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उत्तराखंड में रिकॉर्ड हुए 124 स्नो लेपर्ड, जानिए दुर्लभ प्रजाति के हिम तेंदुए की खासियत

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 31, 2024, 10:14 PM IST

Updated : Jan 31, 2024, 10:33 PM IST

Snow Leopards in Uttarakhand भारत के पांच हिमालयी राज्यों में स्नो लेपर्ड पाए जाते हैं. स्नो लेपर्ड दुर्लभ प्रजाति का जीव है, जो तेजी से विलुप्त होने की कगार पर है, लेकिन हाल ही में जारी रिपोर्ट में इनकी अच्छी खासी संख्या रिकॉर्ड की गई है. साल 2016 की गणना में भारत में 516 स्नो लेपर्ड पाए गए थे. इस बार इनकी संख्या बढ़कर 718 हो गई है. अच्छी खबर ये है कि उत्तराखंड में स्नो लेपर्ड की संख्या में इजाफा हुआ है. उत्तराखंड में स्नो लेपर्ड की संख्या 124 रिकॉर्ड की गई है. जानिए क्या है स्नो लेपर्ड और क्यों मंडरा रहा इन पर संकट...

Snow Leopards in Uttarakhand
उत्तराखंड में स्नो लेपर्ड

उत्तरकाशी: उत्तराखंड में दुर्लभ प्रजाति में शामिल स्नो लेपर्ड यानी हिम तेंदुए की संख्या 124 रिकॉर्ड की गई है. विश्व धरोहर नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व और उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क में अक्सर स्नो लेपर्ड का दिखना, इनके कुनबे के बढ़ने का साफ इशारा माना जा रहा था, लेकिन अब आंकड़े सामने आने के बाद स्पष्ट हो गया है कि उत्तराखंड का हिमालयी क्षेत्र स्नो लेपर्ड का रास आ रहा है. साथ ही उनके प्रवास के लिए मुफीद है.

दरअसल, 30 जनवरी को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक स्नो लेपर्ड से जुड़ी रिपोर्ट जारी की थी. जिसके तहत भारत में 718 स्नो लेपर्ड रिकॉर्ड किए गए हैं. भारत में स्नो लेपर्ड यानी बर्फीली बड़ी बिल्लियों की वैश्विक आबादी का करीब 10-15% हिस्सा हैं. 'भारत में स्नो लेपर्ड की संख्या का आकलन' (Snow Leopard Population Assessment in India) के मुताबिक, लद्दाख में 477, उत्तराखंड में 124, हिमाचल प्रदेश में 51, अरुणाचल प्रदेश में 36, सिक्किम में 21 और जम्मू कश्मीर में 9 स्नो लेपर्ड यानी हिम तेंदुए हैं.

Snow Leopards in Uttarakhand
भारत में स्नो लेपर्ड के आंकड़े

स्नो लेपर्ड पांच हिमालयी राज्यों जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के 100,146 वर्ग किमी बर्फीले जंगलों में फैले हुए हैं. हेमिस नेशनल पार्क, गंगोत्री नेशनल पार्क, कंचनजंगा नेशनल पार्क और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क कुछ संरक्षित क्षेत्र हैं, जहां स्नो लेपर्ड पाए जाते हैं. उत्तराखंड की बात करें तो चमोली के विश्व धरोहर नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व और उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क स्नो लेपर्ड के घर हैं. जबकि, उत्तरकाशी में देश का पहला हिम तेंदुआ संरक्षण केंद्र स्थापित किया जा रहा है.

दुर्लभ स्नो लेपर्ड को जानिए: स्नो लेपर्ड दुनिया की दुर्लभ प्रजातियों में शामिल है. यह 10 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर पाया जाता है. स्नो लेपर्ड बर्फीले क्षेत्र में निवास करने वाला स्लेटी और सफेद फर वाला विडाल कुल व पैंथर उप कुल का स्तनधारी वन्यजीव है. यह तेंदुए की विश्व स्तर पर विलुप्त प्राय प्रजाति है. स्नो लेपर्ड खासकर मध्य एशिया के बर्फीले पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है, लेकिन प्राकृतिक वास के नुकसान, शिकार और संघर्ष के कारण स्नो लेपर्ड की संख्या में भारी कमी देखी गई है.

Snow Leopards in Uttarakhand
स्नो लेपर्ड के बारे में कुछ जानकारियां

कैसा दिखता है स्नो लेपर्ड: स्नो लेपर्ड करीब 1.4 मीटर लंबे होते हैं. इनकी पूंछ करीबन 90 से 100 सेंटीमीटर तक होती है. इनका वजन 75 किलो तक हो सकता है. जबकि, इनकी खाल पर स्लेटी और सफेद फर होते हैं. साथ ही गहरे धब्बे होते हैं. इनकी पूंछ में धारियां बनी होती हैं. इनके फर काफी लंबे और मोटे होते हैं, जो इन्हें ऊंचे और ठंडे स्थानों पर भीषण सर्दी से बचा कर रखते हैं. स्नो लेपर्ड के पैर भी बड़े और ऊनी होते हैं. ताकि, बर्फ पर आसानी से चल फिर सकें.

रात में सक्रिय होते हैं स्नो लेपर्ड: ये बिल्ली परिवार की एकमात्र प्रजाति है, जो दहाड़ नहीं सकती है. स्नो लेपर्ड गुर्रा (बिल्ली के जैसी आवाज) निकाल सकती है. स्नो लेपर्ड ज्यादातर रात में सक्रिय होते हैं. ये अकेले रहने वाले वन्य जीव हैं. करीब 90 से 100 दिनों के गर्भाधान के बाद मादा 2 से 3 शावकों को जन्म देती है. स्नो लेपर्ड बड़ी आकार की बिल्लियां हैं. इनका शिकार लोग इनके फर के लिए करते हैं.

स्नो लेपर्ड से जुड़ी खबरें पढ़ें-

उत्तरकाशी: उत्तराखंड में दुर्लभ प्रजाति में शामिल स्नो लेपर्ड यानी हिम तेंदुए की संख्या 124 रिकॉर्ड की गई है. विश्व धरोहर नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व और उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क में अक्सर स्नो लेपर्ड का दिखना, इनके कुनबे के बढ़ने का साफ इशारा माना जा रहा था, लेकिन अब आंकड़े सामने आने के बाद स्पष्ट हो गया है कि उत्तराखंड का हिमालयी क्षेत्र स्नो लेपर्ड का रास आ रहा है. साथ ही उनके प्रवास के लिए मुफीद है.

दरअसल, 30 जनवरी को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक स्नो लेपर्ड से जुड़ी रिपोर्ट जारी की थी. जिसके तहत भारत में 718 स्नो लेपर्ड रिकॉर्ड किए गए हैं. भारत में स्नो लेपर्ड यानी बर्फीली बड़ी बिल्लियों की वैश्विक आबादी का करीब 10-15% हिस्सा हैं. 'भारत में स्नो लेपर्ड की संख्या का आकलन' (Snow Leopard Population Assessment in India) के मुताबिक, लद्दाख में 477, उत्तराखंड में 124, हिमाचल प्रदेश में 51, अरुणाचल प्रदेश में 36, सिक्किम में 21 और जम्मू कश्मीर में 9 स्नो लेपर्ड यानी हिम तेंदुए हैं.

Snow Leopards in Uttarakhand
भारत में स्नो लेपर्ड के आंकड़े

स्नो लेपर्ड पांच हिमालयी राज्यों जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के 100,146 वर्ग किमी बर्फीले जंगलों में फैले हुए हैं. हेमिस नेशनल पार्क, गंगोत्री नेशनल पार्क, कंचनजंगा नेशनल पार्क और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क कुछ संरक्षित क्षेत्र हैं, जहां स्नो लेपर्ड पाए जाते हैं. उत्तराखंड की बात करें तो चमोली के विश्व धरोहर नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व और उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क स्नो लेपर्ड के घर हैं. जबकि, उत्तरकाशी में देश का पहला हिम तेंदुआ संरक्षण केंद्र स्थापित किया जा रहा है.

दुर्लभ स्नो लेपर्ड को जानिए: स्नो लेपर्ड दुनिया की दुर्लभ प्रजातियों में शामिल है. यह 10 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर पाया जाता है. स्नो लेपर्ड बर्फीले क्षेत्र में निवास करने वाला स्लेटी और सफेद फर वाला विडाल कुल व पैंथर उप कुल का स्तनधारी वन्यजीव है. यह तेंदुए की विश्व स्तर पर विलुप्त प्राय प्रजाति है. स्नो लेपर्ड खासकर मध्य एशिया के बर्फीले पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है, लेकिन प्राकृतिक वास के नुकसान, शिकार और संघर्ष के कारण स्नो लेपर्ड की संख्या में भारी कमी देखी गई है.

Snow Leopards in Uttarakhand
स्नो लेपर्ड के बारे में कुछ जानकारियां

कैसा दिखता है स्नो लेपर्ड: स्नो लेपर्ड करीब 1.4 मीटर लंबे होते हैं. इनकी पूंछ करीबन 90 से 100 सेंटीमीटर तक होती है. इनका वजन 75 किलो तक हो सकता है. जबकि, इनकी खाल पर स्लेटी और सफेद फर होते हैं. साथ ही गहरे धब्बे होते हैं. इनकी पूंछ में धारियां बनी होती हैं. इनके फर काफी लंबे और मोटे होते हैं, जो इन्हें ऊंचे और ठंडे स्थानों पर भीषण सर्दी से बचा कर रखते हैं. स्नो लेपर्ड के पैर भी बड़े और ऊनी होते हैं. ताकि, बर्फ पर आसानी से चल फिर सकें.

रात में सक्रिय होते हैं स्नो लेपर्ड: ये बिल्ली परिवार की एकमात्र प्रजाति है, जो दहाड़ नहीं सकती है. स्नो लेपर्ड गुर्रा (बिल्ली के जैसी आवाज) निकाल सकती है. स्नो लेपर्ड ज्यादातर रात में सक्रिय होते हैं. ये अकेले रहने वाले वन्य जीव हैं. करीब 90 से 100 दिनों के गर्भाधान के बाद मादा 2 से 3 शावकों को जन्म देती है. स्नो लेपर्ड बड़ी आकार की बिल्लियां हैं. इनका शिकार लोग इनके फर के लिए करते हैं.

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Last Updated : Jan 31, 2024, 10:33 PM IST
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