नई दिल्ली : अंग्रेजी लेखिका नीलम सरन गौड़ और हिंदी उपन्यासकार संजीव सहित चौबीस लेखकों को 2023 का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया. यह पुरस्कार समारोह राष्ट्रीय साहित्य अकादमी की 70वीं वर्षगांठ के जश्न 'साहित्योत्सव' के साथ मनाया गया. पुरस्कार साहित्यिक कार्यों के लिए दिए गए, जिनमें कविता की नौ पुस्तकें, छह उपन्यास, लघु कथाएं की पांच, तीन निबंध और एक साहित्यिक अध्ययन शामिल हैं. संजीव को उनके उपन्यास 'मुझे पहचानो' के लिए और गौर को उनकी पुस्तक 'रिक्विम इन राग जानकी' के लिए प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला.
सादिक्वा नवाब साहेर को उर्दू में उनकी पुस्तक 'राजदेव की अमराई' के लिए पुरस्कार मिला, जबकि स्वर्णजीत सावी को पंजाबी में उनकी कविता पुस्तक 'मन दी चिप' के लिए पुरस्कार दिया गया. कविता में पुरस्कार पाने वालों में विजय वर्मा (डोगरी), विनोद जोशी (गुजराती), मंशूर बनिहाली (कश्मीरी), सोरोखैबम गंभिनी (मणिपुरी), आशुतोष परिदा (उड़िया), गजे सिंह राजपुरोहित (राजस्थानी), अरुण रंजन मिश्रा (संस्कृत) और विनोद आसुदानी (सिंधी) शामिल हैं.
गौड़, संजीव और सहर के अलावा, स्वप्नमय चक्रवर्ती (बंगाली), कृष्णत खोत (मराठी), और राजशेखरन देवीभारती (तमिल) जैसे लेखकों को उनके उपन्यासों के लिए सम्मानित किया गया है. लघुकथाओं के लिए, प्रणवज्योति डेका (असमिया), नंदेश्वर दैमन (बोडो), प्रकाश एस परिएंकर (कोंकणी), तारासीन बास्की (तुरिया चंद बास्की) (संताली) और टी पतंजलि शास्त्री (तेलुगु) को पुरस्कार मिला. लक्ष्मीशा तोलपाडी (कन्नड़), बासुकीनाथ झा (मैथिली) और जुधाबीर राणा (नेपाली) को उनके निबंधों के लिए पुरस्कार मिला, जबकि ईवी रामकृष्णन को मलयालम में उनके साहित्यिक अध्ययन के लिए पुरस्कार दिया गया.
पुरस्कार समारोह में बोलते हुए, ज्ञानपीठ विजेता ओडिया लेखिका प्रतिभा रे ने कहा कि 'भाषा की प्रगति के बिना, कोई भी संस्कृति लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकती'. उन्होंने कहा कि साहित्य सभी को जोड़ता है. साहित्य कभी विभाजित नहीं करता है. इसलिए, लेखन हमेशा सार्वभौमिक होता है और विभिन्न परिवर्तनों के समय भी अपनी चमक नहीं खोता है. सभी भारतीय भाषाएं हमें ताकत देती हैं.
इस कार्यक्रम में साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक, उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा और सचिव के श्रीनिवासराव भी उपस्थित थे. कौशिक ने अपने कार्यों के माध्यम से 'मानवता की रक्षा' करने के लिए लेखकों और साहित्यकारों की सराहना की. उन्होंने कहा कि यह सच है कि इतिहास में किसी भी समय साहित्य रचना करना कभी भी सुविधाजनक नहीं रहा है. एक साहित्यकार हमेशा गर्म अंगारों पर चलता है ताकि वह आम आदमी का प्रवक्ता बन सके.
कौशिक ने कहा कि वे बेजुबानों की आवाज सुन सकते हैं, वे उनकी आंखें हैं जो देख नहीं सकते. वे कांटे पर पैर रखने वाले का दर्द महसूस करते हैं. पुरस्कारों का चयन जूरी सदस्यों द्वारा सर्वसम्मति से किए गए चयन या बहुमत के आधार पर किए गए चयन के आधार पर किया जाता है.
पुरस्कार, पुरस्कार के वर्ष से ठीक पहले के पांच वर्षों के दौरान, यानी 1 जनवरी 2017 से 31 दिसंबर 2021 के बीच पहली बार प्रकाशित पुस्तकों से संबंधित हैं. लेखकों और कवियों को तांबे की पट्टिका, एक शॉल और 1 लाख रुपये की राशि मिली.