मुजफ्फरपुर : बिहार के मुजफ्फरपुर में करोड़ों की लागत से बना अस्पताल खंडहर में बन चुका है. पारू प्रखंड की सरैया पंचायत में लावारिस हो चुके अस्पताल की जानकारी न तो स्वास्थ्य विभाग को है और न ही इलाके के SDM को. ये दुर्भाग्य ही है कि 5 करोड़ की लागत से बने इस शानदार अस्पताल में आजतक एक भी मरीज का इलाज न कर सका. इसकी वजह ये है कि ये बनने के बाद से ही खंडहर बन गया.
"इस अस्पताल के बारे में मुझे शुरू से अंत तक जानकारी नहीं है. वर्तमान में जिला पदाधिकारी द्वारा इसपर जांच गठित की गई है. सिविल सर्जन और संबद्ध पीएचसी के पादाधिकारी और अंचल अधिकारी द्वारा अपने-अपने स्तर पर जांच की जा रही है. जैसे ही जांच की रिपोर्ट आएगी बताया जाएगा."- श्रेया श्री, IAS सह अनुमंडल पदाधिकारी, पश्चिमी मुजफ्फरपुर
मुजफ्फरपुर का लावारिस अस्पताल : मौजूदा वक्त में अस्पताल की स्थिति देखकर समझ आ जाएगा कि किस इंजीनियर ने इसे यहां प्लान किया था? हालांकि अभी प्रशासन ये नहीं बता पाया है कि इस अस्पताल को किस मद में किसके फंड से बनकर तैयार हुआा? कब इसे आम जनता के लिए खोला गया? गांव वालों से ही जानकारी मिल पा रही है कि ये भवन सरकारी अस्पताल था, जो कि 15 साल पहले बनाया गया था.
लावारिस अस्पताल के खिड़की-दरवाजे चोरी : अस्पताल में मिलने वाली सुविधाओं की बात करें तो पूरा अस्पताल कभी फर्नीचर, खिड़की, दरवाजे, टाइल्स और अस्पताल के इक्वीपमेंट से चमचमा रहा था. लेकिन आज न तो खिड़की सलामत है और न ही चौखट. सब अराजक तत्व और चोर उखाड़कर ले गए. अस्पताल के फर्श की टाइल्स तक खोदकर निकाल लिया गया है. अस्पताल के बाहर लताएं लिपटी हुई हैं.
नशेड़ियों और बदमाशों का अड्डा बना खंडहर भवन : हालत ये है कि अब अस्पताल परिसर जुआरियों, शराबियों, शराब तस्करों और नशेड़ियों का अड्डा बनता जा रहा है. स्थानीय लोग मवेशी चराते हुए आते हैं और आकर इसमें शरण लेते हैं. अस्पताल बिहार सरकार के 6 एकड़ जमीन पर बना है. चारों तरफ लंबी लंबी घास उग चुकी हैं. अस्पताल तक पहुंचना भी मुश्किल भरा है.
डेढ़ दशक पहले हुआ था निर्माण : 15 साल पहले ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को बेहतर इलाज मुहैया कराने के लिए बिहार सरकार की 6 एकड़ की जमीन पर इस 30 बेड के अस्पताल को बनाया था. जिसमे डॉक्टर, नर्स व स्टाफ का आवास भी है. अस्पताल परिसर में एक जांच घर भी बनाया गया था.
बनने के बाद से हैंडओवर नहीं : लेकिन,भवन के निर्माण के बाद भी स्वास्थ्य विभाग ने इस सरकारी अस्पताल का हैंडओवर नहीं लिया. जिसके कारण 15 वर्ष में एक भी मरीज का इलाज यहां नहीं हो सका. इस इलाके के लोग आज भी बेहतर इलाज के लिए शहर जाने को विवश हैं. लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है.
करोड़ों खर्च नतीजा 'खंडहर' : आम जनता के करोड़ों की गाढ़ी कमाई खर्च करने के बाद भी पब्लिक को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं नहीं मिलती. मुजफ्फरपुर के सरैया जैसे न जाने कितने अस्पताल ऐसे हैं जो उद्घाटन का मुंह तक नहीं देख पाए. सरकारी खजाने से पैसा खर्च करने के बाद भी लोग स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. आज इलाके की जनता पूछ रही है कि जब अस्पताल खोलना नहीं था तो फिर इसे बनाया क्यों गया?
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