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तमिलनाडु: माता सीता के लिए केले के रेशे से बनाई गई विशेष साड़ी

Banana fiber special saree goddess Sita: तमिलनाडु के चेन्नई के ट्रेडिशनल नेचुरल फाइबर वीविंग ग्रुप की ओर से सीता माता के लिए केले के रेशे से साड़ी तैयार की गई. इसे अयोध्या में राम मंदिर के लिए भेजी गई.

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चेन्नई के अनाकापुथुर में केले के रेशे से अयोध्या की सीता देवी के लिए विशेष साड़ी बनाई गई
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By PTI

Published : Jan 22, 2024, 2:10 PM IST

Updated : Jan 22, 2024, 2:24 PM IST

चेन्नई: अयोध्या में भव्य राम मंदिर में सीता माता के लिए विशेष रूप से केले के फाइबर की साड़ी तैयार की गई है. चेन्नई के ट्रेडिशनल नेचुरल फाइबर वीविंग ग्रुप की ओर से इसे तैयार करवाया गया है. चेंगलपट्टू जिले के अनाकापुथुर में प्राकृतिक सामग्रियों से कपड़े बुने जाते हैं. सब्जियों और फलों के छिलकों के अपशिष्ट उत्पादों से रंग लेकर साड़ियां बनाई जाती हैं. पिछले 12 वर्षों से अनाकापुथुर में प्राकृतिक फाइबर बुनाई समूह केले, बांस, कैक्टस और अनानास से निकाले गए प्राकृतिक फाइबर का उपयोग करके बहू-रंगीन साड़ियों की बुनाई करता है.

केले के रेशे से बनाई विशेष साड़ी

साड़ियों के लिए रंग बनाने के लिए नीम, हल्दी, चंदन, चूना, लकड़ी का कोयला, फल, सब्जियां, छाल का इस्तेमाल किया जाता है. इन रंगों में रेशों को भिंगोकर कई रंगों में साड़ियां बुने जाते हैं. ये साड़ियाँ शरीर के लिए भी बहुत अच्छी होती हैं क्योंकि इनमें कोई रसायन नहीं मिलाया जाता है. इसके अलावा कहा जाता है कि हर्बल रेशों से बुनी गई साड़ियां त्वचा रोगों को ठीक करती हैं.

अनाकापुथुर बुनकरों को प्राकृतिक रेशों से बुनाई में उनकी सेवाओं के लिए कई प्रमाणपत्र भी प्राप्त हुए हैं. भारत में पहली बार राष्ट्रीय केला अनुसंधान संस्थान से उन्हें केले के रेशे से साड़ी बुनाई के लिए प्रमाण पत्र और पदक प्राप्त हुए हैं. प्राकृतिक रेशों से बुनी गई एक साड़ी को बनाने में लगभग तीन दिन का समय लगता है. प्राकृतिक फाइबर साड़ियों की कीमत 1,200 रुपये से 7,500 रुपये के बीच है.

ऐसे में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर के लिए देशभर से विशेष सामग्री भेजी जा रही है. इस तरह चेन्नई के अनाकापुथुर के प्राकृतिक फाइबर बुनकर समूह की ओर से राम मंदिर में रखी सीता देवी की मूर्ति के लिए 20 फुट लंबी और चार फुट चौड़ी केले के फाइबर की साड़ी पूरी तरह से प्रकृतिक रूप से बनाई गई है.

केले के रेशे की साड़ी में अयोध्या के राम मंदिर और तीर चलाते राम की छवि उकेरी गई है. इसे चेन्नई से हवाई मार्ग से अयोध्या मंदिर ले जाया गया. नट्टिया नेसाव ग्रुप के प्रमुख शेखर ने ईटीवी भारत को दिए एक साक्षात्कार में कहा, 'हम तीसरी पीढ़ियों से बुनाई कर रहे हैं. शुरुआती समय में हम साड़ियाँ बुनने के लिए कपास का उपयोग करते थे और फिर रामायण में एक इतिहास है कि हनुमानजी ने सीता माता को केले की साड़ी दी थी. उसके बाद हमने केले के पौधे से प्राकृतिक रूप से साड़ियाँ बनाना सीखा और हम पूरी तरह से हाथ से ही साड़ियाँ बुन रहे हैं.

पिछले 12 वर्षों से हम फलों के अपशिष्ट रंगों और बांस, केले, नारियल आदि के फाइबर का उपयोग करके जैविक साड़ियाँ बना रहे हैं. ऐसे में चूंकि अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन हुआ है. इसलिए नेचुरल फाइबर वीविंग ग्रुप की महिलाओं से सलाह के बाद राम मंदिर में रखी सीता माता की मूर्ति को नेचुरल फाइबर साड़ी देने का निर्णय लिया गया. इसी वजह से हम पिछले 10 दिनों से दिन-रात केले के रेशे तैयार कर रहे हैं और करीब 15 दिनों में हमने एक नेचुरल स्टाइल की साड़ी तैयार कर ली. साड़ी पर राम मंदिर और तीर चलाते राम की तस्वीर बनी हुई है. यह साड़ी पूरी तरह से केले और रेशम से बनी है.

ये भी पढ़ें- राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में शामिल नहीं होंगे ये विपक्षी नेता, बताया बीजेपी का कार्यक्रम, देखें लिस्ट

चेन्नई: अयोध्या में भव्य राम मंदिर में सीता माता के लिए विशेष रूप से केले के फाइबर की साड़ी तैयार की गई है. चेन्नई के ट्रेडिशनल नेचुरल फाइबर वीविंग ग्रुप की ओर से इसे तैयार करवाया गया है. चेंगलपट्टू जिले के अनाकापुथुर में प्राकृतिक सामग्रियों से कपड़े बुने जाते हैं. सब्जियों और फलों के छिलकों के अपशिष्ट उत्पादों से रंग लेकर साड़ियां बनाई जाती हैं. पिछले 12 वर्षों से अनाकापुथुर में प्राकृतिक फाइबर बुनाई समूह केले, बांस, कैक्टस और अनानास से निकाले गए प्राकृतिक फाइबर का उपयोग करके बहू-रंगीन साड़ियों की बुनाई करता है.

केले के रेशे से बनाई विशेष साड़ी

साड़ियों के लिए रंग बनाने के लिए नीम, हल्दी, चंदन, चूना, लकड़ी का कोयला, फल, सब्जियां, छाल का इस्तेमाल किया जाता है. इन रंगों में रेशों को भिंगोकर कई रंगों में साड़ियां बुने जाते हैं. ये साड़ियाँ शरीर के लिए भी बहुत अच्छी होती हैं क्योंकि इनमें कोई रसायन नहीं मिलाया जाता है. इसके अलावा कहा जाता है कि हर्बल रेशों से बुनी गई साड़ियां त्वचा रोगों को ठीक करती हैं.

अनाकापुथुर बुनकरों को प्राकृतिक रेशों से बुनाई में उनकी सेवाओं के लिए कई प्रमाणपत्र भी प्राप्त हुए हैं. भारत में पहली बार राष्ट्रीय केला अनुसंधान संस्थान से उन्हें केले के रेशे से साड़ी बुनाई के लिए प्रमाण पत्र और पदक प्राप्त हुए हैं. प्राकृतिक रेशों से बुनी गई एक साड़ी को बनाने में लगभग तीन दिन का समय लगता है. प्राकृतिक फाइबर साड़ियों की कीमत 1,200 रुपये से 7,500 रुपये के बीच है.

ऐसे में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर के लिए देशभर से विशेष सामग्री भेजी जा रही है. इस तरह चेन्नई के अनाकापुथुर के प्राकृतिक फाइबर बुनकर समूह की ओर से राम मंदिर में रखी सीता देवी की मूर्ति के लिए 20 फुट लंबी और चार फुट चौड़ी केले के फाइबर की साड़ी पूरी तरह से प्रकृतिक रूप से बनाई गई है.

केले के रेशे की साड़ी में अयोध्या के राम मंदिर और तीर चलाते राम की छवि उकेरी गई है. इसे चेन्नई से हवाई मार्ग से अयोध्या मंदिर ले जाया गया. नट्टिया नेसाव ग्रुप के प्रमुख शेखर ने ईटीवी भारत को दिए एक साक्षात्कार में कहा, 'हम तीसरी पीढ़ियों से बुनाई कर रहे हैं. शुरुआती समय में हम साड़ियाँ बुनने के लिए कपास का उपयोग करते थे और फिर रामायण में एक इतिहास है कि हनुमानजी ने सीता माता को केले की साड़ी दी थी. उसके बाद हमने केले के पौधे से प्राकृतिक रूप से साड़ियाँ बनाना सीखा और हम पूरी तरह से हाथ से ही साड़ियाँ बुन रहे हैं.

पिछले 12 वर्षों से हम फलों के अपशिष्ट रंगों और बांस, केले, नारियल आदि के फाइबर का उपयोग करके जैविक साड़ियाँ बना रहे हैं. ऐसे में चूंकि अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन हुआ है. इसलिए नेचुरल फाइबर वीविंग ग्रुप की महिलाओं से सलाह के बाद राम मंदिर में रखी सीता माता की मूर्ति को नेचुरल फाइबर साड़ी देने का निर्णय लिया गया. इसी वजह से हम पिछले 10 दिनों से दिन-रात केले के रेशे तैयार कर रहे हैं और करीब 15 दिनों में हमने एक नेचुरल स्टाइल की साड़ी तैयार कर ली. साड़ी पर राम मंदिर और तीर चलाते राम की तस्वीर बनी हुई है. यह साड़ी पूरी तरह से केले और रेशम से बनी है.

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Last Updated : Jan 22, 2024, 2:24 PM IST
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