स्व० बी०पी० मंडल जी की जयंती के अवसर पर आयोजित राजकीय समारोह में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया। pic.twitter.com/EbZVDLKxQz
— Nitish Kumar (@NitishKumar) August 25, 2024
पटना: 'मंडल मसीहा' और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल की आज 106वीं जयंती है. इस मौके पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. बिहार सरकार जयंती को राजकीय समारोह के तौर पर मना रही है. हर साल बिहार के मधेपुरा स्थित पैतृक गांव में समारोह का आयोजन किया जाता है. बीपी मंडल एक ऐसे नेता थे, जिन्होनें मंडल कमीशन से पिछड़ों को आरक्षण दिलवायी. इसलिए इन्हें मंडल मसीहा भी कहा जाता है.
बिहार के रहने वाले थे बीपी मंडल?: बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल उर्फ बीपी मंडल का जन्म 25 अगस्त 1918 को उत्तर प्रदेश के बनारस में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा पैतृक गांव मुरहो, मधेपुरा जिले के सिरिस इंस्टीट्यूट से हुई थी. सिरिस इंस्टीट्यूट अब नगर प्राथमिक मंडल उच्च विद्यालय मधेपुरा के नाम से जाना जाता है.
सरकारी नौकरी छोड़ दी: हाईस्कूल की पढ़ाई दरभंगा स्थित राज हाई स्कूल से की. उच्च शिक्षा के लिए उन्हें पटना भेजा गया और उन्होंने पटना कॉलेज से अंग्रेजी ऑनर्स से स्नातक तक की डिग्री हासिल की. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह राज्य प्रशासनिक सेवा में गए और 1945 से 1951 तक दंडाधिकारी के रूप में काम किया. हालांकि तत्कालीन भागलपुर के जिलाधिकारी से मतभेद के कारण उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया.
जमींदार परिवार से ताल्लुकः बीपी मंडल के पिता रास बिहारी लाल मंडल की गिनती मधेपुरा जिले के मुरहो गांव के एक जमींदार परिवार में होती थी. रास बिहारी मंडल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक और क्रांतिकारी विचार वाले व्यक्ति थे. उन्होंने रूढ़ियों और भेदभाव को खत्म करने के मकसद से बिहार में यादवों के लिए जनेऊ पहनने की मुहिम चलाई थी.
क्रांतिकारी स्वभाव विरासत में मिलाः रास बिहारी मंडल की मुहिम उस समय प्रतिक्रियावादी लग रही थी लेकिन उन्होंने कहा था कि ये स्वाभिमान का आंदोलन था. 1917 में मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड समिति के समक्ष यादवों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए उन्होंने वायसरॉय को परंपरागत ‘सलामी’ देने की जगह उनसे हाथ मिलाया था. उन्होंने सेना में यादवों के लिए रेजिमेंट की मांग भी की थी. इसीलिए कहा जाता है कि बीपी मंडल को क्रांतिकारी स्वभाव विरासत में मिला था.
हाईस्कूल से हक की लड़ाईः बीपी मंडल के पौत्र और जदयू नेता निखिल कुमार मंडल ने ईटीवी भारत से बातचीत में अपने दादाजी से जुड़ी रोचक कहानी साझा की. निखिल मंडल ने बताते हैं कि 1932 उनके दादाजी को हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए दरभंगा के प्रतिष्ठित राज उच्च विद्यालय में नामांकन करवाया गया. बीपी मंडल हॉस्टल में रहते थे. वहां पहले अगड़ी जातियों के लड़कों को खाना मिलता था. उसके बाद ही अन्य छात्रों को खाना दिया जाता था. उस स्कूल में उच्च वर्ग के बच्चे बेंच पर बैठते थे और निम्न वर्ग के बच्चे जमीन पर बैठते थे. उन्होंने इन दोनों बातों के खिलाफ आवाज उठाई और उसी के बाद पिछड़ों को भी बराबरी का हक मिला था.
राजनीति में एंट्रीः स्वर्गीय बीपी मंडल 1952 में हुए प्रथम आम चुनाव में विधायक बने थे. विधानसभा में उनके ओजस्वी भाषण से बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह बहुत ही प्रभावित हुए थे. हालांकि 1957 में मंडल बाबू चुनाव हार गए लेकिन 1962 में फिर विधायक बने. 1965 में मधेपुरा में पामा गांव में पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ सदन में बात रखनी चाही तो उन्हें नहीं बोलने दिया गया. इसी बात से खफा होकर उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की सरकार बनायीः कांग्रेस से त्यागपत्र देने के बाद वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ज्वाइन किया. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ज्वाइन करने के बाद उन्होंने पूरे बिहार में पार्टी के लिए बहुत मेहनत की और 1967 के बिहार विधानसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी 69 सीट जितने में कामयाब हुई. बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी और बीपी मंडल उसे सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए. इसी बीच पार्टी के अंदरूनी कलह के कारण बीपी मंडल पार्टी छोड़ दी.
मात्र 50 दिन चली सरकारः संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी छोड़ने के बाद बीपी मंडल ने दल का गठन किया. बीपी मंडल जब शोषण दल का गठन किए तो 1 फरवरी 1968 को कांग्रेस के सहयोग से बीपी मंडल बिहार के मुख्यमंत्री बने. शोषित दल का बिहार में सरकार बना लेकिन यह सरकार बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी. 45 दिनों के अंदर ही बीपी मंडल की सरकार गिर गई. उनकी सरकार मात्र 50 दिनों तक ही चल पाई थी.
फिर से कांग्रेस का साथ छूटाः बीपी मंडल पिछड़े वर्ग के बड़े चेहरे के रूप में उभर कर सामने आए थे. उनकी सरकार के कम दिनों तक चलने के पीछे यह कहा गया कि टीएल वेंकटराम अय्यर की अध्यक्षता वाले अय्यर आयोग को हटाने का विरोध किया था. यही कारण है कि उनके सरकार से कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया था. 1968 में लोकसभा के उपचुनाव में बीपी मंडल चुनाव जीत कर फिर से संसद के सदस्य बने. 1972 में बिहार विधानसभा का चुनाव जीता इसके बाद 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर फिर से संसद के सदस्य बने.
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, सामाजिक न्याय आंदोलन के महान विचारक, वंचितों उपेक्षितों को आरक्षण के माध्यम से मुख्यधारा में लाने के लिए मंडल कमीशन के द्वारा पुरजोर कोशिश करने वाले मंडल आयोग के अध्यक्ष स्व॰ बी.पी मंडल साहब की जयंती पर कोटि-कोटि प्रणाम, शत-शत नमन व विनम्र श्रद्धांजलि।… pic.twitter.com/nNfji89DTQ
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) August 25, 2024
मुख्यमंत्री के शुद्ध होने की चर्चाः बीपी मंडल के पौत्र निखिल कुमार मंडल ने ईटीवी भारत से बातचीत में एक दिलचस्प बात बताई. निखिल मंडल ने कहा कि उनके दादाजी जब बिहार के मुख्यमंत्री बने थे उस समय बरौनी रिफाइनरी में तेल का रिसाव हुआ था. तेल रिस कर गंगा नदी में मिल गई थी और आग लग गई. उसे समय बिहार विधानसभा का सदन चल रहा था और सदन में विधायक विनोदानंद झा ने कहा था कि जब शुद्ध मुख्यमंत्री बनेगा तो गंगा में आग ही लगेगी.
बीपी मंडल के वक्तव्य की चर्चाः विनोदानंद झा के जवाब में बीपी मंडल ने कहा था कि गंगा में आग तो तेल के रिसाव से लगी है. परंतु एक पिछड़े वर्ग के बेटे के मुख्यमंत्री बनने से आपके दिल में जो आग लगी है उसे हर कोई महसूस कर सकता है. निखिल मंडल ने बताया कि यह बिहार विधानसभा में ऑन रिकॉर्ड उनके वक्तव्य दर्ज हैं. इस बयान की खूब चर्चा हुई थी.
बीपी मंडल की अध्यक्षता में पिछड़ा आयोग का गठन : देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया. इसे मंडल कमीशन के नाम से जाना गया. कुछ ही दिनों के बाद मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई. फिर से इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के सरकार का गठन हुआ.
27 प्रतिशत आरक्षण मिलाः दिसंबर 1980 में मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को सौंपी. इस रिपोर्ट में सभी धर्मों के पिछड़े वर्ग की साढ़े तीन हजार से भी ज्यादा जातियों की पहचान की गई. कमीशन ने उन्हें सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की. अगस्त 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने केंद्र सरकार की नौकरियों में 27 प्रतिशत ओबीसी कोटा लागू करने का ऐतिहासिक ऐलान किया था.
मंडल कमीशन की सिफारिशः मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार की नौकरियों में पिछड़े वर्गों को 27 परसेंट आरक्षण मिला. इसी आयोग की एक और सिफारिश के आधार पर केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में दाखिलों में भी पिछड़े वर्गों को 27 परसेंट आरक्षण दिया गया. हालांकि इस आयोग की 40 में से ज्यादातर सिफारिशों पर अब तक अमल नहीं हुआ है.
रिपोर्ट को लेकर प्रलोभनः बीपी मंडल के पौत्र निखिल कुमार मंडल ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि जब वह बहुत छोटे थे तब उनके दादाजी एक दिलचस्प किस्सा बताए थे. मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लटकाने के लिए उनके दादा जी को प्रलोभन दिया गया था. कहा गया कि यदि आप इस आयोग से अलग हो जाएंगे तो आपको उच्च पद दिया जा सकता है यानी गवर्नर तक का प्रलोभन दिया जाएगा, लेकिन उन्होंने सिद्धांत के साथ कभी समझौता नहीं किया.
डॉ जगन्नाथ मिश्र के कार्यकाल में निधनः 13 अप्रैल 1982 को पटना में बीपी मंडल का निधन हुआ था. उस समय डॉ जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री थे. मंडल जी के परिजनों ने इच्छा जताई कि उनका अंतिम संस्कार मधेपुरा स्थित पैतृक गांव मुरहो में हो. जगन्नाथ मिश्र ने उनके परिजनों की इच्छा के अनुरूप उनका अंतिम संस्कार उनके गांव में करवाने का निर्णय लिया. खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्रा उनके शव के साथ उनके गांव तक भी गए थे. ऐसे थे बिहार के नेता बीपी मंडल.
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