नई दिल्लीः सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम) के दायरे में लाने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया.
यह मामला न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ के समक्ष आया. याचिकाकर्ता योगमाया का प्रतिनिधित्व कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने दलील दी कि राजनीति में महिलाओं की सुरक्षा की आवश्यकता है और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि POSH अधिनियम को राजनीतिक दलों पर भी लागू किया जाना चाहिए.
पीठ ने राजनीतिक दल को दी जाने वाली कानूनी स्थिति और राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत होने के लिए आवश्यक दायित्वों के बारे में पूछा. वकील ने कहा कि उन्हें संवैधानिक आवश्यकताओं का पालन करना होगा और कहा कि उन्हें अपने उद्देश्यों की घोषणा करते हुए एसोसिएशन का ज्ञापन रखना होगा.
वकील ने जोर देकर कहा कि परिभाषा अपने आप में बहुत स्पष्ट है, जो सभी पीड़ित महिलाओं और कार्यस्थलों को कवर करती है. पीठ को बताया गया कि याचिका में मामले में सभी छह राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को प्रतिवादी बनाया गया है.
पीठ ने पूछा कि असंगठित क्षेत्र में शिकायत के मामले में क्या होता है. पीठ को बताया गया कि यह अधिनियम की धारा 2(पी) और 6 के अंतर्गत आता है और कार्यस्थल की परिभाषा में निजी उद्यम, सोसायटी, ट्रस्ट, एनजीओ आदि शामिल हैं.
सुनवाई के दौरान वकील ने कहा कि चुनाव आयोग ही वह प्राधिकरण है जो राजनीतिक दलों पर दबाव डाल सकता है, लेकिन उसे याचिका में पक्ष नहीं बनाया गया है.
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह पहले चुनाव आयोग के समक्ष जाएं. वकील ने इस सुझाव पर सहमति जताई.
प्रतिवेदन सुनने के बाद पीठ ने याचिकाकर्ता को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष जाने की स्वतंत्रता देते हुए याचिका का निपटारा कर दिया. पीठ ने कहा, "यदि याचिकाकर्ता की शिकायत का प्रभावी ढंग से समाधान नहीं किया जाता है, तो वह कानून के अनुसार न्यायिक मंच पर जाने के लिए स्वतंत्र होगी.
"3 दिसंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने एक अलग मामले में, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम) के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कार्यान्वयन के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए.
यह मामला न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष आया. पीठ ने अखिल भारतीय अनुपालन के महत्व पर जोर दिया. न्यायमूर्ति नागरत्ना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि POSH अधिनियम के प्रावधानों को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में समान रूप से लागू किया जाना चाहिए, "यह पूरे देश में किया जाना चाहिए..." सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुपालन 31 मार्च, 2025 तक किया जाना चाहिए और मुख्य सचिवों को इसके निर्देशों के निष्पादन की निगरानी करनी चाहिए.
मई 2023 के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर असंतोष व्यक्त किया था कि POSH अधिनियम के अधिनियमित होने के एक दशक बाद भी इसके प्रभावी प्रवर्तन में गंभीर खामियां बनी हुई हैं.