पटना: भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर को उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई. भिखारी ठाकुर कवि, गीतकार ,नाटककार ,निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता के रूप में जाने जाते हैं. महान कलाकार की वजह से भोजपुरी भाषा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली.
भिखारी ठाकुर की 137वीं जयंती: 18 दिसंबर 1887 को शाहाबाद प्रेसीडेंसी अर्थात सारण जिले के दियारा इलाका स्थित कुतुबपुर गांव में जन्मे भिखारी ठाकुर संघर्ष की उपज थे. भिखारी ठाकुर भोजपुरी के लोक कलाकार, रंगकर्मी ,लोकगीत और भजन कीर्तन के बड़े साधक थे. भिखारी ठाकुर की 137वीं जयंती के मौके पर आज सभी उन्हें नमन कर रहे हैं.
नाई का काम करते थे भिखारी ठाकुर: भिखारी ठाकुर एक नाई परिवार से आते थे और उनके पिताजी का नाम सिंगर ठाकुर था. रोजी-रोटी के लिए परिवार के लोग नाई का काम करते थे. भिखारी ठाकुर को भोजपुरी भाषा और संस्कृति का बड़ा झंडा वाहक के रूप में जाना जाता है.
रोजी-रोटी के लिए बंगाल गए: भिखारी ठाकुर को नृत्य, गायन, नाटक और रामलीला में बेहद दिलचस्पी थी. बगैर माता-पिता को बताए भिखारी ठाकुर नाटक मंडली में चले जाते थे. घर से उन्हें इस बात के लिए इजाजत नहीं मिलती थी. धीरे धीरे भिखारी ठाकुर के अंदर कला का विकास होता चला गया और बाद में उन्होंने एक नाटक मंडली बना ली. इन सब के बीच भिखारी ठाकुर रोजी-रोटी के लिए पश्चिम बंगाल चले गए. भिखारी ठाकुर खड़गपुर में लंबे समय तक रहे और वहां धन का उपार्जन किया.
विदेशों में नाटक का मंचन: भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी भाषा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में भूमिका निभाई. अपने समय में भिखारी ठाकुर और भोजपुरी भाषा एक दूसरे के पर्याय थे. भिखारी ठाकुर के नाटक घूमते गांव और ग्रामीण समाज के चारों ओर विकसित हुए. अपनी कला के चलते भिखारी ठाकुर कोलकाता, पटना, बनारस इलाके में प्रचलित हुए. भिखारी ठाकुर की नाटक मॉरीशस, केन्या, सिंगापुर, नेपाल, ब्रिटिश गुयाना, सूरीनाम ,युगांडा, म्यांमार, मेडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका और त्रिनिदाद जैसे शहर तक पहुंची और भोजपुरी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली.
भिखारी ठाकुर के प्रसिद्ध नाटक: चर्चित विद्वान राहुल सांकृत्यायन ने भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर और अनपढ़ हीरा की संज्ञा दी थी. भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले महान कवि गीतकार एवं नाटककार भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे. प्रसिद्ध लोक नाट्य शैली विदेशिया के जनक भिखारी ठाकुर ने विदेशिया बेटी बेचवा, गबरघिचोर जैसे नाटक का मंचन किया. इसके अलावा भिखारी ठाकुर ने बहरा ,बहार ,कलयुग, प्रेम ,गंगा स्नान,पुत्रवधू, विधवा विलाप ,राधेश्याम बहार ,ननद भौजाई आदि नाटक का भी मंचन किया.
राष्ट्रीय समस्याओं पर कराया लोगों का ध्यान आकृष्ट: भिखारी ठाकुर ने तत्कालीन राष्ट्रीय समस्याओं को भी तवज्जो दी और नाटक के जरिए सच्चे राष्ट्रभक्त होने का परिचय दिया. विदेशी सरकार से लड़ने में भी उन्होंने अपनी भूमिका अदा की महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए नशा मुक्ति अभियान को असरदार बनाने के लिए उन्होंने कलयुग प्रेम नाटक का मंचन किया. अपने समय में भिखारी ठाकुर और भोजपुरी एक दूसरे के पर्याय बन चुके थे.
लौंडा नाच को भिखारी ठाकुर ने किया प्रचलित: लौंडा नाच की परंपरा की शुरुआत भी भिखारी ठाकुर द्वारा की गई थी. भिखारी ठाकुर की मंडली में महिलाएं नहीं थी और महिलाओं का नाटक मंडली में आना उसे दौर में सही नहीं माना जाता था. इस वजह से भिखारी ठाकुर ने पुरुष को ही महिला के कपड़े पहनकर और लिपस्टिक लगवा कर मंच पर नाटक का मंचन किया. इस विधा को बाद में लौंडा नाच कहा जाने लगा. लौंडा नाच पुरुषों के द्वारा किया जाता है. भारत नेपाल मॉरीशस और कैरेबियाई द्वीपों में भोजपुरी भाषी समुदाय का यह लोक नृत्य है.
भिखारी ठाकुर की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं जैनेंद्र: भिखारी ठाकुर की मंडली में शामिल कलाकार अब दुनिया में नहीं है. उनकी कला को आगे बढ़ने वालों में डॉक्टर जैनेंद्र का नाम शामिल है. जैनेंद्र ने भिखारी ठाकुर की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए नाटक मंडली बना रखी है, जिसमें युवा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. जैनेंद्र ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से लौंडा नाच और भिखारी ठाकुर पर पीएचडी की उपाधि हासिल की है.
'नाच भिखारी नाच':जैनेंद्र ने भिखारी ठाकुर के रंगसंगी पद्मश्री रामचंद्र मांझी से रंगमंच की बारीकियां को सीखा है. इन्होंने आज तक 15 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया है. इनके द्वारा निर्देशित नाटक भारत के अलग-अलग हिस्सों के अलावा पाकिस्तान ,श्रीलंका, नेपाल और भूटान में प्रदर्शित किया जा चुका है. जैनेंद्र के नाच भिखारी नाच फिल्म का निर्देशन किया था, जिसे गोवा फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित किया जा चुका है.
"भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों से तत्कालीन समस्याओं पर चोट किया. विदेशिया लिखने से पहले भिखारी ठाकुर खुद विदेशिया थे और रोजी-रोटी के लिए वह खड़गपुर गए और वहां दाढ़ी बनाने का काम किया. चुपके से वह नाच पार्टी में जाते थे क्योंकि घर से उन्हें इजाजत नहीं मिलती थी. संघर्ष के बाद 1917 में उन्होंने विदेशिया नाटक लिखा और नाटक का मंचन भी किया.अपने गांव के भगवान शाह बनिया से उन्होंने अक्षर ज्ञान लिया."- डॉक्टर जैनेंद्र, कलाकार
भिखारी ठाकुर के जमाने में महिलाएं इस कला के क्षेत्र में नहीं थीं, लेकिन अब महिलाएं भी नाटक मंडली में शामिल हो रही हैं. ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर चुकी कंचन, भिखारी ठाकुर के कला को आगे बढ़ा रही हैं. इनका कहना है कि भिखारी ठाकुर एक महान कलाकार थे और इनके कला को आगे बढ़ाना मेरे लिए गर्व की बात है.
"इस मंडली से मैं तीन साल से जुड़ी हुई हूं. नाटक को देखकर सुनकर आने की इच्छा हुई. इस कला को आगे तक लेकर जाना ही हमारा उद्देश्य है."- कंचन, कलाकार
"एमफिल की डिग्री हासिल कर चुके हैं. इस कला को आगे बढ़ाने वाले लोग ना के बराबर हैं. हमने सोचा कि भिखारी ठाकुर की इस विधा को आगे बढ़ना चाहिए. 5 साल से इस मंडली में हम काम कर रहे हैं और आगे भी भिखारी ठाकुर की कला को आगे बढ़ाने का काम करेंगे."- सुनील गावस्कर, कलाकार
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