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बस्तर में भारी बारिश के बीच बाहुड़ा गोंचा पर्व का समापन, तुपकी से दी गई भगवान जगन्नाथ को सलामी - Bastar Bahuda Gocha festival - BASTAR BAHUDA GOCHA FESTIVAL

बस्तर में भारी बारिश के बीच सोमवार को बाहुड़ा गोंचा पर्व का समापन हुआ. रथ यात्रा के अंतिम दिन यहां भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा. भगवान जगन्नाथ को तुपकी से सलामी दी गई.

Bahuda Gocha festival
बस्तर बाहुड़ा गोंचा पर्व (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 15, 2024, 10:50 PM IST

Updated : Jul 15, 2024, 10:58 PM IST

तुपकी से दी गई भगवान जगन्नाथ को सलामी (ETV Bharat)

बस्तर: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में आज बाहुड़ा गोंचा का पर्व धूमधाम से मनाया गया. इसी के साथ गोंचा पर्व में चलने वाली रथ यात्रा का आज समापन हो गया. बाहुड़ा गोंचा पर्व के दौरान तीन विशालकाय रथों पर सवार कर भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र की भव्य रथयात्रा निकाली गई. इस भव्य रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को बस्तर की पांरपरिक तुपकी से सलामी दी गई. इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पंहुचे. भारी संख्या में भक्तों ने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए.

अंतिम दिन उमड़ा जनसैलाब: इस पर्व के बारे में गोंचा समिति के अध्यक्ष विवेक पांडेय ने बताया, "भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ 9 दिनों तक जनकपुरी सिरहसार में विराजने के बाद सोमवार को विशालकाय रथों पर सवार होकर दर्शनार्थियों को दर्शन दिए. इसके बाद मंदिर पहुंचकर देवी लक्ष्मी से भगवान मेल-मिलाप करेंगे. लक्ष्मी जी से संवाद बाहुड़ा गोंचा के दौरान होगा. इसी के साथ बाहुड़ा गोंचा रस्म का समापन होगा. इस रस्म के बाद 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी रस्म निभाया जाएगा''.

गोंचा पर्व का समापन: गोंचा समिति के अध्यक्ष विवेक पांडेय ने बताया कि'' चन्दन जात्रा से बस्तर में शुरू हुआ गोंचा पर्व अपनी भव्यता के साथ बाहुड़ा गोंचा के बाद अपनी परिपूर्णता की ओर बढ़ रहा है. बड़ी संख्या में लोग भगवान जगन्नाथ के इस गोंचा पर्व में आशीर्वाद लेने पहुंचे. 360 अरण्य ब्राम्हण समाज पूरे क्षेत्र की सुख शांति और समृद्धि की कामना करता है. हर साल इसी तरह उत्साह से गोंचा पर्व मनाने की अपील भी करता है."

जानिए क्या कहते हैं बस्तरवासी: इस बारे में बस्तर के रहने वाले जयकुमार जोशी ने बताया, "यह गोंचा पर्व मनाने का सिलसिला सालों से चला आ रहा है. इस कार्यक्रम में हर्षोल्लास के साथ भीड़ उमड़ती है. धार्मिक आयोजन के चलते शहर में अच्छा माहौल बना रहता है. उत्साह के साथ रथ यात्रा और गोंचा पर्व को लोग निभाते हैं." किन्नर समाज की सदस्य ने बताया कि, "किन्नर समाज के लोग गोंचा पर्व में शामिल होने पहुंचे हैं. बारिश में भीग-भीग कर गोंचा पर्व को एन्जॉय कर रहे हैं. बस्तर को शांत रखने के लिए बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी से कामना भी की है. साल का पहले त्योहार के रूप में इसे मनाया जाता है."

तुपकी से दी गई सलामी: जब से बस्तर में गोंचा महापर्व की शुरुआत हुई है तब से यानि कि 617 सालों से बस्तर की आदिम जनजाति बांस से बनी नली नुमा औजार यानि कि तुपकी और मलकांगिनी के बीज (पेंगु) से भगवान जगन्नाथ को सलामी देते है. इस तुपकी से ठीक वैसे ही आवाज निकलती है जैसे तोप से गोला दागने पर आवाज होती है. आदिकाल से निरंतर बस्तरवासी पेंगु और तुपकी का इस्तेमाल करते आये हैं. इस दौरान ये दिखाने की कोशिश करते हैं कि पुरी के बाद बस्तर में मनाया जाने वाला गोंचा पर्व काफी आकर्षक बना रहता है. बस्तर के अलावा पूरे विश्व भर में कहीं भी पेंगु और तुपकी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

बता दें कि मलकांगिनी दर्द की बहुत अच्छी दवाई है. इसका तेल दर्द निवारण का काम करता है. आदिकाल में पेंगु से मार खाने से दर्द का निवारण होता था. इसी उद्देश्य से बस्तर में गोंचा पर्व के दौरान पेंगु का इस्तेमाल करे लोग उत्साह के साथ इस पर्व को मनाते हैं.

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तुपकी से दी गई भगवान जगन्नाथ को सलामी (ETV Bharat)

बस्तर: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में आज बाहुड़ा गोंचा का पर्व धूमधाम से मनाया गया. इसी के साथ गोंचा पर्व में चलने वाली रथ यात्रा का आज समापन हो गया. बाहुड़ा गोंचा पर्व के दौरान तीन विशालकाय रथों पर सवार कर भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र की भव्य रथयात्रा निकाली गई. इस भव्य रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को बस्तर की पांरपरिक तुपकी से सलामी दी गई. इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पंहुचे. भारी संख्या में भक्तों ने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए.

अंतिम दिन उमड़ा जनसैलाब: इस पर्व के बारे में गोंचा समिति के अध्यक्ष विवेक पांडेय ने बताया, "भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ 9 दिनों तक जनकपुरी सिरहसार में विराजने के बाद सोमवार को विशालकाय रथों पर सवार होकर दर्शनार्थियों को दर्शन दिए. इसके बाद मंदिर पहुंचकर देवी लक्ष्मी से भगवान मेल-मिलाप करेंगे. लक्ष्मी जी से संवाद बाहुड़ा गोंचा के दौरान होगा. इसी के साथ बाहुड़ा गोंचा रस्म का समापन होगा. इस रस्म के बाद 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी रस्म निभाया जाएगा''.

गोंचा पर्व का समापन: गोंचा समिति के अध्यक्ष विवेक पांडेय ने बताया कि'' चन्दन जात्रा से बस्तर में शुरू हुआ गोंचा पर्व अपनी भव्यता के साथ बाहुड़ा गोंचा के बाद अपनी परिपूर्णता की ओर बढ़ रहा है. बड़ी संख्या में लोग भगवान जगन्नाथ के इस गोंचा पर्व में आशीर्वाद लेने पहुंचे. 360 अरण्य ब्राम्हण समाज पूरे क्षेत्र की सुख शांति और समृद्धि की कामना करता है. हर साल इसी तरह उत्साह से गोंचा पर्व मनाने की अपील भी करता है."

जानिए क्या कहते हैं बस्तरवासी: इस बारे में बस्तर के रहने वाले जयकुमार जोशी ने बताया, "यह गोंचा पर्व मनाने का सिलसिला सालों से चला आ रहा है. इस कार्यक्रम में हर्षोल्लास के साथ भीड़ उमड़ती है. धार्मिक आयोजन के चलते शहर में अच्छा माहौल बना रहता है. उत्साह के साथ रथ यात्रा और गोंचा पर्व को लोग निभाते हैं." किन्नर समाज की सदस्य ने बताया कि, "किन्नर समाज के लोग गोंचा पर्व में शामिल होने पहुंचे हैं. बारिश में भीग-भीग कर गोंचा पर्व को एन्जॉय कर रहे हैं. बस्तर को शांत रखने के लिए बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी से कामना भी की है. साल का पहले त्योहार के रूप में इसे मनाया जाता है."

तुपकी से दी गई सलामी: जब से बस्तर में गोंचा महापर्व की शुरुआत हुई है तब से यानि कि 617 सालों से बस्तर की आदिम जनजाति बांस से बनी नली नुमा औजार यानि कि तुपकी और मलकांगिनी के बीज (पेंगु) से भगवान जगन्नाथ को सलामी देते है. इस तुपकी से ठीक वैसे ही आवाज निकलती है जैसे तोप से गोला दागने पर आवाज होती है. आदिकाल से निरंतर बस्तरवासी पेंगु और तुपकी का इस्तेमाल करते आये हैं. इस दौरान ये दिखाने की कोशिश करते हैं कि पुरी के बाद बस्तर में मनाया जाने वाला गोंचा पर्व काफी आकर्षक बना रहता है. बस्तर के अलावा पूरे विश्व भर में कहीं भी पेंगु और तुपकी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

बता दें कि मलकांगिनी दर्द की बहुत अच्छी दवाई है. इसका तेल दर्द निवारण का काम करता है. आदिकाल में पेंगु से मार खाने से दर्द का निवारण होता था. इसी उद्देश्य से बस्तर में गोंचा पर्व के दौरान पेंगु का इस्तेमाल करे लोग उत्साह के साथ इस पर्व को मनाते हैं.

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Last Updated : Jul 15, 2024, 10:58 PM IST
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