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41 साल बाद मिली हत्या के आरोप से मुक्ति, हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा पाए अभियुक्त को बरी किया - ALLAHABAD HIGH COURT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संदेह के लाभ में उम्रकैद की सजा पाए अभियुक्त को बरी किया.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश (Photo Credit- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 6, 2024, 9:49 PM IST

प्रयागराज: हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा पाए व्यक्ति को 41 साल बाद आरोपों से निजात (Acquitted from murder charge after 41 years) मिल सकी.इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगभग 41 साल बाद हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे व्य​क्ति को संदेह के लाभ का हकदार मानते हुए बरी कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा व न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने राम कृष्ण की अपील पर दिया.

हमीरपुर के थाना खरेला में 1981 में रामकृष्ण पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया था. मृतक के पिता सिद्धा ने आरोप लगाया था कि जमीनी विवाद में उसके बेटे बहादुर की बंदूक से गोली मार कर दिनदहाड़े हत्या कर दी गई. घटना को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो गए. पुलिस ने आरोप पत्र दा​खिल किया. ट्रायल कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए 8 मार्च 1983 के आदेश से आरोपी रामकृष्ण को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास (Accused was sentenced to life imprisonment) की सजा सुनाई.

इस आदेश के ​खिलाफ रामकृष्ण ने हाईकोर्ट (Allahabad High Court Order) में अपील दा​खिल की. न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद व रिकार्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर याची को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया.

ये भी पढ़ें- मनोज राय हत्याकांड; माफिया मुख्तार अंसारी गैंग के दो सदस्यों पर आरोप तय, 21 नवंबर को होगी अगली सुनवाई

प्रयागराज: हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा पाए व्यक्ति को 41 साल बाद आरोपों से निजात (Acquitted from murder charge after 41 years) मिल सकी.इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगभग 41 साल बाद हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे व्य​क्ति को संदेह के लाभ का हकदार मानते हुए बरी कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा व न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने राम कृष्ण की अपील पर दिया.

हमीरपुर के थाना खरेला में 1981 में रामकृष्ण पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया था. मृतक के पिता सिद्धा ने आरोप लगाया था कि जमीनी विवाद में उसके बेटे बहादुर की बंदूक से गोली मार कर दिनदहाड़े हत्या कर दी गई. घटना को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो गए. पुलिस ने आरोप पत्र दा​खिल किया. ट्रायल कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए 8 मार्च 1983 के आदेश से आरोपी रामकृष्ण को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास (Accused was sentenced to life imprisonment) की सजा सुनाई.

इस आदेश के ​खिलाफ रामकृष्ण ने हाईकोर्ट (Allahabad High Court Order) में अपील दा​खिल की. न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद व रिकार्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर याची को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया.

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