तूतीकोरिन: तमिलनाडु में थूथुकुडी जिला के ओट्टापीदारम विधानसभा क्षेत्र में सेकरकुडी नाम के एक गांव की अपनी अलग ही पहचान है. इस गांव में 5 हजार से ज्यादा परिवारों की आबादी रहती है. यह गांव इसलिए भी चर्चित है क्योंकि, यहां सैन्य सेवा की एक लंबी और गौरवशाली परंपरा रही है, जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुई थी और अब तक जारी है.
सेकरकुडी गांव में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान से सेना में शामिल होने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. इस गांव में लगभग प्रत्येक घर का एक सदस्य ऐसा है जो सशस्त्र बलों में सेवा कर रहा है या फिर अपनी सेवा दे चुका है.
कुछ परिवारों में, यह परंपरा तीन पीढ़ियों से चली आ रही है. जहां दादा, पिता और बेटे सेना में शामिल होकर देश की सेवा दे चुके हैं या फिर देश की माटी का मान बढ़ा रहे हैं. अनुमान है कि 2,000 से ज़्यादा ग्रामीण वर्तमान में सेना, नौसेना या तमिलनाडु पुलिस में सेवा कर रहे हैं और 3,000 से ज्यादा भूतपूर्व सैनिक हैं. सेना से इस गहरे जुड़ाव ने इस गांव को एक अलग ही पहचान दी है, जहां युवा पुरुष सैनिक बनने की आकांक्षा रखते हैं और युवतियां अक्सर सैन्य परिवारों में विवाह करती हैं.
"अमरन" एक ऐसी फिल्म जिसे लोग को आ रही पसंद
शिवकार्तिकेयन अभिनीत "अमरन" की हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ने सेकरकुडी के निवासियों के दिलों को छू लिया है. मेजर मुकुंद वरदराजन के जीवन पर आधारित यह फिल्म, जिन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था, इस सैन्य गांव के लिए विशेष रूप से प्रभावशाली रही है.
सैनिकों ने मूवी देखकर क्या कहा..
नायक अकिनी मुथु, जो वर्तमान में सेना में सेवारत हैं, ने दिवाली की छुट्टियों के दौरान अपने परिवार के साथ "अमरन" देखने का अपना अनुभव साझा किया. उन्होंने सैन्य जीवन की चुनौतियों और बलिदानों को इस तरह से व्यक्त करने की फिल्म की क्षमता पर प्रकाश डाला कि उनका परिवार, विशेष रूप से उनके बच्चे आसानी से समझ सकें.
1971 के पूर्वी पाकिस्तान युद्ध के एक अनुभवी सोमसुंदर पेरुमल ने भी इस भावना को दोहराया. उन्होंने अपनी सेवा के दौरान आने वाली कठिनाइयों को याद किया, जिसमें उनकी शादी के तुरंत बाद युद्ध के लिए रवाना होना और युद्ध के मैदान पर हमेशा मौजूद खतरा शामिल है. उन्होंने "अमरन" और मेजर मुकुंद वरदराजन के जीवन के चित्रण के लिए अपनी प्रशंसा व्यक्त की और उम्मीद किया कि है , अन्य सैनिकों के बलिदान का सम्मान करने के लिए और अधिक फिल्में बनाई जाएंगी.
मेजर मुकुंद वरदराजन की कहानी
राजकुमार पेरियासामी द्वारा निर्देशित "अमरन" मेजर मुकुंद वरदराजन की कहानी है, जो उनकी पत्नी इंदु के साथ उनकी प्रेम कहानी से शुरू होकर जम्मू-कश्मीर में उनके वीरतापूर्ण कार्यों पर खत्म होती है. 25 अप्रैल, 2014 को मेजर वरदराजन ने शोपियां जिले के एक रिहायशी इलाके में छिपे आतंकवादियों के खिलाफ एक अभियान का नेतृत्व किया था. उन्होंने बहादुरी से तीन आतंकवादियों को एक नजदीकी मुठभेड़ में मार गिराया, लेकिन इस प्रक्रिया में उन्हें घातक चोटें आईं. उनके बलिदान के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार, अशोक चक्र से सम्मानित किया गया.
"अमरन" ने सेना से गहराई से जुड़े एक गांव सेकराकुडी के निवासियों को एक शक्तिशाली सिनेमाई अनुभव प्रदान किया है. एक सैनिक के जीवन, प्रेम और बलिदान का फिल्म में प्रामाणिक चित्रण ग्रामीणों के दिलों में उतर गया है, जिससे उन्हें अपने परिवार के सदस्यों और पड़ोसियों के अनुभवों को समझने का एक नया नज़रिया मिला है, जिन्होंने देश की सेवा की है.
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