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पैरों से लाचार, फिर भी बने डिलीवरी बॉय, दूसरों के लिए बने प्रेरणा - 3 Specially Abled Delievery Agents

Specially Abled Delievery Agents: असम के गुवाहाटी में शारीरिक रूप से विकलांग तीन लोग डिलीवरी बॉय के रूप में काम करके ना केवल खुशनुमा जिंदगी जी रहे हैं, ब्लकि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन रहे हैं. अपनी तिपहिया साइकिलों पर सवार होकर वे जीवन की राह पर चल पड़े हैं और एक नई दिशा की ओर अग्रसर हैं. पढ़ें ईटीवी भारत की खबर...

Specially Abled Delievery Agents
गुवाहाटी की सड़को पर पैर ना होते हुए कर रहे तीन विकलांग डिलीवरी बॉय की नौकरी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 26, 2024, 7:25 PM IST

गुवाहाटी: असम के गुवाहाटी की गलियों में तीन खास लोग घूम रहे हैं, अनवर हुसैन, सत्तार अली और समसुल हक. आप सोच रहे होंगे कि आखिर उन्हें खास क्या बनाता है? वैसे तो वे खास इस मायने में हैं कि वे अपने दो पैरों के बिना जीवन की राह पर हैं, लेकिन यह उनकी इच्छाशक्ति और मानसिक शक्ति है. तमाम बाधाओं के बीच भी उनका अडिग स्वभाव और जीवन के प्रति उनका प्यार उन्हें दूसरों से खास और अलग बनाता है.

अपने सामने आने वाली तमाम बाधाओं को पार करते हुए इन तीनों लोगों ने दूसरों की सहानुभूति स्वीकार नहीे की, बल्कि गर्व के साथ अपना जीवन जीने के लिए फूड डिलीवरी बॉय की नौकरी अपना ली है. हर दिन अनवर हुसैन, सत्तार अली और समसुल हक की तिकड़ी गुवाहाटी के नागरिकों को घर-घर जाकर खाना देकर अपना मिशन शुरू करते हैं.

दोनों पैरों को खोकर अनवर स्विगी में कर रहे जॉब
एक समय ऐसा भी था जब युवा अनवर ने एक नहीं, बल्कि दो बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी. लेकिन अब वह बिल्कुल अलग इंसान है, जो जीवन से प्यार करता है. उन्होंने बहुत कुछ खोने के बावजूद जीवन का जश्न मनाना सीख लिया है. अनवर हुसैन मैट्रिक की परीक्षा देने के बाद ही रोजी-रोटी की तलाश में बिलासीपारा से गुवाहाटी आ गए थे, लेकिन 2015 में एक सड़क दुर्घटना में उनके दोनों पैर खत्म हो गए. नतीजतन अनवर को अपनी जिंदगी के सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ा. 7 साल तक बिस्तर पर पड़े रहने के बाद अनवर अब स्विगी में काम करते हैं. ट्राइसाइकिल को अपना रथ बनाकर वे हर रोज गुवाहाटी के ग्राहकों को खाना मुहैया करा रहे हैं और आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

एक और शख्स हैं सत्तार अली
एक समय सत्तार अली की जिंदगी बहुत अच्छी चल रही थी, लेकिन 2015 में इसमें बड़ा बदलाव आया जब पेड़ से गिरने के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई. 8 साल तक घर के अंदर एकांत में रहने के बाद सत्तार अली की मुलाकात दो अन्य दिव्यांगों से हुई, फिर उन्होंने फिर से जिंदगी का जश्न मनाने का सपना देखना शुरू कर दिया. अनवर की तरह सत्तार अली अब स्विगी के लिए फूड डिलीवरी एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं.

लकवा ने मारा, अब जोमैटो में बने डिलीवरी बॉय
इसी तरह समसुल हक भी परिवार और शरीर की बंदिशों से बाहर आ गए हैं. 15 साल पहले समसुल का एक्सीडेंट हुआ था, जिसकी वजह से उन्हें लकवा मार गया था. अनवर और सत्तार की तरह समसुल ने भी ऐसी जिंदगी जी, जिसमें खूबसूरती और उजले पक्ष की कमी थी. जैसे-जैसे समय बीतता गया, समसुल को एहसास हुआ कि वह अकेला नहीं है. उसके जैसे सैकड़ों लोग हैं, जो अनवर और सत्तार की तरह ही मुश्किलों से जूझ रहे हैं, जिन्होंने जिंदगी की तमाम चुनौतियों का सामना किया है. समसुल ने सभी बाधाओं को तोड़ने और सर्वोत्तम संभव तरीके से जीवन जीने का फैसला किया. अब समसुल जोमैटो से जुड़े एक गर्वित फूड डिलीवरी बॉय हैं. उनकी जिंदगी पहले जैसी नहीं रही.

अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा
कुछ अप्रत्याशित घटनाओं की वजह से कोई शारीरिक शक्ति खो देता है, कोई मानसिक क्षमता खो देता है, लेकिन इससे उनका जीवन खत्म नहीं होता. जो लोग जिंदगी के मतलब के लिए रो रहे हैं, उन्हें अब अनवर, सत्तार और समसुल जैसे लोग सबक सिखा रहे हैं. हर रोज जब वे गुवाहाटी की सड़कों पर घूमते हैं तो सिर्फ यही नहीं कि वे खुद को साबित करते हैं बल्कि कई ऐसे लोगों को प्रेरित करते हैं, जो अपनी उम्मीद, आकांक्षा, सपने और जिंदगी से प्यार को खो चुके हैं. हर रोज वे एक ही नारे के साथ सड़कों पर निकलते हैं, एक ही आवाज में कहते हैं, 'हम थके नहीं हैं, हम थके नहीं हैं'.

पढ़ें: 'मेरी मंजिलें कठिन हैं, मुश्किलों से कह दो मेरा हौसला बड़ा है', अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर भारतीय पर्वतारोहियों पर विशेष

गुवाहाटी: असम के गुवाहाटी की गलियों में तीन खास लोग घूम रहे हैं, अनवर हुसैन, सत्तार अली और समसुल हक. आप सोच रहे होंगे कि आखिर उन्हें खास क्या बनाता है? वैसे तो वे खास इस मायने में हैं कि वे अपने दो पैरों के बिना जीवन की राह पर हैं, लेकिन यह उनकी इच्छाशक्ति और मानसिक शक्ति है. तमाम बाधाओं के बीच भी उनका अडिग स्वभाव और जीवन के प्रति उनका प्यार उन्हें दूसरों से खास और अलग बनाता है.

अपने सामने आने वाली तमाम बाधाओं को पार करते हुए इन तीनों लोगों ने दूसरों की सहानुभूति स्वीकार नहीे की, बल्कि गर्व के साथ अपना जीवन जीने के लिए फूड डिलीवरी बॉय की नौकरी अपना ली है. हर दिन अनवर हुसैन, सत्तार अली और समसुल हक की तिकड़ी गुवाहाटी के नागरिकों को घर-घर जाकर खाना देकर अपना मिशन शुरू करते हैं.

दोनों पैरों को खोकर अनवर स्विगी में कर रहे जॉब
एक समय ऐसा भी था जब युवा अनवर ने एक नहीं, बल्कि दो बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी. लेकिन अब वह बिल्कुल अलग इंसान है, जो जीवन से प्यार करता है. उन्होंने बहुत कुछ खोने के बावजूद जीवन का जश्न मनाना सीख लिया है. अनवर हुसैन मैट्रिक की परीक्षा देने के बाद ही रोजी-रोटी की तलाश में बिलासीपारा से गुवाहाटी आ गए थे, लेकिन 2015 में एक सड़क दुर्घटना में उनके दोनों पैर खत्म हो गए. नतीजतन अनवर को अपनी जिंदगी के सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ा. 7 साल तक बिस्तर पर पड़े रहने के बाद अनवर अब स्विगी में काम करते हैं. ट्राइसाइकिल को अपना रथ बनाकर वे हर रोज गुवाहाटी के ग्राहकों को खाना मुहैया करा रहे हैं और आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

एक और शख्स हैं सत्तार अली
एक समय सत्तार अली की जिंदगी बहुत अच्छी चल रही थी, लेकिन 2015 में इसमें बड़ा बदलाव आया जब पेड़ से गिरने के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई. 8 साल तक घर के अंदर एकांत में रहने के बाद सत्तार अली की मुलाकात दो अन्य दिव्यांगों से हुई, फिर उन्होंने फिर से जिंदगी का जश्न मनाने का सपना देखना शुरू कर दिया. अनवर की तरह सत्तार अली अब स्विगी के लिए फूड डिलीवरी एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं.

लकवा ने मारा, अब जोमैटो में बने डिलीवरी बॉय
इसी तरह समसुल हक भी परिवार और शरीर की बंदिशों से बाहर आ गए हैं. 15 साल पहले समसुल का एक्सीडेंट हुआ था, जिसकी वजह से उन्हें लकवा मार गया था. अनवर और सत्तार की तरह समसुल ने भी ऐसी जिंदगी जी, जिसमें खूबसूरती और उजले पक्ष की कमी थी. जैसे-जैसे समय बीतता गया, समसुल को एहसास हुआ कि वह अकेला नहीं है. उसके जैसे सैकड़ों लोग हैं, जो अनवर और सत्तार की तरह ही मुश्किलों से जूझ रहे हैं, जिन्होंने जिंदगी की तमाम चुनौतियों का सामना किया है. समसुल ने सभी बाधाओं को तोड़ने और सर्वोत्तम संभव तरीके से जीवन जीने का फैसला किया. अब समसुल जोमैटो से जुड़े एक गर्वित फूड डिलीवरी बॉय हैं. उनकी जिंदगी पहले जैसी नहीं रही.

अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा
कुछ अप्रत्याशित घटनाओं की वजह से कोई शारीरिक शक्ति खो देता है, कोई मानसिक क्षमता खो देता है, लेकिन इससे उनका जीवन खत्म नहीं होता. जो लोग जिंदगी के मतलब के लिए रो रहे हैं, उन्हें अब अनवर, सत्तार और समसुल जैसे लोग सबक सिखा रहे हैं. हर रोज जब वे गुवाहाटी की सड़कों पर घूमते हैं तो सिर्फ यही नहीं कि वे खुद को साबित करते हैं बल्कि कई ऐसे लोगों को प्रेरित करते हैं, जो अपनी उम्मीद, आकांक्षा, सपने और जिंदगी से प्यार को खो चुके हैं. हर रोज वे एक ही नारे के साथ सड़कों पर निकलते हैं, एक ही आवाज में कहते हैं, 'हम थके नहीं हैं, हम थके नहीं हैं'.

पढ़ें: 'मेरी मंजिलें कठिन हैं, मुश्किलों से कह दो मेरा हौसला बड़ा है', अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर भारतीय पर्वतारोहियों पर विशेष

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