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NALSA ने सुप्रीम कोर्ट को बताया- देश भर में 870 दोषी दायर करना चाहते हैं अपील - NALSA to SC

NALSA 870 convicts wish to file appeals: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि देशभर की जेलों में बंद बहुत सारे ऐसे कैदी है जिन्हें मुफ्त कानूनी सहायता की जरूरत है. ऐसे कैदी कई कारणों से जेल में बंद हैं. वे अपील करना चाहते हैं.

NALSA to SC
सुप्रीम कोर्ट (ANI)
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By Sumit Saxena

Published : Jul 16, 2024, 11:49 AM IST

नई दिल्ली: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) की जेलों में बंद सैकड़ों कैदी अपनी सजा को चुनौती देने के लिए अपील दायर करना चाहते हैं. एनएएलएसए ने कहा कि दोषियों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता से जुड़ी जानकारी एक तरह से उम्मीद की किरण की तरह है.

जेलों में भीड़भाड़ से संबंधित मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने न्यायमूर्ति बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि 16 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (SLSAs) से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई है. नालसा ने एक नोट में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि जेल विजिटिंग वकीलों (जेवीएल) द्वारा दोषियों को मुफ्त कानूनी सहायता के बारे में जानकारी दिए जाने के बाद यह रिपोर्ट मिली.

जेवीएल की नियुक्ति विधिक सेवा संस्थाओं द्वारा जेल के अंदर कैदियों के लिए कानूनी सलाह देने तथा आवेदनों और याचिकाओं का मसौदा तैयार करने के लिए की जाती है. नालसा ने अपने नोट में कहा, '18 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के एसएलएसए द्वारा प्राप्त प्रतिक्रियाओं से यह पाया गया है कि इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश के तहत जेवीएल ने दोषियों के साथ बातचीत की है. इसमें लगभग 870 दोषियों ने अपील दायर करने की इच्छा जाहिर की.' सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों पर गौर किया कि नालसा 18 राज्यों,संघ शासित प्रदेशों के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को इन 870 दोषियों के मामलों में अपील दायर करने के लिए कदम उठाने की सलाह देगा.

नालसा ने विभिन्न कारणों की ओर इशारा किया जिसके कारण दोषियों ने अपील नहीं की. इसमें प्रमुख रूप से अपील न करना या वर्तमान निर्णय से संतुष्ट न होना, अधिकतम सजा काट ली गई हो या सजा की अवधि लगभग पूरी हो चुकी हो, वित्तीय सहायता का अभाव हो और दोषी के खिलाफ कई मामले लंबित हों शामिल हैं.

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने कहा कि यह स्पष्ट है कि अधिकांश अन्य श्रेणियों में प्रभावी कानूनी सहायता हस्तक्षेप की गुंजाइश है. नोट में कहा गया, 'दिए गए कारणों का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट है कि विभिन्न कारणों से अपील दायर नहीं की जाती, जिनमें से कुछ वैध भी हैं.' सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि नालसा द्वारा भेजे गए पत्र के तहत मेघालय, राजस्थान, पुडुचेरी, पंजाब, तेलंगाना, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, छत्तीसगढ़, गोवा, जम्मू- कश्मीर, झारखंड, केरल, लक्षद्वीप और मणिपुर के एसएलएसए से जवाब प्राप्त हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की है. इस वर्ष मई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि खुली जेलों की स्थापना, कैदियों की अत्यधिक भीड़ की समस्या का एक समाधान हो सकता है. इससे कैदियों के पुनर्वास का मुद्दा भी हल हो सकता है.

ये भी पढ़ें- कम प्रतिनिधित्व वाले लोगों की न्याय संबंधी जरूरतों को पूरा करना जरूरी: CJI

नई दिल्ली: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) की जेलों में बंद सैकड़ों कैदी अपनी सजा को चुनौती देने के लिए अपील दायर करना चाहते हैं. एनएएलएसए ने कहा कि दोषियों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता से जुड़ी जानकारी एक तरह से उम्मीद की किरण की तरह है.

जेलों में भीड़भाड़ से संबंधित मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने न्यायमूर्ति बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि 16 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (SLSAs) से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई है. नालसा ने एक नोट में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि जेल विजिटिंग वकीलों (जेवीएल) द्वारा दोषियों को मुफ्त कानूनी सहायता के बारे में जानकारी दिए जाने के बाद यह रिपोर्ट मिली.

जेवीएल की नियुक्ति विधिक सेवा संस्थाओं द्वारा जेल के अंदर कैदियों के लिए कानूनी सलाह देने तथा आवेदनों और याचिकाओं का मसौदा तैयार करने के लिए की जाती है. नालसा ने अपने नोट में कहा, '18 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के एसएलएसए द्वारा प्राप्त प्रतिक्रियाओं से यह पाया गया है कि इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश के तहत जेवीएल ने दोषियों के साथ बातचीत की है. इसमें लगभग 870 दोषियों ने अपील दायर करने की इच्छा जाहिर की.' सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों पर गौर किया कि नालसा 18 राज्यों,संघ शासित प्रदेशों के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को इन 870 दोषियों के मामलों में अपील दायर करने के लिए कदम उठाने की सलाह देगा.

नालसा ने विभिन्न कारणों की ओर इशारा किया जिसके कारण दोषियों ने अपील नहीं की. इसमें प्रमुख रूप से अपील न करना या वर्तमान निर्णय से संतुष्ट न होना, अधिकतम सजा काट ली गई हो या सजा की अवधि लगभग पूरी हो चुकी हो, वित्तीय सहायता का अभाव हो और दोषी के खिलाफ कई मामले लंबित हों शामिल हैं.

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने कहा कि यह स्पष्ट है कि अधिकांश अन्य श्रेणियों में प्रभावी कानूनी सहायता हस्तक्षेप की गुंजाइश है. नोट में कहा गया, 'दिए गए कारणों का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट है कि विभिन्न कारणों से अपील दायर नहीं की जाती, जिनमें से कुछ वैध भी हैं.' सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि नालसा द्वारा भेजे गए पत्र के तहत मेघालय, राजस्थान, पुडुचेरी, पंजाब, तेलंगाना, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, छत्तीसगढ़, गोवा, जम्मू- कश्मीर, झारखंड, केरल, लक्षद्वीप और मणिपुर के एसएलएसए से जवाब प्राप्त हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की है. इस वर्ष मई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि खुली जेलों की स्थापना, कैदियों की अत्यधिक भीड़ की समस्या का एक समाधान हो सकता है. इससे कैदियों के पुनर्वास का मुद्दा भी हल हो सकता है.

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