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ये मधुमक्खी डंक नहीं मारती, घर में पालें तो होगा लाखों का फायदा - Bhopal youth keeps bees on roof

भोपाल के एक युवा उद्यमी ने देसी मधुमक्खी को बढ़ावा देने अपने घर से मधुमक्खी पालन की शुरुआत की है. इस शख्स ने अपने घर की छत पर देसी मधुमक्खी के छत्ते लगा लिए हैं. इससे शहद उत्पादन भी आसान होा और इन मधुमक्खियों में डंक नहीं होता, लिहाजा इनसे किसी तरह का खतरा भी नहीं होता.

Bhopal youth keeps bees on roof
भोपाल के युवा उद्यमी का कमाल, घर में लगाए मधुमक्खी का छत्ता, ये है कारण
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 12, 2024, 8:08 PM IST

Updated : Apr 15, 2024, 7:51 AM IST

भोपाल। मधुमक्खी का नाम सुनते ही लोगों के मन में उनके डंक मारने का डर सताने लगता है, लेकिन आज हम ऐसी मधुमक्खी की बात कर रहे हैं, जिसका पालन आप अपने घर की छत और टेरेस पर आसानी से कर सकते हैं. साथ ही इनके डंक नहीं होने से काटने का खतरा भी नहीं होता है. इस ट्राइगोन प्रजाति की मधुमक्खी को लोग शहर में स्थित छोटे घरों में भी पालन कर सकते हैं. ऐसा ही कुछ कारनामा राजधानी भोपाल के एक युवा उद्यमी ने कर दिखाया है. जिसने अपने घर की छत पर मधुमक्खी पालन किया हुआ है.

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4 से 5 हजार रुपये किलो बिकता है शहद

बाजार में अमूमन शहद की कीमत 300 से 500 रुपये के बीच होती है, लेकिन इस देशी मधुमक्खी का शहद 4 से 5 हजार रुपये किलो बिकता है. इसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, हालांकि एक साल में एक छत्ते से 300 से 400 ग्राम शहद ही प्राप्त होता है.

एमपी में पाई जाती है 5 प्रकार की मधुमक्खियां

दरअसल एमपी में पांच प्रकार की मधुमक्खियां पाई जाती हैं. इनमें दो प्रकार की मधुमक्खी जंगली होती है, इनका पालन नहीं किया जाता है. वहीं तीन प्रकार की मधुमक्खियों का पालन होता है. इनमें मालीफेरा, सतपुड़ी और ट्राइगोन शामिल है, लेकिन ट्राइगोन को छोड़कर अन्य मधुमक्खियों में डंक होता है.

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कीट नाशक का इस्तेमाल भी नहीं करना होगा

ट्राइगोन मधुमक्खी 300 से 400 मीटर के दायरे में भ्रमण करती है. इनका छत्ता लोग बालकनी, छत, गार्डन या टेरेस में लगाते हैं. खास बात यह है कि इनमें परागण के बाद सब्जियों और फलों की उत्पादकता तो बढ़ती ही है, साथ ही पौधों में कीटनाशक का इस्तेमाल भी नहीं करना पड़ता है.

अर्बन बीकीपिंग कितनी सुरक्षित है

स्टिंगलेस ट्राइगोन प्रजाति की मधुमक्खी को शहरी स्थानों में पालना बिलकुल सुरक्षित है. इस प्रजाति की मधुमक्खी में डंक नहीं होता है और यह 300-500 मीटर की दूरी तक फूलों और वनस्पतियों से रस, पराग आदि को एकत्रित कर उत्तम गुणवत्ता की शहद और पराग को तैयार करती है. साथ ही यह परागण क्रिया में बढ़ोतरी करती है. जिससे हमारे पेड़-पौधे में अधिक फल-फूल और गुणवता वाले तैयार होते है.

शहरी कृषि और हरियाली के लिए महत्वपूर्ण है मधुमक्खियां

अर्बन बी-कीपिंग शहरी कृषि और बगीचों को परागित करके शहर के लोगों को स्थानीय रूप से उत्पादित शहद प्रदान करके स्थानीय खाद्य प्रणालियों के निर्माण में मदद करता है. ज्ञात हो की मधुमक्खियां 85 से अधिक प्रकार की विभिन्न फसलों के परागण के लिए हमारी खाद्य प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

यहां पढ़ें...

मधुमक्खी ने कैसे ले ली युवक की जान, पुलिस को हजम नहीं हो रही बात,अब है इस रिपोर्ट का इंतजार

मधुमक्खी के डंक से पुरानी बीमारियां गायब, बी-थेरेपी फिर हो रही लोकप्रिय, जानें कैसे होता है जहर से इलाज

बी फ्रेंडली पौधों को लगाएं

मधुमक्खी को भी कुछ विशेष वनस्पतियां और पेड़-पौधे बहुत पसंद रहते हैं. यह पेड़-पौधे फल, फूल, सब्जियों, औषधीय एवं सुगंधित वनस्पतियां आदि हो सकती है. आजकल शहरों में लोग अपने घरों में बागबानी का शौक रखते हैं. जिसमें कई प्रकार के फूल वाले पौधे, फलों के पौधे, सब्जियां या फिर माइक्रोग्रीन्स आदि को लगाते हैं. इस तरह की वनस्पतियां इन परागण करने वाले कीटों को बहुत पसंद आती है. अब हम सभी की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है की इन जीवों की रक्षा के लिए हम सतत प्रयास करें और लोगों को भी जागरूक करते रहें. तभी इन परागण करने वाले जीवों के संरक्षण में हम अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकेंगे.

भोपाल। मधुमक्खी का नाम सुनते ही लोगों के मन में उनके डंक मारने का डर सताने लगता है, लेकिन आज हम ऐसी मधुमक्खी की बात कर रहे हैं, जिसका पालन आप अपने घर की छत और टेरेस पर आसानी से कर सकते हैं. साथ ही इनके डंक नहीं होने से काटने का खतरा भी नहीं होता है. इस ट्राइगोन प्रजाति की मधुमक्खी को लोग शहर में स्थित छोटे घरों में भी पालन कर सकते हैं. ऐसा ही कुछ कारनामा राजधानी भोपाल के एक युवा उद्यमी ने कर दिखाया है. जिसने अपने घर की छत पर मधुमक्खी पालन किया हुआ है.

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4 से 5 हजार रुपये किलो बिकता है शहद

बाजार में अमूमन शहद की कीमत 300 से 500 रुपये के बीच होती है, लेकिन इस देशी मधुमक्खी का शहद 4 से 5 हजार रुपये किलो बिकता है. इसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, हालांकि एक साल में एक छत्ते से 300 से 400 ग्राम शहद ही प्राप्त होता है.

एमपी में पाई जाती है 5 प्रकार की मधुमक्खियां

दरअसल एमपी में पांच प्रकार की मधुमक्खियां पाई जाती हैं. इनमें दो प्रकार की मधुमक्खी जंगली होती है, इनका पालन नहीं किया जाता है. वहीं तीन प्रकार की मधुमक्खियों का पालन होता है. इनमें मालीफेरा, सतपुड़ी और ट्राइगोन शामिल है, लेकिन ट्राइगोन को छोड़कर अन्य मधुमक्खियों में डंक होता है.

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कीट नाशक का इस्तेमाल भी नहीं करना होगा

ट्राइगोन मधुमक्खी 300 से 400 मीटर के दायरे में भ्रमण करती है. इनका छत्ता लोग बालकनी, छत, गार्डन या टेरेस में लगाते हैं. खास बात यह है कि इनमें परागण के बाद सब्जियों और फलों की उत्पादकता तो बढ़ती ही है, साथ ही पौधों में कीटनाशक का इस्तेमाल भी नहीं करना पड़ता है.

अर्बन बीकीपिंग कितनी सुरक्षित है

स्टिंगलेस ट्राइगोन प्रजाति की मधुमक्खी को शहरी स्थानों में पालना बिलकुल सुरक्षित है. इस प्रजाति की मधुमक्खी में डंक नहीं होता है और यह 300-500 मीटर की दूरी तक फूलों और वनस्पतियों से रस, पराग आदि को एकत्रित कर उत्तम गुणवत्ता की शहद और पराग को तैयार करती है. साथ ही यह परागण क्रिया में बढ़ोतरी करती है. जिससे हमारे पेड़-पौधे में अधिक फल-फूल और गुणवता वाले तैयार होते है.

शहरी कृषि और हरियाली के लिए महत्वपूर्ण है मधुमक्खियां

अर्बन बी-कीपिंग शहरी कृषि और बगीचों को परागित करके शहर के लोगों को स्थानीय रूप से उत्पादित शहद प्रदान करके स्थानीय खाद्य प्रणालियों के निर्माण में मदद करता है. ज्ञात हो की मधुमक्खियां 85 से अधिक प्रकार की विभिन्न फसलों के परागण के लिए हमारी खाद्य प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

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बी फ्रेंडली पौधों को लगाएं

मधुमक्खी को भी कुछ विशेष वनस्पतियां और पेड़-पौधे बहुत पसंद रहते हैं. यह पेड़-पौधे फल, फूल, सब्जियों, औषधीय एवं सुगंधित वनस्पतियां आदि हो सकती है. आजकल शहरों में लोग अपने घरों में बागबानी का शौक रखते हैं. जिसमें कई प्रकार के फूल वाले पौधे, फलों के पौधे, सब्जियां या फिर माइक्रोग्रीन्स आदि को लगाते हैं. इस तरह की वनस्पतियां इन परागण करने वाले कीटों को बहुत पसंद आती है. अब हम सभी की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है की इन जीवों की रक्षा के लिए हम सतत प्रयास करें और लोगों को भी जागरूक करते रहें. तभी इन परागण करने वाले जीवों के संरक्षण में हम अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकेंगे.

Last Updated : Apr 15, 2024, 7:51 AM IST
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