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उत्तराखंड में 'गायब' हुये 187 गुलदार, टाइगर्स का टेरर बनी वजह! हकीकत जानने में जुटा वन विभाग - Leopard in Uttarakhand - LEOPARD IN UTTARAKHAND

Leopard in Uttarakhand, उत्तराखंड के जंगलों से लापता गुलदारों को लेकर रहस्य बरकरार है. यहां एक, दो या 10 नहीं बल्कि पूरे 187 गुलदार चार सालों के भीतर रिकॉर्ड से गायब हुए हैं. आंकड़ा सामने आने के बाद से ही वन महकमा इसके पीछे के असल कारणों को जानने में जुटा हुआ है. हालांकि, वाइल्डलाइफ विशेषज्ञ आंकड़ों में आई कमी को लेकर अपना विशेष तर्क भी दिया है.

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उत्तराखंड में 'गायब' हुये 187 गुलदार (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 26, 2024, 4:43 PM IST

Updated : Jul 26, 2024, 8:24 PM IST

उत्तराखंड में 'गायब' हुये 187 गुलदार (Etv Bharat)

देहरादून: देश में गुलदारों की बढ़ती संख्या जहां वन्यजीव प्रेमियों और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को प्रफुल्लित कर रही है, तो वहीं उत्तराखंड लंबे समय से इस बात को लेकर चिंतन में जुटा है कि आखिरकार राज्य के 187 गुलदार कहां चले गए. बात थोड़ा अजीब जरूर लगेगी लेकिन यह गुलदारों की संख्या को लेकर यह एक कड़वी हकीकत है. दरअसल, देश में गुलदारों की संख्या में इजाफा तो हुआ है लेकिन उत्तराखंड उन चुनिंदा राज्यों में शुमार है जहां गुलदारों की संख्या पहले से कम रिकॉर्ड की गई है. हैरानी की बात यह है कि गुलदारों की संख्या में लिए कभी 10, 20 या 50 की नहीं बल्कि पूरे 187 की है.

ये हैं भारतीय वन्य जीव संस्थान के आंकड़े: भारतीय वन्यजीव संस्थान ने देश में बाघों की संख्या को जानने के लिए गणना के दौरान गुलदारों की संख्या का भी आकलन किया. साल 2018 के मुकाबले 2022 में गुलदारों की संख्या करीब 8 प्रतिशत वृद्धि के साथ रिकॉर्ड की गई. साल 2018 में जहां देश में करीब 12852 गुलदार रिकॉर्ड किए गए तो वहीं 2022 में ये आंकड़ा 13874 के करीब पहुंच गया. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के लिए यह आंकड़ा बेहद सुखद था, लेकिन, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में गुलदारों की संख्या में कमी आंकी गई. गुलदारों की संख्या में कमी वाले राज्य केरल, तेलंगाना, चंडीगढ़ और ओडिशो थे. जिसमें उत्तराखंड में सबसे ज्यादा कमी रिकॉर्ड की गई. यहां साल 2018 में कुल 839 गुलदार थे, जो 2022 की गिनती में 652 ही रह गए हैं.

टाइगर्स के कारण गिनती से गायब हुए गुलदार: उत्तराखंड में 187 गुलदारों के कम होने के पीछे बाघों को जिम्मेदार माना जा रहा है. महकमे के जिम्मेदार अधिकारी और वाइल्डलाइफ विशेषज्ञ ये मानते हैं कि उत्तराखंड में टाइगर्स की संख्या जिस तरह तेजी से बढ़ी है, उसका प्रभाव गुलदारों पर पड़ा है. गुलदारों को प्राकृतिक वास से बाहर होना पड़ रहा है. ताकतवर टाइगर उन स्थानों पर अपनी जगह बना रहे हैं. इसकी वजह से गुलदारों के प्रजनन पर भी इसका असर पड़ रहा है. गुलदारों में ब्रीडिंग ना होने से वंश वृद्धि पर इसका असर हो रहा है, जबकि प्राकृतिक मृत्यु की संख्या जस की तस है, लिहाजा इन परिस्थितियों में गुलदार की संख्या में कमी आना लाजमी है.


मानव वन्यजीव संघर्ष में गुलदार सबसे आगे: उत्तराखंड में मानव वन्य जीव संघर्ष एक बड़ी समस्या है. इसके लिए लगातार बड़े स्तर पर वन विभाग प्रयास भी करता रहा है. खास बात यह है कि इस मामले में गुलदार सबसे आगे रहे हैं. इसकी वजह यह भी है कि जंगलों से बाहर आ चुके गुलदार इंसानों की लापरवाही के चलते धीरे-धीरे बस्तियों तक पहुंचने लगे हैं. मवेशियों के आसान शिकार के कारण गुलदार इनके पीछे पहले बस्तियों तक पहुंचते हैं. फिर इंसानों को ही निवाला बनाने लगते हैं. उधर वन्यजीवों के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र होने के बावजूद लोगों की लापरवाही उनके लिए बड़ी मुसीबत भी बन जाती है. ऐसे में लोगों को घरों के आसपास साफ सफाई करने से लेकर रात के समय सजगता बरतने की जरूरत होती है.

उत्तराखंड वन विभाग लगातार आंकड़े जताकर ऐसे तमाम संवेदनशील क्षेत्रों को भी चिन्हित कर रहा है जहां ऐसे वन्य जीव का खतरा अधिक रहता है. इसके अलावा वन्यजीवों की सुरक्षा और उनके संवर्धन पर भी विभाग अध्ययन के बाद नए कदम उठाता है. वैसे तो वन विभाग के गुलदारों की संख्या कम होने के पीछे अपने कई तर्क है लेकिन इसके बावजूद विभाग अध्ययन के जरिए इसके पीछे की बाकी कारणों को भी जानने का प्रयास करने में जुटा हुआ है.

पढे़ं-गुलदार और बाघ की धमक से सहमे लोग, लगातार हो रही घटनाओं से लोगों में आक्रोश, जानिए क्या कह रहे जिम्मेदार

पढे़ं-उत्तराखंड में कब थमेगा मानव वन्यजीव संघर्ष? करोड़ों खर्च कर दिए नतीजा फिर भी सिफर

उत्तराखंड में 'गायब' हुये 187 गुलदार (Etv Bharat)

देहरादून: देश में गुलदारों की बढ़ती संख्या जहां वन्यजीव प्रेमियों और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को प्रफुल्लित कर रही है, तो वहीं उत्तराखंड लंबे समय से इस बात को लेकर चिंतन में जुटा है कि आखिरकार राज्य के 187 गुलदार कहां चले गए. बात थोड़ा अजीब जरूर लगेगी लेकिन यह गुलदारों की संख्या को लेकर यह एक कड़वी हकीकत है. दरअसल, देश में गुलदारों की संख्या में इजाफा तो हुआ है लेकिन उत्तराखंड उन चुनिंदा राज्यों में शुमार है जहां गुलदारों की संख्या पहले से कम रिकॉर्ड की गई है. हैरानी की बात यह है कि गुलदारों की संख्या में लिए कभी 10, 20 या 50 की नहीं बल्कि पूरे 187 की है.

ये हैं भारतीय वन्य जीव संस्थान के आंकड़े: भारतीय वन्यजीव संस्थान ने देश में बाघों की संख्या को जानने के लिए गणना के दौरान गुलदारों की संख्या का भी आकलन किया. साल 2018 के मुकाबले 2022 में गुलदारों की संख्या करीब 8 प्रतिशत वृद्धि के साथ रिकॉर्ड की गई. साल 2018 में जहां देश में करीब 12852 गुलदार रिकॉर्ड किए गए तो वहीं 2022 में ये आंकड़ा 13874 के करीब पहुंच गया. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के लिए यह आंकड़ा बेहद सुखद था, लेकिन, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में गुलदारों की संख्या में कमी आंकी गई. गुलदारों की संख्या में कमी वाले राज्य केरल, तेलंगाना, चंडीगढ़ और ओडिशो थे. जिसमें उत्तराखंड में सबसे ज्यादा कमी रिकॉर्ड की गई. यहां साल 2018 में कुल 839 गुलदार थे, जो 2022 की गिनती में 652 ही रह गए हैं.

टाइगर्स के कारण गिनती से गायब हुए गुलदार: उत्तराखंड में 187 गुलदारों के कम होने के पीछे बाघों को जिम्मेदार माना जा रहा है. महकमे के जिम्मेदार अधिकारी और वाइल्डलाइफ विशेषज्ञ ये मानते हैं कि उत्तराखंड में टाइगर्स की संख्या जिस तरह तेजी से बढ़ी है, उसका प्रभाव गुलदारों पर पड़ा है. गुलदारों को प्राकृतिक वास से बाहर होना पड़ रहा है. ताकतवर टाइगर उन स्थानों पर अपनी जगह बना रहे हैं. इसकी वजह से गुलदारों के प्रजनन पर भी इसका असर पड़ रहा है. गुलदारों में ब्रीडिंग ना होने से वंश वृद्धि पर इसका असर हो रहा है, जबकि प्राकृतिक मृत्यु की संख्या जस की तस है, लिहाजा इन परिस्थितियों में गुलदार की संख्या में कमी आना लाजमी है.


मानव वन्यजीव संघर्ष में गुलदार सबसे आगे: उत्तराखंड में मानव वन्य जीव संघर्ष एक बड़ी समस्या है. इसके लिए लगातार बड़े स्तर पर वन विभाग प्रयास भी करता रहा है. खास बात यह है कि इस मामले में गुलदार सबसे आगे रहे हैं. इसकी वजह यह भी है कि जंगलों से बाहर आ चुके गुलदार इंसानों की लापरवाही के चलते धीरे-धीरे बस्तियों तक पहुंचने लगे हैं. मवेशियों के आसान शिकार के कारण गुलदार इनके पीछे पहले बस्तियों तक पहुंचते हैं. फिर इंसानों को ही निवाला बनाने लगते हैं. उधर वन्यजीवों के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र होने के बावजूद लोगों की लापरवाही उनके लिए बड़ी मुसीबत भी बन जाती है. ऐसे में लोगों को घरों के आसपास साफ सफाई करने से लेकर रात के समय सजगता बरतने की जरूरत होती है.

उत्तराखंड वन विभाग लगातार आंकड़े जताकर ऐसे तमाम संवेदनशील क्षेत्रों को भी चिन्हित कर रहा है जहां ऐसे वन्य जीव का खतरा अधिक रहता है. इसके अलावा वन्यजीवों की सुरक्षा और उनके संवर्धन पर भी विभाग अध्ययन के बाद नए कदम उठाता है. वैसे तो वन विभाग के गुलदारों की संख्या कम होने के पीछे अपने कई तर्क है लेकिन इसके बावजूद विभाग अध्ययन के जरिए इसके पीछे की बाकी कारणों को भी जानने का प्रयास करने में जुटा हुआ है.

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Last Updated : Jul 26, 2024, 8:24 PM IST
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