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मालेगांव ब्लास्ट केस में समीर शरद कुलकर्णी को बड़ी राहत, SC ने ट्रायल पर लगाई रोक - Malegaon Bomb Blast Case

2008 Malegaon Bomb Blast Case: मालेगांव बम विस्फोट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी समीर शरद कुलकर्णी के खिलाफ मुकदमा चलाने पर रोक लगा दी है. याचिकाकर्ता ने कहा कि एनआईए ने आरोप पत्र दाखिल करने से पहले 2011 में तत्कालीन केंद्र सरकार (यूपीए) से अपेक्षित मंजूरी नहीं ली थी. अब इस मामले में अगली सुनवाई 23 जुलाई को होगी.

MALEGAON BOMB BLAST CASE
मालेगांव बम ब्लास्ट केस में SC ने समीर शरद कुलकर्णी की ट्रायल पर लगाई रोक
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By Sumit Saxena

Published : Apr 30, 2024, 5:58 PM IST

नई दिल्ली: मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट से आरोपी समीर शरद कुलकर्णी को बड़ी राहत मिली है. शीर्ष अदालत ने मंगलवार को 2008 मालेगांव बम विस्फोट मामले के आरोपी समीर शरद कुलकर्णी के खिलाफ मुकदमे पर रोक लगा दी. न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आरोपपत्र दाखिल करने से पहले 2011 में तत्कालीन केंद्र सरकार से अपेक्षित मंजूरी नहीं ली थी.

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कुलकर्णी का प्रतिनिधित्व वकील विष्णु शंकर जैन ने किया. बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा उन्हें राहत देने से इनकार करने के बाद उन्होंने शीर्ष अदालत का रुख किया. पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई, 2024 को तय की है. 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले के आरोपियों में से एक समीर कुलकर्णी ने विशेष एनआईए अदालत, मुंबई में मुकदमे को चुनौती देते हुए कहा कि इसमें गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 45 के अनुसार सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गई वैध मंजूरी का अभाव है.

कुलकर्णी ने तर्क दिया कि उनका प्राथमिक मामला यह है कि राज्य सरकार या केंद्र सरकार के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए कोई वैध पूर्व मंजूरी नहीं होने के कारण मुकदमा आगे नहीं बढ़ सकता है. उनकी याचिका में तर्क दिया गया कि कुछ राष्ट्र-विरोधी तत्व जो भारत सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं और अराजकता और उथल-पुथल का माहौल बनाना चाहते हैं. पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों के इशारे पर काम करते हुए, 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव शहर के आसपास बम विस्फोट किया गया, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए.

याचिका में कहा गया है, 'महाराष्ट्र पुलिस ने याचिकाकर्ता और अन्य सह-अभियुक्तों को मामले में फंसाया. भले ही वे निर्दोष थे और भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि याचिकाकर्ता और अन्य को मामले में फंसाया गया है. यह मामला तथाकथित भगवा आतंकवाद के सिद्धांत को स्थापित करने के लिए है, जिसे राजनीतिक क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रचारित किया गया था. यहां तक कि तत्कालीन गृह मंत्री (पी.चिदंबरम) ने भी इस तरह की शब्दावली का इस्तेमाल किया था'.

कुलकर्णी ने कहा कि एनआईए ने यूएपीए की धारा 45(2) के तहत केंद्र से मंजूरी प्राप्त किए बिना 13 मई 2016 को आरोप पत्र दायर किया, लेकिन धारा 11 एनआईए अधिनियम के तहत केंद्र द्वारा स्थापित अदालत द्वारा मुकदमा नहीं चलाया जा रहा है. वह एनआईए अधिनियम की धारा 22 के तहत राज्य सरकार द्वारा स्थापित अदालत द्वारा मुकदमा चलाया जा रहा था. याचिका में कहा गया, 'यूएपीए के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा मुकदमा चलाने की मंजूरी के अभाव में, याचिकाकर्ता पर उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है'.

पढ़ें: पतंजलि मामले में अब IMA पर एक्शन, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- तैयार रहिए

नई दिल्ली: मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट से आरोपी समीर शरद कुलकर्णी को बड़ी राहत मिली है. शीर्ष अदालत ने मंगलवार को 2008 मालेगांव बम विस्फोट मामले के आरोपी समीर शरद कुलकर्णी के खिलाफ मुकदमे पर रोक लगा दी. न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आरोपपत्र दाखिल करने से पहले 2011 में तत्कालीन केंद्र सरकार से अपेक्षित मंजूरी नहीं ली थी.

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कुलकर्णी का प्रतिनिधित्व वकील विष्णु शंकर जैन ने किया. बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा उन्हें राहत देने से इनकार करने के बाद उन्होंने शीर्ष अदालत का रुख किया. पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई, 2024 को तय की है. 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले के आरोपियों में से एक समीर कुलकर्णी ने विशेष एनआईए अदालत, मुंबई में मुकदमे को चुनौती देते हुए कहा कि इसमें गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 45 के अनुसार सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गई वैध मंजूरी का अभाव है.

कुलकर्णी ने तर्क दिया कि उनका प्राथमिक मामला यह है कि राज्य सरकार या केंद्र सरकार के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए कोई वैध पूर्व मंजूरी नहीं होने के कारण मुकदमा आगे नहीं बढ़ सकता है. उनकी याचिका में तर्क दिया गया कि कुछ राष्ट्र-विरोधी तत्व जो भारत सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं और अराजकता और उथल-पुथल का माहौल बनाना चाहते हैं. पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों के इशारे पर काम करते हुए, 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव शहर के आसपास बम विस्फोट किया गया, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए.

याचिका में कहा गया है, 'महाराष्ट्र पुलिस ने याचिकाकर्ता और अन्य सह-अभियुक्तों को मामले में फंसाया. भले ही वे निर्दोष थे और भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि याचिकाकर्ता और अन्य को मामले में फंसाया गया है. यह मामला तथाकथित भगवा आतंकवाद के सिद्धांत को स्थापित करने के लिए है, जिसे राजनीतिक क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रचारित किया गया था. यहां तक कि तत्कालीन गृह मंत्री (पी.चिदंबरम) ने भी इस तरह की शब्दावली का इस्तेमाल किया था'.

कुलकर्णी ने कहा कि एनआईए ने यूएपीए की धारा 45(2) के तहत केंद्र से मंजूरी प्राप्त किए बिना 13 मई 2016 को आरोप पत्र दायर किया, लेकिन धारा 11 एनआईए अधिनियम के तहत केंद्र द्वारा स्थापित अदालत द्वारा मुकदमा नहीं चलाया जा रहा है. वह एनआईए अधिनियम की धारा 22 के तहत राज्य सरकार द्वारा स्थापित अदालत द्वारा मुकदमा चलाया जा रहा था. याचिका में कहा गया, 'यूएपीए के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा मुकदमा चलाने की मंजूरी के अभाव में, याचिकाकर्ता पर उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है'.

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