बगहाः देवी-देवताओं के नाम पर कई सारे मंदिर का नाम सुना होगा लेकिन बिहार के बगहा में राजनीतिक दल के नाम पर मंदिर स्थापित है. सैकड़ों वर्ष पुराने इस मंदिर में भगवान शिव के एकादश लिंग स्थापित है. लोग श्रद्धा भक्ति से यहां पूजा-अर्चना करने आते रहे हैं, लेकिन अब यह ऐतिहासिक कांग्रेसी मंदिर खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. आखिर भगवान शिव के इस मंदिर को कांग्रेसी मंदिर के नाम से क्यों जाना जाता है?
लोकसभा चुनाव में इस मंदिर की चर्चाः स्वाधीनता संग्राम की यादों को समेटे राजनीतिक दल के नाम पर स्थापित एक मंदिर इस लोकसभा चुनाव में चर्चा का केंद्र बिंदु बना है. सैकड़ों वर्ष प्राचीन इस ऐतिहासिक मंदिर का अस्तित्व अब खतरे में है. लोग इसके जीर्णोद्धार की मांग कर रहें हैं ताकि इस ऐतिहासिक मंदिर की पहचान को बचाया जा सके.
गुप्त तहखाने रहते थे सेनानीः यह मंदिर बगहा के बनकटवा मुहल्ले में स्थित है जो तकरीबन 200 वर्ष पुराना है. मंदिर में स्थापित भगवान शिव-पार्वती से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. इस मंदिर से भारत के स्वाधीनता की यादें ताजा हो जाती हैं. अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के लिए फ्रीडम फाइटर्स इस मंदिर के एक गुप्त तहखाने में छिपा करते थे और उन्हें देश से भगाने के लिए रणनीतियां तैयार करते थे.
इसलिए नाम पड़ा कांग्रेसी मंदिरः 80 वर्षीय महावीर पंडित बताते हैं कि यह शिव मंदिर स्वतंत्रता सेनानियों का पनाहगार हुआ करता था. कांग्रेसी सेनानी यहां शरण लिया करते थे. लिहाजा इस मंदिर का नाम कांग्रेसी मंदिर पड़ गया. राजनीतिक दल के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर आज अपने बदहाली का रोना रो रहा है. ना तो कांग्रेस ने इसका कायाकल्प किया और न ही सरकार ने इसके बारे में सोचा. अब तक किसी सरकार ने इसकी सुधि नहीं ली.
अस्तित्व समाप्त होने के कगार परः स्थानीय निवासी महावीर पंडित बताते हैं कि एक समय था जब यहां भारत का तिरंगा झंडा शान से लहराता था लेकिन आजादी के बाद से प्रशासनिक और राजनीतिक उदासीनता के कारण यह मंदिर जीर्णशीर्ण अवस्था में पहुंच गया है और इसका अस्तित्व समाप्त होते जा रहा है.
"1942 में जब अंग्रेजों को देश से बाहर भगाने के लिए स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था तब इस शिव मंदिर के तहखाने में भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, मंगल पांडे, वीर कुंवर सिंह और महात्मा गांधी सरीखे स्वतंत्रता सेनानी शरण लेते थे. गुप्त बैठकें कर अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए रणनीतियां बनाते थे." -महावीर पंडित, स्थानीय
'70 वर्ष कांग्रेस से शासन किया': स्थानीय महंत छोटेलाल चौहान का कहना है कि स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों से छिपने के लिए यहां पनाह लेते थे और लोगों को संग्राम में शामिल करने के लिए जागरूक करते थे. अंग्रेजों के भारत छोड़ो आंदोलन में इस शिव पार्वती मंदिर का काफी योगदान रहा है. 70 वर्ष कांग्रेस ने शासन किया लेकिन कांग्रेसी मंदिर को बचाने हेतु कोई पहल नहीं की.
" देश की स्वाधीनता और लोगों की आस्था से जुड़ा यह मंदिर खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. ऐसे में जरूरत है देश की स्वाधीनता की यादों को खुद में समेटे इस प्राचीन मंदिर के कायाकल्प किया जाए ताकि इसका नामो निशान मिटने से पहले इसको बचाया जा सके." - छोटेलाल चौहान, महंत
एक-एक मुट्ठी अनाज से बनता था भोजनः स्थानीय मुद्रिका पासवान बताते हैं कि जब इस मंदिर में स्वतंत्रता सेनानी जुटे थे तो उस समय गांव के लोग एक-एक मुट्ठी अनाज जमा किए थे और सेनानियों के लिए भोजन का प्रबंध किए थे. स्थानीय युवा जनार्दन यादव बताते हैं कि उन्होंने अपने पूर्वजों और गांव के लोगों से इस मंदिर के बारे में बहुत कुछ सुना है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में कांग्रेसी सेनानी रहा करते थे. कांग्रेस 70 साल तक सरकार में रही. इसके बाद कई सरकार आयी-गयी लेकिन किसी ने इस मंदिर पर ध्यान नहीं दिया.
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