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आंध्र प्रदेश में 29 फीसदी तटीय रेखा का हिस्सा कटाव की चपेट में आ चुका: राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र - COASTLINE OF ANDHRA PRADESH

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 24, 2024, 10:45 PM IST

Coastline Of Andhra Pradesh : राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र के मुताबिक आंध्र प्रदेश में 29 फीसदी तटीय रेखा का हिस्सा कटाव की चपेट में आ चुका है. हालांकि कटाव को रोकने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. पढ़िए पूरी खबर...

Andhra Pradesh coast
आंध्र प्रदेश तट (Etv Bharat)

अमरावती: आंध्र प्रदेश का क्षेत्रफल घट रहा है क्योंकि इसकी विशाल तटरेखा लगातार नष्ट हो रही है. जहां एक तरफ श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र तटीय कटाव के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है. वहीं विशाखापत्तनम आरके समुद्र तट, कृष्णा और गोदावरी डेल्टा क्षेत्रों में भी कई स्थानों पर कटाव हो रहा है. कुछ इलाकों में आवास समुद्र में विलीन हो रहे हैं, तो कुछ जगहों पर समुद्र तट गायब हो रहे हैं. जलवायु और लोगों की जीवनशैली में बदलाव के कारण तटीय इलाकों में समस्याएं बढ़ रही हैं.

इन नौ संयुक्त जिलों के तटवर्ती 226 गांवों में कुल 29.85 लाख लोग रहते हैं. राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र के एक अध्ययन से पता चला है कि राज्य भर में 48 स्थानों पर तटीय कटाव गंभीर है. इसके अलावा, पांच स्थानों पर यह अत्यंत गंभीर है. इसमें उप्पाडा, कोरिंगा अभयारण्य और श्रीहरिकोटा में कटाव की तीव्रता सबसे अधिक है. पाया गया है कि राज्य की पूरी तटरेखा का 29 प्रतिशत हिस्सा कटाव की चपेट में आ चुका है. अगर कटाव तीन मीटर से अधिक है, तो इसे गंभीर माना जाता है. अगर हम बंगाल की खाड़ी को देखें तो मार्च से अक्टूबर तक रेत श्रीलंका से पश्चिम बंगाल की ओर जाती है. फिर नवंबर से फरवरी तक यह पश्चिम बंगाल से श्रीलंका की ओर जाती है. लेकिन नदियों पर बांध बनने की वजह से नदियों से निकलकर समुद्र में पहुंचने वाली रेत कम होती जा रही है.

दूसरी ओर, तूफ़ान और लहरों ने इसकी तीव्रता पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ा दिया है. समुद्र का जलस्तर बढ़ने, बंदरगाहों के विकास और ड्रेजिंग के कारण तटीय कटाव भी हो रहा है. कटाव वाली जगह से हटाई गई रेत दूसरी जगहों पर चारागाह के रूप में जमा हो रही है. इससे दक्षिण की ओर नए समुद्र तट बन रहे हैं. इसी तरह काकीनाडा जिले में पांच जगहों पर कटाव बहुत गंभीर पाया गया. इसमें नेमम, कोमारगिरी, उप्पाडा और अमीनाबाद में यह स्थिति अधिक है.

पाया गया है कि पिछले कुछ सालों में यहां 2.655 किलोमीटर तटीय क्षेत्र का कटाव हुआ है. 2022 के आंकड़ों के अनुसार 265.2 हेक्टेयर भूमि समुद्र में समा चुकी है. वहीं श्रीहरिकोटा में कटाव को रोकने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. विशाखापत्तनम बंदरगाह के कारण आरके समुद्र तट पर गंभीर कटाव की समस्या उत्पन्न होने का खतरा है. बंदरगाह अधिकारी आरके समुद्र तट पर ड्रेजिंग रेत डाल रहे हैं और कटाव को रोकने के उपाय कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि अगर बंदरगाह ने यह कदम नहीं उठाया होता तो आरके समुद्र तट गायब हो जाता. केंद्र के तत्वावधान में राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र तटीय कटाव का अध्ययन कर रहा है और समाधान सुझा रहा है.

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी (NDMA) कटाव को रोकने के लिए एक विशेष परियोजना शुरू करने के लिए कदम उठा रही है. इसके तहत आंध्र प्रदेश को 200 से 800 करोड़ रुपये तक की केंद्रीय सहायता मिलेगी. इसी को लेकर पहली बैठक जुलाई में दिल्ली में हुई थी. बताया जा रहा है कि इस महीने के अंत तक परियोजना रिपोर्ट का मसौदा तैयार हो जाएगा. इसमें परियोजना लागत का 90 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा दिया जाएगा और शेष 10 प्रतिशत राज्य आपदा प्रबंधन एजेंसी द्वारा वहन किया जाएगा.

ये भी पढ़ें - विशाखापत्तनम पर मंडरा रहा खतरा, 2040 तक पानी में समा जाएंगे कई इलाके: रिसर्च

अमरावती: आंध्र प्रदेश का क्षेत्रफल घट रहा है क्योंकि इसकी विशाल तटरेखा लगातार नष्ट हो रही है. जहां एक तरफ श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र तटीय कटाव के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है. वहीं विशाखापत्तनम आरके समुद्र तट, कृष्णा और गोदावरी डेल्टा क्षेत्रों में भी कई स्थानों पर कटाव हो रहा है. कुछ इलाकों में आवास समुद्र में विलीन हो रहे हैं, तो कुछ जगहों पर समुद्र तट गायब हो रहे हैं. जलवायु और लोगों की जीवनशैली में बदलाव के कारण तटीय इलाकों में समस्याएं बढ़ रही हैं.

इन नौ संयुक्त जिलों के तटवर्ती 226 गांवों में कुल 29.85 लाख लोग रहते हैं. राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र के एक अध्ययन से पता चला है कि राज्य भर में 48 स्थानों पर तटीय कटाव गंभीर है. इसके अलावा, पांच स्थानों पर यह अत्यंत गंभीर है. इसमें उप्पाडा, कोरिंगा अभयारण्य और श्रीहरिकोटा में कटाव की तीव्रता सबसे अधिक है. पाया गया है कि राज्य की पूरी तटरेखा का 29 प्रतिशत हिस्सा कटाव की चपेट में आ चुका है. अगर कटाव तीन मीटर से अधिक है, तो इसे गंभीर माना जाता है. अगर हम बंगाल की खाड़ी को देखें तो मार्च से अक्टूबर तक रेत श्रीलंका से पश्चिम बंगाल की ओर जाती है. फिर नवंबर से फरवरी तक यह पश्चिम बंगाल से श्रीलंका की ओर जाती है. लेकिन नदियों पर बांध बनने की वजह से नदियों से निकलकर समुद्र में पहुंचने वाली रेत कम होती जा रही है.

दूसरी ओर, तूफ़ान और लहरों ने इसकी तीव्रता पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ा दिया है. समुद्र का जलस्तर बढ़ने, बंदरगाहों के विकास और ड्रेजिंग के कारण तटीय कटाव भी हो रहा है. कटाव वाली जगह से हटाई गई रेत दूसरी जगहों पर चारागाह के रूप में जमा हो रही है. इससे दक्षिण की ओर नए समुद्र तट बन रहे हैं. इसी तरह काकीनाडा जिले में पांच जगहों पर कटाव बहुत गंभीर पाया गया. इसमें नेमम, कोमारगिरी, उप्पाडा और अमीनाबाद में यह स्थिति अधिक है.

पाया गया है कि पिछले कुछ सालों में यहां 2.655 किलोमीटर तटीय क्षेत्र का कटाव हुआ है. 2022 के आंकड़ों के अनुसार 265.2 हेक्टेयर भूमि समुद्र में समा चुकी है. वहीं श्रीहरिकोटा में कटाव को रोकने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. विशाखापत्तनम बंदरगाह के कारण आरके समुद्र तट पर गंभीर कटाव की समस्या उत्पन्न होने का खतरा है. बंदरगाह अधिकारी आरके समुद्र तट पर ड्रेजिंग रेत डाल रहे हैं और कटाव को रोकने के उपाय कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि अगर बंदरगाह ने यह कदम नहीं उठाया होता तो आरके समुद्र तट गायब हो जाता. केंद्र के तत्वावधान में राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र तटीय कटाव का अध्ययन कर रहा है और समाधान सुझा रहा है.

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी (NDMA) कटाव को रोकने के लिए एक विशेष परियोजना शुरू करने के लिए कदम उठा रही है. इसके तहत आंध्र प्रदेश को 200 से 800 करोड़ रुपये तक की केंद्रीय सहायता मिलेगी. इसी को लेकर पहली बैठक जुलाई में दिल्ली में हुई थी. बताया जा रहा है कि इस महीने के अंत तक परियोजना रिपोर्ट का मसौदा तैयार हो जाएगा. इसमें परियोजना लागत का 90 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा दिया जाएगा और शेष 10 प्रतिशत राज्य आपदा प्रबंधन एजेंसी द्वारा वहन किया जाएगा.

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