प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) के तहत दर्ज मुकदमा समझौते के आधार समाप्त नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध सबसे जघन्य अपराधों में से एक हैं. ऐसे अपराध पीड़ित बच्चे के मन पर गहरे और स्थायी घाव छोड़ जाते हैं. जो बच्चो के मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्थिरता और सामाजिक संबंधों को प्रभावित करते हैं.
बचपन में मिला भावनात्मक आघात वयस्क होने तक बना रहता है. आरोपी राम बिहारी की जमानत अर्जी खारिज करते हुए न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने यह टिप्पणी की. राम बिहारी पर जालौन के थाना कोतवाली में 2021 में नाबालिग के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म करने के आरोप में पॉक्सो सहित विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था. आरोपी ने समझौते के आधार पर हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर मुकदमे को रद्द करने की मांग की.
याची के वकील का कहना था कि पीड़ित के पिता ने जनवरी 2021 में भैंस खरीदने के लिए याची से 40 हजार रुपये उधार लिए थे. पैसे वापस नहीं किए गए. जब रुपये वापस मांगे, तो पीड़ित के पिता ने उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करा दिया. अब दोनों पक्षों में समझौता हो गया और आरोपी पक्ष ने मामले को रद्द करने के लिए अदालत में अर्जी दाखिल की है.
सरकारी वकील ने पोक्सो अधिनियम के मामले को रद्द करने का विरोध किया. कहा कि ऐसा करने से समाज में गलत संदेश जाएगा. आरोपी को मासूम बच्चों का शोषण करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. कोर्ट ने कहा कि पीड़ित बच्चा जब वह 13 साल का था, तब उसके साथ अप्राकृतिक संबंध बनाया गया. बच्चा तीन वर्ष बाद शिकायत दर्ज कराने का साहस जुटा पाया. कोर्ट ने कहा कि अपराध गंभीर है. इसका बच्चे के मनोविज्ञान और व्यवहार पर व्यापक असर पड़ेगा, इसलिए मुकदमा रद्द करने का कोई आधार नहीं है.