बेंगलुरु: हाई कोर्ट ने सौतेले पिता द्वारा बेटी के यौन शोषण के मामले और इस संबंध में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही को रद्द करने का आदेश दिया है. न्यायमूर्ति एम.नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने महिला के तीसरे पति के खिलाफ पहले पति द्वारा दायर मामले को रद्द करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई की. परिवार में असमंजस की स्थिति के कारण माता-पिता अपने ही बच्चों पर यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करा रहे हैं. हालांकि, ऐसे मामलों का बच्चे पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. अदालत ने कहा कि इसलिए ऐसे आरोप लगाने से पहले माता-पिता को सोचना और आत्ममंथन करना चाहिए.
अदालत ने आगे कहा कि अगर ऐसे आरोप सच हैं तो कानून अपना कर्तव्य निभाएगा. हालांकि, वर्तमान मामले में बच्चे की कस्टडी न देने के उद्देश्य से झूठी शिकायत दर्ज करने से बड़ा कोई पाप नहीं है. यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता से विवाह करने के लिए महिला को उत्तेजित करने के लिए कानून का दुरुपयोग किया गया है. अदालत ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि POCSO अधिनियम, जिसका उद्देश्य बच्चों को हिंसा से बचाना है, का भी दुरुपयोग किया गया है.
मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
मामले में लड़की की मां और जैविक पिता का 2017 में तलाक हो गया था. हालांकि, अदालत ने लड़की को उसकी मां को दे दिया था. पिता को लड़की से मिलने की इजाजत दी गई. हालांकि, समझौते के अनुसार, जब माता-पिता में से कोई भी दूर के शहर की यात्रा करता है तो लड़की को यात्रा किए बिना घर पर माता-पिता के साथ रहना पड़ता था. जब मां पढ़ाई के लिए विदेश चली गई तो बेटी को उसके तीसरे पति (याचिकाकर्ता) के पास छोड़ दिया गई थी.
इससे गुस्साए पहले पति ने अपनी पूर्व पत्नी के तीसरे पति और एक रिश्तेदार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और आरोप लगाया कि उसकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया गया. इस संबंध में आरोप पत्र समर्पित किया गया था. इस पर सवाल उठाने वाले तीसरे पति ने आईपीसी की विभिन्न धाराओं और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के तहत उसके खिलाफ दर्ज मामले की जांच को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.