बरैक, गोंड, गोरेत, हो, हिल खरिया, खरवार, खोंड और नगेसिया शामिल हैं.

बिहार में जाति आधारित कैटेगरी : बिहार सरकार ने पिछले साल जातिगत जनगणना करवाई थी. बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की 13 करोड़ से ज्यादा आबादी में 27% पिछड़ा वर्ग, 36% अति पिछड़ा वर्ग, 19% अनुसूचित जाति और 1.68 % अनुसूचित जनजाति है. रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद बिहार में आरक्षण के दायरा बढ़ाने की मांग को लेकर सियासत शुरू हुई. जातिगत जनगणना के बाद बनी नई ईबीसी कैटेगरी यानी अति पिछड़ा वर्ग की राजनीति तेज हो गई थी.

बिहार सरकार ने आरक्षण बढ़ाया : बिहार सरकार ने बिहार में आरक्षण का कोटा 65% तक बढ़ा दिया, जिस पर पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी. यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के अधीन चल रहा है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने एससी-एसटी को लेकर जो निर्णय दिया है, उस पर एक बार फिर से बिहार में सियासत शुरू हो गई है.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (File Photo)

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सियासत : सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के द्वारा दिए गए निर्णय के बाद नेताओं की प्रतिक्रिया सामने आई है. एससी-एसटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के द्वारा दिए गए निर्णय के बाद इस पर सियासत शुरू हो गई है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से सहमत नहीं है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान खुलकर कोर्ट केस निर्णय पर अपना आपत्ति जाता दिया है. इसे लेकर पुनर्विचार याचिका दायर करने की घोषणा चिराग की ओर से की गई है.

''पार्टी के संस्थापक पद्म भूषण रामविलास पासवान भी इस बात की मांग करते आए हैं कि जब तक समझ में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ छुआछूत जैसी प्रथा है, तब तक एससी एसटी श्रेणियां को सब कैटिगरी में आरक्षण एवं क्रीमीलेयर जैसे प्रावधान न हो. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह करती है कि फैसले का पुनर्विचार किया जाए ताकि एससी एसटी समाज में भेदभाव न उत्पन्न हो और समाज को कमजोर न किया जा सके.''- चिराग पासवान, अध्यक्ष, लोक जनशक्ति पार्टी

चिराग पासवान, केंद्रीय मंत्री
चिराग पासवान, केंद्रीय मंत्री (ETV Bharat)

राजद भी इस निर्णय से असहमत : सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए गए निर्णय का आरजेडी के नेता भी विरोध कर रहे हैं. आरजेडी विधायक सतीश दास ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय किसी डेटा के आधार पर नहीं दिया गया है. यह आरक्षण की मूल धारणा के खिलाफ दिया हुआ फैसला है. आरक्षण का मूल धारणा था कि उसे सामाजिक रूप से उचित प्रतिनिधित्व मिल सके.

''यदि वर्गीकरण को ही आधार माना जाए तो सवर्णों में भी यह लागू हो कि किस जाति की कितनी आबादी है और उनका किंतना प्रतिनिधित्व है. सुप्रीम कोर्ट को यह कहना चाहिए था कि एससी-एसटी के वैसे वर्गों को जिनका विकास अभी तक नहीं हो पाया है, उसके लिए सरकार को अलग से व्यवस्था करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की परिकल्पना के विपरीत है.''- सतीश दास, विधायक, आरजेडी

आरक्षण व्यवस्था गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं : सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय पर बिहार सरकार के डेडीकेटेड कमीशन के पूर्व सदस्य और जदयू नेता अरविंद निषाद का कहना है कि जिस काम की पहल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति सर्वेक्षण करवा के कहा आज सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में कोटा की बात कही है, उसमें जाति सर्वेक्षण का अहम रोल है. देश में किस जाति का कितना विकास हुआ है, जिसका डेटा नहीं रहेगा तो कैसे पता चलेगा कि कि किसका कितना विकास हुआ. देश में जाति एक सच्चाई है, जिसे जानने की आवश्यकता है.

कौन सी जाति किस पायदान पर पहुंची है? : हमारे संविधान निर्माता ने परिकल्पना की थी कि गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम आरक्षण व्यवस्था नहीं है. आरक्षण की व्यवस्था प्रतिनिधित्व का सवाल है. आरक्षण एक व्यवस्था के तहत दिया गया. पिछड़े समाज के लोगों को अनुसूचित जाति जनजाति में अनटचेबिलिटी के आधार पर आरक्षण दिया गया था. पिछड़े वर्ग में सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर जो पिछड़े रह गए थे ऐसे वर्गों के लिए आरक्षण दिया गया था.

अरविंद निषाद का कहना है कि आज सुप्रीम कोर्ट कोटा में कोटा की बात कर रही है. उसमें क्रिमिलेयर की बात कर रही है. मैं समझता हूं कि जो संविधान में व्यवस्था है, उसी व्यवस्था से आज तक इस देश में आरक्षण लागू था. लेकिन क्रिमिलेयर का जहां तक सवाल है सरकार के मंतव्य के ऊपर हमारी पार्टी ने छोड़ा है. मैं समझता हूं कि भारत सरकार इस पर निर्णय लेगी की क्या करना है.

''बिहार सरकार ने जाति आधारित सर्वे कराया उसमें सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक तीनों चीजों का अध्ययन किया. उसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक किया. यही तो मैं कह रहा हूं कि देश में आज इसकी आवश्यकता है कि किस जाति की क्या अवस्था है? उसको जनने की आज जरूरत है. लेकिन आरक्षण की जो मूलभूत संरचना है, आरक्षण जिस व्यवस्था पर लागू की गई है अनटचेबिलिटी और सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टिकोण से उसकी भी विवेचना की जानी चाहिए.''- अरविंद निषाद, जेडीयू नेता

क्या कहते हैं जानकार? : राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार का कहना है कि एक बड़ा ही रिवॉल्यूशनरी फैसला है. अगर बिहार के स्पेसिफिक प्रोस्पेक्ट में अगर आप देखेंगे तो शेड्यूल कास्ट की 22 जाति हैंं. नीतीश कुमार जी ने जब महादलित बनाया तो पहले उसमें 18 जातियों को जोड़ा. बाद में फिर उन्होंने तीन जातियों को रखा, तो 21 जातियां हो गई. एक पासवान जाति को उन्होंने छोड़ दिया, बाद में जब एक दबाव बना तो फिर उन्होंने शामिल कर लिया.

''सवाल यह उठता है कि दलितों में कितनी जातियां हैं जो मुखर हैं? जिनके शैक्षणिक और आर्थिक हालात बदल चुके हैं? बिहार में अनेक ऐसी जातियां हैं शेड्यूल कास्ट में जो अभी हाशिए पर हैं. जिनके बच्चे अभी भी स्कूल नहीं जाते हैं, जो अभी भी रिजर्वेशन के महत्व को नहीं समझते हैं. सरकार को ऐसे लोगों का साइंटिफिक डाटा इकट्ठा करना चाहिए जिसको आरक्षण का लाभ दिया जा सके. राजनीतिक रूप से ताकतवर कुछ जातियों को यदि इसका लाभ मिले तो इसको भी रिव्यू होने की बात कही गई है.''- संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

आरक्षण के लिए गठित आयोग : देश में आरक्षण को लेकर समय-समय पर कई अयोग का गठन किया गया. इसके पीछे का मकसद था कि सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोग को मुख्य धारा के साथ जोड़ना. देश में पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की मांग बहुत दिनों से हो रही थी. बीपी मंडल की अध्यक्षता में मंडल आयोग का गठन वर्ष 1979 में किया गया. इस आयोग के गठन का उद्देश्य सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की पहचान करना था.

1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिये सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई. रिपोर्ट पेश करने के 10 वर्षों के बाद 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया. जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राजनीति में व्यापक बदलाव आया.

रोहिणी आयोग का गठन : दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी की अध्यक्षता में रोहिणी आयोग का गठन 2 अक्टूबर, 2017 को की गई थी. इस आयोग में चार सदस्य शामिल थे. इस आयोग के गठन का उद्देश्य भारत में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण लाभ किनको मिल रहा है, इसका आकलन करना था. 2018 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी.

रोहिणी आयोग के द्वारा ओबीसी के लिए आरक्षित 130,000 से ज्यादा सरकारी नौकरियों और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश का अध्ययन किया गया. इस जांच में पता चला कि 97% आरक्षित अवसरों को 25% ओबीसी उप-जातियों ने ले लिया, जिससे 983 समुदायों (ओबीसी का 37%) को कुछ भी नहीं यानी 0 प्रतिनिधित्व मिला. 994 जातियों को केवल 2.68% आरक्षण का लाभ मिला.

7 जजों की संविधान पीठ का फैसला : एक अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया. देश के सर्वोच्च अदालत की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य सरकार एससी एसटी वर्ग के ही ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए राज्य उपवर्गीकरण कर सकते हैं. इसके साथ ही कोर्ट ने एससी एसटी वर्ग के आरक्षण में से क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किए जाने की जरूरत पर सुझाव दिया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा की सात सदस्यीय पीठ ने इस मुद्दे पर लंबित करीब दो दर्जन याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया.

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आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ किसे मिला : बिहार में एससी कैटेगरी में 22 जाति शामिल हैं. जिसमें राजनीतिक रूप से देखा जाए तो पासवान, रविदास यानी चमार, मांझी, धोबी एवं चौपाल अन्य जातियों की अपेक्षा मजबूत स्थिति में है. आर्थिक रूप हो या राजनीतिक क्षेत्र सबों में इनका प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है, लेकिन इसके अलावे अन्य जातियों को जितना लाभ मिलना चाहिए उतना लाभ नहीं मिला है. जहां तक ST की बात है इसमें कुल 23 जाति शामिल है. लेकिन आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से मात्र कुछ जातियों का विकास हो पाया है. जिसमें बरायिक, खरवार एवं गोंड शामिल है. इसके अलावा अन्य जातियों को जितना लाभ मिलना चाहिए उनका लाभ नहीं मिल सका है.

Sub Category For Reservation
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बिहार में SC की जातियां: बिहार की 22 अनुसूचित जाति है. राज्य की अनुसूचित जाति में बंतार, बौरी, भोगता, भुईया, चमार, मोची, चौपाल, दबगर, धोबी, डोम, धनगड, (पासवान) दुसाध, कंजर, कुररियार, धारी, धारही, घासी, हलालखोर, हरि, मेहतर, भंगी और लालबेगी शामिल हैं.

बिहार में ST की जातियां : बिहार की अनुसूचित जनजाति ST में असुर, अगरिया, बैगा, करमाली, खरिया, धेलकी खरिया, दूध खरिया, बेदिया, बिनझिया, बिरहोर, बिरजिया, चेरो, चिक, बराइक, बरैक, गोंड, गोरेत, हो, हिल खरिया, खरवार, खोंड और नगेसिया शामिल हैं.

बिहार में जाति आधारित कैटेगरी : बिहार सरकार ने पिछले साल जातिगत जनगणना करवाई थी. बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की 13 करोड़ से ज्यादा आबादी में 27% पिछड़ा वर्ग, 36% अति पिछड़ा वर्ग, 19% अनुसूचित जाति और 1.68 % अनुसूचित जनजाति है. रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद बिहार में आरक्षण के दायरा बढ़ाने की मांग को लेकर सियासत शुरू हुई. जातिगत जनगणना के बाद बनी नई ईबीसी कैटेगरी यानी अति पिछड़ा वर्ग की राजनीति तेज हो गई थी.

बिहार सरकार ने आरक्षण बढ़ाया : बिहार सरकार ने बिहार में आरक्षण का कोटा 65% तक बढ़ा दिया, जिस पर पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी. यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के अधीन चल रहा है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने एससी-एसटी को लेकर जो निर्णय दिया है, उस पर एक बार फिर से बिहार में सियासत शुरू हो गई है.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (File Photo)

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सियासत : सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के द्वारा दिए गए निर्णय के बाद नेताओं की प्रतिक्रिया सामने आई है. एससी-एसटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के द्वारा दिए गए निर्णय के बाद इस पर सियासत शुरू हो गई है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से सहमत नहीं है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान खुलकर कोर्ट केस निर्णय पर अपना आपत्ति जाता दिया है. इसे लेकर पुनर्विचार याचिका दायर करने की घोषणा चिराग की ओर से की गई है.

''पार्टी के संस्थापक पद्म भूषण रामविलास पासवान भी इस बात की मांग करते आए हैं कि जब तक समझ में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ छुआछूत जैसी प्रथा है, तब तक एससी एसटी श्रेणियां को सब कैटिगरी में आरक्षण एवं क्रीमीलेयर जैसे प्रावधान न हो. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह करती है कि फैसले का पुनर्विचार किया जाए ताकि एससी एसटी समाज में भेदभाव न उत्पन्न हो और समाज को कमजोर न किया जा सके.''- चिराग पासवान, अध्यक्ष, लोक जनशक्ति पार्टी

चिराग पासवान, केंद्रीय मंत्री
चिराग पासवान, केंद्रीय मंत्री (ETV Bharat)

राजद भी इस निर्णय से असहमत : सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए गए निर्णय का आरजेडी के नेता भी विरोध कर रहे हैं. आरजेडी विधायक सतीश दास ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय किसी डेटा के आधार पर नहीं दिया गया है. यह आरक्षण की मूल धारणा के खिलाफ दिया हुआ फैसला है. आरक्षण का मूल धारणा था कि उसे सामाजिक रूप से उचित प्रतिनिधित्व मिल सके.

''यदि वर्गीकरण को ही आधार माना जाए तो सवर्णों में भी यह लागू हो कि किस जाति की कितनी आबादी है और उनका किंतना प्रतिनिधित्व है. सुप्रीम कोर्ट को यह कहना चाहिए था कि एससी-एसटी के वैसे वर्गों को जिनका विकास अभी तक नहीं हो पाया है, उसके लिए सरकार को अलग से व्यवस्था करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की परिकल्पना के विपरीत है.''- सतीश दास, विधायक, आरजेडी

आरक्षण व्यवस्था गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं : सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय पर बिहार सरकार के डेडीकेटेड कमीशन के पूर्व सदस्य और जदयू नेता अरविंद निषाद का कहना है कि जिस काम की पहल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति सर्वेक्षण करवा के कहा आज सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में कोटा की बात कही है, उसमें जाति सर्वेक्षण का अहम रोल है. देश में किस जाति का कितना विकास हुआ है, जिसका डेटा नहीं रहेगा तो कैसे पता चलेगा कि कि किसका कितना विकास हुआ. देश में जाति एक सच्चाई है, जिसे जानने की आवश्यकता है.

कौन सी जाति किस पायदान पर पहुंची है? : हमारे संविधान निर्माता ने परिकल्पना की थी कि गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम आरक्षण व्यवस्था नहीं है. आरक्षण की व्यवस्था प्रतिनिधित्व का सवाल है. आरक्षण एक व्यवस्था के तहत दिया गया. पिछड़े समाज के लोगों को अनुसूचित जाति जनजाति में अनटचेबिलिटी के आधार पर आरक्षण दिया गया था. पिछड़े वर्ग में सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर जो पिछड़े रह गए थे ऐसे वर्गों के लिए आरक्षण दिया गया था.

अरविंद निषाद का कहना है कि आज सुप्रीम कोर्ट कोटा में कोटा की बात कर रही है. उसमें क्रिमिलेयर की बात कर रही है. मैं समझता हूं कि जो संविधान में व्यवस्था है, उसी व्यवस्था से आज तक इस देश में आरक्षण लागू था. लेकिन क्रिमिलेयर का जहां तक सवाल है सरकार के मंतव्य के ऊपर हमारी पार्टी ने छोड़ा है. मैं समझता हूं कि भारत सरकार इस पर निर्णय लेगी की क्या करना है.

''बिहार सरकार ने जाति आधारित सर्वे कराया उसमें सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक तीनों चीजों का अध्ययन किया. उसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक किया. यही तो मैं कह रहा हूं कि देश में आज इसकी आवश्यकता है कि किस जाति की क्या अवस्था है? उसको जनने की आज जरूरत है. लेकिन आरक्षण की जो मूलभूत संरचना है, आरक्षण जिस व्यवस्था पर लागू की गई है अनटचेबिलिटी और सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टिकोण से उसकी भी विवेचना की जानी चाहिए.''- अरविंद निषाद, जेडीयू नेता

क्या कहते हैं जानकार? : राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार का कहना है कि एक बड़ा ही रिवॉल्यूशनरी फैसला है. अगर बिहार के स्पेसिफिक प्रोस्पेक्ट में अगर आप देखेंगे तो शेड्यूल कास्ट की 22 जाति हैंं. नीतीश कुमार जी ने जब महादलित बनाया तो पहले उसमें 18 जातियों को जोड़ा. बाद में फिर उन्होंने तीन जातियों को रखा, तो 21 जातियां हो गई. एक पासवान जाति को उन्होंने छोड़ दिया, बाद में जब एक दबाव बना तो फिर उन्होंने शामिल कर लिया.

''सवाल यह उठता है कि दलितों में कितनी जातियां हैं जो मुखर हैं? जिनके शैक्षणिक और आर्थिक हालात बदल चुके हैं? बिहार में अनेक ऐसी जातियां हैं शेड्यूल कास्ट में जो अभी हाशिए पर हैं. जिनके बच्चे अभी भी स्कूल नहीं जाते हैं, जो अभी भी रिजर्वेशन के महत्व को नहीं समझते हैं. सरकार को ऐसे लोगों का साइंटिफिक डाटा इकट्ठा करना चाहिए जिसको आरक्षण का लाभ दिया जा सके. राजनीतिक रूप से ताकतवर कुछ जातियों को यदि इसका लाभ मिले तो इसको भी रिव्यू होने की बात कही गई है.''- संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

आरक्षण के लिए गठित आयोग : देश में आरक्षण को लेकर समय-समय पर कई अयोग का गठन किया गया. इसके पीछे का मकसद था कि सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोग को मुख्य धारा के साथ जोड़ना. देश में पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की मांग बहुत दिनों से हो रही थी. बीपी मंडल की अध्यक्षता में मंडल आयोग का गठन वर्ष 1979 में किया गया. इस आयोग के गठन का उद्देश्य सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की पहचान करना था.

1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिये सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई. रिपोर्ट पेश करने के 10 वर्षों के बाद 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया. जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राजनीति में व्यापक बदलाव आया.

रोहिणी आयोग का गठन : दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी की अध्यक्षता में रोहिणी आयोग का गठन 2 अक्टूबर, 2017 को की गई थी. इस आयोग में चार सदस्य शामिल थे. इस आयोग के गठन का उद्देश्य भारत में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण लाभ किनको मिल रहा है, इसका आकलन करना था. 2018 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी.

रोहिणी आयोग के द्वारा ओबीसी के लिए आरक्षित 130,000 से ज्यादा सरकारी नौकरियों और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश का अध्ययन किया गया. इस जांच में पता चला कि 97% आरक्षित अवसरों को 25% ओबीसी उप-जातियों ने ले लिया, जिससे 983 समुदायों (ओबीसी का 37%) को कुछ भी नहीं यानी 0 प्रतिनिधित्व मिला. 994 जातियों को केवल 2.68% आरक्षण का लाभ मिला.

7 जजों की संविधान पीठ का फैसला : एक अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया. देश के सर्वोच्च अदालत की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य सरकार एससी एसटी वर्ग के ही ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए राज्य उपवर्गीकरण कर सकते हैं. इसके साथ ही कोर्ट ने एससी एसटी वर्ग के आरक्षण में से क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किए जाने की जरूरत पर सुझाव दिया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा की सात सदस्यीय पीठ ने इस मुद्दे पर लंबित करीब दो दर्जन याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया.

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