पलामू: 2009 में गर्मी के तीनो में भारतीय संसदीय इतिहास में अचानक तापमान बढ़ गया था. पहली बार कोई माओवाद विचारधारा वाला व्यक्ति चुनाव जीत कर संसद पहुंचा था. दरसअल 2009 में पूर्व माओवादी नेता कामेश्वर बैठा झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर पलामू लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे. कामेश्वर बैठा ने ही जेल से ही नामांकन दाखिल किया था और जीत हासिल की थी. कामेश्वर बैठा के बाद कई ऐसे माओवाद विचारधारा वाले लोग थे जिन्होंने राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई लेकिन वे सफल नहीं हुए. चुनावी राजनीति में कई लोगों की जमानत तक जब्त हो गई.
कामेश्वर बैठा के बाद कोई माओवादी नेता नहीं जीत पाया चुनाव
कामेश्वर बैठा 2009 में सांसद बने थे और 2014 में हार गए थे. 2009 और 2014 के विधानसभा चुनाव में कई माओवादी नेताओं ने अपनी किस्मत आजमाई थी लेकिन वह चुनाव हार गए. टॉप माओवादी रहे सतीश कुमार, युगल पाल, दिनकर यादव, विनोद शर्मा जैसे लोगों ने किस्मत आजमाई थी. दिनकर यादव लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव लड़ा था, लेकिन वे हार गए. हालांकि 2009 में सांसद चुने जाने के बाद कामेश्वर बैठा करीब साढ़े तीन वर्ष तक जेल में रहे थे. जिस समय कामेश्वर बैठा ने चुनाव में जीत हासिल की थी, उस वक्त उनपर 40 से भी अधिक नक्सल हमले को अंजाम देने का आरोप था.
अपने प्रभाव वाले इलाके में कमजोर होते गए माओवादी नेता
अविभाजित बिहार में 70 के दशक में पलामू से नक्सली की शुरुआत हुई थी. पलामू के इलाके में कई नक्सली संगठन बने थे. 2004 में जब नक्सली संगठन एकजुट हुए तो पलामू के इलाके में माओवादी सबसे अधिक मजबूत थे. माओवादियों संपूर्ण पलामू और बिहार गया औरंगाबाद रोहतास के इलाके में प्रभाव रहा था. इस इलाके से माओवादियों के कई संस्थापक सदस्य रहे थे.
2014-15 आते-आते इलाके में माओवादियों की पकड़ कमजोर होती गई और उनके टॉप कमांडर पकड़े गए या मारे गए. पूर्व माओवादी सतीश कुमार बताते हैं कि कहीं न कहीं जनता का विश्वास कम हुआ है और समय के साथ विचारधारा बदल गई. नक्सल विचारधारा से भटक कर दूसरी तरफ रुख किया, जिसका नतीजा है कि दलगत राजनीति में लोग कमजोर हुए. उन्होंने कहां की कामेश्वर बैठा चुनाव जीतने के बाद करीब साढ़े तीन साल जेल में रहे जिसका भी प्रभाव पड़ा. लोग जनता के भरोसा पर खरा तरह नहीं उतर पाए.
विचारधारा के आधार पर जीता था चुनाव, दलगत राजनीति में स्वीकार नहीं- कामेश्वर बैठा
पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा बताते हैं कि विचारधारा के आधार पर उन्होंने चुनाव जीता था, बाद में चुनाव हारने का कारण जो भी रहा हो. उन्होंने बताया कि कहीं ना कहीं जनता ने उस विचारधारा स्वीकार नहीं किया है. उस दौरान विचारधारा कई प्रभाव था कि 2009 में हुए सांसद बने थे. वर्तमान परिपेक्ष में राजनीतिक दल और उनके विचारधारा प्रभावित है.
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