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RSS की गतिविधियों में भाग ले सकेंगे सरकारी कर्मचारी, मोदी सरकार ने हटाया बैन, जानें 58 साल पहले क्यों लगा था प्रतिबंध? - Ban On Govt Employees - BAN ON GOVT EMPLOYEES

Ban On Govt Employees: 7 नवंबर 1966 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने RSS के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर बैन लगाया दिया था. सरकार ने अब इस फैसले को वापस ले लिया है.

Ban on govt employees from taking part in RSS activities
RSS की गतिविधियों में भाग ले सकेंगे सरकारी कर्मचारी (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 22, 2024, 12:58 PM IST

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गतिविधियों में भाग लेने से रोकने वाले आदेश को वापस ले लिया है. इसके साथ ही अब सरकारी कर्मचारी भी आरएसएस के कार्याकर्मों में भाग ले सकेंगे. इस पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता अमित मालवीय ने सोमवार को कहा कि सरकारी कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गतिविधियों में भाग लेने से रोकने वाला 1966 का आदेश वापस ले लिया गया है.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में मालवीय ने इस आदेश को असंवैधानिक बताया और कहा कि इसे पारित नहीं किया जाना चाहिए था. उन्होंने कहा कि यह प्रतिबंध इसलिए लगाया गया था क्योंकि 7 नवंबर 1966 को संसद में गोहत्या के खिलाफ़ एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था. इसके लिए आरएसएस-जनसंघ ने लाखों लोगों का समर्थन जुटाया था. इस दौरान पुलिस की गोलीबारी में कई लोग मारे गए थें.

इंदिरा गांधी ने लगाया था बैन
बीजेपी आईटी सेल प्रमुख ने आगे कहा कि 30 नवंबर 1966 को आरएसएस-जनसंघ के प्रभाव से हिलकर इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था. मालवीय ने दावला किया कि इंदिरा गांधी ने फरवरी 1977 में आरएसएस से संपर्क किया और अपने चुनाव अभियान के लिए समर्थन के बदले प्रतिबंध हटाने की पेशकश की. इसलिए, बालक बुद्धि एंड कंपनी को कोई भी शिकायत करने से पहले कांग्रेस का इतिहास जानना चाहिए.

जयराम रमेश ने साधा निशाना
इससे पहले कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में बैन हटाने को लेकर कहा था कि देश के पहले गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद फरवरी 1948 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके बाद अच्छे व्यवहार के आश्वासन पर प्रतिबंध हटा लिया गया था, लेकिन आरएसएस ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया.

उन्होंने कहा कि 1996 में, आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था और यह सही भी था… 9 जुलाई, 2024 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के के कार्यकाल के दौरान लागू 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया गया. इस दौरान रमेश ने सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस से जुड़ने से रोकने वाले 1966 के आदेश की एक कॉपी भी शेयर की.

1966 में आरएसएस का आंदोलन?
बता दें कि 7 नवंबर 1966 को आरएसएस ने गौ रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गाय की हत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर संसद का घेराव किया था. इस आंदोलन का आयोजन सर्वदलीय गो-रक्षा महासमिति ने किया था. इस आंदोलन में कई हिंदू संगठन और साधु संत समेत लगभग 125,000 लोग शामिल हुए थे. इस दौरान उन्होंने दिल्ली की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया.आंदोलन के दौरान हिंसा भड़क गई और पुलिस को आंसू गैस, लाठीचार्ज और गोलीबारी करने पड़ी. इस घटना में एक पुलिसकर्मी और सात आंदोलनकारी मारे गए थे.

इंदिरा गांधी ने दिया आदेश
इस घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर बैन लगाने का आदेश जारी कर दिया. इस आदेश का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों को किसी भी सांप्रदायिक या राजनीतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से रोकना था, ताकि सरकारी तंत्र पूरी निष्पक्षता और समर्पण के साथ काम करता रहे.

यह भी पढ़ें- 'प्रधानमंत्री की आवाज...' बजट सत्र से पहले पीएम मोदी ने MPs की साथ आने की अपील

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गतिविधियों में भाग लेने से रोकने वाले आदेश को वापस ले लिया है. इसके साथ ही अब सरकारी कर्मचारी भी आरएसएस के कार्याकर्मों में भाग ले सकेंगे. इस पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता अमित मालवीय ने सोमवार को कहा कि सरकारी कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गतिविधियों में भाग लेने से रोकने वाला 1966 का आदेश वापस ले लिया गया है.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में मालवीय ने इस आदेश को असंवैधानिक बताया और कहा कि इसे पारित नहीं किया जाना चाहिए था. उन्होंने कहा कि यह प्रतिबंध इसलिए लगाया गया था क्योंकि 7 नवंबर 1966 को संसद में गोहत्या के खिलाफ़ एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था. इसके लिए आरएसएस-जनसंघ ने लाखों लोगों का समर्थन जुटाया था. इस दौरान पुलिस की गोलीबारी में कई लोग मारे गए थें.

इंदिरा गांधी ने लगाया था बैन
बीजेपी आईटी सेल प्रमुख ने आगे कहा कि 30 नवंबर 1966 को आरएसएस-जनसंघ के प्रभाव से हिलकर इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था. मालवीय ने दावला किया कि इंदिरा गांधी ने फरवरी 1977 में आरएसएस से संपर्क किया और अपने चुनाव अभियान के लिए समर्थन के बदले प्रतिबंध हटाने की पेशकश की. इसलिए, बालक बुद्धि एंड कंपनी को कोई भी शिकायत करने से पहले कांग्रेस का इतिहास जानना चाहिए.

जयराम रमेश ने साधा निशाना
इससे पहले कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में बैन हटाने को लेकर कहा था कि देश के पहले गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद फरवरी 1948 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके बाद अच्छे व्यवहार के आश्वासन पर प्रतिबंध हटा लिया गया था, लेकिन आरएसएस ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया.

उन्होंने कहा कि 1996 में, आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था और यह सही भी था… 9 जुलाई, 2024 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के के कार्यकाल के दौरान लागू 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया गया. इस दौरान रमेश ने सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस से जुड़ने से रोकने वाले 1966 के आदेश की एक कॉपी भी शेयर की.

1966 में आरएसएस का आंदोलन?
बता दें कि 7 नवंबर 1966 को आरएसएस ने गौ रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गाय की हत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर संसद का घेराव किया था. इस आंदोलन का आयोजन सर्वदलीय गो-रक्षा महासमिति ने किया था. इस आंदोलन में कई हिंदू संगठन और साधु संत समेत लगभग 125,000 लोग शामिल हुए थे. इस दौरान उन्होंने दिल्ली की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया.आंदोलन के दौरान हिंसा भड़क गई और पुलिस को आंसू गैस, लाठीचार्ज और गोलीबारी करने पड़ी. इस घटना में एक पुलिसकर्मी और सात आंदोलनकारी मारे गए थे.

इंदिरा गांधी ने दिया आदेश
इस घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर बैन लगाने का आदेश जारी कर दिया. इस आदेश का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों को किसी भी सांप्रदायिक या राजनीतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से रोकना था, ताकि सरकारी तंत्र पूरी निष्पक्षता और समर्पण के साथ काम करता रहे.

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